मंगलवार, 18 अगस्त 2015

रिफाइंड तेल या आपकी जल्दी से अर्थी उठाने का प्रबंध !

रिफाइंड तेल या आपकी जल्दी से अर्थी उठाने का प्रबंध !
आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइंड तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20-25 वर्षों से हमारे देश में आया है| कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं| इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जमकर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होने डोक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया| डोक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइंड तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ ? अब क्यों, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं|
ये रिफाइंड तेल बनता कैसे हैं ? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे| किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6 से 7 posion केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइन करने में ये संख्या 12-13 हो जाती है| ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम ओरगेनिक कहते हैं| तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है| इसलिए रिफाइन तेल, डबल रिफाइन तेल गलती से भी न खाएं ? फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ? तो आप शुद्ध तेल खाइए, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का| अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत
आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है ?
हम लोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन
उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है| तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है
वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic content है प्रोटीन के लिए| 4-5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब| अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी | और ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज
हो जाना, आदि, आदि| जिन-जिन घरों में पुरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे !
अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइन तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही है| जब सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया,
सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इसपर काम किया और कहा “तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास
को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है|” आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ?
मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotin), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं
तब| तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे|
अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है| मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में, वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है| 7-8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दुसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है| भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है| और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा| क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है|
रिफाइंड तेल की जगह कच्ची घानी तेल या मूंगफ़ली, सरसों, तिल, olive का तेल ही खाएँ !
