शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

उपचार -यूरिक एसिड बढ़ने पर आजमाए .....!

उपचार -यूरिक एसिड बढ़ने पर आजमाए .....!
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* यूरिक एसिड, प्‍यूरिन के टूटने से बनता है जो खून के माध्‍यम से बहता हुआ किडनी तक पहुंचता है। ‪#‎यूरिक‬ एसिड, शरीर से बाहर, पेशाब के रूप में निकल जाता है। लेकिन, कभी - कभार यूरीक एसिड शरीर में ही रह जाता है और इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। ऐसा होना शरीर के लिए घातक होता है।

* यूरिक एसिड के असंतुलन से ही गठिया जैसी समस्‍याएं हो जाती है। उच्‍च यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित करना अति आवश्‍यक होता है। नियंत्रण के लिए यूरिक एसिड़ बढ़ने के कारण को जानना आवश्‍यक है। अगर आपको यह समस्‍या आनुवांशिक है तो इसे बैलेंस किया जा सकता है लेकिन अगर शरीर में किसी प्रकार की दिक्‍कत है जैसे - किडनी का सही तरीके से काम न करना आदि तो डॉक्‍टरी सलाह लें और दवाईयों का सेवन करें। शरीर में हाई यूरिक एसिड का अर्थ होता है कि आप जो भी भोजन ग्रहण करते है उसमें प्‍यूरिन की मात्रा में कमी है जो शरीर में प्‍यूरिन की बॉन्डिंग को तोड़ देती है और यूरिक एसिड बढ़ जाता है। यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के कुछ टिप्‍स निम्‍म प्रकार हैं...

* अगर शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा लगातार बढ़ती है तो आपको भरपूर फाइबर वाले फूड खाने चाहिए। दलिया, पालक, ब्रोकली आदि के सेवन से शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा नियंत्रित हो जाती है..

* जैतून के तेल में बना हुआ भोजन, शरीर के लिए लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ई भरपूर मात्रा में होता है जो खाने को पोषक तत्‍वों से भरपूर बनाता है और यूरिक एसिड को कम करता है। आश्‍चर्य की बात है, लेकिन यह सच है।

* बेकरी के फूड स्‍वाद में लाजबाव होते है लेकिन इसमें सुगर की मात्रा बहुत ज्‍यादा होती है। इसके अलावा, इनके सेवन से शरीर में यूरिक एसिड़ भी बढ़ जाता है। अगर यूरिक एसिड कम करना है तो पेस्‍ट्री और केक खाना बंद कर दें।

* पानी की भरपूर मात्रा से शरीर के कई विकार आसानी से दूर हो जाते है। दिन में कम से कम दो से तीन लीटर पानी का सेवन करें। पानी की पर्याप्‍त मात्रा से शरीर का यूरिक एसिड पेशाब के रास्‍ते से बाहर निकल जाएगा। थोड़ी - थोड़ी देर में पानी को जरूर पीते रहें।

* चेरी में एंटी - इंफ्लामेट्री प्रॉपर्टी होती है जो यूरिक एसिड को मात्रा को बॉडी में नियंत्रित करती है। हर दिन 10 से 40 चेरी का सेवन करने से शरीर में उच्‍च यूरिक एसिड की मात्रा नियंत्रित रहती है, लेकिन एक साथ सभी चेरी न खाएं बल्कि थोड़ी - थोड़ी देर में खाएं।

* हर दिन ली जाने खुराक में कम से कम 500 ग्राम विटामिन सी जरूर लें। विटामिन सी, हाई यूरिक एसिड को कम करने में सहायक होता है और यूरिक एसिड को पेशाब के रास्‍ते निकलने में भी मदद करता है। यकृत की शुद्धि के लिए नींबू अक्सीर है। नींबू का साईट्रिक ऐसिड भी यूरिक एसिड का नाश करता है।

* शरीर में uric acid की मात्रा बढने पर इसे कम करना आसान नहीं होता । लेकिन शतावर (asparagus) की जड़ का चूर्ण 2-3 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन दूध या पानी के साथ लिया जाए , तो uric acid घटना प्रारम्भ हो जाता है और शरीर की कमजोरी भी दूर होती है ।

* गाजर और चुकन्दर का जूस भी पीते रहें इससे और भी जल्दी लाभ होगा ।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

स्वाईन फ्लु रोधी काढ़ा

स्वाईन फ्लु रोधी काढ़ा
आवश्यक घटक :-
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7 ईलाईची + 7 लोग + 7 तुलसी के पत्ते + 1 छोटा तुकड़ा अदरक + 1 टुकड़ा दालचीनी + 1/4 टेबल स्पुन हल्दी + 1/4 टेबल स्पुन काला नमक + 4 कप पानी !
निर्माण विधी :-
==========
उपरोक्त सभी घटको को दिये गये मापानुसार 4 कप पानी मे इतना उबाले कि पानी एक कप रह जाय तत्पश्चात तैयार काढ़े को छानकर एक शीशी में भर ले और प्रातः कालीन क्रिया से निवृत होकर भूखे पेट दो-दो चम्मच तीन दिन तक सेवन करे व अपने परिजनो को भी कराये।










बारबार हाथ ढोये
दिन मैं दो बार नमक के पानी से कूल्हा करे
हाथो को मुह के पास ज्यादा न ले जाये
नमक के पानी मैं बड्ज़ ( कॉटन) को दुबके हिलाके नाक साफ करें - दिन मैं दो बार
विटामिन c ( अमला के जैसे फल खाए )
 

विशेष अनुरोध :- 
===========
मित्रो यह संदेश ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों तक पहुँचाकर सच्ची मानव सेवा कर मानव धर्म निभाये।
साभार

स्वाइन फ्लू को आयुर्वेद में जहां जनपदोध्वंस
नाम से जाना गया है। वहीं आयुर्वेद के
विशेषज्ञ स्वाइन फ्लू के लक्षणों को आयुर्वेद
की प्राचीन संहिताओं में वर्णित वात
श्लेष्मिक ज्वर लक्षणों के निकट मानते हुए उसे
स्वाइन फ्लू के बराबर का रोग बताते हैं।
- स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए हल्दी और
नमक उबालकर गुनगुने पानी से गरारे करने
चाहिए। स्वाइन फ्लू के दौरान गर्म पानी से
हाथ-पैर धोएं और अधिक से अधिक सफाई
रखें।
- नीलगिरी,इलायची तेल की एक-दो बूंदें और
थोडा कपूर रूमाल में डालकर नाक पर
रखना चाहिए।
- स्वाइन फ्लू से बचने के लिए अदरक,
तुलसी को पीस कर शहद के साथ सुबह
खाली पेट चाटना चाहिए।
- औषधियों में त्रिभुवन कीर्ति रस,
लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी बूटी, गुड़
आदि का सेवन करना चाहिए।
- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकीभर
कालीमिर्च पावडर और हल्दी को एक कप
पानी में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं.
- आधा चम्मच आंवला पावडर को आधा कप
पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीएं
- नियमित रूप से भ्रस्त्रिका , अनुलोम-
विलोम और कपालभाती प्राणायाम करें.
- नाक में तेल या घी डालने से बंद नाक खुल
जायेगी.
- रात में हल्दीवाला दूध पिए. इसमें
थोड़ा गाय का घी और आधा चम्मच
त्रिफला चूर्ण भी मिलाये.
- तुलसी , नीम छाल , दालचीनी , लौंग और
गिलोय उबालकर काढा दिन में तीन बार
पिए.
- गिलोय घनवटी की दो दो गोली सुबह
शाम ले.
- ताज़ी नीम और तुलसी ना मिलने पर नीम
घनवटी, तुलसी सूखा का पंचांग
आदि का उपयोग कर सकते है.
- ज्वरनाशक क्वाथ लें.
- महासुदर्शन वटी दिन में दो बार ले.
- हल्का और सुपाच्य भोजन ले. पूरी नींद ले.
तनाव ना ले.
- कब्ज ना होने पाए इसका ध्यान रखे

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

मानव देह को निरोगी रखने के 50 नियम

चलो भारतीय संस्कृति की ओर

मानव देह को निरोगी रखने के 50 नियम
1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोंगो की कभी कमी नहीं रहेगी।
2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं
3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है
4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।
5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।
6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।
7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।
8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।
9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ीआंत सिकुड़ जाती है।
10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।
11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।
12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।
13- दूध(चाय) के साथ नमक(नमकीन
पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।
14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।
15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और
शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।
16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।
17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।
18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़
की हड्डी को हानि होती है।
19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।
20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।
21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।
22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।
23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।
24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।
25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।
26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।
27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औशधियां हैं।
28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।
29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।
30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।
31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएं
आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।
32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।
33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।
34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।
35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात्
उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।। 36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100% कांसे के बर्तन
में 97% पीतल के बर्तन में 93% अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।
37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।
38- 14 वर्श से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि)
कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।
39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।
40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।
41- सरसों, तिल,मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।
42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।
43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।
44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है।
हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।
45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।
46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।
47-बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।
48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर
दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना)
49- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।
50- निरोग रहन
इसलिये तभी शास्त्रो मे पहला सुख निरोगी बताया है
आप सभी
"पहला सुख निरोगी काया"

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

ગાય ઉત્પાદન વિગતો

ગાય ઉત્પાદન વિગતો


Desi Gir Cow
Gir Cow

ઔષધી નું નામ
ફાયદા/ ગુણધર્મ

ગો મુત્ર અર્ક } Gau Mutra Ark (Distilled Cow Urine) : 

પાચનતંત્ર સબંધી વિકારોને શાંત કરે સે , લીવેર , કીડની, પાથરી,
હદયરોગ , કેન્સર વગેરે રોગોમાં લાભકારી અને કોલેસ્ટ્રોલ ઘટાડે છે
અને શરીરનું વજન ઓંછું થા છે , બધી જ બીમારીઓ માં લાભકારી છે .

ઘનવટી } Ghanvati: 

આયુર્વેદમાં કહ્યું છે કે આ પૃથ્વી ઉપર માનવ જાતી માટે ગોમતાનું પૂર્વ
પ્રસાદ છે ડાયાબીટીસ , ઉદાર રોગ , શ્વાસ , પઈલાસ, અપેન્ડીક્ષ અને
માનસિક રોગોમાં લાભદાયક આ દિવ્ય અને આશ્વર્યજનક મહુરોગાહારી
ઔષધી છે.

પચાન્મ્રિત } Pachanamrit: 

એસીડીટી , ગેસ, અપચો , પિત, કબજિયાત, પેટના દુખવામાં
લાભકારી.

અંગમાંર્દન્મ તૈલ્મ } Angmardanam Tailam (Pain Reliever Oil) : 

સં|ધના દુખાવામાં અત્યંત લાભકારક માલીશ માટે ઉપયોગી
(આંખોથી દુર રાખવું)

દનાત્મંજન } Dantmanjanam

પાયોરિયા , મુખ દુર્ગંધ , મુખારોગ , માંસુડામાં લોહીનું આવવું
બંધ થાય ત્યારે તથા દાંતોના બધાજ રોગોમાં ગુણકારી .

મલમ } Marham

ધાધર , ખજ, ખંજવાળ , એગજીમાં , જખમ તથા ફાટેલી
એડીઓમાં લાભકારી .

અંગરક્ષક સાબુ } Angrakshak Soap

વેદકાળથી પ્રચલિત પદ્ધતિ અનુસાર બનાવવામાં આવ્યું છે
, તન – મન પવિત્ર કરે , ક્રાંતિ વધારે , ઉત્સાહ વધારે ,
સ્વાસ્થ્યવર્ધક , કંઈપણ કેમિકલ વગરનું

ગોમૂત્ર  } Go Mutra (Cow Urine)

ગાયનું ગોમૂત્ર માં ગંગાનું વાસ છે , તમે ગંગાજળની જગ્યાએ એનો
ઉપયોગ દરેક જગ્યાએ કરી શકો , ન્હાવાથી શરીરની ખજવાળ દુર
થાય , ઘરમાં પોતું કરતી સમય બલ્તીમાં નાખવાથી બીમારી ફેલાવત
જીવનું નાશ પામે છે .

