शनिवार, 25 अप्रैल 2015

निरोगी चुर्ण

250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी
उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके
हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं)
तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर
अच्छा पैक डिब्बा-
शीशी या बरनी में भर लेवें ।
रात्रि को सोते समय चम्मच पावडर एक गिलास
पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है। गरम
पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के
बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति
ले सकतें है।
चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में
जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब
द्वारा बाहर निकल जाएगी ।
पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब
फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा ।
चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर
हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर
बन जायेगा ।
‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और
गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा । 2. हड्डियाँ मजबूत
होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति । 8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते
जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल
की जगह सुंदर बनेगा । 12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट
से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध
हो जाएगी । 16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज
की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण
का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा ।
जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और
आयुष्ययवर्धक बनेगी । जीवन
जीने योग्य बनेगा ।

चेहरा सुंदर निरोगी मस्तक विधिः

चेहरा सुंदर
निरोगी मस्तक
विधिः एक लिटर पानी को गुनगुना सा गरम करें। उसमें करीब दस ग्राम शुद्ध नमक डालकर घोल दें। सैन्धव मिल जाये तो अच्छा। सुबह में स्नान के बाद यह पानी चौड़े मुँहवाले पात्र में, कटोरे में लेकर पैरों पर बैठ जायें। पात्र को दोनों हाथों से पकड़ कर नाक के नथुने पानी में डुबो दें। अब धीरे-धीरे नाक के द्वारा श्वास के साथ पानी को भीतर खींचें और नाक से भीतर आते हुए पानी को मुँह से बाहर निकालते जायें। नाक को पानी में इस प्रकार बराबर डुबोये रखें जिससे नाक द्वारा भीतर जानेवाले पानी के साथ हवा न प्रवेश करे। अन्यथा आँतरस-खाँसी आयेगी।
इस प्रकार पात्र का सब पानी नाक द्वारा लेकर मुख द्वारा बाहर निकाल दें। अब पात्र को रख कर खड़े हो जायें। दोनों पैर थोड़े खुले रहें। दोनों हाथ कमर पर रखकर श्वास को जोर से बाहर निकालते हुए आगे की ओर जितना हो सके झुकें। भस्रिका के साथ यह क्रिया बार-बार करें, इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर निकल जायेगा। थोड़ा बहुत रह भी जाये और दिन में कभी भी नाक से बाहर निकल जाये तो कुछ चिन्ताजनक नहीं है।
नाक से पानी भीतर खींचने की यह क्रिया प्रारम्भ में उलझन जैसी लगेगी लेकिन अभ्यास हो जाने पर बिल्कुल सरल बन जायेगा।
लाभः मस्तिष्क की ओर से एक प्रकार का विषैला रस नीचे की ओर बहता है। यह रस कान में आये तो कान के रोग होते हैं, आदमी बहरा हो जाता है। यह रस आँखों की तरफ जाये तो आँखों का तेज कम हो जाता है, चश्मे की जरूरत पड़ती है तथा अन्य रोग होते हैं। यह रस गले की ओर जाये तो गले के रोग होते हैं।
नियमपूर्वक जलनेति करने से यह विषैला पदार्थ बाहर निकल जाता है। आँखों की रोशनी बढ़ती है। चश्मे की जरूरत नहीं पड़ती। चश्मा हो भी तो धीरे-धीरे नम्बर कम होते-होते छूट जाता भी जाता है। श्वासोच्छोवास का मार्ग साफ हो जाता है। मस्तिष्क में ताजगी रहती है। जुकाम-सर्दी होने के अवसर कम हो जाते हैं। जलनेति की क्रिया करने से दमा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आदि छोटी-मोटी 1500 बीमीरियाँ दूर होती हैं। जलनेति करने वाले को बहुत लाभ होते हैं। चित्त में प्रसन्नता बनी रहती है।