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लीवर की बीमारी की रोकथाम ही सर्वोत्‍तम उपाय

लीवर की बीमारी की रोकथाम ही सर्वोत्‍तम उपाय
अनियमित दिनचर्या और बाहर का खाने से लीवर होता है कमजोर।
इसके कारण कैंसर, सिरोसिस, हेपेटाइटिस और पी‍लिया हो जाता है।
हमारे लीवर को सबसे अधिक नुकसान शराब के सेवन से होता है।
हेपेटाइटिस के टीके, नियमित व्‍यायाम आदि से रखें लीवर के फिट।
हमारे शरीर के प्रमुख अंगों में एक है लीवर यानी यकृत। यदि आपका लीवर ठीक प्रकार से काम नहीं कर पा रहा है तो सावधान हो जाइए क्‍योकि यह खतरे की घंटी है। लीवर की खराबी को को अनदेखा बिलकुल न करें। लीवर में खराबी होने से लीवर कैंसर, लीवरसिरोसिस, हेपेटाइटिस (इसमें ए, बी, सी, डी, र्इ शामिल हैं), पीलिया की समस्‍यायें होती हैं।
अनियमित दिनचर्या और खानपान में लापरवाही ही लीवर की खराबी के लिए सबसे अधिक जिम्‍मेदार है। शराब का अधिक मात्रा में सेवन भी लीवर को नुकसान पहुंचाता है। खाने में तेल और मसाले का अधिक प्रयोग करना, फास्‍ट फूड का अधिक सेवन करने सेलीवर कमजोर होता है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि आप इसका रोकथाम कीजिए। इस लेख में जानिए कि कैसे लीवर बीमारी की रोकथाम की जाये।
लीवर की बीमारी की रोकथाम के उपाय
शराब न पियें
लीवर की बीमारी सिरोसिस के लिए सबसे अधिक जिम्‍मेदार है शराब का सेवन, लेकिन ऐसा नहीं कि यह शराब नहीं पीने वालों को नहीं हो सकता है। लेकिन शराब पीने वालों को यह ज्‍यादा होता है। इंस्टीटयूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंसेज द्वारा कराये गये शोध की मानें तो लीवर की बीमारी के लिए सबसे अधिक जिम्‍मेदार शराब है।
खानपान पर ध्‍यान
लीवर को बीमार होने से बचाने के लिए जरूरी है खानपान में बदलाव करें। ऐसे आहार का सेवन करें जिसमें विटामिन, फाइबर, प्रोटीन, मिनरल्‍स मौजूद हों। बाहर का खाना खाने से परहेज करें। ताजे फल और हरी सब्जियों को अपने डायट चार्ट में शामिल कीजिए। ज्‍यादा फैटी आहार का सेवन करने से बचें।
नियमित व्‍यायाम
एक्‍सरसाइज करके आप खुद को फिट तो रखते हैं साथ ही कई खतरनाक बीमारियों से भी शरीर को बचाते हैं। यदि आपकी दिनचर्या में व्‍यायाम शामिल है तो आपको लीवर की बीमारियां नहीं होंगी। यदि आप व्‍यायाम नहीं करते तो इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कीजिए और अपने लीवर को बीमारियों से बचाइए।
जांच करायें
आपको बीमारियां नहीं हो रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप पूरी तरह से फिट और स्‍वस्‍थ हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप नियमित जांच कराते रहें। नियमित जांच को उम्र से न जोड़ें, बीमारियां किसी भी उम्र में हो सकती हैं। इसलिए हर साल लीवर की स्‍क्रीनिंग जांच अवश्‍य करायें।
हेपेटाइटिस के टीके
हेपेटाइटिस लीवर से संबंधित बीमारी है, इससे बचाव के लिए जरूरी है इसके टीके लगवायें जायें। यदि आप अपने लीवर की बीमारियों की रोकथाम चाहते हैं तो हेपेटइाइटिस के टीके अवश्‍य लगवायें।
लीवर की बीमारी के लक्षण
यकृत को रोगों से जुड़े लक्षण आपको पता हों तो इस बीमारी की शुरूआती अवस्‍था में ही इलाज हो सकता है। इसके लक्षणों को बिलकुल भी नजरअंदाज न करें। मुंह से बदबू आना, आंखों के नीचे काले घेरे, पाचन तंत्र में खराबी, त्‍वचा पर सफेद दाग, गहरे रंग का पेशाब, आंखों में पीलापन, स्‍वाद न मिलना, पेट में सूजन होने जैसे लक्षण लीवर के खराबी के कारण दिखाई देते हैं।
लीवर को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है इसकी रोकथाम की‍ जाये, ऐसे व्‍यसनों तो त्‍याग दीजिए जो आपके लीवर को कमजोर बनाते हैं। यदि आपको लीवर की बीमारियों के लक्षण दिखें तो चिकित्‍सक से तुरंत संपर्क करें।

