शुक्रवार, 12 जून 2015

तांबे के बर्तन से पानी पीने के 12 स्वास्थ्य लाभ

तांबे के बर्तन से पानी पीने के 12 स्वास्थ्य लाभ


हम में से ज्यादातर लोगों ने अपने दादा-दादी से
तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी पीने के स्वास्थ्य
लाभों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो पानी
पीने के लिए विशेष रूप से तांबे से बने गिलास और
जग का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या इस धारणा के
पीछे वास्तव में कोई वैज्ञानिक समर्थन है? या यह
एक मिथक है बस? तो आइए तांबे के बर्तन में पानी
पीने के बेहतरीन कारणों को जाने
1 . तांबे के बर्तन में पानी पीना अच्छा क्यों है?
आयुर्वेद के अनुसार, तांबे के बर्तन में संग्रहीत पानी
में आपके शरीर में तीन दोषों (वात, कफ और पित्त)
को संतुलित करने की क्षमता होती है और यह ऐसा
सकारात्मक पानी चार्ज करके करता है। तांबे के
बर्तन में जमा पानी 'तमारा जल' के रूप में भी
जाना जाता है और तांबे के बर्तन में कम 8 घंटे तक
रखा हुआ पानी ही लाभकारी होता है।
2. तांबे के बर्तन में पानी पीने के फायदे
जब पानी तांबे के बर्तन में संग्रहित किया जाता
है तब तांबा धीरे से पानी में मिलकर उसे
सकारात्मक गुण प्रदान करता है। इस पानी के बारे
में सबसे अच्छी बात यह है कि यह कभी भी बासी
(बेस्वाद) नहीं होता और इसे लंबी अवधि तक
संग्रहित किया जा सकता है।
3. बैक्टीरिया समाप्त करने में मददगार
तांबे को प्रकृति में ओलीगोडिनेमिक के रूप में
(बैक्टीरिया पर धातुओं की स्टरलाइज प्रभाव)
जाना जाता है और इसमें रखे पानी के सेवन से
बैक्टीरिया को आसानी से नष्ट किया जा सकता
है। तांबा आम जल जनित रोग जैसे डायरिया, दस्त
और पीलिया को रोकने में मददगार माना जाता
है। जिन देशों में अच्छी स्वच्छता प्रणाली नहीं है
उन देशों में तांबा पानी की सफाई के लिए सबसे
सस्ते समाधान के रूप में पेश आता है।
4. थायरॉयड ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर
नियंत्रण
थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण
थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के
प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना,
अधिक थकान महसूस होना आदि हैं। कॉपर
थायरॉयड ग्रंथि के बेहतर कार्य करने की जरूरत का
पता लगाने वाले सबसे महत्वपूर्ण मिनरलों में से एक
है। थायराइड विशेषज्ञों के अनुसार, कि तांबे के
बर्तन में रखें पानी को पीने से शरीर में थायरेक्सीन
हार्मोन नियंत्रित होकर इस ग्रंथि की
कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है।
5. मस्तिष्क को उत्तेजित करता है
तांबे में मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाले और
विरोधी ऐंठन गुण होते हैं। इन गुणों की मौजूदगी
मस्तिष्क के काम को तेजी और अधिक कुशलता के
साथ करने में मदद करते है।
6. गठिया में फायदेमंद
गठिया या जोड़ों में दर्द की समस्या आजकल कम
उम्र के लोगों में भी होने लगी है। यदि आप भी इस
समस्या से परेशान हैं, तो रोज तांबे के पात्र का
पानी पीये। तांबे में एंटी-इफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह
गुण दर्द से राहत और दर्द की वजह से जोड़ों में सूजन
का कारण बने - गठिया और रुमेटी गठिया के
मामले विशेष रूप से फायदेमंद होते है।
7. त्वचा को बनाये स्वस्थ
त्वचा पर सबसे अधिक प्रभाव आपकी दिनचर्या
और खानपान का पड़ता है। इसीलिए अगर आप
अपनी त्वचा को सुंदर बनाना चाहते हैं तो रातभर
तांबे के बर्तन में रखें पानी को सुबह पी लें। ऐसा
