बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

कैसर रोग जानकारी

कैंसर रोग का नाम सुनते ही शरीर में एक
सिहरन सी हो जाती है। प्रत्येक आदमी के
अन्दर भय व्याप्त हो जाता है क्योंकि यह
प्राणघातक रोग है। इसे लाइलाज
माना जाता है। प्रथम और द्वितीय स्तर तक
पहुँचे कैंसर का इलाज तो संभव हो सका है,
परंतु तृतीय स्तर तक पहुँचे रोग का इलाज संभव
नही है। अगर कुछ प्रतिशत संभव भी है,
तो इलाज इतना मंहगा है कि आम आदमी के
बस में नहीं है। फिर भी चिकित्सा जगत्
अपनी कोशिश बराबर कर रहा है। निरंतर नई-
नई शोधंे कर रहा है। नई-नई विधियांे से कैंसर
निर्मूलन की कोशिश कर रहा है। कुछ हद तक
सफल भी हुआ है, परन्तु पूर्ण सफलता से
अभी दूर है। इसका कारण है कि प्रथम स्तर में
कोई कैंसर को समझ नहीं पाता,
जिसकी वजह से वह उसका उचित इलाज
नहीं लें पाता। अगर जिसने इस रोग
का परीक्षण भी करा लिया तो दवायें
इतनी महंगी है कि वह उनका सेवन नहीं कर
पाता। इसलिए यह रोग बढ़ता ही जाता है
और अंततोगत्वा रोगी को निगल जाता है।
कैंसर रोग के कारण-
1- कैसर रोग के विषय की सम्पूर्ण
जानकारी का अभाव ।
2- अपने स्वास्थ्य के
प्रति लापरवाही की वजह से शरीर के अन्दर
एवं बाहर की साफ-सफाई न रखना ।
3- तम्बाकू और पान मसाला (गुटका)
आदि का लगातार सेवन।
4- बीड़ी, सिगरेट, गांजा आदि का सेवन ।
5- शराब के लगातार सेवन से ।
6- पेट के कीडे़ (कृमि) से अमाशय
या बड़ी आँत का कैंसर ।
7- मांसाहार के लगातार सेवन से।
जब व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट,
गांजा आदि का लगातार सेवन करता है
तो फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल
पाती है, जिसके कारण खून पूर्णतः फिल्टर
नही हो पाता। यही प्रकिया लगातार
बनी रहने की वजह से रोग प्रतिरोधक
क्षमता घटने लगती है और कोई भी रोग
खड़ा हो जाता है। ऐसा ही लगातार शराब
के पीने से होती है। पानमसाला एवं गुटका में
पड़े रसायनों से मुँह में रियेक्शन के फलस्वरूप हुए
घाव कैंसर का रूप ले लेते हैं। इसी तरह पेट के
कीड़े भी कैंसर का कारण बनते हैं, जब पेट में
कीड़े पड़ जाते हैं और वह वहां रहते हुए
अपना आकार बढ़ा लेते हैं, साथ ही बहुत सारे
हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में जब आप
खाना खाते हैं तो वह कीड़े उस खाने
को भी खा जाते हैं एवं मल विर्सजन करते हैं,
वही जहरीला मल आंतो द्वारा खींचकर खून
में मिला दिया जाता है, जिससे खून में
खराबी आ जाती है, साथ ही जब
कीड़ों को कुछ खाने को नहीं मिलता तो वह
आँतों की दीवारों को काटते हैं और
वहां घाव उत्पन्न कर देते हैं। जैसे ही हमारे खाने
के साथ कैंसर के बैक्टीरिया पेट में जाते हैं और
उस घाव के सम्पर्क में आते हैं तो वह घाव कैंसर
में परिवर्तित हो जाता हैं। इसी प्रकार
मांसाहार से भी कैंसर फैलता है। जब कोई पशु-
पक्षी कैंसर रोग से पीड़ित होता है, हम उसे
मारकर उसका मांस खाते हैं तो इस मांस के
साथ कैंसर के जीवाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर
जाते हैं और कैंसर रोग का कारण बनते हैं।
कैंसर रोग के प्रारम्भिक लक्षण
1- शरीर में कहीं भी घाव हो, जो भरता न
हो।
2- शरीर के किसी भी अंग से रक्त या मवाद
लगातार आना।
3- शरीर के किसी अंग या स्तन में गांठ
का होना तथा धीरे-धीरे बढ़ना एवं उसे दबाने
से दर्द होना।
4- लगातार अपच की शिकायत रहना।
5- खाना निगलनेे में कठिनाई होना।
6- लगातार मिचली की शिकायत होना।
7- पेट में लगातार दर्द बना रहना।
8- नाक में सूजन आना, सांस लेने में तकलीफ
तथा लगातार नाक में दर्द।
अगर ऐसी परिस्थिति आपके साथ हो रही है,
तो इसे सामान्य न मानकर किसी योग्य कैंसर