अर्जुन की छाल के फ़ायदे --------

अर्जुन की छाल के फ़ायदे --------
शरीर शास्त्री वैज्ञानिकों और
चिकित्सकों ने
अनुसंधान व प्रयोगों में 'अर्जुन' वृक्ष को
हृदय रोग की
चिकित्सा में बहुत गुणकारी पाया है।
आयुर्वेद ने तो सदियों पहले इसे हृदय रोग
की महान
औषधि घोषित कर दिया था। आयुर्वेद के
प्राचीन
विद्वानों में वाग्भट, चक्रदत्त और
भावमिश्र ने इसे
हृदय रोग की महौषधि स्वीकार किया है।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- ककुभ।
हिन्दी-
अर्जुन, कोह। मराठी- अर्जुन सादड़ा।
गुजराती-
सादड़ो । तेलुगू- तेल्लमद्दि। कन्नड़- मद्दि।
तमिल मरुतै,
बेल्म। इंग्लिश- अर्जुना। लैटिन-
टरमिनेलिया अर्जुन।
गुण : यह शीतल, हृदय को हितकारी,
कसैला और क्षत,
क्षय, विष, रुधिर विकार, मेद, प्रमेह, व्रण,
कफ तथा
पित्त को नष्ट करता है।
परिचय : इसका वृक्ष 60 से 80 फीट तक
ऊंचा होता
है। इसके पत्ते अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। यह
विशेषकर
हिमालय की तराई, बंगाल, बिहार और
मध्यप्रदेश के
जंगलों में और नदी-नालों के किनारे
पंक्तिबद्ध लगा
हुआ पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में फल
पकते हैं।
उपयोग : इसका मुख्य उपयोग हृदय रोग के
उपचार में
किया जाता है। यह हृदय रोग की
महाऔषधि माना
जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग
रक्तपित्त,
प्रमेह, मूत्राघात, शुक्रमेह, रक्तातिसार
तथा क्षय और
खांसी में भी लाभप्रद रहता है।
हृदय रोग : हृदय रोग के रोगी के लिए
अर्जुनारिष्ट
का सेवन बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
दोनों वक्त
भोजन के बाद 2-2 चम्मच (बड़ा चम्मच)
यानी 20-20
मि.ली. मात्रा में अर्जुनारिष्ट आधा कप
पानी में
डालकर 2-3 माह तक निरंतर पीना
चाहिए। इसके
साथ ही इसकी छाल का महीन चूर्ण कपड़े
से छानकर
3-3 ग्राम (आधा छोटा चम्मच) मात्रा में
ताजे पानी
के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
रक्तपित्त : चरक के अनुसार, इसकी छाल
रातभर
पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसल-
छानकर या
काढ़ा बनाकर पीने से रक्तपित्त नामक
व्याधि दूर
हो जाती है।
मूत्राघात : पेशाब की रुकावट होने पर
इसकी
अंतरछाल को कूट-पीसकर 2 कप पानी में
डालकर
उबालें। जब आधा कप पानी शेष बचे, तब
उतारकर छान
लें और रोगी को पिला दें। इससे पेशाब की
रुकावट दूर
हो जाती है। लाभ होने तक दिन में एक
बार पिलाएं।
खांसी : अर्जुन की छाल को सुखा लें और
कूट-पीसकर
महीन चूर्ण कर लें। ताजे हरे अडूसे के पत्तों
का रस
निकालकर इस चूर्ण में डाल दें और चूर्ण
सुखा लें, फिर
से इसमें अडूसे के पत्तों का रस डालकर सुखा
लें। ऐसा
सात बार करके चूर्ण को खूब सुखाकर पैक
बंद शीशी में
भर लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम (छोटा आधा
चम्मच)
मात्रा में शहद में मिलाकर चटाने से रोगी
को खांसी
में आराम हो जाता है।
अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक
औषधीय और
सदाबहार वृक्ष है भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों
में नदी-
नाले के किनारे, सड़क के किनारे ओर
जंगलों में यह
महा औषधिये वर्क्ष बहुतायत में पाया
जाता है।
इसका उपयोग रक्तपित्त (खून की उल्टी),
प्रमेह,
मूत्राघात, शुक्रमेह, खूनी प्रदर, श्वेतप्रदर,
पेट दर्द, कान
का दर्द, मुंह की झांइयां,कोढ बुखार, क्षय
और खांसी
में भी लाभप्रद रहता है। हृदय रोग के लिए
तो इसे
रामबाण औषधि माना जाता है। यह
नाडी की
क्षीणता को सक्रिय करता है, पुराणी