इसलिए क्योंकि तांबा हमारे शरीर के मेलेनिन के
उत्पादन का मुख्य घटक है। इसके अलावा तांबा नई
कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है जो त्वचा
की सबसे ऊपरी परतों की भरपाई करने में मदद
करती है। नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से
त्वचा स्वस्थ और चमकदार लगने लगेगी।
8. पाचन क्रिया को दुरुस्त रखें
पेट जैसी समस्याएं जैसे एसिडिटी, कब्ज, गैस आदि
के लिए तांबे के बर्तन का पानी अमृत के सामान
होता है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से
विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते हैं
तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ
पानी पिएं। इससे पेट की सूजन में राहत मिलेगी और
पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी।
9. उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करें
अगर आप त्वचा पर फाइन लाइन को लेकर चिंतित
हैं तो तांबा आपके लिए प्राकृतिक उपाय है। मजबूत
एंटी-ऑक्सीडेंट और सेल गठन के गुणों से समृद्ध होने
के कारण कॉपर मुक्त कणों से लड़ता है---जो
झुर्रियों आने के मुख्य कारणों में से एक है---और नए
और स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं के उत्पादन में मदद
करता है।
10. खून की कमी दूर करें
ज्यादातर भारतीय महिलाओं में खून की कमी या
एनीमिया की समस्या पाई जाती है। कॉपर के
बारे में यह तथ्य सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह
शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक
होता है। यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों
को अवशोषित कर रक्त वाहिकाओं में इसके प्रवाह
को नियंत्रित करता है। इसी कारण तांबे के बर्तन
में रखे पानी को पीने से खून की कमी या विकार
दूर हो जाते हैं।
11. वजन घटाने में मददगार
गलत खान-पान और अनियमित जीवनशैली के
कारण कम उम्र में वजन बढ़ना आजकल एक आम
समस्या हो गई है। अगर आप अपना वजन घटाना
चाहते हैं तो एक्सरसाइज के साथ ही तांबे के बर्तन
में रखा पानी पीना आपके लिए फायदेमंद साबित
हो सकता है। इस पानी को पीने से शरीर की
अतिरिक्त वसा कम हो जाती है।
12. कैंसर से लड़ने में सहायक
तांबे के बर्तन में रखा पानी वात, पित्त और कफ
की शिकायत को दूर करने में मदद करता है। इस
प्रकार से इस पानी में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जो
कैसर से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिकन
कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत
को रोकने में मदद करता है, कैसे इसकी सटीक कारण
अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन कुछ अध्ययनों के
अनुसार, तांबे में कैंसर विरोधी प्रभाव मौजूद होते
है।
13. घाव को तेजी से भरें
तांबा अपने एंटी-बैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटी
इफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाता है। इसलिए
इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि तांबा
घावों को जल्दी भरने के लिए एक शानदार
तरीका है।
14. दिल को स्वस्थ रखें
दिल के रोग और तनाव से ग्रसित लोगों की
संख्या तेजी बढ़ती जा रही है। यदि आपके साथ
भी ये परेशानी है तो तांबे के बर्तन में रखा पानी
पीने से आपको लाभ हो सकता है। तांबे के बर्तन में
रखे हुए पानी को पीने से पूरे शरीर में रक्त का
संचार बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में
रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।