विशेषज्ञ से जांच अवश्य करा लें। अगर कैंसर
की स्थ्तिि निकले तो तुरन्त डॉक्टर
की सलाह पर दवा का सेवन करंे। कैंसर, प्रथम
और द्वितीय स्टेज तक
पूर्णतः सही किया जा सकता है। कैंसर रोग
विशेषज्ञ आपका कुछ रक्त परीक्षण, एक्सरे,
अल्ट्रासाउण्ड या सी.टी. स्कैन व
एम.आर.आई. जैसी जांचें करेंगे,
तथा इसकी पूर्ण स्थिति समझने के लिए
बायोप्सी परीक्षण कर आपको कैंसर
की सही स्थिति बता देंगे। उसी अनुसार
आपकी रेडियोथिरेपी या कीमोथिरेपी चिकित्सा की सलाह
देंगे। यह चिकित्सा बहुत मंहगी है जिसे
सभी नहीं अपना सकते है।
कैसर के प्रथम और द्वितीय स्टेज के
रोगी आयुर्वेद चिकित्सा से
भी पूर्णतः सही होते है। जरूरत है, लगन और
विश्वास से इन औषधियों के सेवन की, इसमें
पैसा भी कम खर्च होता है और साइड इफेक्ट
भी नहीं होते हैं। जरूरत है सही दवाओं के
मिलने की और अच्छे वैद्य की देख रेख में
दवा सेवन की।
कैंसर रोग निवारक आयुर्वेदिक औषधियाँ-
1- कैंसर नासक चूर्ण-
पारसपीपर के बीज की गिरी, शुद्ध कपूर,
जावित्री, जीयापोता (पुत्रजीवा)
की गिरी, नीमगिलोय का सत्व (स्वयं
का बनाया हुआ), इन सभी औषधियों के
समभाग चूर्ण को एक साथ मिलाकर एक बन्द
डिब्बे में रख लें। प्रतिदिन सुबह खाली पेट
आधा ग्राम दवा के चूर्ण को 10 ग्राम शहद
एवं 10 ग्राम गौमूत्र अर्क के साथ रात्रि में
सोते समय लें। लगातार रोग पूर्णरूपेण
सही होने तक लें। इस दवा के खाने से पतले दस्त
लग सकते हैं, उस स्थिति में
दवा की मात्रा कम कर दें पर दवा रोके नहीं।
यह दवा मरीज के बलाबल के अनुसार कम
या ज्यादा मात्रा में दी जा सकती हैं। इससे
कैंसर की गांठ शरीर के किसी भी हिस्से में
होगी सही होगी व कैंसर का घाव
भी सही होता है।
2- कैंसर नासक जड़ी-
सहस्रमुरिया का एक पौधा प्रतिदिन
पानी में पीसकर साथ में 10 ग्राम शहद व 15
नग तुलसी पत्र व 10 ग्राम गौमूत्र अर्क
को मिलाकर सुबह खाली पेट
रोगी को खिलायें। यह दवा लगातार रोग
सही होने तक दें। शरीर के किसी भी अंग में
कैंसर की गाठं या घाव को सही करती है।
साथ ही रक्तरोहेड़ा की छाल 2
तोला को 100 ग्राम पानी में धीमी आंच में
पकाकर, जब वह पानी 25 ग्राम रह जाय
तो उसे शाम को सोते समय 10 ग्राम शुद्ध
शहद व 10 ग्राम गौमूत्र अर्क के साथ
मिलाकर पिलायें, रोग सही होने तक।
रोगी पूर्ण धैर्य व विश्वास के साथ
ही दवा का सेवन करें लाभ जरूर होगा।
नोट- इसी रक्तरोहेड़ा की आयुर्वेद में
रोहितारिष्ट नाम से दवा बनाई जाती है।
3- गेंहूँ के जवारे से कैंसर का नास
सिद्ध मकरध्वज 5 ग्राम, कृमि मुदगरस 5 ग्राम,
सितोपलादि चूर्ण 60 ग्राम,
मुक्ता पिष्टी 3 ग्राम,
त्रणकान्तमणि पिष्टी 10 ग्राम, अभ्रकभस्म
सहस्त्रपुटी 5 ग्राम, महायोगराज गुग्गुल 5
ग्राम, श्रृंगभस्म 2 ग्राम, हीरक भस्म 5
मि,ग्रा., स्वर्ण भस्म 5 मि.ग्रा., नीम
गिलोय सत्व 10 ग्राम, इन सभी दवाओं
को पीसकर मिला लें एवं 120
पुड़िया बना लें। एक पुड़िया दवा को 20
ग्राम गेंहूँ के जवारे का रस, 10 ग्राम शुद्ध शहद,
10 ग्राम गौमूत्र अर्क, 15 पत्ते तुलसी के साथ
सुबह खाली पेट दवा दें।
दवा की मात्रा रोगी के अनुसार कम
या ज्यादा की जा सकती हैं। इससे शरीर में
कही भी गांठ या घाव हो, सही होता है।
परहेज-
शराब, मांस, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू,
गांजा आदि किसी भी तरह का नशा,
गुटका, पान-मसाला, ज्यादा तली चीजें,
अचार, लालमिर्च आदि का सेवन न करें।
नोट - मरीज को दवाओं की पहचान न होने
की वजह से इन दवाओं का सेवन किसी योग्य
वैद्य की देख-रेख में ही लें।
किसी दवा का गलत तरीके से सेवन
हानिकारक भी हो सकता है इसके लिये
लेखक जिम्मेदार नहीं होगा।

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