मंगलवार, 4 अगस्त 2015

स्वदेशी चिकित्सा (राजीव दीक्षित) भाग 1

स्वदेशी चिकित्सा (राजीव दीक्षित) भाग 1



चेन्नई नगर के सभी सम्माननीय नागरिक बंधुबहनोंमैं बहुत आभारी हूँ आप सभी काऔर विशेष रूप से श्री शोभा कांत जी काप्रदीप भाई कानिरंजन भाई कामेघानी भाई का.. इन सब का बहुत आभारी हूँक्योंकि इन सभी की प्रेरणा से मुझे आपके बीच में एक ऐसे विषय पर बात करने का मौका मिलाजिन विषयों पर मैं पहले बात नहीं करता था । हमारी जो चिकित्सा और स्वास्थ्य का विषय है इस पर बात करने की प्रेरणा मुझे पिछले ३ - ४ साल पहले हुईजब मैंने भारत के स्वास्थ्य मंञी को एक पञ लिखा थाये जानने के लिए की हमारे देश के लोगों की स्वास्थ्य की स्थिति क्या है । हमारे देश की सरकार हर दस-दस साल में एक जनसंख्या की गणना कराती हैजिसे सेन्सस कहते है हमारे देश में । जब सेन्सस होता है तब ये भी गणना की जाती है किकितने लोग बीमार हैकिन को क्या-क्या बीमारी है और कितने लोग स्वस्थ है,कितने आधे स्वस्थ है । तो मैंने लगभग आज से चार साल पहले एक पञ लिखा था स्वास्थ्य मंञी को और उसमें एक ही प्रश्न पूछा था किभारत के लोगों की स्वास्थ्य की स्थिति क्या है ?तो हमारे देश के मंञी महोदय के सचिव ने (सेक्रेटरी ने) उत्तर दिया किदेश के लोगों के स्वास्थ्य की जो स्थिति हैउसके बारे में हम आपको पूरा डाटा भेज रहे हैआप उसका अध्ययन करके खुद अंदाजा लगा लीजिए । तो सरकार ने मुझे जो डाटा भेजा था वह एक - दो पन्ने का नहीं था । वह काफी ६००-७०० पन्ने का मोटा सा एक पुलिंदा थाउसमें जो सेन्सस की रिपोर्ट हुई,वह पूरी उन्होंने लिखी थीवह पढ़कर मुझे बहुत परेशानी हो गयीपरेशानी क्या हो गयी कीउसमें उन्होंने बताया की लगभग ११२ करोड़ लोग इस देश में रहते हैऔर ११२ करोड़ लोगों में स्वस्थ लोगों की संख्या गिनती की २५ से ३० करोड़ है बस । २५ से ३० करोड़ लोग ऐसे हे इस देश में की जिन को स्वस्थ कहा जा सकता है । जिन को किसी तरह का कोई रोग नहीं हैशारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी । बाकी जितने भी लोग है सभी को कुछ न कुछ तकलीफ़ें है । जैसे भारत सरकार के विशेषज्ञों ने ये कहा की५ करोड़ लोग इस देश में ऐसे है जिन को डायबिटीज हैमधुमेह हैखराब बीमारी है । दुनिया के ज्यादातर डॉक्टर कहते है की ये जल्दी ठीक न होने वाली बीमारी है । और ये ५ करोड़ लोगों को हो गयी है और विशेषज्ञ ये कहते है उस रिपोर्ट में की अगर यही गति और रफ्तार से डायबिटीज बढ़ती गयी तो अगले २०१४ तक लगभग १० से १२ करोड़ लोगों को ये होगी। फिर उस रिपोर्ट में उन्होंने कहा है की १२ से १३ करोड़ लोग ऐसे है जिन को लंग्स इन्फेक्शन की भिन्न भिन्न बीमारियों है जैसे दमा हैअस्थमा हैसाँस फूलती हैब्रोंकिअल अस्थमा है१५ से १६ करोड़ लोग ऐसे हे जिन्हें घुटनों का दर्दकमर दर्द,हड्डियों का दर्द जिसे आप संधिवात कहते है सरल भाषा मेंये हड्डियों के जोड़ों की बीमारी है । फिर उस रिपोर्ट में बताया गया है की५ से १० करोड़ लोग है जिन को पेट की कुछ न कुछ तकलीफ है । जिन को पित्त की बिमारियों के द्वारा हम अकसर परिभाषित करते है । गैस बनानाएसिडिटी होनाहाईपर एसिडिटी वगैरह वगैरह.. और ये सब मैं पढ़ता गया और एक जगह लिखा था रिपोर्ट मेंबहुत परेशान करने वाली बात की२० से २२ करोड़ लोग है जिन को आंखों की कुछ न कुछ बीमारी हैया तो कम दिखता हैया बिलकुल नहीं दिखतारात को नहीं दिखता,दिन में दिखता है तो रंग का अंतर पता नहीं चलता । हम अँग्रेज़ी में उसको नाईट बलाइंडनेस या कलर बलाइंडनेस या ग्लूकोमा जैसी बिमारियों से परिभाषित करते है और ये पढ़ते पढ़ते मैं परेशान होता गया । अंत में रिपोर्ट के आखिरी हिस्से में सरकार के ही तरफ से ये बताया गया था की ये सब बीमारियाँ तो है और सरकार इनके लिए क्या प्रयास कर रही है । हर साल केंद्र सरकार का बजट है इन बिमारियों को ठीक करने के लिए वह करीब ९६,००० करोड़ रुपयों का है परोक्ष या प्रत्यक्ष मिलाकरडायरेक्ट  और इनडायरेक्ट । फिर राज्य सरकारों के अलग अलग बजट हैउन्होंने बताया की जैसे तमिलनाडु की राज्य सरकार का बजट ३५,००० करोड़ रुपये है । आंध्र प्रदेश की सरकार का बजट २८,००० करोड़ रुपयों का हैऐसे अलग-अलग राज्य की सरकारों का बजट है । केंद्र सरकार का बजट और राज्य सरकार का बजट दोनों मिलाकर मैंने औसत निकाला तो  लगभग एक - सवा लाख करोड़ का खर्चा है सरकार की तरफ से । ये पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद और एक हिस्सा है रिपोर्ट का की भारत की सरकार कहती है विभिन्न बीमारियों का इलाज करने के लिए इस देश में जो डॉक्टरों की संख्या हैजो रजिस्टर्ड हैवह २३ लाख है ।MBBS, MDMS, BAMS, माने आयुर्वेद के और BHMS होमियोपैथी केतीनों विधाओं,होमियोपैथीआयुर्वेद और अलोपॅथी तीनों मिलाकर सरकार कहती है की २३ लाख डॉक्टर है जो रजिस्टर्ड है ।  
अब २३ लाख डॉक्टरों और लगभग ७० से ७५ करोड़ मरीज या बल्कि ८० करोड़ मरीज मैंने हिसाब निकाला की एक डॉक्टर कितने लोगों का इलाज कर सकता है । अगर ईमानदारी से कोई डॉक्टर सवेरे से शाम तकसवेरे ९ बजे से शाम ९ बजे तक क्लिनिक में काम करे तो ज्यादा से ज्यादा वह ५० लोगों को देख सकता है । अब २३ लाख डॉक्टर है और ५० का उसमें गुना कर दो तो बीमारों की संख्याऔर जिनका इलाज हो पा रहा है उनकी संख्या में ज़मीन-आसमान का अंतर है । फिर मैंने एक दूसरा पत्र लिखामैंने स्वास्थ्य मंत्री को ये कहा की ये डॉक्टरों की संख्या तो पर्याप्त नहीं है बीमारों का इलाज करने के लिएक्या सरकार की कोई ऐसी योजना है जो डॉक्टरों की संख्या बड़ाई जाएतो मंत्री के यहाँ से पत्र आ गया की भारत की सरकार और राज्य की सरकार ने अब तक जितने डॉक्टरों बनाये हैइनको बनाने में करीब १० लाख करोड़ से ज्यादा का खर्चा हो चूका हैअगर ये संख्या हम दुगुना करे तो २० लाख करोड़ रुपये हमें चाहिए । सरकार के पास इतना धन उपलब्ध नहीं हैइसलिए ये व्यवस्था कैसे आगे बढ़ेगी मालूम नहीं । फिर मैंने भारत सरकार को याद दिलाया कीभारत सरकार ने एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता किया हुआ है जिसमें  कई देश शामिल है और वह समझौते का टाइटल है २०१४ तक सभी स्वस्थ । भारत में सन २०१४ तक सभी को स्वस्थ हो जाना है ये सरकार का समझौता है तो २०१४ तक कैसे होने वाला है मुझे नहीं लगता की कोई होने की संभावना है और सरकार स्वीकार करती है की जिस गति से सरकार काम कर रही है अगर सभी हिंदुस्तानियों को स्वास्थ्य दिया जाएचिकित्सा दी जाए तो कम से कम ३०० से ३५० साल लगेंगेये केल्कुलेशन मैंने कैसे निकालाहर साल जितने डॉक्टर इस देश में पढ़कर निकल रहे है अलोपॅथीहोमियोपैथी और आयुर्वेद केऔर उसमें देश का जो ग्रोथ रेट है १० वह जोड़कर हर साल उनकी संख्या बढ़ती जाये तो ३५० साल में सभी को चिकित्सा और स्वास्थ्य मिल जायेगा । अब पता नहीं ३५० साल में कितने जीवित बचेंगे और कितने यहाँ से चले जायेंगे । अब मेरी एक जो दुख की बात है मन की वह यह की ३५० साल में जनसंख्या अगर जो बढ़ रही है अगर उसको जोड़ दिया इसमें तो किसी को स्वास्थ्य कभी भी उपलब्ध नहीं हो सकेगा ।