महिलाओं के रोग और बायोकैमिक दवाए

महिलाओं के रोग और बायोकैमिक दवाए
यह तो आप जानते ही होंगे कि बायोकैमिक चिकित्सा पध्दति हानि रहित व लवण चिकित्सा पध्दति है। इस पध्दति में मात्र 12 लवणीय दवाएं है, जो शरीर के लिए आवश्यक है। इन दवाओं की और विशेषता यह है कि ये अधिक मात्रा में दे देने या सभी 12 दवाएं एक साथ दे देने पर भी शरीर को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती। यहां हम आपकी जानकारी के लिए सभी 12 दवाओं का महिलाओं से संबंधित विभिन्न रोगों से जुड़ा महत्व बता रहे हैं।
* कल्केरिया फ्लोर : यह दवा गर्म अवस्था में गर्भाशय की संकुचन स्थिति ठीक करती हैष गर्भाशय को मजबूती प्रदान करती है तथा मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव को सही स्थिति प्रदान करती है।
* कल्केरिया फॉस : यह प्रसव कमजोरी, मासिक धर्म, स्तन पीड़ा, कमर दर्द, श्वेत प्रदर को ठीक करती है। इससे कैल्शियम की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
कल्केरिया सल्फ : योनि में खुजली, स्तनों में दर्द, मासिक धर्म की अनियमित स्थिति को ठीक करने के लिए यह दवा उत्तम है।
* फेरम फॉस : यह लवण मासिक धर्म विकृति, शुष्क योनि आदि रोगों में बहुत लाभप्रद है।
* काली मयूर : यह एक तरह से कीटाणुनाशक है। गर्भाशय के घाव, प्रसूति ज्वर में तो बहुत फायदेमंद है।
* काली सल्फ : मासिक धर्म में देरी अथवा अनियमितता सूजाक में बहुत फायदेमंद है।
मैग्नीशिया फॉस : मासिक धर्म के प्रारंभ के समय के कष्ट में डिम्ब ग्रंथियों के दर्द में यह दवा देनी चाहिए।
* नेट्रम मयूर : बांझपन, योनि में जलन, योनि की भीतरी जलन, मैथुन क्रिया के प्रति उदासीनता या उत्तेजना की कमी अथवा स्तनों में दूध की कमी हो तो इस साल्ट का सेवन करना चाहिए।
* नेट्रम फॉस : तिथि से पूर्व मासिक धर्म आना, बदबूदार श्वेत प्रदर, योनि से बदबू आए अथवा बांझपन की स्थिति हो तो इस दवा का सेवन लाभप्रद रहता है।
* नेट्रम सल्फ : मासिक धर्म के दिनों में अपच, पेट दर्द, योनि के छिलने से उत्पन्न पीड़ा हो तो इस दवा का सेवन करें।
* काली फॉस : मासिक धर्म में काम इच्छा, शरीर में पीड़ा, अत्यधिक रक्तस्राव हो तो काली फॉस का सेवन करें।
* साइलीशिया : दुर्गन्धयुक्त मासिक धर्म, स्तन के घाव, स्तनों में गांठ होने या कड़े हो जाने पर, योनि के घाव, मासिक धर्म के दिनों में कब्ज हो तो यह लवण दे सकते हैं

पुरानी मान्यता है कि इस तरह खाना खाने से बढ़ती है उम्र:-

पुरानी मान्यता है कि इस तरह खाना खाने से बढ़ती है उम्र:-
खाना खाते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो स्वास्थ्य लाभ के साथ ही देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। यहां जानिए प्राचीन मान्यताओं की कुछ ऐसी बातें जो भोजन के समय ध्यान रखना चाहिए...
1. इस उपाय से बढ़ती है आयु
खाना खाने से पूर्व पांच अंगों (दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख) को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इसके बाद ही भोजन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भीगे हुए पैरों के साथ भोजन ग्रहण करना बहुत शुभ माना जाता है। भीगे हुए पैर शरीर के तापमान को नियंत्रित करते हैं, इससे हमारे पाचनतंत्र की समस्त ऊर्जा भोजन को पचाने में लगती है। पैर भिगोने से शरीर की अतिरिक्त गर्माहट कम होती है, जो गैस और एसिडिटी की संभावनाओं को समाप्त कर देती है। इससे स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। इससे आयु में वृद्धि होती है।
2. खाना खाते समय दिशाओं का ध्यान रखें
पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके खाना ग्रहण करना चाहिए। इस उपाय से हमारे शरीर को भोजन से मिलने वाली ऊर्जा पूर्ण रूप से प्राप्त होती है।
दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके भोजन ग्रहण करना अशुभ माना गया है।
पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से रोगों की वृद्धि होती है।
3. इस स्थिति में भोजन नहीं करना चाहिए
कभी भी बिस्तर पर बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए।
खाने की थाली को हाथ में लेकर भोजन नहीं करना चाहिए।
भोजन बैठकर ग्रहण करना चाहिए।
थाली को किसी बाजोट या लकड़ी की पाटे पर रखकर भोजन करना चाहिए।
खाने बर्तन साफ होने चाहिए। टूटे-फूटे बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
4. खाने से पहले ये उपाय भी करें
भोजन ग्रहण करने से पहले अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता का स्मरण करना चाहिए।
देवी-देवताओं को भोजन के धन्यवाद देते हुए खाना ग्रहण करें।
साथ ही, भगवान से ये प्रार्थना भी करें कि सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो जाए।
कभी भी परोसे हुए भोजन की निंदा नहीं करना चाहिए। इससे अन्न का अपमान होता है।
5. भोजन बनाने वाले व्यक्ति को ध्यान रखनी चाहिए ये बातें
भोजन बनने वाले व्यक्ति को स्नान करके और पूरी तरह से पवित्र होकर भी भोजन बनाना चाहिए।
खाना बनाते समय मन शांत रखना चाहिए। साथ ही, इस दौरान किसी की बुराई भी ना करें।
शुद्ध मन से भोजन बनाएंगे तो खाना स्वादिष्ट बनेगा और अन्न की कमी भी नहीं होगी।
भोजन बनाना प्रारंभ करने से पहले इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। किसी देवी-देवता के मंत्र का जप भी किया जा सकता है।