કેશ નીખાર } Kesh Nikhar

ખોડો ,વાળ, ખરતા વાળ , વાળ લાંબા કરવા , નાની વયે
વાળ સફેદ થતા અટકાવે , સુંદર અને ચમકીલા વાળ કરે .

ફેશ પેક  } Face Pack

વેદકાળથી પ્રચલિત પદ્ધતિ અનુસાર બનાવવામાં આવ્યું છે મુખડા પર
ડાઘ , ખીલ તથા ચામડીની બીમારીઓ પર લાભકારી , મુખનું તેજ લાવી દે.

શુધ્ધ ધૂપ } Suddh Dhoop

વાતાવરણ પ્રદુશના ને દુર કરી વાતાવરણ શુધ્ધ કરે છે , મનને પ્રસન્ન કરે
૧૨ કલાક સુધી ઘરમાં પ્રભાવ રાખે , સંપૂર્ણ હિમાલયની પ્રાકૃતિક
જડીબુતીઓથી બનેલા કેમિકલથી રહિત આ તમારા ઈસ્તદેવને
અર્પણ કરવાથી જલ્દી પ્રસન્ન થાય , અનુભવ ની વાત છે

ગોમય (છાણા) } Gomay

યજ્ઞ અને હવન માટે આવશ્યક નાની સાઈજમા ગીર ગાયના પવિત્ર છાણા.
આ છાણામાં પાવલી ઘી નાખી થોડા જવ, તાલ નાખો તો યજ્ઞ થઇ જશે અને
યજ્ઞ ના દેવ તમારી મનોકામના પૂર્ણ કરશે ,કોઈ પણ પૂજા વિધ્ધીમાં ઉપયોગી.

વાસણ પાવડર } DishWashing Powder

ભગવાનના તથા અન્ય બધા જ વાસણો ઘસવા માટે પવિત્ર
ગીર ગાય ના છાની રાખમાંથી બનેલું કેમિકલ રહિત ડીશ વોશિંગ પાવડર

આયુર ઘી } Ayur Ghee Plus

નસકોરા વડે નાકમાં લેવાથી સાયનસ તથા નિંદ્રા , અનિન્દ્રા , આંખોમાં નાખવા
થી દ્રષ્ટીહીન ને દર્ષ્ટિ આવે . આ ઘી વેદકાળથી પ્રચલિત પદ્ધતિથી
બનાવવામાં આવે છે
પહેલા દૂધને માટીની ગોળીમાં જમાવ્ય પછી એને માટીના જ વાસણમાં
રવૈયાથી હાથેથી મંથન કરીને માખણ કાઢી લીધા પછી
માટી ના જ વાસણમાં તવી ને કરીએ છીએ .
આ ” ઘી ” કાઠીયાવાડના પ્રસિદ્ધ જસદણ દરબારની ગયોનું છે
જે દરોજ ચરવા માટે ૨૦૦ વીઘાના વિડમાં જાય છે . જે ગાયો
સૂર્યપ્રકાશમાં વનમાં પોતાની ઈચ્છા અનુસાર
ચારે તેનું જ ગોમૂત્ર ઘી વગેરે ઉપયોગમાં લેવામાં આવે છે .

ગોપિકા સાબુ } Gopika Soap

આ અદભુત સાબુને દેશી ગીર ગાયના પંચગવ્ય ઘી માંથી બનાવવામાં
આવ્યો છે . ચામડીના રોગ , શરીરને નીખારવા માટે અને રોજીંદા
ઉપયોગથી તમારી તવ્ચાને પ્રાકૃતિક સુંદર બનાવી દે છે
Hand Churning Method
Hand Churning

શુધ્ધ ગાય નું ઘી } Pure Cow Ghee (Hand Churned)

. આ ઘી ને વૈદિક વિધિ દ્રારા બનાવવા માં
આવ્યું છે . આ ઘી ને બનાવવા માટે માત્ર ભારતીય નસલની
ગીર ગાયનાં દૂધ નો ઉપયોગ કરવામાં આવ્યો છે .
સાચું ઘી (ગીર ગાયનું) આ હાથના વલોણાનું ઘી છે . આ ઘી નો ઉપયોગ
(ગીર ગાયનું) રસોઈ માટે, યજ્ઞમાં આહુતિ માટે અને ઔષધી તરીકે અનેક રોગો માં
૫૦૦ ગ્રામ ઉપયોગી છે . જેવી રીતે કે પાંચકર્મ થેરાપી , નાસ્ય તરીકે ઉપયોગ
કરી શકાય .

ગોપિકા હેરશેમ્પુ } Gopika Hair Shampoo

ગોપિકા હેર આ આયુર વેદિક શેમ્પુ દેશી ગીર ગાયના ગોમૂત્ર દ્વારા સિદ્ધ કરાયેલી
શેમ્પુ દેશી ઔષધીઓ માંથી બનાવવામાં આવે છે . આ શેમ્પુ તમારા વાળની માવજત
રાખે છે તથા મુલાયમ અને રેશમી કલીન્સર (શેમ્પુ) રાખે છે

બ્રાહ્મી આમલા હેર ઓઈલ } Brahmi Amla Hair Oil

બ્રાહ્મી આમલા હેર ઓઈલ ગાય ના ઘી થી સિદ્ધ કરેલી પ્રાકૃતિક વન
ઔષધિઓ માંથી વૈદિક પદ્ધતિ દ્રારા બનાવવા માં આવ્યું છે . આ
તેલ ને બ્રાહ્મી તથા આમલા ના મિશ્રણ માંથી હેર ઓઈલ
બનાવવામાં આવ્યું છે .
બ્રાહ્મીથી ચેતાતંત્રની દુર્બલતાને દુર કરી શકાય છે .
બ્રાહ્મી આમલા બ્રાહ્મી મસ્તિસ્કને શક્તિ પ્રદાન કરે છે . તેમજ યાદશક્તિ વધારવા
હેર ઓઈલ માટે ઉતમ ઔષધી છે .

ઉબટન} Ubtan

ઉબટન થી ન્હાયા પછી એટલી બધી તાજગી નો અનુભવ થાય છે કે
જીવન માં પહેલી વાર જ સ્નાન કર્યું હોય . મોટાભાગા ના જે લોકોએ
ઉબટન નો ઉપયોગા કર્યો છે તેમની આ પ્રતિક્રિયા છે . ન્હાતા સમયે
સાબુની જગ્યા એ ઉબટન લગાડી ને થોડી વાર રહેવા દેવું .
પછી સ્નાન કરવું . આનાથી ચામડી ના અનેક રોગો , પરસેવા ની
ઉબટન દુર્ગંધ દુર થઇ શકશે . કાચા કાચ દૂધ માં મિશ્રણ કરીને લેપ કરવા
૧૦૦ ગ્રામ થી કળા ડગમાં પણ ફાયદો થશે .

Serve Cow To Save Yourself !