जब ये जानकारी मुझे आई तो मैं बहुत परेशान हुआ और मैंने सोचा की ये तो बड़ी गंभीर स्थिति है । फिलहाल कुछ वर्षों से मैं स्वामी रामदेव जी के साथ जुड़ा हूँउनसे जब मैंने इन सब विषयों पर चर्चा की तो वह भी कहते है की बात तो बहुत गंभीर है । सब को स्वास्थ्य मिलनासरकार के बूते का और सरकार के दम पर.. और चिकित्सा जो चल रही है इस देश में उसके दम पर तो संभव नहीं हैकोई और रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा । अब दूसरा रास्ता ढूंढने के लिए मैंने भारत देश के कई बड़े चिकित्सकों से बात करना शुरू किया । ऐसे वैद्यों से बात करना शुरू किया जो आयुर्वेद के बड़े पंडित माने जाते है इस देश में । विशेष रूप से एक वैद्य है हार्डिकरपूना में रहते हैऔर उनका भारत में बहुत बड़ा ऊँचा स्थान है । आजकल हिंदुस्तान के आयुर्वेद चिकित्सा के जो विशेषज्ञ हैवह उसको आधुनिक चरक कहते हैइतनी ऊंची स्थिति है उनकीहार्डिकर जी की । उम्र उनकी लगभग ८५ वर्ष हो चुकी है । मैंने हार्डिकर जी से कहा की भारत कीचिकित्सा की जो स्थिति है वह यह हैसरकार कहती हैआप क्या मानते है तो उन्होंने कहा की भारत में  किसी को भी सरकार के भरोसे  चिकित्सा कभी नहीं मिल सकती । अगर कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी चिकित्सा स्वयं करे तभी रास्ता खुलेगा और कोई रास्ता नहीं ।  हार्डिकर जी ने एक दिन मुझे कहाँ की तुम जानते हो २०० साल पहले हिन्दुस्तान में लोग बीमार नहीं थे इतनेतो मैंने कहाँ आप कैसे कहते हो तो उन्होंने कहा स्टॅटिस्टिकस देख लोआंकड़े देख लोतो २०० साल पहले के भारत के लोगों के चिकित्सा और स्वास्थ्य के आंकड़े मैंने इकट्ठे कियेजो अंग्रेजो की सरकार के द्वारा तैयार किये गए थेक्योंकि उस समय भारत में अंग्रेजो की सरकार चलती थी तो मुझे हैरानी हुईकी आज जितने बीमार है और उस समय जितने बीमार थेआज जितनी जनसंख्या है और २०० साल पहले जितनी जनसंख्या थी वह सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं अगर आपको सरल भाषा मैं कहूंकी अगर आज १०० प्रतिशत लोग बीमार है तो २०० साल पहले मुश्किल से ८ या १० प्रतिशत लोग ही बीमार थे ।
अब वह ८ से १० प्रतिशत लोगों की चिकित्सा के लिए अंग्रेजो ने अलोपॅथी व्यवस्था यहाँ शुरू की थी जो शायद पर्याप्त रही होगीक्योंकि बीमारों की संख्याहमारी कूल संख्या की ७० से ८० प्रतिशत हो गयी है और ये चिकित्सा लगभग फेल हो गयी है । पिछले 600 वर्षों में आजादी के बाद आप सब जानते हैसरकार भी मानती है इस बात को कीजितना विकास हुआ है अलोपॅथी चिकित्सा काजितने डॉक्टर बड़े हैजितनी दवाइयां बढ़ी हैजितने अस्पताल बड़े हैजितनी सुविधाएँ बढ़ी है उतनी बीमारियाँ कई ज्यादा गुना से बढ़ गयी है । अब न अस्पताल पर्याप्त है ना डॉक्टर पर्याप्त है । आप अकसर आए दिन अख़बारों में समाचार पढ़ते होंगेटिव पर देखते होंगे की लोगों को बिना चिकित्सा के मार जाना पड़ता हैबिना दावा के मर जाना पड़ता है । अस्पताल के बाहर बेचारे पड़े रहते हैऔर डॉक्टर कहते है की उनके ऊपर काम का इतना बोझ है की वह सभी मरीजों को देख नहीं सकतेये दोनों तरफ की बातें समझने के बाद मुझे वैद्य हार्डिकर जी की बात समझ में आई । लोग अपनी चिकित्सा स्वयं करे तो रास्ता निकलता है,सभी के स्वस्थ होने का । तो मैंने एक बार हार्डिकर जी से पूछा की क्या ये संभव है की हर आदमी अपनी चिकित्सा खुद कर लेतो डॉक्टर की क्या जरूरत है तो उन्होंने कहाँ कीडॉक्टर क्या करता हैआपसे कुछ बातें पूछेगाआप को भूख लगती है की नहीं आप को प्यास लगती है की नहींनींद आती है की नहींखाना अच्छा लग रहा है की नहींवगैरह.. वगैरह.. और ये सब आप उसको बताएँगे । ये सब बताने के बाद वह आपको बताएगा की आपको फलाना रोग हुआ है,या आपको ऐसी तकलीफ हुई है । मतलब क्या हैडॉक्टर ने जो बताया वह आपके कहने परवह कोई भगवान तो नहीं है जो आप कुछ भी न कहो और बता दे की आपको ऐसा है । शायद २५०-३०० साल पहले रहे होंगे ऐसे कुछ चिकित्सकजो नाड़ी देखकर ही बात करते थे कीआपने दस दिन पहले ये खाया । हार्डिकर जी ने मुझे बताया की ऐसे वैद्य रहे हे इस देश मेंजो एक मिनट आपकी नाड़ी पकड़ लेंतो बता देंगे कल क्या खायादो दिन पहले क्या खायाचार दिन पहले क्या खायादस दिन पहले क्या खायाअब ऐसे लोगों की कमी बहुत है इस देश मेंसंख्या भी कम है । तो हार्डिकर जी ने कहाँ की आप जो बताते हैडॉक्टर उस पर अपना तय करता है । लेकिन उसमें भी वह पक्का नहीं होता । अलोपॅथी चिकित्सा में तो सिद्धांत ही हैट्रायल एंड एरर । ट्रायल एंड एररमाने कोशिश करो और गलतियाँ करो । कोशिश करो और गलतियाँ करोकोशिश करो और गलतियाँ करो.. माने तो तीर चलाओलगे तो ठीक नहीं तो तुक्का । ये बात हार्डिकर जी के मुँह से सुनी तो मुझे लगा की वह आयुर्वेद के चिकित्सक है इसलिए ऐसा बोलते होंगे । फिर मैंने ये बात पक्की करने के लिए अलोपॅथी के कई बड़े डॉक्टरों से बात कीदिल्ली मेंमुंबई में । वह कहते है कीदेखो बात तो सही है लेकिन हम इसे जाहिर में नहीं कह सकतेमाने आप जैसे लोगों के सामने नहीं कह सकते कीहम सब ट्रायल एंड एरर पर काम करते है ।  