Fatty Liver

Fatty Liver
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कई बार हम जाने अनजाने में अपनी जीवनशैली को अपने हिसाब से किसी मतवाले ड्राइवर की तरह चलाने लग जाते हैं,शायद यही मतवालापन लीवर सम्बन्धी समस्याओं को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है ,आईये आज हम यकृत यानी लीवर सम्बन्धी एक समस्या जिसे सामान्य भाषा में 'फेट्टी-लीवर ' के नाम से जाना जाता को संक्षिप्त रूप से समझने का प्रयास करेंगे Iहम सभी इस बात को जानते होंगे की लीवर की कार्यक्षमता में आया परिवर्तन शरीर में भोजन को पचाने की क्षमता के साथ-साथ,न्युट्रीएंट्स को अवशोषित करने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिनकी परिणति 'फेट्टी -लीवर डीजीज' के रूप में होती है !यह लीवर की कार्यक्षमता में आनेवाली गड़बड़ी का सबसे सामान्य कारण है जो खुद का एक कारण है और अन्य लीवर से सम्बन्ध रखने वाली बीमारियों का कारण भी है I
क्या है 'फेट्टी लीवर '?
लीवर में सामान्य कोशिकाओं की अपेक्षा चर्बी-कोशिकाओं का पाया जाना ही 'फेट्टी-लीवर' कहलाता है ,अर्थात सामान्य यकृत उतकों के बीच के रिक्त स्थान को ये 'फेट्टी-लीवर' कोशिकाएं कब्जा लेती हैं जिस कारण कोशिकाओं के समूह उतकों में काफी फैलाव एवं भारीपन उत्पन्न हो जाता है I
'फेट्टी-लीवर' के कारण क्या है ?
लीवर में उत्पन्न इस असामान्य स्थिति के दो प्रमुख कारण हैं :-
1.एल्कोहलिक
2.नान -एल्कोहलिक
अक्सर जो लोग सामान्य या अधिक मात्रा में निरंतर शराब का सेवन करते है वे कालांतर में 'फेट्टी-लीवर' डीजीज से पीड़ित हो सकते है इसके अलावा एल्कोहलिक लीवर डिजीज माता-पिता से भी बच्चों में आ सकती है I
इसके अलावा हीपेटाईटिस-सी,आयरन ओवरलोड ,मोटापा एवं खान पान की गड़बड़ी भी इसका कारण बन सकती है I
आज की परिस्थितयों में नान-एल्कोहलिक 'फेट्टी-लीवर' डीजीज जिसे 'एनएएफएलडी' भी कहा जाता है लीवर सम्बन्धी परेशानियों का बड़ा कारण है I यह तबतक एक सामान्य अवस्था है जबतक कि यह बढकर लीवर में सूजन उत्पन्न कर कोशिकाओं को नष्ट न कर दे !
अर्थात 'फेट्टी-लीवर' से पीड़ित लोगों में सामान्य या अधिक मात्रा में शराब का सेवन लीवर के लिए घातक हो सकता है I इस कारण लीवर का साइज सामान्य से बड़ा हो सकता है तथा लीवर की सामान्य कोशिकाओं का स्थान डेमेज्ड कोशिकाएं ले सकती हैं जो आगे चलकर लीवर सिरोसिस,लीवर फेलियर ,लीवर कैंसर या लीवर के बीमार होने के कारण होनेवाली मृत्यु का कारण बन सकता है I
नान-एल्कोहलिक 'फेट्टी-लीवर' डीजीज के कारण क्या है ?
-कुछ परिवारों में आनुवांशिक रूप से देखा जाता है और कोई स्पष्ट कारण नजर नहीं आता है हां मध्य आयु वर्ग या मोटे लोगों में अचानक इसकी पहचान हो जाती है I
-अत्यधिक दवाओं के सेवन ,वायरल हीपेटायटिस,अचानक वजन कम होने एवं कुपोषण के कारण भी यह उत्पन्न हो सकता है I
