बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

घी को ओषधी माना गया है

ह्रदयरोग के साथ मोटापे और दिल के
रोगियों का सबसे अधिक गुस्सा घी पर
ही उतरता है। आयुर्वेद में
घी को ओषधी माना गया है । इस सबसे
प्राचीन सात्विक आहार से
सर्वदेशों का निवारण होता है । वात और
पित्त को शांत करने में सर्वश्रेष्ट है साथ
ही कफ भी संतुलित होता है । इससे स्वस्थ
वसा प्राप्त होती है , जो लीवर और रोग
प्रतिरोधक प्रणाली को ठीक रखने के लिए
जरूरी है । घर का बना हुआ घी बाजार के
मिलावटी घी से कही बेहतार होता है । यह
तो पूरा का पूरा सैचुरेटेड फैट है ,कहते हुए आप
इंकार में अपना सिर हिला रहे होगे ।
ज़रा धीरज रखे । घी में उतने अवगुण
पाली अनासोचुरेतेड वसा को आग पर
चढना अस्वास्थकर
होता है ,क्योंकी ऐसा करने से पैराक्सैड्स और
एनी फ्री रेडिकल्स निकलते है । इन
पदार्थों की वजह से अनेक बीमारिया और
समस्याएँ पैदा होती है । इसका अर्थ यह भी है
कि वनास्पतिजन्य सभी खाध्य तेल स्वास्थ
केलिए कमोवेश हानिकारक तो है ही।
फायदेमंद है घी
घी का मामला थोड़ा जुदा है। वो इसलिए
कि घी का स्मोकिंग पाइंट दूसरी वसा ओं
की तुलना में बहुत अधिक है । यही वजह है
कि पकाते समय आसानी से नहीं जलता ।
घी में स्थिर सैचुरेटेड बाँडस बहुत अधिक होते है
जिससे फ्री रेडीकल्स निकलने
की आशंका बहुत कम होती है ।
घी की छोटी फैटी एसिड की चेन को शरीर
बहुत जल्दी पचा लेता है । अब तक
तो सभी यही समझा रहे थे
कि देशी घी ही रोगों की सबसे बड़ी जड़ है ?
कोलेस्ट्राल कम होता है
घी पर हुए शोध बताते है कि इससे रक्त और
आँतों में मोजूद कोलेस्ट्राल कम होता है ।
ऐसा इसलिए होता है , क्यों कि घी से
बाइलारी लिपिड का स्राव बढ़ जाता है ।
घी नाही प्रणाली एवं मस्तिष्क की श्रेष्ट
ओषधि माना गया है । इससे आँखों पर पड़ने
वाला दबाव कम होता है , इसलिए
ग्लूकोमा के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है
। सकता है इस जानकारी ने आपको आश्चर्य
में दाल दिया हो । घी पेट के एसिड्स के
बहाव को बढाने में उत्प्रेरक का काम करता है
जिससे पाचन क्रिया ठीक होती है । दूसरे
अन्य वसा में यह गुण नहीं है । मक्खन , तेल
आदि पाचन क्रिया को धीमा कर देते है और
पेट में निष्क्रिय होकर बैठ जाते है । जाहिर है
कि आप ऐसा नहीं चाहेगे । घी में भरपूर
एंटी आक्सीडेट्स होते है तथा यह अन्य खाध्य
पदार्थों से प्राप्त विटामिन और
खनिजों को जज्ब करने में मदद करता है ।
यह शरीर के सभी ऊतकों की प्रत्येक सतह
का पोषण करता है तथा रोग प्रतिरोधक
प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है । इसमें
ब्यूटिरिक एसिड नामक फैटी एसिड
भी भरपूर होता हैजिसे एंटीवायरल
माना जाता है । एंटीवायरल विशेषता ओं के
कारण कैसर की गठान की वृद्दि रूक जाती है
। जलने के कारण हुए फफोलों पर घी बहुत
अच्छा काम करता है । घी याददाश्त
को बढाने और सीखने
की प्रवृत्ति को विकसित करने में मदद
करता है । ध्यान देने योग्य सलाह यह है
की कोलेस्ट्राल की मात्रा कम हो लेकिन
जिनका कोलेस्ट्राल पहले से ही बढ़ा हुआ है
उन्हें घी से परहेज रखना चाहिए ।
घी खाएं या नहीं …
यदि आप स्वास्थ्य है, तो घी जरूर
खाएं ,क्योंकी यह मक्खन से अधिक सुरक्षित
है । इसमें तेल से अधिक पोषक तत्व है। आपने
पंजाब और हरियाणा के
निवासियों को देखा होगा । वे
टनों घी खाते है ,लेकिन सबसे अधिक फिट
और मेहनीत होते है ।यद्यपि घी पर अभी और
शोधों के नतीजे आने शेष है , लेकिन प्राचीन
काल से ही आयुर्वेद में अल्सर , कब्ज ,
आँखों की बीमारियों के साथ
त्वचा रोगों के इलाज के लिए घी का प्रयोग
किया जाता है ।
क्या रखें सावधानियां ……
भैस के दूध के मुकाबले गाय के दूध में
वसा की मात्रा कम होती है । इसलिए शुरू में
निराश न हो । हमेशा इतना बनाएं की वह
जल्दी ही ख़त्म हो जाए । अगले हफ्ते
पुनः यही प्रक्रिया दोहराई जा सकती है ।
गाय के दूध में सामान्य दूध की ही तरह प्रदूषण
का असर हो सकता है , मसलन कीटनाशक और
कृत्रिम खाद के अंश चारे के साथ के पेट में
जा सकते है । जैविक घी में इस तरह के प्रदूषण से
बचने की कोशिश की जाती है । यदि संभव
हो तो गाय के दूध में कीटनाशकों और
रासायनिक खाद के अंश की जांच कराई
जा सकती है । जिस तरह हर चीज
की अति बुरी होती है इसी तरह
घी का प्रयोग भी संतुलित मात्रा में
किया जाना चाहिए ।

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