हम सब तीर चलते हैलग जाये तो ठीक नहीं तो तुक्का हैमाने आपका जो इलाज किया जाता है वह एक कुछ प्रयोग पर है पक्का कुछ भी नहीं है उसमें । काम कर गया तो ठीक हैनहीं तो आप तो मर जायेंगेडॉक्टर कहेगामैंने तो बहुत कोशिश कीअब मैं क्या कर सकता हूँ और आप चुपचाप अपने मरीज की मृत शरीर लेकर वहाँ से चले आएँगे । मैं आपको एक बहुत गंभीर बात कहना चाहता हूँहिंदुस्तान के अलोपॅथी चिकित्सा के शीर्ष डॉक्टर जो इस देश मैं है उनकी एक संस्था हैं,वह संस्था की एक कॉन्फरेंस में मैं चला गया था गलती से । एक डॉक्टर मुझे मुझे पकड़ के ले गया थामेरा जाने का तो कोई अधिकार नहीं था लेकिन डॉक्टर ले गया था । वह कहता था की तुम सुनना बसबैठ केहम बात क्या करते हैंकुछ बोलना नहींकुछ कहना नहींप्रतिक्रिया नहीं करनाबस सुनना । हम देखो क्या बातें करते हैं । तो उस कांफ्रेंस मेंमैं ३ दिन बैठा रहा दिल्ली मेंजो बातें होती हैवह आपको सुना दी जाएँ तो आप किसी भी अलोपॅथी चिकित्सक के पास नहीं जायेंगे । वह बिलकुल इस तरह से बातें करते हैजैसे कोई कसाई बकरे को काटने से पहले बात करता हैं । ऐसी स्थिति इस देश मैं आ गयीं है । फिर ३ दिन सुनने के बाद मैं परेशान हो गयातो मैंने वह डॉक्टर से कहाँ की मैं जाना चाहता हूँतो उसने कहाँअब तुम समझ गए हम लोग क्या है । तो मैंने कहाँ की ये आपने मुझे समझाया कयु तो उन्होंने कहाँ की तुम एक काम कर सकते होजो हम नहीं कर सकते की ये बात दूसरों को समझा दो । ऐसी स्थिति हैं । उसमें जो सबसे गंभीर बात हुई थीवह मैं आपको एक वाक्य मैं कहना चाहता हूँ । वह यह कहते थे सभी डॉक्टर एक दूसरे सेसहमत होते हुए की २५० वर्षों में अलोपॅथी चिकित्सा ने एक ही काम किया हैदर्द से लड़ने का.. बस!  इसके आगे कुछ नहीं । २५० वर्षों में अलोपॅथी चिकित्सा ने एक ही रिसर्च किया हैएक ही काम किया हैएक ही शोध किया है वो दर्द से लड़ने का.. इसके आगे कुछ नहीं है । और ये बात में बहुत घंटों-घंटों सोचता रहा तब जाकर मुझे प्रेरणा हुई की मुझे तो भारत के लोगों को कुछ और बताने की जरूरत है । तब मैंने हार्डिकर जी को पूछा कीअब मेरे समझ में आया आप बताइए क्या करना चाहिए तो उन्होंने कहा देखोआयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें महान-महान लोगों नेचरक ऋषिशुश्रूत ऋषिबागभट ऋषि निघंटु ऋषिपराशर ऋषिये सब महान-महान लोगों ने एक बात कॉमन कही है और वो ये कही है की,और वो ये कही हैजो व्यक्ति मरीज होता है वो सबसे अच्छा डॉक्टर हो सकता है । इसको आप गंभीरता से मनन करते रहिये । ये बात चरक ने भी कही हैशुश्रूत ने भी कही हैबागभट ने कही हैनिघंटु ने कही हैपराशर ने कही है । की जो रोगी होता है वो सबसे अच्छा डॉक्टर हो सकता है क्योंकि उसको अपने दुख और तकलीफ का जितनी गहराई से महसूस हो सकता है वो किसी भी डॉक्टर को नहीं होता । जो अपने दुख और तकलीफ को गहरे से महसूस कर सकता है वो चिकित्सा भी कर सकता है बस उसको कुछ ज्ञान की जरूरत है और कुछ ज्ञान.. ज्यादा नहीं थोड़ा सा ज्ञान अगर उसके जीवन में है तो वो कहते है वो हर तरह की बीमारी से लड़ सकता है और दूसरों की मदद कर सकता है । उनके इस वाक्य से मुझे बहुत प्रेरणा हुई की जो रोगी है वो सबसे अच्छा चिकित्सक हो सकता है । और आयुर्वेद के जितने बड़े पंडित है वो भी मानते है इस बात को । वो यह कहते है की आयुर्वेद का ८५ प्रतिशत हिस्साये बात में आप सबको बहुत विनम्रतापूर्वक लेकिन बड़ी गंभीरता से कहता हूँ की इस बात को आप कभी भूलिये मत । आपके जीवन के स्वास्थ्य और चिकित्सा का ८५ प्रतिशत हिस्सा इतना सरल और आसन है की आप स्वयं कर सकते हैमात्र १५ प्रतिशत हिस्सा ऐसा है जिसमें आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत पड़ सकती हैमात्र १५ प्रतिशत । अगर पर्सन्टेज में बात किया जाये तो आप जानते है  ३३ प्रतिशत पर आदमी पास हो जाता है और उसके ऊपर सेकण्ड डिविजनथर्ड डिविजन होती है और ६० पर तो फर्स्ट डिविजन होती है और ७५ पर तो डिस्टिंकशन आ जाती है । मैं ८५ परसेंट की बात कर रहा हूँ । ८५ प्रतिशतपीच्यासी प्रतिशत स्वास्थ्य और चिकित्सा का ऐसा हिस्सा है जो आपके जीवन में आप स्वयं कर सकते है,  बिना किसी विशेषज्ञ की मदद से । बस १५ प्रतिशत हिस्सा ऐसा हे जिसमें आपको विशेषज्ञ की जरूरत है । और आपको में एक आगे की बात कहता हूँ की ये जो कप्रतिशत हिस्सा है आपके जिंदगी का जिसमें आपको विशेषज्ञ  की जरूरत पड़ती हैये हिस्से मैं सबसे कम बीमारियाँ है । सबसे कम बीमारियाँ । माने जहाँ आपके जीवन मैं विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़े आपके जीवन मैंउन बिमारियों की संख्या सबसे कम है । और जहां आपको विशेषज्ञ की जरूरत नहीं हैं आपके जीवन मैंवो बीमारियाँ सबसे ज्यादा है । इसका माने की हम ८५ प्रतिशत डॉक्टर तो हो ही सकते हैकन्कलूजन इस बात का यह है । अब अगर आप ८५ प्रतिशत से और बेहतर डॉक्टर बनना चाहते है तो बागवत ऋषि कहते है की शरीर को थोड़ा जान लीजिये बस ! और वो दूसरी महत्त्व की बात कहते है की भोजन को पहचान लीजिये । शरीर को जान लीजियेभोजन को पहचान लीजिये तो वो कहते है की आप १०० डॉक्टर हो सकते है । शरीर को जान लीजिये मतलबथोड़ा फिजियोलॉजीथोड़ा अॅनोटॉमीथोड़ा शरीरविज्ञान आपको मालूम होऔर ये बहुत आसान है आजकल कोई मुश्किल काम नहीं है । भारत सरकार ने विभिन्न तरह की छोटी-छोटी पुस्तकें छपा रखी है जो बच्चों को पढ़ाई जाती हैंहृष्टश्वक्रञ्ज के सिलेबस में तो अब ये आ गया हैवो किताबें बाजार में उपलब्ध है आप खरीद लाइए और थोड़ा फिजियोलॉजी तो समझ में आ ही जायेगाथोडाबहुत अॅनोटॉमी तो समझ में आ जायेगा । शरीर के क्या -क्या अंग हैअंगों के क्या-क्या उपांग हैह्रदय है तो कहाँ हैलिव्हर हैं तो कहाँ हैकिडनी हैं तो कहाँ हैलिव्हर का किडनी से क्या संबंध हैकिडनी का ह्रदय से क्या संबंध हैआपस के उनके इंटर-रिलेशनशिप हैअब तो एक चार्ट आता हैकैलेंडर जैसामेरी आपको विनती है की खरीद के टांग लीजिये घर मैंआपको भी मदद करेगा और आपके बच्चों को भी मदद करेगा । तो ये हिस्सा बहुत आसान हैंमुश्किल नहीं हैं । बस इसमें जो मुश्किल हिस्सा हैं वो यह कीशरीर के जो अंगों के और उपांगों के जो नाम हैं वो जिस भाषा मैं दिए गए है वो आपको थोड़ा कम समझती हैतो आप आयुर्वेद वाला लीजिये वो आपको आसानी से समझ में आएगा । उनके आपस के संबंध वगैरह वगैरह । मैं इस विषय पर ज्यादा जाना नहीं चाहता क्योंकि ये उपलब्ध है आपके सामने और इस पर ज्यादा बात करूं तो समय खर्च हो जायेगा । आप को सिर्फ संकेत कर रहा हूँ कीआप चाहे तो आज या एक-दो दिन में कुछ ऐसी पुस्तकें फिजियोलॉजी,अनोटॉमी की खरीद लेंनहीं तो एक कैलेंडर चार्ट आता हैंवो ले लें.. २-३ कलेंडर के चार्ट आते हैं वो ले-लेंअभी सरकार ने एक बारह कलेंडर का चार्ट निकाला हैंबहुत ही सरल हैंबहुत आसान हैंउसको घर में टांग कर पलटते रहियेदेखते रहियेज्यादा से ज्यादा ८-१० दिन आप देखेंगेआपको समझ में आ जायेगा लिव्हर क्या हैंह्रदय क्या हैंकिडनी क्या