-हाल के कुछ अध्ययन अनुसार आँतों में कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं की वृद्धि भी नान-एल्कोहलिक 'फेट्टी-लीवर' डीजीज का कारण बन सकती है I
किन लक्षणों से हम इसे पहचान सकते है :
प्रारम्भिक अवस्था में इसमें कोई ख़ास लक्षण उत्पन्न नहीं होते है ,हाँ कभी-कभी पेट की दाहिनी और एक हल्का दर्द महसूस होता है ,जो लीवर में फेट् की वृद्धि के कारण उत्पन्न होता है कालांतर में यह बढ़ते हुए लीवर सिरोसिस की स्थिति उत्पन्न कर देता है जिसे फूले हुए पेट,त्वचा में खुजलाहट,उल्टी,भ्रम ,मांसपेशियों में कमजोरी एवं आँखों में उत्पन्न पीलापन से पहचाना जा सकता है I
कैसे बचें फेट्टी-लीवर' डीजीज से और इसके चिकित्सा क्या है ?
-जैसे यह डायग्नोजड हो वैसे ही तत्काल शराब का सेवन बंद कर देना चाहिए I
-नान-एल्कोहलिक 'फेट्टी-लीवर' डीजीज की कोई विशेष चिकित्सा उपलब्ध नहीं है ,जीवनशैली में परिवर्तन लाकर,मोटापा एवं वजन कम कर तथा दैनिक व्यायाम को बढ़ा कर इस स्थिति पर काबू पाया जा सकता है I
अतः निम्न विन्दुओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए :-
*वजन कम करना
*हेल्दी डायट का चयन
*शरीर को नियमित व्यायाम के माध्यम से सक्रिय रखना
*डायबीटीज को नियंत्रित रखना
*शरीर में कोलेस्टेरोल की मात्रा को नियंत्रित रखना
'फेट्टी-लीवर' डीजीज और आयुर्वेदिक चिकित्सा :
लीवर से सम्बंधित समस्याओं में आयुर्वेदिक चिकित्सा एक बेहतर विकल्प है,आयुर्वेदिक् चिकित्सा में अनेक ऐसी औषधियां उपलब्ध हैं जिनका यकृत पर प्रोटेक्टिव प्रभाव देखा जाता है I
ऐसी ही कुछ औषधियां निम्न हैं -यकृतप्लिहान्तक चूर्ण जो भूमिआमलकी,कुटकी,पुनर्नवा,मकोय ,कालमेघ,कासनी,पुनर्नवा,शर्पुन्खा,भृंगराज जैसी वनस्पतियों का मिश्रंण बेहतरीन मिश्रण है यह लीवर को प्रोटेक्ट करने के साथ-साथ लीवर सिरोसिस एवं एल्कोहलिक लीवर डीजीज में भी बेहतरीन प्रभाव देता है I
-पुनर्नवा-मंडूर
यह भी 'फेट्टी-लीवर' डीजीज में एक बेहतरीन आयुर्वेदिक औषधि के रूप में कार्य करता है,इसमें गौमूत्र,त्रिवृत,पुनर्नवा,शुंठी ,पिप्पली,मरीच,विडंग,देवदारू ,चित्रकमूल ,पुष्करमूल ,हरीतकी,विभितकी,आमलकी,दारूहरिद्रा ,हरिद्रा,दंतीमूल,चव्य ,इन्द्रयव् ,पिप्पलीमूल,मुस्तक आदि औषधियों का प्रयोग होता है I
-आरोग्यवर्धिनीवटी,
फेट्टी-लीवर' डीजीज में प्रयुक्त होनेवाला एक प्रचलित शास्त्रीय योग है यह लीवर से टाकसिंस को बाहर निकालकर इसे स्वस्थ रखता है I यह कुटकी शुद्ध पारद ,शुद्ध गंधक,लौह भस्म ,अभ्रक भस्म,ताम्र भस्म ,हरीतकी,विभितकी,आमलकी ,शुद्ध शिलाजीत,शुद्ध गुगुलू एवं चित्रक मूल इन सभी के संयोग से बना एक विशिष्ट योग है जो लीवर से अतिरिक्त फेट को बाहर निकाल देता है तथा इसकी क्रियाशीलता को बढाता है I
अर्थात जीवनशैली,आहार-विहार को संयमित कर हम अपने शरीर के स्टोर हाउस को स्वस्थ एवं सुरक्षित रख सकते हैं !
!!आप सभी के स्वास्थ्य की मंगलकामनाओं के साथ आपका!!