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विज्ञान गाय के दूध में वसा

* विज्ञान गाय का दूध *
* 1. ** ** गाय के दूध में वसा
वैज्ञानिक दुनिया में अब Gocron में कि हरा चारा साबित हो गया है
गाय के दूध की स्वपोषी वनस्पति सभी रोगों के लिए काम करता है. आयुर्वेद
सच्चाई यही है.
एक स्वच्छ वातावरण में भारतीय शास्त्रों में Pmpra Gupaln में, पीने के पानी और साफ
स्वच्छ हरे गाय पाने के लिए पोषण के बारे में विस्तृत सलाह browsed.
पश्चिमी देशों में, साधारण लौकिक बुद्धि के अनुसार सभी के दूध में पाया
वसा की मात्रा वांछनीय माना जाता था. वैश्विक डेयरी उद्योग के ज्ञान से प्रेरित होकर
विलायक के लिए नीतियों का संपादन. विशेषज्ञों का यह भी भारत में दूध की डेयरी पर सलाह
वसा के अनुपात के आधार पर मूल्य व्यापार के लिए मन में लाभ रखने के लिए
.
गाय का दूध अमृत था जब
लेकिन भारतीय परंपरा में, गाय का दूध अमृत है कि आजकल बताया गया था जब
गाय अनाज खिला डेयरी उद्योग के रूप में नीच के रूप में Khunte Binola करने के लिए बंधे
नहीं प्रदान किया गया. न ही रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों प्रभावित
अशुद्ध पेयजल और गोपालन खाने वातावरण से प्रभावित था. (ये वार्ता
आज मन में रखते हुए जैविक खेती का पुनरुत्थान है.)
दूध वसा सामग्री **
वैदिक काल में, गाय दो प्रजातियों में देखा गया था. जिसका दूध गायों में से एक
एक बड़ा अनुपात था जो गायों के दूध में कम वसा और वसा.
सावधानी के आहार में उच्च वसा वाले दूध में इस्तेमाल किया जा करने के लिए बुलाया गया था.
बलिदान में वसा का मुख्य उद्देश्य HVI भेजा गया था. विभिन्न वसा साथ आहार में
सेवन अच्छा नहीं माना जाता था.
यह दृष्टिकोण आधुनिक चिकित्सा के साथ पूरी तरह मेल खाता है.
पाणिनी कालीन समय में प्राचीन भारत के विवरण के नाम से जाना जाता है
साधारण गाय का दूध 1% वसा की तुलना में कम होने के लिए कहा है.
ऋग्वेद के मंत्र “Gritwatr विप्रा Rihnti Dhitibhi Pyo Tyorid!
Gndharwsy PDE dhruve! 22/01/14 ऋ “तेल और एक ही शिक्षण उतरना
घी दूध का सेवन जोड़ें तो सोच समझकर यह जानकारी लाने के लिए बुद्धिमान
Gndharwon में सभी था.
डेयरी दूध वसा
Dyubkta गाय वेदों में कहा गया है. गाय अपने स्वभाव आवारा से है
. डेयरी उद्योग गाय से गाय का दूध Srmvihin को बांध रखने के लिए
एक ही दोष Srmvihin के रूप में रहने वाले जीवन में होते हैं
मानव में अन्य रोगों हैं.
वैज्ञानिक अनुसंधान के दो मुख्य श्रेणियों में है कि गाय के दूध में पाया गया है
वसा होते हैं. असंतृप्त और संतृप्त असंतृप्त और संतृप्त. मानव
आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में स्वास्थ्य के लिए असंतृप्त वसा का महत्व, 1982 के नोबेल
पुरस्कार के बाद आया है.
1990 के दशक तक, असंतृप्त फैटी एसिड के प्रभाव असंतृप्त वसीय अम्लों
केवल शारीरिक स्वास्थ्य माना जाता था. ओमेगा -3 की 2000 के दशक के प्रभाव से
मानव चेतना का मस्तिष्क की शक्ति, मानसिक तनाव आदि से समझा जाने लगा
.
आहार में असंतृप्त वसा की आज मनुष्य की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
तो Mahtv माना जाता है कि दवा ओमेगा 3 Kepsul में सभी रोगों
अरबों के कारोबार के लिए रामबाण बताया जा रहा है. यह बड़े पैमाने पर समाज
अज्ञान के अंधेरे में ही रखने के लिए सक्षम होने के लिए.
वास्तव में, गाय के दूध में छिपा पूरा सच बराबर अमृत है.
आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान Jisa महत्वपूर्ण ओमेगा -3 के अनुसार, ताकि
हरा चारा खिलाया गाय का दूध या ठंडे पानी पर दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति होने के नाते
केवल Mclio में पाया जाता है. अनाज आदि खिलाने से दूध वसा में खाल Binola
संतृप्त वसा संतृप्त तत्व मनुष्य के शरीर चलता है कि तत्व, उच्च रक्त है बढ़ जाती है
दबाव, और दिल की बीमारी बढ़ जाती है. दूध वसा में ईएफए आवश्यक असंतृप्त वसा
फैटी एसिड Omega3, omega6 ओमेगा 3 और ओमेगा 6 से 30% के लिए कुल वसा का 25%
हैं. इस वजह से इन, आवश्यक फैटी एसिड ईएफए Isenshl feti कहा जाता है
अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं जो मानव शरीर की वसा सामग्री.
हम अनुरोध किया है कि दूध की कीमत में वसा के आधार पर भारत सरकार
पर निर्भर करता है, न कि कुल वसा, असंतृप्त वसा के आधार पर निर्धारित कर रहे हैं
वहाँ होना चाहिए. समुदाय में हृदय रोग को बढ़ाने के लिए कुल वसा वाले दूध पर आधारित
विस्तार हो रहा है. उसी में गाय के दूध को अधिक हरा चारा प्राप्त करें
स्वस्थ असंतृप्त वसा ईएफए समाज अधिक स्वस्थ और के उच्च स्तर के साथ
विल.
समाज द्वारा बेचा सारा दूध से डेयरी दूध वसा सामग्री
गाय का स्वास्थ्य विषयों की अनदेखी से भैंस के दूध और नुकसान को समाज के लिए मदद करना
यह भी एक अन्याय है. कृत्रिम दूध, Homojenaijheshn, Paschyurajheshn अलग
इसके हानिकारक मुद्दों में.
यूरोपीय संघ के डेयरी उद्योग आज Lipgin ‘Lipgene’ अनुसंधान अभियान के विषय में
पता करने के लिए कितना अच्छा गाय के दूध में वसा की स्वाभाविक रूप से
मात्रा बढ़ाई जा सकती है, यूरोप में 21 शोध स्कूलों में एक ही विषय पर खोज करने के लिए
कर दिया गया है. जैसा कि हमारे समय में, हमारी गाय पाणिनी में भारतीय परंपरा के ऊपर लिखा
दूध में अच्छी वसा की प्रकृति के पाए गए.
आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भी है कि आहार में ओमेगा -3 और DHA डीएचए (Decosa से पता चलता है
hexaenoic एसिड) तत्व मानव मस्तिष्क और आंखों से बिजली बनाने तत्वों से बनता है
हैं. दोनों तत्वों के संतुलित जब ई OMEG 3 और दो तत्वों में ओमेगा 6 एफए संकेत कर रहे हैं
मानव मस्तिष्क तेज और संतुलित पोषण द्वारा प्रदान की जाती है सिर्फ अगर आनुपातिक
होता है.
आज की दुनिया में, भारतीयों खुफिया के महत्व को मान लिया है.
रामदेव जी और पवित्र प्रवचन को सुनने के लिए कभी मन में आता है कि मालिक
जी कैसे आसानी से पूर्व विलक्षण कौशल, अद्भुत स्मृति Abhut
अंग्रेजी में हिन्दी से, संस्कृत और वेदों. शास्त्रों, आयुर्वेद और आधुनिक
पश्चिमी चिकित्सा उपदेश के सिद्धांतों द्वारा उद्धृत? वही
इस कदम से पूरे वेद कंठस्थ प्राचीन वैदिक परंपरा को दर्शाता है
भारत की ज्ञान राजधानी संरक्षित किया गया था. था. फिर भी सामान्य
तो कुल रामचरितमानस जिसे करने, ग्रामीण जनता से संपर्क
किसी भी सहज में तुलसी Chopai लि का कोई भी सही कहते हैं. फिर भी कई
गीता, उपनिषद, और इतने पर मिलते हैं जो वा ङ rmay वैदिक विद्वान
Uktio संस्कृत के रूप में प्रस्तुत अभी तक सही स्थिति पर उद्धृत
दीजिए.
हम भारतीय मस्तिष्क की शक्ति की विलक्षण शक्ति पर ध्यान देना नहीं है.
अंग्रेजी में इसे ‘हम यह चार दी लो’, कहा जाता है
किसी भी सभ्यता में साधारण चेतना की दुनिया में इस तरह के कौशल का परिचय
नहीं मिलता है. यह भारत में ही विस्मय पारिस्थितिक अनुसंधान अनुभव की बात है
क्यों देखने के लिए नहीं. यह गाय दूध Shsro साल के अमृत की तरह है
पोषित भारतीय मस्तिष्क के लिए उपलब्ध OMEG 3 की पेशकश कर रहा है.
आधुनिक विज्ञान भी पता चलता है कि फास्फोरस युक्त मानव मस्तिष्क का 70%
डीएचए और ईपीए वसा जिस में विज्ञान * डीएचए (Docoso Hexa enoic की भाषा
एसिड) और EPA (Ecosa pentaenoic एसिड) *** बुलाया.
आधुनिक विज्ञान से व्युत्पन्न आहार डीएचए और ईपीए, यह ओमेगा -3 से बनाया गया है
हैं. यही कारण है कि गाय के दूध के वसा सामग्री है अमृत के बराबर किया जाता है. यह भी
कि ब्रह्मचर्य में पश्चिमी चिकित्सा बताने में संकोच नहीं करना चाहिए, हालांकि
सभी वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वहाँ भी कोई महत्व अभी भी है, लेकिन है कि मानव
वीर्य मानव मस्तिष्क की ही दो तत्वों से मिलकर बना है.
योग Urdhhwareta में मानव मस्तिष्क RETS के महत्व को
प्रेरित किया जाना चाहिए. यही Btsrika, बाहरी, Kpalbati विपरीत अनुलोम विवाह
Urdhrwreta Pranyam मानव हित का विषय बन जाते हैं.
जिसमें वेद मंत्रों सौ तच्च्क्षुर्देवहितं Shukrmuchcrat कि प्रसिद्ध धर्मोपदेश
साल वेदों में मानव शरीर की प्रार्थना की सभी इंद्रियों को ठीक करने के लिए
हमारे सभी का शुक्रिया अदा करने के लिए मन में Shukrmuchcrat की शिक्षाओं असर
Rhti होश स्वस्थ जीवन हैं. यह अब Pashcty जहां ज्ञान है
दवा के लिए प्रयास.
पश्चिमी चिकित्सा स्मृति Prodon Phosphatidylserine बढ़ाने के लिए
वनस्पति का उपयोग करें. गाय के मस्तिष्क से निकाले Bucdkhanon दवा
प्रयोग किया जाता है.
पूरी दुनिया गोहत्या रोकने के लिए क्यों यह भी समझना चाहिए
तैयार नहीं है. Kritrim जैसे विटामिन डी के रूप में वनस्पतियों और कैसे Uprullikit
Bucdkhano आइटम का आर्थिक महत्व उपलब्ध हैं. यही नहीं है
दुनिया
मां गाय पर शोध का एक ही शरीर से टीका सामग्री भी निर्भर
best medicine Cancer : pure cow milk and pure cow ghee from indian desi breed

10 भयावह सच जो डॉक्टर मरीज को नहीं बताते!

10 भयावह सच जो डॉक्टर मरीज को नहीं बताते!

 
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1. दवाइयों से डायबिटीज बढ़ती है अक्सर डायबिटीज शरीर में इंसुलिन की कमी होने से पैदा होती है।
लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुछ खास दवाईयों के असर से भी शरीर में डायबिटीज होती है।
इन दवाइयों में मुख्यतया एंटी डिप्रेसेंट्स, नींद की दवाईयां, कफ सिरफ तथा बच्चों को एडीएचडी (अतिसक्रियता) के लिए दी जाने वाली दवाईयां शामिल हैं। इन्हें दिए जाने से शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और व्यक्ति को मधुमेह का इलाज करवाना पड़ता है।
2. बिना वजह लगाई जाती है कुछ वैक्सीन वैक्सीऩ लोगों को किसी बीमारी के इलाज के लिए लगाई जाती है। परन्तु कछ वैक्सीन्स ऎसी हैं तो या तो बेअसर हो चुकी है या फिर वायरस को फैलने में मदद करती है जैसे कि फ्लू वायरस की वैक्सीन। बच्चों को दिए जाने
वाली वैक्सीन डीटीएपी केवल बी.परट्यूसिस से लड़ने के लिए बनाई गई है
जो कि बेहद ही मामूली बीमारी है। परन्तु डीटी एपी की वैक्सीन फेफड़ों के
इंफेक्शन को आमंत्रित करती है जो दीर्घकाल में व्यक्ति की इम्यूनिटी पॉवर को कमजोर कर देती है।
3. कैन्सर हमेशा कैन्सर ही नहीं होता यूं तो कैन्सर स्त्री-पुरूष दोनों में
किसी को भी हो सकता है लेकिन ब्रेस्ट कैन्सर की पहचान करने में
अधिकांशतया डॉक्टर गलती कर जाते हैं। सामान्यतया स्तन पर हुई
किसी भी गांठ को कैंसर की पहचान मान कर उसका उपचार किया जाता है
जो कि बहुत से मामलों में छोटी-मोटी फुंसी ही निकलती है। उदाहरण के
तौर पर हॉलीवुड अभिनेत्री ए ंजेलिना जॉली ने मात्र इस संदेह पर अपने
ब्रेस्ट ऑपरेशन करके हटवा दिए थे कि उनके शरीर में कैन्सर पैदा करने
वाला जीन पाया गया था।
4. दवाईयां कैंसर पैदा करती हैं ब्लड प्रेशर या रक्तचाप (बीपी)
की दवाईयों से कैन्सर होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। ऎसा इसलिए
होता है क्योंकि ब्लडप्रेशर की दवाईयां शरीर में कैल्सियम चैनल
ब्लॉकर्स की संख्या बढ़ा देता है जिससे शरीर में कोशिकाओं के मरने
की दर बढ़ जाती है और प्रतिक्रियास्वरूप कोशिकाएं बेकार होकर कैंसर
की गांठ बनाने में लग जाती हैं।
5. एस्पिरीन लेने से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है
हॉर्ट अटैक तथा ब्लड क्लॉट बनने से रोकने के लिए दी जाने वाली दवाई
एस्पिरीन से शरीर में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा लगभग 100 गुणा बढ़
जाता है। इससे शरीर के आ ंतरिक अंग कमजोर होकर उनमें रक्तस्त्राव
शुरू हो जाता है। एक सर्वे में पाया गया कि एस्पिरीन डेली लेने वाले
पेशेंट्स में से लगभग 10,000 लोगों को इंटरनल ब्लीडिंग
का सामना करना पड़ा।
6. एक्स-रे से कैन्सर होता है आजकल हर छोटी-छोटी बात पर डॉक्टर
एक्स-रे करवाने लग गए हैं। क्या आप जानते हैं कि एक्स-रे करवाने के
दौरान निकली घातक रेडियोएक्टिव किरणें कैंसर पैदा करती हैं। एक
मामूली एक्स-रे करवाने में शरीर को हुई हानि की भरपाई करने में कम से
कम एक वर्ष का समय लगता है। ऎसे में यदि किसी को एक से अधिक
बार एक्स-रे क रवाना पड़े तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
7. सीने में जलन की दवाई आंतों का अल्सर साथ लाती है बहुत बार
खान-पान या हवा-पानी में बदलाव होने से व्यक्ति को पेट
की बीमारियां हो जाती है। इनमें से एक सीने में जलन का होना भी है
जिसके लिए डॉक्टर एंटी-गैस्ट्रिक दवाईयां देते हैं। इन मेडिसीन्स से
आंतों का अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है, साथ ही साथ
हडि्डयों का क्षरण होना, शरीर में विटामिन बी12 को एब्जॉर्ब करने
की क्षमता कम होना आदि बीमारियां व्यक्ति को घेर लेती हैं। सबसे
दुखद बात तब होती है जब इनमें से कुछ दवाईयां बीमारी को दूर
तो नहीं करती परन्तु साईड इफेक्ट अवश्य लाती हैं।
8. दवाईयों और लैब-टेस्ट से डॉक्टर्स कमाते हैं मोटा कमीशन यह अब
छिपी बात नहीं रही कि डॉक्टरों की कमाई का एक मोटा हिस्सा दवाईयों के
कमीशन से आता है। यहीं नहीं डॉक्टर किसी खास लेबोरेटरी में
ही मेडिकल चैकअप के लिए भेजते हैं जिसमें भी उन्हें अच्छी खासी कमाई
होती है। कमीशनखोरी की इस आदत के चलते डॉक्टर अक्सर जरूरत से
ज्यादा मेडिसिन दे देते हैं।
9. जुकाम सही करने के लिए कोई दवाई नहीं है नाक की अंदरूनी त्वचा में सूजन आ जाने से जुकाम होता है। अभी तक मेडिकल साइंस इस बात का कोई कारण नहीं ढूंढ पाया है कि ऎसा क्यों होता है और ना ही इसका कोई कारगर इलाज ढूंढा जा सका है। डॉक्टर जुकाम होने पर एंटीबॉयोटिक्स लेने की सलाह देते हैं परन्तु कई अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि जुकाम 4 से 7 दिनों में अपने आप ही सही हो जाता है।
जुकाम पर आपके दवाई लेने का कोई असर नहीं होता है, हां आपके शरीर को एंटीबॉयोटिक्स के साईड-इफेक्टस जरूर झेलने पड़ते हैं।
10. एंटीबॉयोटिक्स से लिवर को नुकसान होता है मेडिकल साइंस की सबसे अद्भुत खोज के रूप में सराही गई दवाएं एंटीबॉयोटिक्स हैं।
एंटीबॉयोटिक्स जैसे पैरासिटेमोल ने व्यक्ति की औसत उम्र बढ़ा दी है और स्वास्थ्य लाभ में अनूठा योगदान दिया है, लेकिन तस्वीर के दूसरे पक्ष के रूप में एंटीबॉयोटिक्स व्यक्ति के लीवर को डेमेज करती है।
यदि लंबे समय तक एंटीबॉयोटिक्स का प्रयोग कि या जाए तो व्यक्ति की किडनी तथा लीवर बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और उनका ऑपरेशन करना पड़ सकता है

