गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

10 भयावह सच जो डॉक्टर मरीज को नहीं बताते!

10 भयावह सच जो डॉक्टर मरीज को नहीं बताते!

 
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1. दवाइयों से डायबिटीज बढ़ती है अक्सर डायबिटीज शरीर में इंसुलिन की कमी होने से पैदा होती है।
लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुछ खास दवाईयों के असर से भी शरीर में डायबिटीज होती है।
इन दवाइयों में मुख्यतया एंटी डिप्रेसेंट्स, नींद की दवाईयां, कफ सिरफ तथा बच्चों को एडीएचडी (अतिसक्रियता) के लिए दी जाने वाली दवाईयां शामिल हैं। इन्हें दिए जाने से शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और व्यक्ति को मधुमेह का इलाज करवाना पड़ता है।
2. बिना वजह लगाई जाती है कुछ वैक्सीन वैक्सीऩ लोगों को किसी बीमारी के इलाज के लिए लगाई जाती है। परन्तु कछ वैक्सीन्स ऎसी हैं तो या तो बेअसर हो चुकी है या फिर वायरस को फैलने में मदद करती है जैसे कि फ्लू वायरस की वैक्सीन। बच्चों को दिए जाने
वाली वैक्सीन डीटीएपी केवल बी.परट्यूसिस से लड़ने के लिए बनाई गई है
जो कि बेहद ही मामूली बीमारी है। परन्तु डीटी एपी की वैक्सीन फेफड़ों के
इंफेक्शन को आमंत्रित करती है जो दीर्घकाल में व्यक्ति की इम्यूनिटी पॉवर को कमजोर कर देती है।
3. कैन्सर हमेशा कैन्सर ही नहीं होता यूं तो कैन्सर स्त्री-पुरूष दोनों में
किसी को भी हो सकता है लेकिन ब्रेस्ट कैन्सर की पहचान करने में
अधिकांशतया डॉक्टर गलती कर जाते हैं। सामान्यतया स्तन पर हुई
किसी भी गांठ को कैंसर की पहचान मान कर उसका उपचार किया जाता है
जो कि बहुत से मामलों में छोटी-मोटी फुंसी ही निकलती है। उदाहरण के
तौर पर हॉलीवुड अभिनेत्री ए ंजेलिना जॉली ने मात्र इस संदेह पर अपने
ब्रेस्ट ऑपरेशन करके हटवा दिए थे कि उनके शरीर में कैन्सर पैदा करने
वाला जीन पाया गया था।
4. दवाईयां कैंसर पैदा करती हैं ब्लड प्रेशर या रक्तचाप (बीपी)
की दवाईयों से कैन्सर होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। ऎसा इसलिए
होता है क्योंकि ब्लडप्रेशर की दवाईयां शरीर में कैल्सियम चैनल
ब्लॉकर्स की संख्या बढ़ा देता है जिससे शरीर में कोशिकाओं के मरने
की दर बढ़ जाती है और प्रतिक्रियास्वरूप कोशिकाएं बेकार होकर कैंसर
की गांठ बनाने में लग जाती हैं।
5. एस्पिरीन लेने से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है
हॉर्ट अटैक तथा ब्लड क्लॉट बनने से रोकने के लिए दी जाने वाली दवाई
एस्पिरीन से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा लगभग 100 गुणा बढ़
जाता है। इससे शरीर के आ ंतरिक अंग कमजोर होकर उनमें रक्तस्त्राव
शुरू हो जाता है। एक सर्वे में पाया गया कि एस्पिरीन डेली लेने वाले
पेशेंट्स में से लगभग 10,000 लोगों को इंटरनल ब्लीडिंग
का सामना करना पड़ा।
6. एक्स-रे से कैन्सर होता है आजकल हर छोटी-छोटी बात पर डॉक्टर
एक्स-रे करवाने लग गए हैं। क्या आप जानते हैं कि एक्स-रे करवाने के
दौरान निकली घातक रेडियोएक्टिव किरणें कैंसर पैदा करती हैं। एक
मामूली एक्स-रे करवाने में शरीर को हुई हानि की भरपाई करने में कम से
कम एक वर्ष का समय लगता है। ऎसे में यदि किसी को एक से अधिक
बार एक्स-रे क रवाना पड़े तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
7. सीने में जलन की दवाई आंतों का अल्सर साथ लाती है बहुत बार
खान-पान या हवा-पानी में बदलाव होने से व्यक्ति को पेट
की बीमारियां हो जाती है। इनमें से एक सीने में जलन का होना भी है
जिसके लिए डॉक्टर एंटी-गैस्ट्रिक दवाईयां देते हैं। इन मेडिसीन्स से
आंतों का अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है, साथ ही साथ
हडि्डयों का क्षरण होना, शरीर में विटामिन बी12 को एब्जॉर्ब करने
की क्षमता कम होना आदि बीमारियां व्यक्ति को घेर लेती हैं। सबसे
दुखद बात तब होती है जब इनमें से कुछ दवाईयां बीमारी को दूर
तो नहीं करती परन्तु साईड इफेक्ट अवश्य लाती हैं।
8. दवाईयों और लैब-टेस्ट से डॉक्टर्स कमाते हैं मोटा कमीशन यह अब
छिपी बात नहीं रही कि डॉक्टरों की कमाई का एक मोटा हिस्सा दवाईयों के
कमीशन से आता है। यहीं नहीं डॉक्टर किसी खास लेबोरेटरी में
ही मेडिकल चैकअप के लिए भेजते हैं जिसमें भी उन्हें अच्छी खासी कमाई
होती है। कमीशनखोरी की इस आदत के चलते डॉक्टर अक्सर जरूरत से
ज्यादा मेडिसिन दे देते हैं।
9. जुकाम सही करने के लिए कोई दवाई नहीं है नाक की अंदरूनी त्वचा में सूजन आ जाने से जुकाम होता है। अभी तक मेडिकल साइंस इस बात का कोई कारण नहीं ढूंढ पाया है कि ऎसा क्यों होता है और ना ही इसका कोई कारगर इलाज ढूंढा जा सका है। डॉक्टर जुकाम होने पर एंटीबॉयोटिक्स लेने की सलाह देते हैं परन्तु कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि जुकाम 4 से 7 दिनों में अपने आप ही सही हो जाता है।
जुकाम पर आपके दवाई लेने का कोई असर नहीं होता है, हां आपके शरीर को एंटीबॉयोटिक्स के साईड-इफेक्टस जरूर झेलने पड़ते हैं।
10. एंटीबॉयोटिक्स से लिवर को नुकसान होता है मेडिकल साइंस की सबसे अद्भुत खोज के रूप में सराही गई दवाएं एंटीबॉयोटिक्स हैं।
एंटीबॉयोटिक्स जैसे पैरासिटेमोल ने व्यक्ति की औसत उम्र बढ़ा दी है और स्वास्थ्य लाभ में अनूठा योगदान दिया है, लेकिन तस्वीर के दूसरे पक्ष के रूप में एंटीबॉयोटिक्स व्यक्ति के लीवर को डेमेज करती है।
यदि लंबे समय तक एंटीबॉयोटिक्स का प्रयोग कि या जाए तो व्यक्ति की किडनी तथा लीवर बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और उनका ऑपरेशन करना पड़ सकता है

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