हैआपस में इनके फंकशन्स क्या हैंये बात बागभट जी कहते हैं की थोड़ा शरीर को जान लो और भोजन को पहचान लो । अब उसमें आगे उन्होंने एक सूत्र लिखा हैं संस्कृत मैं की शरीर को जानना अगर है तो ठीक हैइसको जरा और समझिए । शरीर को जानना है तो ठीक हैं लेकिन भोजन को जानना सबसे जरूरी हैं । माने उनका कहना ये है कीशरीर को जान लें तो ठीक हैं लेकिन नहीं जाने तो भी भोजन को तो पहचान लें । और बागभट जी ने पूरी विनम्रता से बड़ी गंभीरता से एक बात लिखी हैं की जिसने भोजन को जान लिया उसको जिंदगी मैं कभी किसी चिकित्सक की जरूरत तो नहीं पड़ेंगी । और भोजन को पहचान लिया मतलब रसोईघर को पहचान लिया सीधी सी बात हैं । और बागभट जी कहते हैं की जीवन की सबसे बड़ी खोज अगर कोई हैं तो वो रसोईघर हैं । और वो कहते हैं की सबसे बड़ा विज्ञान अगर कोई हैं तो ये रसोईघर का विज्ञान है जिसे भोजन विज्ञान कहें या पाकशास्त्र कला कहें जो भी बात आप कहना चाहेंऔर वो यह कहते हैं की इससे बड़ी खोज दुनिया मैं हुई नहीं और अगले हजारों साल होगी नहीं । कितनी गहरी बात वो कहकर चले गए यहाँ सेवो कहते हैं की पिछले हजारों सालों में हुई नहीं भोजन से ज्यादा रिसर्च और अगले हजारों सालों में होगी नहीं । और में अपने अनुभव से या खुद आप अपने अनुभव से ये बात कह सकते हैं की दुनिया मैं अगर भोजन पर सबसे ज्यादा रिसर्च अगर कहीं हुईं तो वो भारत मैं हुईं और अगले हजारों सालों में होगी तो वो भारत में ही होगी । क्यों दूसरे देशों में भोजन ही नहीं हैंरिसर्च क्या करेंगेवो भोजन कब को रिसर्च करे.. आप में से बहुत सारे लोग यूरोपअमेरिका में गए होंगेआप देखिये भोजन क्या हैं उनके पास.. ले देंगे के एक पाँव की रोटी या डबल रोटी,अब वो आलू से खा लो या प्याज से खा लोप्याज से खा लो या आलू से खा लोउसको बीच में काट कर प्याज भर लो या फिर प्याज बगल में रख कर खा लोउसको पिझ्झा कह दोबर्गर कह दोहॉट डॉग कह दोकोल्ड डॉग कह दो वो प्रिपरेशन तो एक ही हैं ना और वो प्रिपरेशन है मैदा कामैदा को सड़ाकर बनाया हुआ इसके अलावा उनके पास कुछ है नहीं जिसे फ़ूड स्टफ कहाँ जाये माने सॉलिड भोजन! मुख्य भोजन कहाँ जाये वो उनके पास एक ही हैं पाँव रोटीडबल रोटीउसको वो मछली के साथ भी खा सकते हैगाय के मांस से भी खा सकते हैं या बकरे के मांस से भी खां सकते हैं या वगैरह..वगैरह कहीं से कुछ भीख में मिल गयादालचावल वगैरह हो तो उसके साथ भी खा सकते हैं वो सब भीख में मिला हुआ हैंउनके यहाँ कुछ होता वोता नहीं । मैं आप को एक छोटी सी जानकारी देना चाहता हूँ की एक बार मेरा एक विदेश से व्यक्ति से मेरा झगड़ा हो गयाएक जर्मनी का व्यक्ति था उसके साथ मेरा झगडा हो गयाझगडा कुछ इस बात का था की जर्मनी महान हैं की भारत महान हैं ये जर्मनी के लोगों को आप जानते हैं थोड़ा शोविनेझम बहुत हैंखराब शब्द हैं शोविनेझम लेकिन में यहाँ इस्तेमाल कर रहा हूँ वो कहते हैं हम श्रेष्ठ हैं,दुनिया में हमसे बड़ा कोई नहींहम सर्वश्रेष्ट हैं । हिटलर भी यही कहता थातो उसकी महानता की हवा निकालने के लिए मैंने उसे सवाल कर लिएतो वो परेशान हो गयां लेकिन जर्मनी की असलियत सामने आ गयीं । मैंने पूछा की तुम्हारे देश में क्या होता हैं गन्ना होता हैं गन्ना?शुगरकेन तो उसने कहाँ नहीं होता । आम होता हैं आमनहीं होताकेला होता हैंनहीं होताचीकू होता हैंनहीं होता । संत्रा होता हैंनहीं होता । मोसंबी होती हैंनहीं होती । जब बहुत परेशान हो गया तो कहने लगा की देखिये मिस्टर राजीव दीक्षित कोई भी मीठी चीज मेरे देश में नहीं होती.. अब बात आगे बढ़ी । कोई भी मीठी चीज मेरे देश में नहीं होती । एक वाक्य में उसने खत्म कर दिया तो मैंने कहाँ अच्छामीठी चीज नहीं होती है तो कडवी चीज पूँछते हैंमेथी होती हैं मेथीमेथी तो मीठी नहीं हैंमेथी होती हैंउसने कहाँ नहीं होती.. पालक होता हैंनहीं होता! चुकंदर होता हैंनहीं होता! फिर थोड़ी देर में परेशान हो गयाफिर कहने लगा की हरे पत्तो की कोई चीज मेरे देश में नहीं होतीतो मैंने कहाँ की होता क्या हैंतो उसने कहाँ दो ही चीजे हैं,एक आलूँ होता हैं और प्याज होती हैं । आलूँ को प्याज में मिलाकर खा लों या फिर प्याज को आलूँ में मिलाकर खा लो और कुछ नहीं होता  । फिर मैंने उसको गिनाना शुरू कर दिया की देखो भारत में क्या क्या होता हैंमीठी चिजोंमे क्या क्या होता हैखट्टी चिजोंमे क्या-क्या होता हैंतीखी चिजोंमे क्या क्या होतां हैकसैली या कडवी चीजे क्या क्या हैं । ६ रस हैं नाषडरस की बात कहीं जाती है६ वो  रस मैने गिनाना शुरू किया तो उसने कहाँ की यार इसमें तो एक एनसायकलोपेडीया लिख जायेगा तो मैंने कहाँ.. यस! भारत में इतनाहीं होता हैं । और जब मैंने कहाँ की भारत के हर गाँव में होता हैतब तो वो बहुत परेशान हो गया । मैंने कहाँ की ये हर गाँव में होता हैं। ७ लाख ३२,००० गाँव हैंहर गाँव में होता हैं माने किसी गाँव के दुसरे पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं हैनमक को छोडक़रतब उसने कहाँ सच मेंइंडिया इज ग्रेट ! ये ग्रेटनेस है अपने देश मेंहमको अगर ये समझ में आती हैंतो बागभट जी की बातें हमें बहुत अच्छे से समझ में आएगी । में बागभट जी के बारे में एक दो जानकारी और देकर विषय पर आना चाहता हूँ ये भूमिका के रूप में कह रहाँ हँू । बागभट जी भारत के उन महान कृषीयों मे गिने जाते हैं जिन्होंने चरक से भी ज्यादा काम किया । ये बात को बहुत ध्यान से आप सुनियेगा लेकिन में बहुत विनम्रतापूर्वक कह रहाँ हूँ । अब तक आपने बार बार चरक का नाम सुना हैं; 'चरक,चरक,चरकÓ। बागभट जी चरक के शिष्य थे और चरक ने जितने साल काम कियाउससे डेढ़ गुना काम बागभट जी का हैं । चरक जी के जाने के बाद चरक ने जो सूत्र लिखे है जो उनकी खोज हैंउनकी रिसर्च हैं, 'चरक संहिताÓ जो पूरा का पूरा शास्त्र है उसके एक एक सूत्र को प्रमाणित करने का काम बागभट जी ने किया । प्रमाणित करने का मतलब.. ऑबझरवेशन करना फिर जैसा रिजल्ट हैं वैसा ही प्राप्त करना । जैसे चरक कृषी ने कहाँ ये खाने से ये होतां हैमान लो उन्होंने एक स्टेटमेंट कर दिया की ये वास्तु खाने से ये होतां हैबागभट जी ने इन सुत्रोंको प्रमाणित करने के लिए २५ साल लगा दियें२० साल लगा दियें३० साल लगा दियें और जब तक देख नहीं लिया तब तक उसको लोगों को कहने लायक नहीं माना । हमारे आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के जो विशेषज्ञ हैं वो यह कहते हैं की चरक जो थे महापंडित थेबहुत उचे स्थान के व्यक्ति थेलेकिन बागभट जी थे वो साधारण आद्मियोंके चिकित्सक थे । इसका मतलब क्या हैं ?