खांसी,
श्वास दमा, मधुमेह, सूजन,जलने पर, मुंह के
छाले पर और
हिस्टीरिया आदि रोगों में लाभदायक
है। हृदय की
रक्तवाही नलिकाओं में थक्का बनने से
रोकता है। यह
शक्तिवर्धक, चोट से निकलते खून को
रोकने वाला
(रक्त स्तम्भक) एवं प्रमेह नाशक भी है। इसे
मोटापे को
रोकने, हड्डियों को जोड़ने में, खूनी
पेचिश में,
बवासीर में, खून की कलाटिंग रोकने में
मदद करता है
और केलोस्ट्राल को भी घटाता है। यह
ब्लड प्रेशर को
नियंत्रित करता है, पत्थरी को निकलता
है, लीवर
को मजबूत करता है, बवासीर को ठीक
करता है।
ताकत को बढ़ाने के लिए और यह
एंटीसेप्टिक का भी
काम करता है।
अर्जुन की छाल शारीरिक कमजोरी में
हृदयाघात में,
हृदय शूल में खूनी बवासीर में पेशाब की
जलन, श्वेत
प्रदर, सूजन व दर्द में तथा चर्म रोगों में एक
चम्मच अर्जुन
की छाल चूर्ण रूप में घी या गुड़ के साथ देते
हैं। हृदय
गति ढीली पड़ने पर अर्जुन की छाल व गुड़
को दूध में
उबाल कर पिलाते हैं।
एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण एक कप
(मलाई
रहित) दूध के साथ सुबह-शाम नियमित
सेवन करने से
हृदय के सभी रोगों में लाभ मिलता है,
दिल की धड़कन
सामान्य होती है।
अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ
एक चम्मच
इस चूर्ण को उबालकर ले सकते हैं। उच्च
रक्तचाप भी
सामान्य हो जाता है। चायपत्ती की
बजाये अर्जुन
की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय
बनायें, यह और
भी प्रभावी होगी। अर्जुन की छाल और
गुड़ को दूध
में उबाल कर रोगी को पिलाने से दिल
मजबूत होता है
और सूजन मिटता है।
एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच
अर्जुन की छाल
का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से
दिल की
धड़कन सामान्य हो जाती है।
अर्जुन की छाल और मिश्री मिला कर
हलुवा बना ले,
इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा,
दिल की
घबराहट, अनियमित धड़कन आदि से
निजात मिलती
हैं।
अर्जुन की छाल का दूध के साथ काढ़ा
बना ले यह
काढ़ा हार्ट अटैक हो चुकने पर सुबह शाम
सेवन करें। इस
से हृदय की तेज धड़कन, हृदय शूल, घबराहट में
निश्चित
तोर से कमी आती हैं।
अर्जुन की छाल को कपड़े से छान ले इस
चूर्ण को
जीभ पर रखकर चूसते ही हृदय की अधिक
अनियमित
धड़कनें नियमित होने लगती है। यह दोष
रहित है और
इस का प्रभाव तुरंत स्थायी तोर पर होने
लगता है।
आधा किलो दूध में दो चम्मच (टेबल स्पून)
अर्जुन की
छाल का चूर्ण मिला कर उबालकर खोया
बना लें और
खोये के बराबर का मिश्री पाउडर
मिलाकर, हर रोज
इस मिठाई को खाकर दूध पीने से हृदय की
अनियमित
धड़कन सामान्य होती है।
अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर,
कूट-पीसकर
और छान कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन एक
चम्मच चूर्ण
गाय के घी और मिश्री के साथ मिलाकर
सेवन करने से
दिल की कमजोरी दूर होती है। अर्जुन की
छाल को
गुड़ और मुलेठी तीनों को दूध में उबालकर
भी सेवन कर
सकते है।
अर्जुन शक्तिदायक टानिक है जो अपने
लवण-खनिजों
से दिल की मांसपेशियों को मजबूत
बनाता है। घी,
दूध ,मिश्री या गुड़ के साथ अर्जुन की
छाल का
महीन चूर्ण नियमित सेवन करने से हृदय रोग,
जीर्णज्वर,
रक्त पित्त रोग दूर होते है तथा सेवन करने
वाले की
उम्र भी बढाती है।
अर्जुन की छाल के चूर्ण की गुड़ के साथ
फंकी लेने से
जीर्ण ज्वर ठीक होता है। तथा रात को
दूध और
चावल की खीरबना कर इस में सुबह 4 बजे
अर्जुन की
छाल के 2 चम्मच चूर्ण को मिलाकर सेवन
करने से श्वांस
रोग नष्ट हो जाते है।
अर्जुन की छाल में जरा-सी भुनी हेई हींग
और सेंधा
नमक मिलाकर सुबह-शाम गुनगुने पानी के