आयुर्वेदिक दृष्टी से गौ माता का महत्व

गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े प्रश्नोत्तर एवं
आयुर्वेदिक दृष्टी से गौ माता का महत्व
प्रश्नोन्तर
प्रश्न 1.) गाय क्या है?
उत्तर 1.) गाय ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण
की सीधी प्रतिनिधि है| इसका अवतरण
पृथ्वी पर इसलिए हुआ है
ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे|
पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है
सबका पालन-पोषण होता रहे| इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के
28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है|
प्रश्न 2.) गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?
उत्तर 2.) गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत
ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात
गौमाता की पीठ पर ऊपर की और
उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है),
विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं
उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा अंतर
होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत
ही झूलती हुई होती है
जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे
की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं
कसीली होती है|
तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर
काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के
सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है|
चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात
गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं
अतिसंवेदनशील होती है
जबकि विदेशी काऊ
की त्वचा काफी संकुचित एवं कम
संवेदनशील होती है| पांचवा अंतर होता है गौमाता के
प्रश्न 3.) अगर
थोड़ा सा भी दही नहीं हो तब दूध से
दही कैसे बनाएँ?
उत्तर 3.) हल्के गुन-गुने दूध में नींबू निचोड़ कर
दही जमाया जा सकता है| इमली डाल कर
भी दही जमाया जाता है| गुड़
की सहायता से भी दही जमाया जाता है|
शुद्ध चाँदी के सिक्के को गुन-गुने दूध में डालकर
भी दही जमाया जा सकता है|
प्रश्न 4.) किस समय पर दूध से दही बनाने
की प्रक्रिया शुरू करें?
उत्तर 4.) रात्री में दूध को दही बनने के लिए
रखना सर्वश्रेष्ठ होता है ताकि दही एवं उससे बना मट्ठा, तक्र
एवं छाछ सुबह सही समय पर मिल सके|
प्रश्न 5.) गौमूत्र किस समय पर लें?
उत्तर 5.) गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट
साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे
पश्चात ही भोजन करना चाहिए|
प्रश्न 6.) गौमूत्र किस समय नहीं लें?
उत्तर 6.) मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र
नहीं लेना चाहिए| गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग
कर देना चाहिए| पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र
नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर
लेना चाहिए| पीलिया के रोगी को गौमूत्र
नहीं लेना चाहिए| देर रात्रि में गौमूत्र
नहीं लेना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र
में लेना चाहिए|
प्रश्न 7.) क्या गौमूत्र पानी के साथ लें?
उत्तर 7.) अगर शरीर में पित्त बढ़ा हुआ है तो गौमूत्र
पानी के साथ लें अथवा बिना पानी के लें|
प्रश्न 8.)अन्य पदार्थों के साथ मिलकर गौमूत्र
की क्या विशेषता है? (जैसे की गुड़ और गौमूत्र
आदि संयोग)
उत्तर 8.) गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक
औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस
गुणा बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे
गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|
प्रश्न 9.) गाय का गौमूत्र किस-किस तिथि एवं स्थिति में वर्जित है? (जैसे
अमावस्या आदि)
उत्तर 9.) अमावस्या एवं एकादशी तिथि तथा सूर्य एवं चन्द्र
ग्रहण वाले दिन गौमूत्र का सेवन एवं एकत्रीकरण दोनों वर्जित
है|
प्रश्न 10.) वैज्ञानिक दृष्टि से गाय की परिक्रमा करने पर
मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर क्या प्रभाव एवं लाभ है?
उत्तर 10.) सृष्टि के निर्माण में जो 32 मूल तत्व घटक के रूप में है वे सारे
के सारे गाय के शरीर में विध्यमान है| अतः गाय
की परिक्रमा करना अर्थात
पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है| गाय
जो श्वास छोड़ती है वह वायु एंटी-वाइरस है| गाय
द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य
एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है| गाय के शरीर से सतत एक
दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है
जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है|
यही कारण है कि गाय की परिक्रमा करने
को अति शुभ माना गया है|
प्रश्न 11.) गाय के कूबड़ की क्या विशेषता है?
उत्तर 11.) गाय के कूबड़ में ब्रह्मा का निवास है| ब्रह्मा अर्थात सृष्टि के
निर्माता| कूबड़ हमारी आकाश गंगा से उन
सभी ऊर्जाओं को ग्रहण करती है जिनसे इस
सृष्टि का निर्माण हुआ है| और इस ऊर्जा को अपने पेट में
संग्रहीत भोजन के साथ मिलाकर भोजन को ऊर्जावान कर
देती है| उसी भोजन का पचा हुआ अंश जिससे
गोबर, गौमूत्र और दूध गव्य के रूप में बाहर निकलता है वह अमृत होता है|
प्रश्न 12.) गौमाता के खाने के लिए क्या-क्या सही भोजन है?
(सूची)
उत्तर 12.) हरी घास, अनाज के पौधे के सूखे तने, सप्ताह में
कम से कम एक बार 100 ग्राम देसी गुड़ , सप्ताह में कम से
कम एक बार 50 ग्राम सेंधा या काला नमक, दाल के छिलके, कुछ पेड़ के
पत्ते जो गाय स्वयं जानती है की उसके खाने के लिए
सही है, गाय को गुड़ एवं रोटी अत्यंत प्रिय है|
प्रश्न 13.) गौमाता को खाने में क्या-क्या नहीं देना है जिससे
गौमाता को बीमारी ना हो? (सूची)
उत्तर 13.) देसी गाय जहरीले पौधे स्वयं
नहीं खाती है| गाय को बासी एवं
जूठा भोजन, सड़े हुए फल नहीं देना चाहिए| गाय को रात्रि में
चारा या अन्य भोजन नहीं देना चाहिए| गाय को साबुत अनाज
नहीं देना चाहिए हमेशा अनाज का दलिया करके
ही देना चाहिए|
प्रश्न 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि? (कुछ
लोग बोलते है कि गाय के मुख कि नहीं अपितु गाय कि पूंछ
कि पूजा करनी चाहिए और अनेक भ्रांतियाँ है|)
उत्तर 14.) गौमाता की पूजा करने
की विधि सभी जगह भिन्न-भिन्न है और इसके बारे
में कहीं भी आसानी से
जाना जा सकता है| लक्ष्मी, धन, वैभव आदि कि प्राप्ति के लिए
गाय के शरीर के उस भाग
कि पूजा की जाती है जहां से गोबर एवं गौमूत्र प्राप्त
होता है| क्योंकि वेदों में कहा गया है की “गोमय वसते
लक्ष्मी” अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास है और
“गौमूत्र धन्वन्तरी” अर्थात गौमूत्र में भगवान
धन्वन्तरी का निवास है|
प्रश्न 15.) क्या गाय पालने वालों को रात में गाय को कुछ खाने देना चाहिए
या नहीं?
उत्तर 15.) नहीं, गाय दिन में
ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप भोजन कर
लेती है| रात्रि में उसे भोजन देना स्वास्थ्य के अनुसार
ठीक नहीं है|
प्रश्न 16.) दूध से दही, घी, छाछ एवं अन्य
पदार्थ बनाने के आयुर्वेद अनुसार प्रक्रियाएं विस्तार से बताईए|
उत्तर 16.) सर्वप्रथमड दूध को छान लेना चाहिए, इसके बाद दूध
को मिट्टी की हांडी, लोहे के बर्तन
या स्टील के बर्तन (ध्यान रखे की दूध
को कभी भी तांबे या बिना कलाई वाले
पीतल के बर्तन में गरम नहीं करें) में
धीमी आंच पर गरम करना चाहिए|
धीमी आंच गोबर के कंडे का हो तो बहुत
ही अच्छा है| पाँच-छः घंटे तक दूध गरम होने के बाद गुन-
गुना रहने पर 1 से 2 प्रतिशत छाछ या दही मिला देना चाहिए| दूध
से दही जम जाने के बाद सूर्योदय के पहले
दही को मथ देना चाहिए| दही मथने के बाद उसमें
स्वतः मक्खन ऊपर आ जाता है| इस मक्खन को निकाल कर
धीमी आंच पर पकाने से शुद्ध
घी बनता है| बचे हुए मक्खन रहित दही में
बिना पानी मिलाये मथने पर मट्ठा बनता है| चार
गुना पानी मिलने पर तक्र बनता है और
दो गुना पानी मिलने पर छाछ बनता है|
प्रश्न 17.) दूध के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन
चीजों में दूध वर्जित है?
उत्तर 17.) गाय का दूध प्राणप्रद, रक्तपित्तनाशक, पौष्टिक और रसायन
है| उनमें भी काली गाय का दूध त्रिदोषनाशक,
परमशक्तिवर्धक और सर्वोत्तम होता है| गाय अन्य पशुओं
की अपेक्षा सत्वगुणयुक्त है और दैवी-
शक्ति का केंद्रस्थान है| दैवी-शक्ति के योग से गोदुग्ध में
सात्विक बल होता है| शरीर आदि की पुष्टि के साथ
भोजन का पाचन भी विधिवत अर्थात
सही तरीके से हो जाता है| यह
कभी रोग नहीं उत्पन्न होने देता है| आयुर्वेद में
विभिन्न रंग वाली गायों के दूध आदि का पृथक-पृथक गुण
बताया गया है| गाय के दूध को सर्वथा छान कर
ही पीना चाहिए, क्योंकि गाय के स्तन से दूध निकालते
समय स्तनों पर रोम होने के कारण दुहने में घर्षण से प्रायः रोम टूट कर दूध
में गिर जाते हैं| गाय के रोम के पेट में जाने पर बड़ा पाप होता है| आयुर्वेद के