इसका मतलब ये हैं की चरक जी ने जो बातें बहुत गहराई से और गूढ़ शबदोंमे कहीं हैबागभट जी ने उन्हें बहुत सरल करके साधारण लोगों को समझ में आये वैसा प्रस्तुतीकरण कर दिया । बागभट जी की ये दो पुस्तकें, 'अष्टांग हृदयंÓ और 'अष्टांग संग्रहमÓ पढ़ने के बाद मुझे ये लगा की मैंने चरक को पढ़ लियांशुश्रूत को पढ़ लियानिघंटु को पढ़ लियासब को पढ़ लियाकयोंकि उन्होंने सबका निचोड़ दाल दिया उसमें और वो यह कहते हैं की अब मैंने ये जो तैयार कर दिया हैंअष्टांग हृदयं और अष्टांग संग्रहम ये आम आदमी के लिए हैंवो चाहे तो इसका पालन करे और अपने जीवन में मेरी तरह सुखी और निरोगी रहेंबागभट जी १३५ वर्ष तक जिन्दा रहेंऔर उनके शिष्य बताते हैं की उन्होंने इच्छा मृत्यु को धारण किया माने उनकी इच्छा हुई थी की अब बहुत दिन तक जिन्दा रहने से कोई फायदा नहीं है तो मृत्यु को धारण किया । इतने पंडित आदमीइतनी कमांड अपने शरीर परतो वो यह कहते है तो शिष्य कह रहे थे की वो मृत्यू को जा रहे थे तो उनके शिष्य कह रहे थे की परेशान हम हो जायेंगे आप चले जाएँगे तो उनका कहना था कीकोई परेशानी नहीं है,ये शरीर छोड़ दूंगादूसरा धारण कर लूँगाजैसे तुम शर्ट बदलते हों में बदल लूँगालेकिन अब मुझे जाना चाहिए इस शरीर का खिमा हो गया हैं । ऐसे व्यक्ति जिन्होंने मृत्यु को धारण किया अपनी इच्छा से । उन्होंने जो कुछ अपने जीवन में किया हैं वो सिर्फ दो पुस्तकों में सारा समायित हैं तीसरी कौनसी पुस्तक उन्होंने लिखी नहीं और वहीँ दोनों पुस्तकों में कूल-मिलाकर ७००० सूत्र हैं । ७०००२ पुस्तकों में कुल-मिलाकर ७००० सूत्र हैं । सभी सूत्र संस्कृत में है ये तो आप जानते हैं कयोंकि उस ज़माने में हिंदी थी नहींतमिल थी नहीं,तेलुगु थी नहींज्यादा से ज्यादा संस्कृत ही थी या प्राकृत थी । तो संस्कृत में उन्होंने सब कुछ लिखकर छोड़ दिया वही सूत्र में पिछले कहीं वर्षोंसे पढ़ता रहाँचार-पाँच वर्षों से तो बहुत ज्यादा पढ़ रहाँ हूँ  जब से मुझे मन में ये बात आई तो बहुत ज्यादा पढ़ता आया । और हमारा जो अभियान हैजो पुरे देश में हम चलाते हैं स्वदेशी के लियेंउससे ये बहु गहराई से ये जुड़ा हैं । अब हमारे अभियान में अब तक हम ये बात करते थे ना कीकी घर में ये पेप्सीकोका कोला मत लाओ कयोंकि ये विदेशी पेय हैं । फिर में ये भी कहता था की ये पिनेलायक नहीं हैटॉयलेट कलीनर हैंबहुत साल पहले मैं कह गया था चेन्नई मेंअब सरकार ने भी मान लिया हैं की ये टॉयलेट कलीनर हैंऔर वैज्ञानिकोने सिद्ध कर दिया हैं की टॉयलेट कलीनर हैं । तो ये बातें हम स्वदेशी अभियान में जोडक़र चलते थेजब मुझे पता चला इसी अभियान का एक बड़ा हिस्सा हैं,पेप्सीकोका-कोला भारत से धन लूटकर अमेरिका ले जा रहें हैंअसी अॅलोपॅथी चिकित्सा की दवाइयाँ बनाने वाली कंपनिया उससे भी ज्यादा लूट कर जा रहीं है । एक अमेरिकन कंपनी हैं उसका नाम हैं प्रोकर एंड गै6बल । उनकी बैलेंस शीट मैंने देखि तो उनका मुनाफे का प्रतिशत २०,००० हैं माने २०,००० पर्सेंट प्रॉफिट कम रहें है वोपेप्सी कोका कोला तो १,००० प्रतिशत पे काम कर रहे हैंप्रोकर एंड गै6बल २००० प्रतिशत पे काम कर रही हैं । एक अमेरिकन कंपनी हैं एली-लिली उनका प्रॉफिट पर्सेंट ३५,००० हैं । पैंतीस हजार प्रतिशत मुनाफा वो कम रहें है भारत में । तो ध्यान में आया की विदेशी कंपनियाँ पेप्सीकोका-कोला बेचकर जितना धन कमा रहीं है,उससे ज्यादा अॅलोपॅथी की दवाइयाँ बेच कर कम रहीं हैऔर उस धन को कमाने में भारत के चिकित्सक थोड़ी मदद कर रहें हैकयोंकि वो उन्ही दवाओं का प्रिस्क्रिप्शन लिख रहें है जो कंपनियां बेच रहीं है । मैंने बहुत सारे चिकित्सकों से ये पूँछने का लगातार प्रयास किया है की,आप इसी कंपनी की दवाएँ कयों लिखते हैंमान लो एक चिकित्सक हैंबहुत पैसे वाला हैंप्रोकर एंड गै6बल की ही दवाएँ लिखता हैं6बई में ये मैंने ज्यादा काम कियाऔर एक है वो एली-लिली की ही लिखता हैंएक है संॅडोज की ही लिखता हैंएक सिबग आय की ही लिखता हैतो पता चला की उनका 'कमीशनÓ फिकस्ड हैं । ये खराब शबद बोलने के लिए आप मुझे माफ़ करेंगेडोकटरोंका कंपनीयोंसे कमीशन फिकस्ड हैं । माने कमिशन जो कंपनी ज्यादा देगीवो उसका प्रिस्क्रिप्शन लिखेंगेइसका मतलब यह है की उनको आपकी चिकित्सा से कोई लेना देना नहीं हैउनको अपने कमिशन की चिंता हैं । और वो कमिशन खाकर ऐसी  दवाएँ भी लिखेंगे आपको जो जरूरत नहीं है,  गैरजरूरी हैं । अकसर आपने देखा हैं एकसाथ कोई डॉकटरकोई प्रिस्क्रिप्शन है१८-२०गोलियां है४ सुबह४ दुपहर४ शाम४ रात । गोलियां ऐसे खिलाते हैं जैसे सबिजयां खाएँ हम । और वो तो कहते हैं की सबजी-वबिज खाओ ही मतगोलियाँ ही खाते रहो,हाँ । व्हिटेमिन 'बीÓ के लिए भी गोली खा लोव्हिटेमिन 'सीÓ के लिए भी गोली खा लो,व्हिटेमिन 'Ó के लिए भी गोली खा लोऔर गोली से भी ज्यादा इंजेकशन लगवा लो और अब उन्होंने पता नहीं क्या-क्या सब बना दियां । माने प्रकृति जो हमें दे रहीं है उसके चक्कर में ना फँसते हुए इन गोलियों के चक्कर में फँसोताकि कंपनी का माल बीकेताकि उनका भी कमिशन बढेये पुरे देश में चल रहा हैं कहीं ज्यादा कहीं कम । में आपको विनम्रतापूर्वक ये कहने आया की जिस चिकित्सक को भगवान् मान कर आप उसके पास जाते हैंपैसे भी देते हैंफीस भी देते हैं लेकिन वो दवा आपको देता हैं कमिशन के आधार पर की ज्यादा कमिशन है तो ये दवा लिख दो नहीं तो नहीं लिखनी । और भारत की सरकार बिलकुल ही फ़ैल हो चुकी हैं इस कमीशनखोरी को रोखने में । और मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के पास कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं है और वो डाक्टरों की कमीशनखोरी को वो कंट्रोल करें । जो शपथ लेकर डॉक्टर निकल रहे हैंउसके ठीक उलटे काम वो अपने जीवन में कर रहे हैं । एक शपथ उनको दिलाई जाती हैंशपथ लेकर निकलते हैंउसमें बड़ी बड़ी बातें हैं लेकिन जीवन उसके ठीक उल्टा हैं । तो ये सब बातों को ध्यान में रख कर मुझे लगा कीबागभट जी की बात जो वो कहते हैं पिच्यासी प्रतिशत जीवन की जो चिकित्सा हैंहर व्यक्ति स्वयं कर सकता हैं । १५ प्रतिशत के हिस्से में सिर्फ विशेषज्ञ की जरूरत हैं । तो मुझे लगा की जो पिच्यासी प्रतिशत हैं वो तो जानो । वो जानने के लिए ५-६ साल काम किया मैंने