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

मोटापा, डायबिटीज या मधुमेह, कैंसर, गाऊट, आस्टियो आर्थराईटिस, हायपरटेंशन

मोटापा क्या है? उसके मानव जीवन पर प्रभाव
मोटापा क्या है?:- आम तौर पर किसी पुरूष या महिला का अपने आदर्श वजन (हाईट, उम्र) के अनुसार अधिक होना मोटापा कहलाता है किंतु चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ओवेसिटी या मोटापा वह मेडिकल स्थिति होती है जिसमें बाॅड़ी फेट अधिक मात्रा में बढ़ जाता है जिसके बढ़ने से मानव शरीर में विपरीतगामी परिणाम और रोग उत्पन्न होने लगते है। आॅपरेशनल परिभाषा के रूप में कहा जा सकता है कि मोटापे में बाॅडीमास 30 से अधिक हो जाता है।
उक्त सभी बातें स्पष्ट करती है कि मोटापे में शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है और व्यक्ति का भार भी बढ़ने लगता है।
मोटापे का मानव जीवन पर प्रभाव:- वर्तमान में मोटापे के कारण या अतिभार के कारण मानव स्वास्थ्य पर अनेकों कुप्रभाव पड़ रहे है जो भारत ही नहीं विश्वभर के मानव समाज के लिये खतरा बन चुके है। लाखों लोग जिनमें युवा और वृद्ध दोनों शामिल है इस मोटापे के भार को सहने में अक्षम हो रहे हैं। मोटापा अपने आप में एक रोग है जो अन्य रोगों को निमंत्रण देता है। इससे मानव मात्र की जीवन रेखा छोटी (अल्प) होने लगती है क्योंकि यह एथ्रोस्केलोरिस, कोरोनरी हार्ट डिसीज, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व विभिन्न शारीरिक व फीजियोलाॅजिकल, ग्रेस्ट्रोइन्टेन्स्टीनाल रोग, सेक्सुअल डायफंक्शन व आत्मग्लानि जैसे रोगों को जन्म देती है जो दर्द, हार्ट अटैक, स्ट्रोक आस्टियो आर्थराईटिस जैसे रोगों की जननी होती है।
मोटापे और अतिभार का असर होने से कुछ क्राॅनिक रोग मानव मात्र में पैदा हो सकते है चाहे वे पुरूष हो, महिला हो या बच्चे हो। यह रोग आयु भी नहीं देखता है यह रोग बच्चे बूढे़ जवान सभी को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। मोटापे के कारण निम्नलिखित क्राॅनिक रोगों से मनुष्य जाति शिकार हो सकती है:-
डायबिटीज या मधुमेह:- लगभग 25ः डायबिटीज टाईप-2 के केस मोटापे या अधिभार के कारण होते है। टाईप-2 डायबिटीज रोग होने की ऐसे मरीजों में अधिक संभावनाएँ होती है। मधुमेह रोग के कारण लोगों में शारीरिक क्षमताएँ कम होने लगती है जिससे वे ब्लड़ शुगर को नियंत्रित नहीं कर पाते है जिसका परिणाम शीघ्र (असमय) मृत्यु के रूप में होता है। हृदय रोग, किडनी रोग, स्ट्रोक, अंधत्व, स्टेस्टीसिटी आदि मधुमेह के शीघ्रगामी परिणाम होते है और लोगों में वसा बढ़ने की गति ऐसी दशा मंे दोगुनी हो जाती है।
कैंसर:- कुछ प्रकार के कैंसर आॅबेसिटी एपीडामिक के कारण भी होते है। विशेषकर महिलाओं मंे मोटापा व अधिक भार कई क्राॅनिक रोगों का कारण बन जाता है जैसे हृदय रोग, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, आस्टियोआंर्थराईटिस कुछ विशेष प्रकार के कैंसर जैसे कोलन, ब्रेस्ट आदि हो जाते है।
स्वीप एपनोआ:- इस रोग के अधिभार के कारण गंभीर लक्षण मोटे लोगों में देखने को मिलते है। इस रोग में मोटे व्यक्ति की श्वसन क्रिया कुछ समय के लिये रूक जाती है ऐसा सोते समय होता है। विशेष रूप से दिन के समय सोने पर यह अधिक होता है और इसके कारण हार्ट फेल तक हो जाता है। यह समस्या शारीरिक अतिभार के कारण उत्पन्न होती है।
आस्टियो आर्थराईटिस:- मोटापा और अतिभार मिलकर कद संबंधी रिस्क को जन्म देते है। अतिभार जोड़ों पर अधिक दबाव डालता है जिससे हड्डियाँ कमजोर होकर मुड़ने लगती है। निचली पीठ, हिप्स (कुल्हों), घुटनों पर इसका प्रभाव अधिक होता है और ये आर्थराईटिस के गिरफ्त में आ जाते है।
गाऊट:- गाऊट एक प्रकार का जोड़ों का रोग है जो उच्चस्तरीय युरिक एसिड के कारण होता है जो रक्त में होता है। कभी-कभी यह एसिड ठोस पत्थर या छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में उत्पन्न कर देता है जो जोड़ों में जम जाते है। यह रोग अतिभार वाले रोगों मंे आमतौर पर पाया जाता है और इसके समानांतर अन्य रोग होने की संभावनाएँ अधिभार वाले व्यक्तियों में बढ़ जाती है।
गाल ब्लड़र रोग और गाल स्टोन:- यह रोग भी आम तौर पर भारी लोगों में पाया जाता है और जैसे-जैसे वजन बढ़ता जाता है रोग की संभावनाएँ भी बढ़ती जाती है फिर और कोलेस्ट्राॅल का साथ इस रोग के लिये कारण बन जाता है।
हायपरटेंशन:- जिसे उच्च रक्तचाप भी कहा जाता है। जब ब्लड़प्रेशर 140/90 या इससे अधिक होता है तो उसे हायपरटेंशन कहा जाता है। 65 से 80ः लोगों में हायपरटेंशन का कारण मोटापा पाया गया है। यह आर्टरीज पर अतिरिक्त दबाव बढ़ने से होता है। इसके कारण अन्य हृदय संबंधी रोगों के होने की संभावनाएँ भी बढ़ जाती है।
स्ट्रोक:- स्ट्रोक दिमाग में ब्लड़ क्लाटिंग के कारण होता है। यह गलत खून दिमाग को कोलेस्ट्राॅल के कारण पहुंचता है। जब कोलेस्ट्राॅल का स्तर उच्च होता है तो यह हार्ट मंे जमने लगता है जो यहाँ से दिमाग की ओर बढ़ता है और स्ट्रोक का कारण बनता है। इसके कारण लकवा (पेरेलेसिस), साँस लेने में कठिनाई, मूर्छित अवस्था या अर्ध बेहोशी, कमजोरी आदि समस्याएँ जन्म ले लेती है।
इस प्रकार मोटापा व अतिभार मानव शरीर को अनेकों परेशानियों में डाल देती है जिससे बचाव करना मानव जीवन के लिये अति आवश्यक है