साथ फंकी
लेने से गुर्दे का दर्द, पेट के दर्द और पेट की
जलन में लाभ
होता है।
अर्जुन हृदय के विराम काल को बढ़ाता है
और ह्रदय
को मजबूत करता है तथा यह शरीर में जमा
नहीं होता।
यह मल-मूत्र द्वारा स्वयं ही बाहर निकल
जाता है।
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर
पानी में
भिगोकर सुबह उसको उबालकर उसका
काढ़ा पीने से
रक्तपित्त (खून की उल्टी) में लाभ होता
है। खून की
उल्टी में अर्जुन की छाल के 2 चम्मच
बारीक चूर्ण को
दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे
रक्त का
बहना रुकता है।
रक्तदोष त्वचा रोग एवं कुष्ठ रोग में अर्जुन
की छाल
का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने
से व इसकी
छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप
करने एवं
अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर या
गुनगुने
पानी में मिलाकर नहाने से कुष्ठ और
त्वचा रोगों में
बहुत लाभ होता है।
अर्जुन की छाल को रातभर पानी में
भिगोकर रखें,
सुबह इसे मसलकर-छानकर या काढ़ा
बनाकर पीने से
रक्तपित्त रोग ठीक होता है।
पेशाब की रुकावट को खोलने के लिए
अर्जुन की
छाल को एक गिलास पानी में डालकर
1/4 भाग शेष
रह जाने तक उबालें। और छान कर रोगी को
हर रोज
सुबह लाभ होने तक पिलाये, पेशाब के खुलने
के साथ-
साथ धातु का आना भी बंद हो जाता है।
सूखी अर्जुन की छाल को कूट-पीसकर
महीन चूर्ण कर
लें और अडूसे के ताजे पत्तों का रस
निकालकर इस चूर्ण
में डाल कर चूर्ण को सुखा लें, फिर अडूसे के
पत्ते का
रस डाले और फिर सुखा ले ऐसा सात बार
करे चूर्ण
को सुखाकर शीशी में भर लें। इसके आधा
चम्मच चूर्ण
को शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से
रोगी की
खांसी में राहत मिलती है।
अर्जुन की छाल को शीशे या मिटटी के
बर्तन में एक
दिन के लिए भिगो दे दूसरे दिन इस छाल
को पीसकर
सुखा ले सूखने पर दोबारा पीस कर व छान
कर किसी
साफ़ बर्तन में भर कर रख लें। इस एक चम्मच
चूर्ण को
पानी में उबाल कर शहद मिला कर दिन में
तिन बार
सेवन से हर प्रकार की खांसी (क्षय रोग
की खून
मिश्रित खांसी) और पुरानी से पुराणी
खांसी में भी
आराम आता है ।
अर्जुन की छाल को बकरी के दूध में
पीसकर दूध और
शहद मिलकर पिलाने से खूनी दस्तो में
शीघ्र आराम
आ जाता है।
हड्डी टूट जाने और चोट लगने पर भी अर्जुन
की छाल
शीघ्र लाभ करती है। अर्जुन की छाल के
चूर्ण की
फंकी दूध के साथ लेने से टूटी हुई हड्डी जुड़
जाती है।
और अर्जुन की छाल को पानी के साथ
पीसकर लेप
करने से दर्द में भी आराम मिलता है। टूटी
हड्डी के
स्थान पर अर्जुन की छाल को घी में
पीसकर लेप करेंके
पट्टी बांध ले हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
आग से जलने पर होने वाला घाव पर अर्जुन
की छाल के
चूर्ण को लगाने से घाव शीघ्र ही भर
जाता है। अर्जुन
छाल को कूट कर काढ़ा बनाकर घावों और
जख्मों
को धोने से लाभ होता है।
बवासीर में अर्जुन की छाल, बकायन के
फल और
हारसिंगार के फूल तीनो को पीसकर
बारीक चूर्ण
बनाले इसे दिन में दो-तिन बार नियमित
सेवन करने से
खूनी बवासीर ठीक हो जाता है तथा
बवासीर के
मस्से ठीक हो जाते है।
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण
शारीर पर
उबटन की तरह लगाकर कुछ देर बाद नहाने से
अधिक
पसीने से पैदा दुर्गंध दूर होती है ।
नारियल के तेल में अर्जुन की छाल के चूर्ण
को
मिलाकर मुंह के छालों पर लगायें। मुंह के
छाले ठीक हो
जायेंगे।
विशेष : सीने में दर्द की शिकायत की
अनदेखा न करें
और न ही खुद से दवा या उपचार लें, बल्कि
हृदय का
उपचार किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही
होना
चाहिए।