उसमें से कुछ सूत्र मैंने निकालेबागभट जी के ७००० सूत्र हैंसभी सुत्रों पे बात करूँ तो कम से कम महिनासवा महिना लगता हैंवो भी रोज ३घंटे बात करूँ तो । तो मैंने कहाँ और सोचा इतना समय किसी के पास भी नहीं हैं और शायद मेरे पास भी नहीं हैं । तो इनमे से कुछ बहुत जरुरी सूत्र हैं वो निकालेतो भारत में मैंने जैसे हार्डिकर जी का नाम लिया उनकी मैंने मदद ली थीऔर हार्डिकर जी के बराबर के कई ऐसे वैद्य उनकी मैंने मदद ली । और मैंने उनसे कहाँ की आप मुझे बातो ये सूत्र ये सूत्रये सूत्र.. बहुत जरुरी हैंबिना इसके आदमी का जीवन ही नहीं चलेगा । ये मुझे बता दोतो उन्होंने बताना शुरू कर दियातो ७००० से घटकर ३००० तक आएतो ३००० से घटकर १००० पे आएफिर ५०० पे आयेफिर ५०० से ५० पे आये,और उस ५० के बाद भी उन्होंने कहाँ की अगर तुम ये ५० भी नहीं बता सकते हो  तो ये १५ तो जरुर बता दो । तो मैं आपको ये कम से कम ५० तो बताने ही वाला हूँकयोंकि अगले ५-६ दिन मेरे पास समय हैं लेकिन उन ५० में जो १५ हैंवो सबसे महत्वपूर्ण हैंबागभट जी खुद मानते हैं और उनके निचे के जितने भी विशेषज्ञ हुए हैं पिछले हजारो सालों मे वो भी मानते हैं की ये सबसे महत्वपूर्ण सूत्र हैं । उसमें से पहला सूत्र में बात शुरू करता हूँ । आपके पास अगर कागज-पेन हो तो जरुर निकल लीजियेनोटबुक है तो बहुत अच्छा होगाडायरी है तो बहुत ही अच्छा होंगा कयोंकि पता नहीं दुबारा कब कोन व्यक्ति आप से इस विषय पर बात करने आएगा । और अगर नहीं है कागज-पेनतो चिंता मत करिए मैंने कुछ वर्ष पहले काम करते करते ये सुत्रोंको किताब में भी डाल दिया हैंमैंने किताब लिख दी हैं, 'बागभट संहिताÓ जो हैंबागभट जी की अष्टांग हृदयं और अष्टांग संग्रहम इनके सूत्रों को कलेकट करकेसिलेकट करके ३ भागों मे एक पुस्तक बनाई हैंपार्ट १पार्ट २पार्ट ३. अष्टांग हृदयं भाग १भाग २,भाग ३. मूल लेखक बागभट जी हैंमैंने सिर्फ सलेकशन कियाऔर सलेकशन के साथ आज के हिसाब से उसकोथोड़ा विश्लेषित किया हैं । जैसे में एक उदहारण दूँ तो आपको मेरी बात समझ में आ जाएगी । बागभट जी ने एक सूत्र लिखा अब में संस्कृत में बात नहीं करूँगा कयोंकि समय बढ़ जायेगाएक सूत्र उन्होंने लिखा कीभोजन को बनाते समयइसको माताएँबहने बहुत ध्यान से सुनेपुरुष भी सुनें तो अच्छा हैं । भोजन को बनाते समयपवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश अगर नहीं मिला,किसको भोजन कोजिस भोजन को आप बना रहें हैपका रहे हैं उसे पकाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश नहीं मिलें तो वो भोजन कभी नहीं करना । कयोंतो वो आगे लिखते हैं ये भोजन नहीं विष हैं और फिर आगे लिखते हैं की दुनिया में २ तरह के विष हैंएक ऐसे विष होते हैं जो तत्काल असर करते हैं और एक ऐसे विष होते हैंजो धीरे-धीरे असर करते हैं । तत्काल असर वाले विष आप जानते हैंजीभ पे एक ड्रॉप डालों और मर जाए । और धीरे-धीरे असर करने वाले विषमाने २ साल में५ साल में१० साल में१५ साल में२० साल में असर करेंगे और आपको मरने के स्थिति में पहुँचा देंगे । तो सूत्र उनका इतना है की जिस भोजन को बनाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश ना मिलेंवो भोजन को कदापि ना करें कयोंकि वो विष हैंअब ये सूत्र हैंपहले संस्कृत हैमैंने वो हटा दियासंस्कृत में नहीं कहाँसीधे हिंदी में कहाँ । अब ये हिंदी का विश्लेषण करें हमकहना क्या चाहते हैं हमऔर आज के हिसाब से विश्लेषण करेंसन २००७ के हिसाब से विश्लेषण करे तोअब तक मैंने जो बोला था वो बागभट जी का हिस्सा थाअब जो में बोलने वालां हूँ वो मेरा हिस्सा हैंबाग़वट जी कह रहें हैं की प्रेशर कुकर का भोजन ना करेंकयोंकि प्रेशर कुकर एक ऐसी तकनीक हैं जिसमें भोजन बनाते समय ना तो सूर्य का प्रकाश जा सकता हैं ना तो उसको पवन का स्पर्श उसको मिलेगा । प्रेशर कुकर से वो जो भी हैंहवा बाहर तो आ सकती हैंबाहर की हवा अन्दर जाने  में कोई डिव्हाईस नहीं हैकोई रास्ता नहीं हैं । सूर्य का प्रकाश उसमें अन्दर जाएँ ऐसी कोई टेकनोलोजी डेव्हलप नहीं हुईं है। तो बागभट जी ने ३,५०० साल पहले कहाँशायद उनको अन्तर चेतनामें ये ज्ञान आया होंगा की कभी-ना कभी आदमी प्रेशर कुकर बनाहीं लेगा । ये मैंने मजाक में कहाँलेकिन आज के हिसाब से आपको समझ में आये इसलिए । तो वो यह कहते हैं की प्रेशर कुकर का भोजन ना करेंमाने हमारे घर में एक प्रेशर कुकर हैंजिसपे बागभट जी का सिद्धांत लागू नहीं होता माने सिद्धांत ऐसे लागू नहीं होता की हम उसका खाना खाएँ,  ना खाएँवो विष हैं । फिर मैंने तो मैंने वैज्ञानिकों से बात कीकी ये प्रेशर कुकर का भोजन विष हैं ऐसा बागभट जी कहते हैंआपका क्या कहना हैं ?तो हमारे देश में ष्टष्ठक्रढ्ढ नाम की एक बड़ी लेबोरेटरी हैंसैंपल ड्रग रिसर्च इंस्टीटूट । वहाँ के २ सायंटिस्टो ने कहाँ की यार ये काम तो हमने करके देखा हैं बात सहीं है बागभट जी की । मैं कहताँ हूँ की ये टी.व्ही. पर बोलोतो उन्होंने कहाँ की ये प्रेशर कुकर कंपनियाँ गर्दन काटके देगी हमारीइसलिए टी.व्ही. पर नहीं बोल सकते हम तुम चाहों तो बोलो.. । मैंने कहाँ की आपकी रिसर्च क्या हैं कहती हैंवो यह कहते हैं की ये जो प्रेशर कुकर हैं वो ज्यादा से ज्यादा या ९९ 'अॅलुमिनियम अॅलुमिनियम आप जानते हैं । और वो यह कहते हैं की भोजन बनाने का और रखने का सबसे खराब मेटल अगर कोई है तो अॅलुमिनियम ही हैं । सबसे खराब मेटल खाना बनाने का,अॅलुमिनियम और दोनों वैज्ञानिक कहते हैंनाम नहीं लेना हमारा इसलिए में नहीं ले रहाँ हूँवो कहते हैं  हमारा १८ साल का रिसर्च वो यह कहता हैं की अगर बार बार ईस अॅलुमिनियम के प्रेशर कुकर का खाना बार बार आप खाते जाए तो गारंटी हैं की आपको डायबटिस तो हो ही जाएगाअंथ्रयटिस तो हो ही जायेगा ब्रोंकायटीस भी होने की पूरी संभावना है और सबसे ज्यादा टी.