अनुसार किसी भी पशु का बाल पेट में चले जाने से
हानि ही होती है| गाय के रोम से
तो राजयक्ष्मा आदि रोग भी संभव हो सकते हैं इसलिए गाय
का दूध छानकर ही पीना चाहिए| वास्तव में दूध इस
मृत्युलोक का अमृत ही है|
“अमृतं क्षीरभोजनम्”
प्रश्न 18.) दही के गुणधर्म, औषधीय उपयोग|
किन-किन चीजों में दही वर्जित है?
उत्तर 18.)
प्रश्न 19.) छाछ के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन
चीजों में छाछ वर्जित है?
प्रश्न 20.) श्रीखंड के गुणधर्म, औषधीय
उपयोग| किन-किन चीजों में श्रीखंड वर्जित है?
उत्तर 20.) श्रीखंड में मुख्यरूप से जलरहित
दही, जायफल एवं देसी मिश्री होते है|
जायफल कुपित हुए कफ को संतुलित करता है एवं मस्तिष्क
को शीत एवं ताप दोनों से बचाता है| चूंकि श्रीखंड में
जायफल के साथ जलरहित दही की घुटाई
होती है इसलिए इस प्रक्रिया में जायफल का गुण 20 गुना बढ़
जाता है| इस कारण श्रीखंड मेघाशक्ति को बढ़ाता है, कफ
को संतुलित रखता है एवं मस्तिष्क को शीत एवं ताप दोनों से
बचाता है| अत्यधिक शीत ऋतु, अत्यधित वर्षा ऋतु में
श्रीखंड का सेवन वर्जित माना गया है| ग्रीष्म ऋतु
में श्रीखंड का सेवन मस्तिष्क के लिए अमृततुल्य है|
श्रीखंड निर्माण के बाद 6 घंटे के अंदर सेवन कर
लिया जाना चाहिए| फ्रीज़ में रखे श्रीखंड का सेवन
करने से उसके गुण-धर्म बदल कर हानी उत्पन्न कर सकते
है अर्थात इसे सामान्य तापमान पर रख कर ताज़ा ही सेवन करें|
प्रश्न 21.) गोबर के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन
चीजों में गोबर वर्जित है?
प्रश्न 22.) घी के गुणधर्म, औषधीय उपयोग|
किन-किन चीजों में घी वर्जित है?
प्रश्न 23.) गौमूत्र अर्क बनाने का बर्तन किस धातु का होना चाहिए?
उत्तर 23.) मिट्टी, शीशा,
लोहा या मजबूरी में स्टील|
प्रश्न 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और
किसी भी तरह कि सजावट
क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और
किसी भी तरह कि सजावट इसलिए
नहीं करनी चाहिए क्योंकि सिंग चंद्रमा से आने
वाली ऊर्जा को अवशोषित करते शरीर को देते है|
अगर इसे पेंट कर दिया जाए तो वह प्रक्रिया बाधित होती है|
प्रश्न 25.) अगर गाय का गौमूत्र नीचे जमीन पर
गिर जाये तो क्या उसे हम अर्क बनाने में उपयोग कर सकते है?
उत्तर 25.) नहीं, फिर उसे केवल कृषि कार्य के उपयोग में ले
सकते है|
प्रश्न 26.) भिन्न प्रांत की नस्ल वाली गाय
को किसी दूसरे वातावरण में पाला जाये
तो उसकी क्या हानियाँ है?
उत्तर 26.) भिन्न-भिन्न नस्लें अपनी-
अपनी जगह के वातावरण के अनुरूप बनी है अगर
हम उन्हे दूसरे वातावरण में ले जा कर रखेंगे तो उन्हें भिन्न वातावरण में
रहने पर परेशानी होती है जिसका असर गाय के
शरीर एवं गव्यों दोनों पर पड़ता है| और आठ से दस
पीड़ियों के बाद वह नस्ल बदल कर स्थानीय
भी हो जाती है| अतः यह प्रयोग
नहीं करना चाहिए|
प्रश्न 27.) क्या ताजा गौमूत्र से ही चंद्रमा अर्क बना सकते
है, पुराने से नहीं?
उत्तर 27.) हाँ, चंद्रमा अर्क सूर्योदय से पहले
चंद्रमा की शीतलता में बनाया जाता है|
प्रश्न 28.)गाय का घी और उसके उत्पाद महंगे क्यों होते है?
उत्तर 28.) एक लीटर घी बनाने में
तीस लीटर दूध की खपत
होती है जिसका मूल्य कम से कम 30 रु. लीटर के
हिसाब से 900 रुपये केवल दूध का होता है| और इसे बनाने में मेहनत
आदि को जोड़ दिया जाये तब घी का न्यूनतम मूल्य 1200 रुपये
प्रति लीटर होता है|
प्रश्न 1: गौमूत्र किस गाय का लेना चाहिए?
उत्तर – जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन
करे, स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस
गौ का गौमूत्र औषधि गुणवाला होता है। शास्त्रीय निर्देश है कि –
‘‘अग्रमग्रं चरन्तीनामोषधीनां वने वने’’।
प्रश्न 2: गौमूत्र किस आयु की गौ का लेना चाहिए?
उत्तर – किसी भी आयु की-
बच्ची, जवान, बूढ़ी-गौ का गौमूूत्र औषधि प्रयोग में
काम में लाना चाहिए।
प्रश्न 3: क्या बैल, छोटा बच्चा या वृद्ध बैल का भी गौमूत्र
औषधि उपयोग में आता है?
उत्तर: नर जाति का मूत्र अधिक तीक्ष्ण होता है, पर
औषधि उपयोगिता में कम नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक
ही है। बैलों का मूत्र सूँघने से ही
बंध्या (बाँझ) को सन्तान प्राप्त होती है। कहा है: ‘‘ऋषभांष्चापि,
जानामि राजनपूजितलक्षणान्। येषां मूत्रामुपाघ्राय,
अपि बन्ध्या प्रसूयते।।’’ (संदर्भ-महाभारत विराटपर्व)
अर्थ: उत्तम लक्षण वाले उन बैलों की भी मुझे
पहचान है, जिनके मूत्र को सूँघ लेने मात्र से बंध्या स्त्री गर्भ
धारण करने योग्य हो जाती है।
प्रश्न 4: गौमूत्र को किस पात्र में रखना चाहिए?
उत्तर: गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में न रखंे।
मिट्टी, काँच,
चीनी मिट्टी का पात्र हो एवं
स्टील का पात्र भी उपयोगी है।
प्रश्न 5: कब तक संग्रह किया जा सकता है ?
उत्तर: गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल
न गिरे, ठीक तरह से ढँका हुआ हो, गुणों में
कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल,
काला ताँबा व लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में गंगा ने वास किया है।
गंगाजल भी कभी खराब नहीं होता है।
पवित्रा ही रहता है। किसी प्रकार के हानिकारक
कीटाणु नहीं होते हैं।
प्रश्न 6: जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र लिया जाना चाहिए
या नहीं?
उत्तर: नहीं लेना चाहिए।
गव्यं पवित्रं च रसायनं च , पथ्यं च हृदयं बलबुद्धिम |
आयुः प्रदं रक्तविकारहारि, त्रिदोषहृद्रोगविषापहं स्यात ||
अनुवाद: भारतीय गाय से प्राप्त होने वाले गव्य पवित्र हैं, रसायन
हैं और हृदय के लिए औषधी हैं, वे बल एवं बुद्धि को बढ़ाते हैं|
वे लंबी आयु देते हैं, रक्त के विकारों को हर दूर करते हैं,
तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित रखते हैं, वे
सभी रोगों का उपचार एवं शरीर को विष(दोष) रहित
करते हैं|
वेदों से संदर्भ: शांत स्वर में नंदिनी नामक एक गाय
राजा दिलीप (राजा रघु के वंशज एवं श्रीराम के
पूर्वज) से कहती हैं :
न केवलं पयसा प्रसुतिम, वे ही मन कम दुग्हम प्रसन्नम
अनुवाद: जब भी मैं प्रसन्न और खुश रहती हूँ मैं
सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती हूँ| मुझे सिर्फ
दुग्ध आपूर्तिकर्ता मत समझो|
गाय में देवताओं का निवास है| वह साक्षात कामधेनु (इच्छा पूरक) है| ईश्वर
के सभी अवतार गाय के शरीर में वास करते हैं| वह
सभी आकाशीय तारामंडल से शुभ किरणों को ग्रहण
करती है| इस प्रकार उसमे
सभी नक्षत्रों का प्रभाव शामिल हैं|
जहाँ कहीं भी एक गाय है,
वहाँ सभी आकाशीय तारामंडल के प्रभाव है, सब
देवताओं का आशीर्वाद है| गाय एकमात्र देव्य जीव
है जिसकी रीढ़
की हड्डी से सूर्यकेतु नाड़ी (सूरज से
संपर्क में रहने वाली नाड़ी) गुज़रती है|
इसीलिए गाय के दूध, मक्खन और घी का रंग
सुनहरा होता है| ऐसा इसलिए है क्योंकि सूर्यकेतु नाड़ी, सौर
किरणों के संपर्क में आकर उसके रक्त में सोने के लवण का उत्पादन
करती है| यह लवण गाय के दूध और अन्य
शारीरिक तरल पदार्थों में मौजूद हैं, जो चमत्कारिक ढंग से कई
रोगों का इलाज करते हैं|
मातृह सर्व भूतानाम, गावः सर्व सुख प्रदा
अनुवाद: सभी जीवों की माँ होने के नाते
गाय हर किसी को सभी सुख प्रदान
करती है|
यदि संयोगवश कुछ ज़हरीली या हानिकारक
सामग्री भारतीय गाय के भोजन में प्रवेश
करती है, तो वह उसे अपने मांस में अवशोषित कर
लेती है| वह उसे गोमूत्र, गोबर या दूध में जाने
नहीं देती या बहुत छोटी मात्रा में
स्त्रावित (छोड़ती) करती है| इन
परिणामों की तुलना दुनिया भर के अन्य शोधकर्ताओं ने अन्य
जानवरों के साथ की है, उन्हें विभिन्न वस्तुएं खिला कर उनके
दूध और मूत्र का परीक्षण किया गया लेकिन भारतीय
वंश की गाय के अलावा किसी में यह
विशेषता नहीं मिली| इस बात का वैज्ञानिक आधार
यह है की भारतीय वंश की गायों में
अमीनो एसिडों की एक श्रंखला होती है,
उस श्रंखला में 67वें स्थान पर एक प्रोटीन पाया जाता है जिसे
प्रोलाइन कहा जाता है| गाय के शरीर में एकत्रित हुआ विष
भी एक प्रोटीन के रूप में मिलता है जिसे BCM7
कहा जाता है और यह बहुत ही हानिकारक होता है लेकिन
भारतीय गाय के शरीर में मौजूद प्रोलाइन इस BCM7
को अपने साथ इतनी मजबूती से पकड़ लेता है
की वह विष गाय के किसी भी गव्य
(गौमूत्र, गोबर अथवा दूध) में मिल ही नहीं पाता है
या बहुत ही कम मिल पाता है जबकि विदेशी नस्ल
की गाय जैसी दिखने
वाली जीव अपने शरीर में प्रोलाइन
नहीं बना पाती है और उसकी जगह
हिस्टिडाइन नामक प्रोटीन का निर्माण करती है
जो BCM7 विष को उसके गोबर, मूत्र या दूध में जाने से रोकने में सक्षम
नहीं है| इसलिए भारतीय गाय का गौमूत्र, गोबर और
दूध शुद्ध हैं और विषाक्त पदार्थों को दूर करते हैं| गाय का दूध निश्चित रूप
से विष विरोधक है| गौमूत्र “पंचगव्य” में शामिल है| “पंचगव्य”
को सभी जीवों की हड्डी से
त्वचा तक के सभी रोगों का संसाधक कहा जाता है|

रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है.

रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है.

रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है.
दक्षिणी राज्यों में सैंकड़ों किसानों के खुदकुशी करने के पीछे रासायनिक दवाओं की खलनायकी उजागर हो चुकी है. इस खेती से उपजा अनाज जहर हो रहा है. रासायनिक खाद डालने से एक दो साल तो खूब अच्छी फसल मिलती है फिर जमीन बंजर होती जाती है. बेशकीमती मिट्टी की ऊपरी परत (टाप सोईल) का एक इंच तैयार होने में 500 साल लगते हैं. जबकि खेती की आधुनिक प्रक्रिया के चलते एक इंच टाप सोईल मात्र 16 वर्ष में नष्ट हो रही है.
रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के कारण मिट्टी सूखी और बेजान हो जाती है. यही भूमि के क्षरण का मुख्य कारण है. वहीं गोबर से बनी कंपोस्ट या प्राकृतिक खाद से उपचारित भूमि की नमी की अवशोषण क्षमता पचास फीसदी बढ़ जाती है. नतीजा मिट्टी ताकतवर, गहरी और नम रहती है. इससे उसका क्षरण भी रुकता है.
स्थापित तथ्य है कि कृत्रिम उर्वरक यानी रासायनिक खादें मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक खनिज लवणों का भारी मात्रा में शोषण करते हैं. इसके कारण जमीन में जरूरी खनिज लवणों की कमी आ जाती है. जैसे कि नाईट्रोजन के उपयोग से भूमि में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पोटेशियम का क्षरण होता है. इसकी कमी पूरी करने के लिए जब पोटाश प्रयोग में लाते हैं तो फसल में एस्कोरलिक एसिड और केरोटिन की कमी आ जाती है. इसी तरह सुपर फास्फेट के कारण मिट्टी में तांबा और जस्ता चुक जाता है. जस्ते की कमी के कारण शरीर की वृद्धि और लैंगिक विकास में कमी, घावों के भरने में अड़चन आदि रोग लग जाते हैं.
नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों से संचित भूमि में उगाए गेहूं-मक्का में प्रोटीन की मात्रा 20 से 25 प्रतिशत कम होती है. रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल के दूषित होने की गंभीर समस्या भी खड़ी हो रही है. अभी तक ऐसी कोई तकनीक भी विकसित नहीं हुई जिससे भूजल को रासायनिक जहर से मुक्त किया जा सके. जबकि आसन्न जल संकट का एकमात्र निदान भूमिगत जल ही है.
न्यूजीलैंड एक विकसित देश है. यहां आबादी के बड़े हिस्से का जीवनयापन पशुपालन से होता है. इस देश में पीटर प्राक्टर पिछले 30 वर्षो से जैविक खेती के विकास में लगे हैं. पीटर का कहना है कि यदि अब खेतों को रसायनों से मुक्त नहीं किया गया तो मनुष्य का समूचा शरीर ही जहरीला हो जाएगा. वे बताते हैं कि उनके देश में कृत्रिम उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन बीमार हो गई है. साथ ही इन रसायनों के प्रयोग के बाद शेष बचा कचरा धरती के लिए कई अन्य पर्यावरणीय संकट पैदा कर रहा है.
पीटर के मुताबिक जैविक खेती में गाय के सींग की भूमिका बेहद चमत्कारी होती है. वे कहते हैं कि सितंबर महीने में गहरे गड्ढे में गाय का गोबर भरें. साथ में गाय के सींग के एक टुकड़े को दबा दें. फरवरी या मार्च में इस सींग और कंपोस्ट को निकाल लें. खाद तो अपनी जगह काम करेगी ही, यह सींग का टुकड़ा भी जिस खेत में गाड़ देंगे वहां बेहतरीन व रोग मुक्त फसल होगी.
प्राक्टर ने यह प्रयोग कर पाया कि गाय के सींग से तैयार मिट्टी सामान्य मिट्टी से 15 गुना अधिक उर्वरा व सक्रिय थी. पीटर बताते हैं कि सींग के साथ तैयार कंपोस्ट को पानी में घोलकर खेतों में छिड़क ने से पैदावार अधिक पौष्टिक होती है, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और कीटनाशकों के उपयोग की जरूरत नहीं पड़ती है. न्यूजीलैंड सरीखे आधुनिक देश के इस कृषि वैझानिक ने पाया कि अच्छी फसल के लिए गृह-नक्षत्रों की चाल का भी खयाल करना चाहिए. वे मानते हैं कि ऐसा करने पर फसलों में कभी रोग नहीं लगते हैं.
कुछ साल पहले हालैंड की एक कंपनी ने भारत को गोबर निर्यात करने की योजना बनाई थी तो खासा बवाल मचा था. लेकिन यह दुर्भाग्य है कि इस बेशकीमती कार्बनिक पदार्थ की हमारे देश में कुल उपलब्धता आंकने के आज तक कोई प्रयास नहीं हुए. अनुमान है कि देश में कोई 13 करोड़ मवेशी हैं, जिनसे हर साल 120 करोड़ टन गोबर मिलता है. उसमें से आधा उपलों के रूप में जल जाता है. यह ग्रामीण उर्जा की कुल जरूरत का 10 फीसद भी नहीं है.
1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि गोबर को चूल्हे में जलाया जाना एक अपराध है. लेकिन इसके व्यावहारिक इस्तेमाल के तरीके 'गोबर गैस प्लांट' की दुर्गति यथावत है. राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत निर्धारित लक्ष्य के 10 फीसद प्लांट भी नहीं लगाए गए हैं जबकि ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि देश में गोबर के जरिए 2000 मेगावाट ऊर्जा पैदा हो सकती है.
गोबर के ऊपर खाना बनाने में बहुत समय लगता है. यदि इसके बजाय गोबर का इस्तेमाल खेतों में किया जाए तो अच्छा होगा. इससे एक तो महंगी रासायनिक खादों व दवाओं का खर्चा कम होगा. साथ ही जमीन की ताकत भी बनी रहेगी. पैदा फसल अच्छी सेहत में मददगार होगी, यह भी बड़ा फायदा होगा.
हालांकि यदि गांव के कई लोग मिल कर गोबर गैस प्लांट लगा लें तो इसका उपयोग रसोई में भी अच्छी तरह होगा. गैस प्लांट से निकला कचरा खाद का काम करेगा. कुल मिलाकर यदि हम गोबर में छिपे गुणों का इस्तेमाल सीख लें तो फसली-इंसानी सेहत तो सुधरेगी ही, सरकार भी भारी भरकम उर्वरक सब्सिडी से निजात पा सकती है.
रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है. दक्षिणी राज्यों में सैंकड़ों किसानों के खुदकुशी करने के पीछे रासायनिक दवाओं की खलनायकी उजागर हो चुकी है. इस खेती से उपजा अनाज जहर हो रहा है. रासायनिक खाद डालने से एक दो साल तो खूब अच्छी फसल मिलती है फिर जमीन बंजर होती जाती है. बेशकीमती मिट्टी की ऊपरी परत (टाप सोईल) का एक इंच तैयार होने में 500 साल लगते हैं. जबकि खेती की आधुनिक प्रक्रिया के चलते एक इंच टाप सोईल मात्र 16 वर्ष में नष्ट हो रही है. रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल के कारण मिट्टी सूखी और बेजान हो जाती है. यही भूमि के क्षरण का मुख्य कारण है. वहीं गोबर से बनी कंपोस्ट या प्राकृतिक खाद से उपचारित भूमि की नमी की अवशोषण क्षमता पचास फीसदी बढ़ जाती है. नतीजा मिट्टी ताकतवर, गहरी और नम रहती है. इससे उसका क्षरण भी रुकता है. स्थापित तथ्य है कि कृत्रिम उर्वरक यानी रासायनिक खादें मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक खनिज लवणों का भारी मात्रा में शोषण करते हैं. इसके कारण जमीन में जरूरी खनिज लवणों की कमी आ जाती है. जैसे कि नाईट्रोजन के उपयोग से भूमि में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पोटेशियम का क्षरण होता है. इसकी कमी पूरी करने के लिए जब पोटाश प्रयोग में लाते हैं तो फसल में एस्कोरलिक एसिड और केरोटिन की कमी आ जाती है. इसी तरह सुपर फास्फेट के कारण मिट्टी में तांबा और जस्ता चुक जाता है. जस्ते की कमी के कारण शरीर की वृद्धि और लैंगिक विकास में कमी, घावों के भरने में अड़चन आदि रोग लग जाते हैं. नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों से संचित भूमि में उगाए गेहूं-मक्का में प्रोटीन की मात्रा 20 से 25 प्रतिशत कम होती है. रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल के दूषित होने की गंभीर समस्या भी खड़ी हो रही है. अभी तक ऐसी कोई तकनीक भी विकसित नहीं हुई जिससे भूजल को रासायनिक जहर से मुक्त किया जा सके. जबकि आसन्न जल संकट का एकमात्र निदान भूमिगत जल ही है. न्यूजीलैंड एक विकसित देश है. यहां आबादी के बड़े हिस्से का जीवनयापन पशुपालन से होता है. इस देश में पीटर प्राक्टर पिछले 30 वर्षो से जैविक खेती के विकास में लगे हैं. पीटर का कहना है कि यदि अब खेतों को रसायनों से मुक्त नहीं किया गया तो मनुष्य का समूचा शरीर ही जहरीला हो जाएगा. वे बताते हैं कि उनके देश में कृत्रिम उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन बीमार हो गई है. साथ ही इन रसायनों के प्रयोग के बाद शेष बचा कचरा धरती के लिए कई अन्य पर्यावरणीय संकट पैदा कर रहा है. पीटर के मुताबिक जैविक खेती में गाय के सींग की भूमिका बेहद चमत्कारी होती है. वे कहते हैं कि सितंबर महीने में गहरे गड्ढे में गाय का गोबर भरें. साथ में गाय के सींग के एक टुकड़े को दबा दें. फरवरी या मार्च में इस सींग और कंपोस्ट को निकाल लें. खाद तो अपनी जगह काम करेगी ही, यह सींग का टुकड़ा भी जिस खेत में गाड़ देंगे वहां बेहतरीन व रोग मुक्त फसल होगी. प्राक्टर ने यह प्रयोग कर पाया कि गाय के सींग से तैयार मिट्टी सामान्य मिट्टी से 15 गुना अधिक उर्वरा व सक्रिय थी. पीटर बताते हैं कि सींग के साथ तैयार कंपोस्ट को पानी में घोलकर खेतों में छिड़क ने से पैदावार अधिक पौष्टिक होती है, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और कीटनाशकों के उपयोग की जरूरत नहीं पड़ती है. न्यूजीलैंड सरीखे आधुनिक देश के इस कृषि वैझानिक ने पाया कि अच्छी फसल के लिए गृह-नक्षत्रों की चाल का भी खयाल करना चाहिए. वे मानते हैं कि ऐसा करने पर फसलों में कभी रोग नहीं लगते हैं. कुछ साल पहले हालैंड की एक कंपनी ने भारत को गोबर निर्यात करने की योजना बनाई थी तो खासा बवाल मचा था. लेकिन यह दुर्भाग्य है कि इस बेशकीमती कार्बनिक पदार्थ की हमारे देश में कुल उपलब्धता आंकने के आज तक कोई प्रयास नहीं हुए. अनुमान है कि देश में कोई 13 करोड़ मवेशी हैं, जिनसे हर साल 120 करोड़ टन गोबर मिलता है. उसमें से आधा उपलों के रूप में जल जाता है. यह ग्रामीण उर्जा की कुल जरूरत का 10 फीसद भी नहीं है. 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि गोबर को चूल्हे में जलाया जाना एक अपराध है. लेकिन इसके व्यावहारिक इस्तेमाल के तरीके 'गोबर गैस प्लांट' की दुर्गति यथावत है. राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत निर्धारित लक्ष्य के 10 फीसद प्लांट भी नहीं लगाए गए हैं जबकि ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि देश में गोबर के जरिए 2000 मेगावाट ऊर्जा पैदा हो सकती है. गोबर के ऊपर खाना बनाने में बहुत समय लगता है. यदि इसके बजाय गोबर का इस्तेमाल खेतों में किया जाए तो अच्छा होगा. इससे एक तो महंगी रासायनिक खादों व दवाओं का खर्चा कम होगा. साथ ही जमीन की ताकत भी बनी रहेगी. पैदा फसल अच्छी सेहत में मददगार होगी, यह भी बड़ा फायदा होगा. हालांकि यदि गांव के कई लोग मिल कर गोबर गैस प्लांट लगा लें तो इसका उपयोग रसोई में भी अच्छी तरह होगा. गैस प्लांट से निकला कचरा खाद का काम करेगा. कुल मिलाकर यदि हम गोबर में छिपे गुणों का इस्तेमाल सीख लें तो फसली-इंसानी सेहत तो सुधरेगी ही, सरकार भी भारी भरकम उर्वरक सब्सिडी से निजात पा सकती है.