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :-

आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :-
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आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :——-

दूध के साथ दही लें या नहीं?

दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।

दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं?

दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।

सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं?
आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।

दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।

नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।

खाने के साथ छाछ लें या नहीं?

छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।

दही और फल एक साथ लें या नहीं?

फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।

दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं?

दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

मछली के साथ दूध पिएं या नहीं?

दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद?

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।

खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए।

कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।

मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं

आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।

खाने के साथ पानी पिएं या नहीं?

पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।

लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं?

लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।

परांठे के साथ दही खाएं या नहीं?

आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।

फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं?

घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।

दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं?

दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।

तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं?

एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।

खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं?
मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।

खाने के बाद चाय पिएं या नहीं?

खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।

छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं?

कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।

भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं?

मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।
11:30 AM
आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :-
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आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :——-

दूध के साथ दही लें या नहीं?

दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।

दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं?

दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।

सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं?
आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।

दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।

नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।

खाने के साथ छाछ लें या नहीं?

छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।

दही और फल एक साथ लें या नहीं?

फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।

दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं?

दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

मछली के साथ दूध पिएं या नहीं?

दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद?

फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।

खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए।

कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।

मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं

आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।

खाने के साथ पानी पिएं या नहीं?

पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।

लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं?

लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।

परांठे के साथ दही खाएं या नहीं?

आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।

फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं?

घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।

दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं?

दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।

तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं?

एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।

खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं?
मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।

खाने के बाद चाय पिएं या नहीं?

खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।

छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं?

कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।

भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं?

मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

गंजेपन से बचाव के घरेलू उपाय

गंजेपन से बचाव के घरेलू उपाय

गंजेपन या बालों के झड़ने के होते हैं कई अलग-अलग कारण।
बिगड़ा खान-पान और लाइफस्‍टाइल है गंजेपन का प्रमुख कारण।
गंजेपन के लिए उड़द की दाल भी होती है बहुत लाभदायक।
केले का गूदा नींबू के रस में मिलाकर लगाना होता है फायदेमंद।
गंजेपन से बचने और उससे छुटकारा पाने में घरेलू उपचार मददगार होते हैं। घरेलू नुस्‍खों को आजमाने से कुछ हद तक गंजेपन और गिरते बालों को रोका जा सकता है। झड़ते बालों को रोकने में घरेलू नुस्‍खे बहुत उपयोगी साबित होते हैं। वर्तमान में खान-पान और लाइफस्‍टाइल के कारण महिलाओं और पुरुषों में गंजापन आम समस्या बन गई है। गंजेपन को एलोपेसिया भी कहते हैं। जब असामान्य रूप से बहुत तेजी से बाल झड़ने लगते हैं और नये बाल उतनी तेजी से उग नहीं पाते या फिर बाल पतले और कमजोर हो जाते हैं उस स्थिति को गंजापन कहते हैं।गंजेपन या बालों के झड़ने के कई कारण हैं। बालों की जड़ों का कमजोर हो जाना, पिट्यूटरी ग्लैंड (पियूस ग्रंथि) में हार्मोन्स की कमी, पोषक तत्‍वों की कमी, चिंता, रूसी की अधिकता, अधिक गरम खाना, खाने में विटामिन, मिनरल्‍स, फाइबर आदि की कमी होना, लगातार सिर दर्द रहने से रक्त संचार में कमी, खाना सही तरीके से न पचना, आदि के कारण गंजेपन की समस्‍या होती है।
गंजेपन से बचने के लिए घरेलू नुस्‍खे

मेथी

मेथी को पूरी रात भिगो दीजिए फिर सुबह उसे गाढ़ी दही में मिला कर अपने बालों और जड़ो में लगाइए। बालों को धो लें, इससे रूसी और सिर की त्वचा के विकार समाप्‍त होंगे। मेथी में निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन पाया जाता है जो बालों की जड़ो को पोषण पहुंचाता है और बालों की ग्रोथ भी बढ़ाता है।

उड़द की दाल

गंजेपन के लिए उड़द की दाल भी बहुत जरूरी है। उड़द की दाल को उबाल कर पीस लीजिए, रात को सोने से पहले इस लेप को सिर पर लगाइए। कुछ दिनों तक करते रहने बाल उगने लगते हैं और गंजापन समाप्त हो जाता है।

मुलेठी के द्वारा

थोड़ी सी मुलेठी लेकर दूध की कुछ बूंदे डालकर उसे पीस लीजिए, फिर उसमें चुटकी भर केसर डालकर उसका पेस्ट बनाइए। इस पेस्‍ट को रात में सोने से पहले सिर पर लगाइए। कुछ दिनों तक इस पेस्‍ट को सिर पर लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।

हरे धनिया से

गंजापन दूर करने के लिए घरेलू उपचार के तौर पर हरा धनिया बहुत फायदेमंद है। हरे धनिये का पेस्‍ट बनाकर जिस स्‍थान के बाल उड़ गये हैं वहा लगाइए। कुछ दिनों तक लगाने से बाल उगने लगते हैं।

केला से

केले का गूदा निकालकर उसे नींबू के रस में मिलाकर सिर पर लगाने से बालों के झड़ने की समस्‍या कम होती है और बाल फिर से उगने लगते हैं।

प्याज

प्याज को काटकर उसके दो हिस्‍से कर लीजिए। जिस जगह के बाल झड़ गये हो वहां पर आधे प्‍याज को 5 मिनट तक रोज रगडें। बाल झड़ना बंद होगा ही साथ ही साथ बाल फिर से उगने लगेंगे।

अनार

अनार की पत्‍ती पीसकर सिर पर लगाने से गंजेपन का निवारण होता है। नियमित अनार का प्रयोग करने से बाल उगने लगते हैं।

गंजेपन को दूर करने का सबसे महत्‍वपूर्ण तरीका है खानपान में सुधार। खाने जरूरी सभी पोषक तत्‍वों को शामिल करके बालों की समस्‍या से छुटकारा मिल सकता है। खाने में मटर,गाजर, चिकोरी, ककड़ी और पालक शामिल कीजिए।

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

जानिए कैसे होती है मधुमेह (डायबिटीज ) ?