बी. होने की संभावना है । मैं पूँछाआपने अब तक कितनी बीमारियों को डिटेकट कियाँतो उन्होंने कहाँअडतालीस बीमारियों को हम डिटेकट कर चुके हैं जो प्रेशर कुकर के खाने से ही होती है । और ये दोनो रिसर्चरसबसे ज्यादा इन्होंने रिसर्च किया जेलों मेजेल है ना हमारीवहाँ कैदियों को अॅल्युमिनिअम की बर्तनों में ही खाना मिलता हैआप जानते है । तो ये वैद्यानिक लखनौ के हैलखनौं की जेलों मे आसपास की जेलों मे इन्होंने बहुत काम कियाँ । वो जेलों मे जाते है और जो कैदी अॅल्युमिनिअम के बर्तनों मे खाना खाते हैउनके उपर उन्होंने बहुत काम कियाँ और उन्होंने कहाँ सबका जीवन कम होता है और जीवन की शक्ती कम होती हैप्रतिकारक शक्ती कम होती है । बाद मे मैने एक छोटासा काम इसमे अॅड कर दियावो वैद्यानिकों से रिपोर्ट लेने के बाद मैने तय किया कि पता करोये अॅल्युमिनिअम कब से आयाकयोंकि ये ज्यादा पुरानी चीज नहीं है । तो पता चला १००-१२५ साल पहले आया । १०० -१२५ साल पहले अंग्रेजों की सरकार थी । अंग्रेजों की सरकार की वैद्यानिकोंने अॅल्युमिनिअम को हिंदुस्थान मे इंट्रोड्यूस कराया । और आपको सुनकर हैरानी होगी कीअंग्रेजों की सरकार का पहला नोटिफिकेशन आया,अॅल्युमिनिअम के बर्तन बनाने कावो जेल में कैदियों के लिए ही आया । और उनका ये तय हो गया था कि जेल के कैदियों को अल्युमिनीअम के बर्तन में ही भोजन दिया जाए कयोंकिये सब भारत के क्रांतिकारी है और अंग्रेजों को इन्हे मारना है । उस जमाने मे आप जानते हैभगतसिंग हो या उदमसिंगचंद्रशेखर हो या अश्पाक उल्लाराजेंद्रनाथ हो या ठाकूर रोशनसिंगये सब क्रांतिकारी थे अंग्रेजों के जमाने मेंइनको जान-बूझकर अल्युमिनीअम के बर्तन में ही खाना देना हैताकि ये जल्दी मरेंया मरने के स्थिती मे आ जाए । तो समझ-बूझकर अंग्रेजों की सरकार ने ल्युमिनीअम के बर्तन इस देश में इंट्रोड्यूस कर दिए । अब परिणाम क्या हुआ अंग्रेज तो चले गयेलेकिन जेलों मे आज भी ये नियम चल रहा है । और अब मुश्किल ये हो गयी है कीअब वो जेलों से हमारे घर मे आ गया । और हमारे घर से ज्यादा गरिबों के घर मे आ गयाज्यादा गरीब लोगों के भोजन तो सारे अल्युमिनीअम के बर्तनों में ही बन रहे हैऔर बेचारे बिना जाने-बूझे ट्यूबरकयुलॉसिस और अस्थमा जैसी बिमारियों के शिकार हो रहे है । तो बागभट जी का सूञ तो बहुत सरल हैसिंपल है कीजो भोजन को बनाते समय सूर्य का प्रकाश या पवन का स्पर्श ना मिलें तो वो भोजन कभीं नहीं करनामैने उदाहरण के लिए आपको समझा दिया कीप्रेशर कुकर का भोजन नहीं करना कयोंकि वो जहर है । एक और चीज है अपने घर में रेफ्रिजरेटर ! रेफ्रिजरेटर भी एक ऐसी वस्तू हैएक ऐसी डिव्हाईस हैएक ऐसी टेकनोलॉजी है जिसमें सूर्य का प्रकाश नहीं जा सकतापवन का स्पर्श भी नहीं हो सकता । और एक तीसरी चीज हैंअपने घर मैंमेक्रोव्हेव ओव्हन । इसमें भी सूर्य का प्रकाश नहीं जा सकतापवन का स्पर्श नहीं हो सकता । मतलब सीधा सा ये है की आधुनिक तकनिकी से बनी हुई चीजे जो हमारे घरों में आई हैपिछले १००-१२५ वर्षों मेंबागभट जी के अनुसार इनमें रखा हुआपकाया हुआ भोजन विष हैंवो न करें । नहीं तो क्या होगा आप कहेंगे की हम तो करेंगेहम तो छोड़ नहीं सकते प्रेशर कुकर को,रेफ्रिजरेटर कोहम तो छोड़ नहीं सकते मायक्रोव्हेव ओव्हन कोकयोंकि इसमें भोजन बनाने से समय बचता हैं । मेरा बहुत सारी माताओसे और बहनोंसे तर्क हुआ हैवो यह कहते है कुकर में खाना बनाने से समय बचता हैं । तो मैंने उनसे पूंछता हूँ की ठीक हैंसमय बचता हैंतो बचे हुए समय का क्या करती हैं तो ज्यादातर माताओंबहनों का उत्तार हैसाँस भी कभी बहू देखते हैं । इधर प्रेशर कुकर मैं खाना बनाके समय बचाओ और फिर हमने टी.व्ही. के सामने वो समय इनवेस्ट कर दियातो नेट रिझल्ट क्या हैं ?.. तो मैं उनको समझाता हूँ की आपने जो आधा- एक घंटा समय बचाया भोजन पकाने मेंये आपका घंटो-घंटो अस्पताल मैं खराब कराएगा तबदो घंटे रोज के हिसाब से मान लोबचा लिया और सालभर मैं आपने सांतसो-आँठसौं घंटे बचा लिए,कल्पना करो । फिर एक दिन अस्पताल में भरती हो गएऔर दो-चार महीने वहाँ निकल गया तोनेट रिझल्ट क्यावहीँ शून्य का श्यून्य । तो ये एक सूत्र हैं जिसपर में आपसे बात कर रहाँ हूँ की भोजन को बनाते समयपकाते समयकोई ऐसी वस्तू जहाँ सूर्य का प्रकाश ना जाता होंपवन का स्पर्श ना होता हों तो वो ना करे । अब इसमें विश्लेषण की जरूरत हैं । बागभट जी तो लिख के चले गएअब ये कयों का जवाब हमें ढूंढऩा हैं । और इसमें जरूरत हो तो आधुनिक विज्ञान की जरूरत मदद भी लेनी हैं । मॉडर्न सायन्स ने कुछ लॉजिक डेव्हलप किये हैंकुछ ओबज़र्वेशन्स उन्होंने दिए है तो उनकी मदद से ये कयूँ ना करे क्या कारण हैंयहाँ से अब मैं बात शुरू करता हूँ । आधुनिक विज्ञान क्या कहता हैंप्रेशर कुकर के बारे मेंये जाने.. प्रेशर कुकर एक ऐसी टेकनॉलॉजि हैजो खाना जल्दी पकाती हैंये सीधा सा मतलब । अब खाने को जल्दी पकाने के लिए ये प्रेशर कुकर क्या करता हैंजो भोजन आपने उसमें अन्दर रखा हैंपकने के लिए उसपर अतिरिक दबाव डालता हैंये हैं प्रेशर । प्रेशर माने दबाव! तो अतिरिक्त दबाव डालने की टेकनोलॉजि हैं ये प्रेशर कुकर । और ये अतिरिक्त दबाव कहाँ से आता हैंप्रेशर कुकर में आपने दाल डालीऊपर से उसमें पानी डालाथोड़ा हल्दी-मसाले डालकर बंद करके रख दिया । अब उसमें वो सीटी लगा दी । वो सीटी लगा दी वो ही सबसे खतरनाक चीज हैं पुरे प्रेशर कुकर में । सीटी ना लगाये तो आपका प्रेशर कुकर आपके लिए अच्छा हैंसीटी लगातेही क्या करता हैंपानी गरम होगा आप जानते हैंपानी गरम करने से बाष्पीकरण शुरू होता हैव्हेपोरायझेशन होता हैतो पानी की बाष्पप्रेशर कुकर में चारो तरफ इक_ी हुईवो बाष्प जो हैं यावो दबाव डालती है किसपर ?दालपरचावल परसत्तजी पर । ये दबाव डाल के होता क्या हैडाल एक कल्पना करिएअरेहर की दाल । अरेहर की दाल के छोटे छोटे टुकड़ेएक दाल को तोडक़र दो टुकड़ेजिसको द्विदल कहते हैंजैन समाज के लोग तुरंत समझ में आ जायेंगे ये द्विदल । चने की दालअरेहर की दालद्विदल हैंइसको तोडक़र आपने दाल बनाई है अब ये दाल पानी में पड़ी हैंनीचे से गरम और ऊपर से वाफ का दबावतो ये दाल जो हैं नाफट जाती हैंफँटना समझते हैंवो दरकना शुरू हो जाती है । उसके अंदर के जो मोल्येकुल हैदाल के अंदर जो अणू हैं वो अणूजो एक दुसरे को जकडक़र बैठे हुए हैये पानी का प्रेशर उन अणूओं को तोड़ता हैं । और दाल दरकना शुरू होती हैं । वो दाल दरक जाती हैं और पानी इतना गरम हो जाता हैंतो उबल जाती हैंपकती नहीं हैउबलती है । पकना और उबलने में अंतर हैं । तो उबल जाती है और दरक जाती है । आप खोलते हैंपाँच मिनट बादआपको लगता है दाल पक गयी है । पक नहीं गयी है वो थोड़ी सॉफट हो गयी हैनरम हो गयी है कयोंकि नीचे से गर्मी पड़ीं और उपरसे प्रेशर पड़ा बाष्प का । वो पकती नहीं है । उबल गयी है और उसका सॉफटनेस बढ़ गई हैतो आपने खाना खा लिया तो आपने कहाँपकी हुई दाल खा लीमाफ़ करिये ! दाल पकी हुई नहीं है । फिर आप बोलेंगे की,पकी हुई दाल और इस दाल में क्या