स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए

स्वाइन फ्लू को आयुर्वेद में जहां जनपदोध्वंस
नाम से जाना गया है। वहीं आयुर्वेद के
विशेषज्ञ स्वाइन फ्लू के लक्षणों को आयुर्वेद
की प्राचीन संहिताओं में वर्णित वात
श्लेष्मिक ज्वर लक्षणों के निकट मानते हुए उसे
स्वाइन फ्लू के बराबर का रोग बताते हैं।
- स्वाइन फ्लू के बचाव के लिए हल्दी और
नमक उबालकर गुनगुने पानी से गरारे करने
चाहिए। स्वाइन फ्लू के दौरान गर्म पानी से
हाथ-पैर धोएं और अधिक से अधिक सफाई
रखें।
- नीलगिरी,इलायची तेल की एक-दो बूंदें और
थोडा कपूर रूमाल में डालकर नाक पर
रखना चाहिए।
- स्वाइन फ्लू से बचने के लिए अदरक,
तुलसी को पीस कर शहद के साथ सुबह
खाली पेट चाटना चाहिए।
- औषधियों में त्रिभुवन कीर्ति रस,
लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी बूटी, गुड़
आदि का सेवन करना चाहिए।
- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकीभर
कालीमिर्च पावडर और हल्दी को एक कप
पानी में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं.
- आधा चम्मच आंवला पावडर को आधा कप
पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीएं
- नियमित रूप से भ्रस्त्रिका , अनुलोम-
विलोम और कपालभाती प्राणायाम करें.
- नाक में तेल या घी डालने से बंद नाक खुल
जायेगी.
- रात में हल्दीवाला दूध पिए. इसमें
थोड़ा गाय का घी और आधा चम्मच
त्रिफला चूर्ण भी मिलाये.
- तुलसी , नीम छाल , दालचीनी , लौंग और
गिलोय उबालकर काढा दिन में तीन बार
पिए.
- गिलोय घनवटी की दो दो गोली सुबह
शाम ले.
- ताज़ी नीम और तुलसी ना मिलने पर नीम
घनवटी, तुलसी सूखा का पंचांग
आदि का उपयोग कर सकते है.
- ज्वरनाशक क्वाथ लें.
- महासुदर्शन वटी दिन में दो बार ले.
- हल्का और सुपाच्य भोजन ले. पूरी नींद ले.
तनाव ना ले.
- कब्ज ना होने पाए इसका ध्यान रखे.

हल्दी वाला दूध

हल्दी वाला दूध

दूध और हल्दी .
दूध जहां कैल्शियम से भरपूर होता है वहीं दूसरी तरफ हल्दी में
एंटीबायोटिक होता है। दोनों ही आपके स्वास्थ्य के लिए
बहुत लाभकारी होते हैं। और अगर दोनों को एक साथ
मिला लिया जाये तो इनके लाभ दोगुना हो जायेगें। आइए
हल्दी वाले दूध के ऐसे फायदों को जानकर आप इसे पीने से खुद
को रोक नहीं पायेगें।
सांस संबंधी समस्याओं में लाभकारी
हल्दी में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते है, इसलिए इसे गर्म दूध के
साथ लेने से दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ और साइनस
जैसी समस्याओं में आराम होता है। यह मसाला आपके शरीर में
गरमाहट लाता है और फेफड़े तथा साइनस में जकड़न से तुरन्त
राहत मिलती है। साथ ही यह बैक्टीरियल और वायरल
संक्रमणों से लड़ने में मदद करता है।
मोटापा कम करें
हल्दी वाले दूध को पीने से शरीर में जमी अतिरिक्त
चर्बी घटती है। इसमें मौजूद कैल्शियम और मिनिरल और अन्य
पोषक तत्व वजन घटाने में मदगार होते है।
हडि्डयों को मजबूत बनाये
दूध में कैल्शियम और हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी के
कारण हल्दी वाला दूध पीने से हडि्डयां मजबूत होती है और
साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
हल्दी वाले दूध को पीने से हड्डियों में होने वाले नुकसान और
ऑस्टियोपोरेसिस की समस्या में कमी आती है।
पाचन संबंधी समस्याओं में लाभकारी
हल्दी वाला दूध एक शक्तिशाली एंटी-सेप्टिक होता है। यह
आंतों को स्वस्थ बनाने के साथ पेअ के अल्सर और कोलाइटिस
के उपचार में भी मदद करता है। इसके सेवन से पाचन बेहतर
होता है और अल्सर, डायरिया और अपच
की समस्या नहीं होती है।
दर्द कम करें
हल्दी वाले दूध के सेवन से गठिया का निदान होता हैं। साथ
ही इसका रियूमेटॉइड गठिया के कारण होने वाली सूजन के
उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है। यह जोड़ो और
मांसपेशियों को लचीला बनाता है जिससे दर्द कम
हो जाता है।
गहरी नींद में सहायक
हल्दी शरीर में ट्रीप्टोफन नामक अमीनो अम्ल को बनाता है
जो शान्तिपूर्वक और गहरी नींद में सहायक होता है। इसलिए
अगर आप रात में ठीक से सो नहीं पा रहें है
या आपको बैचेनी हो रही है तो सोने से आधा घंटा पहले
हल्दी वाला दूध पीएं। इससे आपको गहरी नींद आएगी और नींद
ना आने की समस्या दूर हो जाएगी।

स्वाइन फ्लू का उपाय

स्वाइन फ्लू का उपाय

http://www.youtube.com/watch?v=DCiWvjOkI9I
बिकाऊ मीडिया का सहारा लीये बिना, भारत में कुछ भी करना ना मुमकिन है । कुछ ऐसी ही कहानी स्वाइन फ्लू की है ।
स्वाइन फ्लू: बचाव और इलाज
क्या है स्वाइन फ्लू ??
स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच1 एन1 के नाम से जाना जाता है और मौसमी फ्लू में भी यह वायरस सक्रिय होता है। 2009 में जो स्वाइन फ्लू हुआ था, उसके मुकाबले इस बार का स्वाइन फ्लू कम पावरफुल है, हालांकि उसके वायरस ने इस बार स्ट्रेन बदल लिया है यानी पिछली बार के वायरस से इस बार का वायरस अलग है।
कैसे फैलता है ??
जब आप खांसते या छींकते हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। मसलन, दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल के जरिए भी यह वायरस फैल सकते हैं, अगर इन चीजों का इस्तेमाल किसी संक्रमित व्यक्ति ने किया हो।
शुरुआती लक्षण
- नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना।
- मांसपेशियां में दर्द या अकड़न महसूस करना।
- सिर में भयानक दर्द।
- कफ और कोल्ड, लगातार खांसी आना।
- उनींदे रहना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना।
- बुखार होना, दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना।
- गले में खराश होना और इसका लगातार बढ़ते जाना।
अकसर पूछे जाने वाले सवाल
- अगर किसी को स्वाइन फ्लू है और मैं उसके संपर्क में आया हूं, तो क्या करूं ??
सामान्य जिंदगी जीते रहें, जब तक फ्लू के लक्षण नजर नहीं आने लगते। अगर मरीज के संपर्क में आने के 7 दिनों के अंदर आपमें लक्षण दिखते हैं, तो डॉक्टर से सलाह करें।
- अगर साथ में रहने वाले किसी शख्स को स्वाइन फ्लू है, तो क्या मुझे ऑफिस जाना चाहिए ??
हां, आप ऑफिस जा सकते हैं, मगर आपमें फ्लू का कोई लक्षण दिखता है, तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं और मास्क का इस्तेमाल करें।
- स्वाइन फ्लू होने के कितने दिनों बाद मैं ऑफिस या स्कूल जा सकता हूं ??
अस्पताल वयस्कों को स्वाइन फ्लू के शुरुआती लक्षण दिखने पर सामान्यत: 5 दिनों तक ऑब्जर्वेशन में रखते हैं। बच्चों के मामले में 7 से 10 दिनों तक इंतजार करने को कहा जाता है। सामान्य परिस्थितियों में व्यक्ति को 7 से 10 दिन तक रेस्ट करना चाहिए, ताकि ठीक से रिकवरी हो सके। जब तक फ्लू के सारे लक्षण खत्म न हो जाएं, वर्कप्लेस से दूर रहना ही बेहतर है।
- क्या किसी को दो बार स्वाइन फ्लू हो सकता है ??
जब भी शरीर में किसी वायरस की वजह से कोई बीमारी होती है, शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र उस वायरस के खिलाफ एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। जब तक स्वाइन फ्लू के वायरस में कोई ऐसा बदलाव नहीं आता, जो अभी तक नहीं देखा गया, किसी को दो बार स्वाइन फ्लू होने की आशंका नहीं रहती। लेकिन इस वक्त फैले वायरस का स्ट्रेन बदला हुआ है, जिसे हो सकता है शरीर का प्रतिरोधक तंत्र इसे न पहचानें। ऐसे में दोबारा बीमारी होने की आशंका हो सकती है।
‪#‎आयुर्वेद‬
ऐसे करें बचाव
��इनमें से एक समय में एक ही उपाय आजमाएं।��
- 4-5 तुलसी के पत्ते, 5 ग्राम अदरक, चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो-तीन बार पिएं।
- गिलोय (अमृता) बेल की डंडी को पानी में उबाल या छानकर पिएं।
- गिलोय सत्व दो रत्ती यानी चौथाई ग्राम पौना गिलास पानी के साथ लें।
- 5-6 पत्ते तुलसी और काली मिर्च के 2-3 दाने पीसकर चाय में डालकर दिन में दो-तीन बार पिएं।
- आधा चम्मच हल्दी पौना गिलास दूध में उबालकर पिएं। आधा चम्मच हल्दी गरम पानी या शहद में मिलाकर भी लिया जा सकता है।
- आधा चम्मच आंवला पाउडर को आधा कप पानी में मिलाकर दिन में दो बार पिएं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

कहीं आप विदेशी जर्सी गाय का दूध तो नहीं पी रहें ??