जानिए कैसे होती है मधुमेह (डायबिटीज ) ? किन कारणों से हो सकता है ? क्या है इसका सही उपचार ?
मधुमेह (डायबिटीज ) नामक रोग में व्यक्ति बार-बार अधिक मात्र में क्लेद युक्त गाढ़ी चिपचिपी मूत्र करता है ,
मधुमेह दो शब्दों को मिलाकर बना है मधु और मेह, मधु यानि मधुर ,मीठा और मेह यानि पेशाब ।
मेहन का अर्थ है मुत्रेंद्रिया जिसके द्वारा मूत्र निसरण (निकलता है ) किया जाता है ….पीड़ित व्यक्ति पुनः पुनः अधिक मात्र में पेशाब करता है ,अत्यधिक थकान और दुर्बलता का अनुभव करता है ।
रक्त में शर्करा की मात्र अत्यधिक बढ़ जाने से शारीर के अंगों पर इसके बहुत सारे दुष्प्रभाव होते हैं –
सामान्य व्यक्ति में आहार से उत्पन्न शर्करा का अग्नाशय में पाचन होता है जिसमे इंसुलिन नामक होर्मोने के सहयोग से चयापचय होता है …… लेकिन मधुमेह में अग्नाशय में इंसुलिन के निर्माण के हेतु महत्त्वपूर्ण बीटा सेल नष्ट हो जाते हैं, जिससे इंसुलिन का निर्माण नहीं होता …. कई बार जेनेटिक अब्नोर्मलिटी के कारण इंसुलिन मोलेकुल का रिसेप्टर उसे एक्सेप्ट नहीं करता ……. जिसके कारण शर्करा का उपयोग शारीर में उर्जा उत्पन्न करने के लिए नहीं होता ….और अतिरिक्त शर्करा रक्त में ही रह जाती है जो की खतरनाक है ।
मधुमेह के रोगी का शारीर दुर्बल हो जाता है ,क्लेद की अधिकता से शारीर के धातु (शारीर के मूलभूत तत्त्व रस, रक्त, मांस, इत्यादि ) का गलन होने लगता है .रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होने के कारण यदि कोई संक्रमण होता है तो वह मुश्किल से ठीक हो पाता है । रक्त में बढ़ी शर्करा जीवाणुओं के बढ़त के लिए उत्तम माध्यम का काम करती है ।
मधुमेह के सामान्य कारण –
1.अत्यधिक मात्रा में गरिष्ठ ,घी तेल चिकनाई  युक्त आहार , देर में पचने युक्त आहार का सेवन करना  ।
2.नए अन्न यानि के एक वर्ष से पहले उगाया हुआ अन्ना नवान्न होता है ,हमेशा एक वर्ष पुराने अनाज का सेवन करें ,क्योंकि नए अन्न में क्लेद की मात्र अधिक होती है जिस से मधुमेह होने की सम्भावना होती है ,मधुमेह के रोगी भी इसका परहेज करें  ।
3.अधिक मात्र में गुड ,चावल श्रीखंड इत्यादि का सेवन करना ,आटे के व्यंजन जैसे मठरी बालुशाई इत्यादि  ।
4. दिवा स्वप्न यानि की दिन में सोना , यह कफ वर्धक होता है , एक आसन पर अधिक समय तक बैठे रहना , पैदल नहीं चलना, लगातार ए. सी. में बैठे रहना और व्यायाम का अभाव से मधुमेह हो सकता है ।
5. मानसिक कारण जैसे चिंता भय उद्वेग और तनाव ग्रस्त जीवन एक प्रमुख कारण है ।
6. अनुवांशिक कारण भी महत्त्वपूर्ण है ।
7. अधिक मात्रा में शराब , पिज़्ज़ा , बर्गर , देर से पचने वाले आहार का लगातार सेवन । 
इन कारणों से मधुमेह रोग की उत्पत्ति होती है। 
उपचार एवं आहार –
1. रोग से सम्बंधित लक्षण नजर आने पर अपने पास के आयुर्वेद के डॉक्टर को दिखाना चाहिए।  आयुर्वेद में इस रोग का अच्छा उपचार मौजूद है। 
2. इस रोग से बचने के लिए जिन कारणों से यह रोग होता है उनका त्याग करना चाहिए, रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपने खून में मौजूद शुगर के लेवल की काम से काम सप्ताह में एक बार जाँच जरूर करनी चाहिए। 
3. जामुन , करेला , आमला, गिलोय  का सेवन करना चाहिए , पानी अधिक पीना चाहिए , सुबह के समय खुली हवा में टहलना चाहिए।  त्रिफला और शिलाजीत का सेवन भी लाभदायक होता है। 
4. गोंद, बेसन , सोंठ , हल्दी को मिलाकर लड्डू बना लें इनका सेवन दिन में दो बार करें लड्डू में मीठा न मिलाये , लड्डू को गूंथने के लिए ओलिव आयल या सोयाबीन के तेल का प्रयोग करें। 
इन बातों का ध्यान रखकर आप इस रोग से बच सकते है।