सबसे पहले आप ये जान लीजिये की स्वदेशी गाय और विदेशी जर्सी गाय (सूअर ) की पहचान क्या है ? देशी और विदेशी गाय को पहचाने की जो बड़ी निशानी है वो ये की देशी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है जबकि जर्सी गाय की पीठ समतल होती है ! आपको जानकर हैरानी होगी दुनिया मे भारत को छोड़ जर्सी गाय का दूध को नहीं पीता ! जर्सी गाय सबसे ज्यादा डैनमार्क ,न्यूजीलैंड , आदि देशो मे पायी जाती है ! डैनमार्क मे तो कुल लोगो की आबादी से ज्यादा गाय है ! और आपको ये जानकार हैरानी होगी की डैनमार्क वाले दूध ही नहीं पीते ! क्यों नहीं पीते ? क्योंकि कैंसर होने की संभवना है ,घुटनो कर दर्द होना तो आम बात है ! मधुमेह (शुगर होने का बहुत बड़ा कारण है ये जर्सी गाय का दूध ! डैनमार्क वाले चाय भी बिना दूध की पीते है ! डैनमार्क की सरकार तो दूध ज्यादा होने पर समुद्र मे फेंकवा देती है वहाँ एक line बहुत प्रचलित है ! milk is a white poison !
और जैसा की आप जानते है भारत मे 36000 कत्लखानों मे हर साल 2 करोड़ 50 गाय काटी जाती है और जो 72 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पन होता है वो सबसे ज्यादा अमेरिका और उसके बाद यूरोप और फिर अरब देशों मे भेजा जाता है ! आपके मन मे स्वाल आएगा की ये अमेरिका वाले अपने देश की गाय का मांस क्यो नहीं खाते ?
दरअसल बात ये है की यूरोप और अमेरिका की जो गाय है उसको बहुत गंभीर बीमारियाँ है और उनमे एक बीमारी का नाम है Mad cow disease ! इस बीमारी से गाय के सींघ और पैरों मे पस पर जाती और घाव हो जाते हैं सामान्य रूप से जर्सी गायों को ये गंभीर बीमारी रहती है अब इस बीमारी वाली गाय का कोई मांस अगर खाये तो उसको इससे भी ज्यादा गंभीर बीमारियाँ हो सकती है ! इस लिए यूरोप और अमेरिका के लोग आजकल अपने देश की गाय मांस कम खाते हैं भारत की गाय के मांस की उन्होने ज्यादा डिमांड है ! क्योंकि भारत की गायों को ये बीमारी नहीं होती है ! आपको जानकार हैरानी होगी जर्सी गायों को ये बीमारी इस लिए होती है क्योंकि उसको भी मांसाहारी भोजन करवाया जाता है ताकि उनके शरीर मे मांस और ज्यादा बढ़े ! यूरोप और अमेरिका के लोग गाय को मांस के लिए पालते है मांस उनके लिए प्राथमिक है दूध पीने की वहाँ कोई परंपरा नहीं है वो दूध पीना अधिक पसंद भी नहीं करते !!
तो जर्सी गाय को उन्होने पिछले 50 साल मे इतना मोटा बना दिया है की वे भैंस से भी ज्यादा बत्तर हो गई है ! यूरोप की गाय की जो मूल प्रजातियाँ है holstein friesian ,jarsi ये बिलकुल विचित्र किसम की है उनमे गाय का कोई भी गुण नहीं बचा है ! जितने दुर्गुण भैंस मे होते हैं वे सब जर्सी गाय मे दिखाई देते हैं !
उदाहरण के लिए जर्सी गाय को अपने बचे से कोई लगाव नहीं होता और जर्सी गाय अपने बच्चे को कभी पहचानती भी नहीं ! कई बार ऐसा होता है की जर्सी गाय का बच्चा किसी दूसरी जर्सी गाय के साथ चला जाए उसको कोई तकलीफ नहीं !
लेकिन जो भारत की देशी गाय है वो अपने बच्चे से इतना प्रेम करती है इतना लगाव रखती है की अगर उसके बच्चे को किसी ने बुरी नजर से भी देखा तो वो मर डालने के लिए तैयार हो जाती है ! देशी गाय की जो सबसे बड़ी विशेषता है वो ये की वह लाखो की भीड़ मे अपने बच्चे को पहचान लेती है और लाखो की भीड़ मे वो बच्चा अपनी माँ को पहचान लेता हैं ! जर्सी गाय कभी भी पैदल नहीं चल पाती ! चलाने की कोशिश करो तो बैठ जाती है ! जबकि भारतीय गाय की ये विशेषता है 
उसे कितने भी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ा दो चढ़ती चली जाएगी !
कभी आप हिमालय पर्वत की परिक्रमा करे जितनी ऊंचाई तक मनुष्य जा सकता है उतनी ऊंचाई तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! आप ऋषिकेश ,बद्रीनाथ ,आदि जाए जितनी ऊंचाई पर जाए 8000 -9000 फिट तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! जर्सी गाय को 10 फिट ऊपर चढ़ाना पड़े तकलीफ आ जाती है 
जर्सी गाय का पूरा का पूरा स्वभाव भैंस जैसा है बहुत बार ऐसा होता है जर्सी गाय सड़क पर बैठ जाये और पीछे से लोग होरन बजा बजा कर पागल हो जाते है लेकिन वो नहीं हटती ! क्योंकि हटने के लिए जो i q चाहिए वो उसमे नहीं है !!
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सामान्य रूप से ये जो जर्सी गाय उसके बारे मे यूरोप के लोग ऐसा मानते है की इसको विकसित किया गया है डुकर (सूअर )के जीन से ! भगवान ने गाय सिर्फ भारत को दी है और आपको सुन कर हैरानी होगी ये जितनी भी जर्सी गाय है यूरोप और अमेरिका मे इनका जो वंश बढ़ाया गया है वो सब artificial insemination से बढ़ाया गया और आप सब जानते है artificial insemination मे ये गुंजाइश है की किसी भी जानवर का जीन चाहे घोड़े ,का चाहें सूअर का उसमे डाल सकते है ! तो इसे सूअर से विकसित किया गया है ! और artificial insemination से भी उसको गर्भवती बनाया जाता है ये उनके वहाँ पिछले 50 साल से चल रहा है !!
यूरोप और अमेरिका के भोजन विशेषज्ञ (nutrition expert ) हैं ! उनका कहना है की अगर जर्सी गाय का भोजन करे तो 15 से 20 साल मे कैंसर होने की संभवना ,घुटनो का दर्द तो तुरंत होता है ,sugar,arthritis,ashtma और ऐसे 48 रोग होते है इसलिए उनके देश मे आजकल एक अभियान चल रहा है की अपनी गाय का मांस कम खाओ और भारत की सुरक्षित गाय मांस अधिक खाओ ! इसी लिए यूरोपियन कमीशन ने भारत सरकार के साथ समझोता कर रखा है और हर साल भारत से 72 लाख मीट्रिक टन मांस का निर्यात होता है जिसके लिए 36000 कत्लखाने इस देश मे चल रहें हैं !! 
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तो मित्रो उनके देश के लोग ना तो आजकल अपनी गाय का मांस खा रहे हैं और ना ही दूध पी रहें हैं ! और हमारे देश के नेता इतने हरामखोर है की एक तरह तो अपनी गाय का कत्ल करवा रहें हैं और दूसरी तरफ उनकी सूअर जर्सी गाय को भारत मे लाकर हमे बर्बाद करने मे लगे है ! पंजाब और गुजरात से सबसे ज्यादा जर्सी गाय है ! और एक गंभीर बात आपको सुन कर हैरानी होगी भारत की बहुत सी घी बेचने वाली कंपनियाँ बाहर से जर्सी गाय का दूध import करती है !दूध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है A1 और A2 !

A1
जर्सी का A2 भारतीय देशी गाय का !
तो होता ये है की इन कंपनियो को अधिक से अधिक रोज घी बनाना है अब इतनी गाय को संभलना उनका पालण पोषण करना वो सब तो इनसे होता नहीं ! और ना ही इतनी गाय ये फैक्ट्री मे रख सकते है तो ये लोग क्या करते है डैनमार्क आदि देशो से A1 दूध (जर्सी गाय ) का मँगवाते है powder (सूखा दूध )के रूप मे ! उनसे घी बनाकर हम सबको बेच रहें है ! और हम सबकी मजबूरी ये है की आप इनके खिलाफ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि भारत मे कोई ऐसा कानून नहीं बना जो ये कहता है की जर्सी गाय का दूध A1 नहीं पीना चाहिए ! अगर कानून होगा तो ही आप कुछ करोगे ना ? यहाँ A1 - को जाँचने की लैब तक नहीं ! नेता देश बेचने मे मस्त हैं 
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तो आप सबसे निवेदन है की आप देसी गाय का ही दूध पिये उसी के गोबर से राजीव भाई द्वारा बताए फार्मूले से खाद बनाए और खेती करे ! देशी गाय की पहचान हमने ऊपर बताई थी की उसकी पीठ पर मोटा सा हम्प होता है ! दरअसल ये हम्प ही सूर्य से कुछ अलग प्रकार की तिरंगे लेता है वही उसके दूध ,मूत्र और गोबर को पवित्र बनाती है जिससे उसमे इतने गुण है ! गौ माता सबसे पहले समुन्द्र मंथन से निकली थी जिसे कामधेनु कहते है गौ माता को वरदान है की इसके शरीर से निकली को भी वस्तु बेकार नहीं जाएगी ! दूध ,हम पी लेते है ,मूत्र से ओषधि बनती है ,गोबर से खेती होती है ! और गोबर गैस गाड़ी चलती है , बिजली बनती है ! सूर्य से जो किरणे इसके शरीर मे आती है उसी कारण इसे दूध मे स्वर्ण गुण आता है और इसके दूध का रंग स्वर्ण (सोने जैसा होता है ) ! और गाय के दूध से 1 ग्राम भी कोलोस्ट्रोल नहीं बढ़ता !
कल से ही देशी गाय का दूध पिये अपने दूध वाले भाई से पूछे वो किस गाय का दूध लाकर आपको दे रहा है (वैसे बहुत से दूध वालों को देशी -जर्सी गाय का अंतर नहीं पता होगा ) आप बता दीजिये दूध देशी गाय का ही पिये ! और घी भी देशी गाय का ही खाएं !! गाय के घी के बारे मे अधिक जानकारी के लिए ये जान लीजिये !
गाय का घी मुख्य रूप से 2 तरह का है एक खाने वाला घी है और दूसरा पंचग्व्या नाक मे डालकर इलाज करने वाला ! ( पंचग्व्या घी की लागत कम होती है क्योंकि 2 -2 बूंद नाक मे या नाभि मे पड़ता है 48 रोग ठीक करता है ( 8 से 10 हजार रूपये लीटर बिकता है ) लेकिन 10 ML ही महीना चल जाता है ! इसको असली विधि जो आयुर्वेद मे लिखी उसी ढंग से बनाने वाले भारत मे ना मात्र लोग है !
एक गुजरात मे भाई है dhruv dave जी वैसे वो सबको नहीं बेचते केवल रोगी को ही देते हैं लेकिन फिर भी कभी एक बार इस्तेमाल करने की इच्छा हो तो आप email से संपर्क कर सकते हैं davedhruvever@gmail.com अगर उत्पादन मे हुआ तो शायद आपको मिल जाएँ !
आयुर्वेद मे खाने वाला गाय के दूध का घी निकालने की जो विधि लिखी है उस विधि से आप घी निकले तो आपको 1200 से 2000 रुपए किलो पड़ेगा ! क्योकि 1 किलो घी के लिए 25 से 30 लीटर दूध लग जाता है ! महंगा होने का कारण ये भी है की देशी गाय की संख्या काम होती जा रही है कत्ल बहुत हो रहा है वैसे तो यही घी सबसे बढ़िया है ! लेकिन एक दूसरे ढंग से भी आजकल निकालने लग गए हैं ! जिससे दूध से सीधा क्रीम निकालकर घी बनाया जाता है ! अब समस्या ये है की लगभग सभी कंपनियाँ या तो भैंस का घी बेचती है या गाय का घी बोलकर जर्सी का बेच रही है !
आपको अगर घी खाना ही है तो भारत की सबसे बड़ी गौशाला - विश्व की भी सबसे बढ़ी गौशाला वो है राजस्थान मे उसका नाम है पथमेढ़ा गौ शाला ! उनका घी खा सकते हैं पथमेढ़ा गौशाला मे 3 लाख देशी गाय है ! इनके घी की सबसे बड़ी विशेषता है ये है की ये देशी गाय का घी ही बेचते हैं ! बस अंतर ये है की यह क्रीम वाले ढंग से निकाला बनाया जाता है लेकिन फिर भी भैंस और जर्सी सूअर के घी की तुलना मे बहुत बहुत बढ़िया है ! लेकिन इसका मूल्य साधारण घी से थोड़ा ज्यादा है ये 1 लीटर 600 रूपये मे उपलब्ध है ! भगवान की अगर आप पर आर्थिक रूप से ज्यादा कृपा तो आप देशी गाय ही घी खाएं !! कम खा लीजिये लेकिन जर्सी का कभी मत खाएं !! और दूध भी हमेशा देशी गाय का ही पिये !
और अंत मे एक और बात जान लीजिये अब इन विदेशी लोगो को भारत की गाय की महत्ता का अहसास होने लगा है आपको जानकर हैरानी होगी भारतीय नस्ल की सबसे बढ़िया गाय( गीर गाय ) को जर्मनी वाले अपने देश मे ले जाकर इनका वंश आगे बढ़ाकर 2 लाख डालर (लगभग 1 करोड़ की एक गाय बेच रहें है !
जबकि भारत मे ये गीर गाय सिर्फ 5000 ही रह गई है !! तो मित्रो सबसे पहला कार्य अगर आप देश के लिए करना चाहते हैं तो गौ रक्षा करें गौ रक्षा ही भारत रक्षा है !!

गाय का घी
·         गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
·         गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
·         गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
·         (20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
·         गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
·         नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है।
·         गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
·         गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
·         गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
·         हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के
·         घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है।
·         हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
·         गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
·         गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
·         गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
·         अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
·         हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
·         गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
·         जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।
·         देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
·         घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है.
फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।