अंतर हैंपकी हुई दाल का आयुर्वेद में वैसी सभी सिद्धांत है उसमें से आप से बता रहाँ हूँ । आयुर्वेद चिकित्सा ये कहती है कीजिस वस्तू को पकने को खेत में जितना ज्यादा समय लगता हैंभोजनरूप में पकने में भी उसे ज्यादा समय लगता है । अब अरेहर के दाल की बात करे । आप में ये थोड़ा भी गाँव से जोड़ा हुआ कोई व्यक्ति होगा तो आप जानते हैअरेहर की दाल को खेत में पकने में कम से कम सात से आँठ महिना लगता है । कयूँअरेहर की दाल में जो कुछ भी है जिसको आप न्यूट्रीअन्ट्स के रूप में जानते हैमायक्रो न्यूट्रीअन्ट्स के रूप में जानते हैसूक्ष्मपोषक तत्व के रूप में जानते है । वो मिट्टी से दाल में आने के लिए सबसे ज्यादा समय लगता है । ये जो मिट्टी है ना खेत कीये मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स का खजाना है । खेत की मिट्टी में कैल्शियम हैखेत के मिट्टी में आयर्न हैंखेत के मिट्टी में सिलिकोन हैकोबोल्ट हैझिप्टन हैझोरोन है । ये सब मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स खेत के मिट्टी में है । ये पौधे की जड़ में आते हैंजड़ से तणे में आते हैंतणे से फल में आते हैंइस पूरी क्रिया में बहुत समय लगता हैतो इसलिए दाल को पकने में समय लगता है । तो आयुर्वेद यह कहता है की जिस दाल को खेत में पकने में ज्यादा समय लगा तो उसको घर में पकने को भी ज्यादा समय लगना चाहिए । कयूँ ये जो मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स धीरे-धीरे दाल में अबझोर्ब हुए हैं दाल मेंखींचकर आये हैं दाल मेंइनको डिझॉल्व्ह होने में भी धीरे धीरे ही समय लगता है । आप दाल कयूँ खाना चाहते हैंआप दाल खाना चाहते है प्रोटीन के लिएप्रोटीन कहाँ से आएगाये जो मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स का कलेकशन दाल में इक_ा हैंइनके टूंट जाने परबिखर जाने पर । तो वो बिखरने में और टूटने में उसको देरी लगने वाली हैं कयोंकि आने में देरी लगीं हैं । ये प्रकृति का सिद्धांत हैआयुर्वेद का नहीं कहना चाहिएप्रकृति का सिद्धांत है । बच्चे को पेट के अंदर गर्भाशय में विकसित होने में समय लगता है । दुनिया में हर चीज को विकसित होने में समय लगता हैंजल्दी कुछ नहीं होता इसलिए दाल भी जल्दी नहीं पकतीबच्चा भी जल्दी नहीं होता । सभी चिजों मे ये हैप्रकृति का नियम हैंऔर प्रकृति का ये दूसरा नियम है जिन चीजों को पकने मेंबड़ा होने में ज्यादा समय लगा हैंउनको डिझॉल्व्ह होने में भी ज्यादा समय लगेगा । और दाल जब डिझोल्व होगी तब आपको उसके प्रोटीन मिलेंगे भोजन मेंइसीलिए आप दाल खा रहें है ताकि आपको प्रोटीन की कमी पूरी हों । कुछ व्हीटॅमीन्स आपको चाहिएकुछ प्रोटीन्स आपको चाहिए और दुसरे अंश आपको चाहिए तो आयुर्वेद का नियम बिलकुल सीधा हैदाल ज्यादा देर में पकी हैंतो घर में भी ज्यादा देर में पके । अब मेरे समझ में आया की हमारे पुराने लोग जो थे,बुजुर्ग थे वो कितने बड़े वैज्ञानिक थे । में एक बार जगन्नाथ पूरी गया थाआप भी गये होंगेतो वहाँ भगवान् का प्रसाद बनाते हैंतो प्रेशर कुकर में नहीं बनातेआप जानते है । हालाखीवो चाहे तो प्रेशर कुकर रख सकते हैं कयोंकि जगन्नाथ पूरी के मंदिर के पास करोडो रुपयोंकी संपत्ति हैं । तो मैंने मंदिर के महंत को पूँछा की ये भगवान का प्रसादमाने वहाँ दाल-चावल मिलता हैं प्रसाद के रूप मेंवो मिट्टी के हांडी में कयूँ बनाते है आप में से जो भी जगन्नाथ पूरी गए हैंआप जानते हैं की वो मिट्टी की हांडी में दाल मिलती है और मिट्टी के हांडी में चावल मिलता है या खिचड़ी मिलती है । जो भी मिलता है प्रसाद के रूप में । तो उसने एक ही वाकय कहाँमिट्टी पवित्र होती है । तो ठीक हैपवित्र होती है ये हम सब जानते हैलेकिन वो जो नहीं कह पाया महंत वो मैं आपको कहना चाहता हूँकी मिट्टी ना सिर्फ पवित्र होती हैंबल्कि मिट्टी सबसे ज्यादा वैज्ञानिक होती हैं । कयोंकि हमारा शरीर मिट्टी से बना हैमिट्टी में जो कुछ हैंवो शरीर में हैऔर शरीर में जो है वह मिट्टी में है । हम जब मरते हैं नाऔर शरीर को जला देते हैंतो २० ग्राम मिट्टी में बदल जाता है पूरा शरीर७० किलो का शरीर८० किलो का शरीर मात्र २० ग्राम मिट्टी में बदल जाता है जिसको राख कहते है । और इस राख का मैंने विश्लेषण करवायाएक लेबोरेटरी में तो उसमें केल्शियम निकलता हैफोस्फरस निकलता हैआयर्न निकलता हैझिंक निकलता हैंसल्फर निकलता हैं१८ मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स निकलते हैंमरे हुए आदमी की राख में । ये सब वहीँ मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स है जो मिट्टी में हैं । इन्ही १८ मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स से मिट्टी बनी हैं । यही १८ मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स शरीर मैं हैजो मिट्टी में बदल जाता हैतो महंत का कहना है की मिट्टी पवित्र है वोवैज्ञानिक स्टेटमेंट हैबस्स इतनाही है की वो उसे एकसप्लेन नहीं कर सकता । एकसप्लेन कयूँ नहीं कर सकता आधुनिक विज्ञान उसने नहीं पढ़ा या उसको मालुम नहीं हैलेकिन आधुनिक विज्ञान का रिझल्ट मालूम हैपवित्रता! रिझल्ट उसे मालूम है विश्लेषण मालूम नहीं हैं । वो हमारे जैसे मूर्खों को मालूम हैंमैं आपने को उस महंत की तुलना से मुर्ख मानता हूँ कयूँ कयोंकि मुझे विश्लेषण करने में ३ महीने लग गयेवो बात ३ मिनट में समझा दिया की मिट्टी पवित्र है । तो ये मिट्टी की जो पवित्रता हैउसकी जो मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स की कॅपॅसिटी या कॅपॅबिलिटी हैउसमें से आई हैतो मिट्टी में दाल आई हैदाल आपने पकाई हैतो वो महंत कहता है की मिट्टी पवित्र है इसलिए हम मिट्टी के बर्तन में ही दाल पकाते हैभगवान् को पवित्र चीज ही देते हैं । अपवित्र चीज भगवान को नहीं दे सकते । अच्छामें वो दाल ले आयाऔर भुवनेश्वर ले के गयापूरी से भुवनेश्वर । भुवनेश्वर में ष्टस्ढ्ढक्र का एक लेबोरटरी है । कौंसिल ऑफ़ सायन्स एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च का लेबोरेटरी हैजिसको रिजनल रिसर्च लेबोरटरी कहते है । तो वहाँ ले गयातो  कुछ वैज्ञानिको से कहाँ की ये दाल हैतो उन्होंने कहाँ की हाँ-हाँ ये पूरी की दाल हैमैंने कहाँ की इसका विश्लेषण करवाना है  की दाल में क्या हैं तो उन्होंने कहाँ कीयार ये मुश्किल काम है६-८ महीने लगेगा मैंने कहाँ ठीक है फिर भीतो उन्होंने कहाँ की हमारे पास पुरे इंस्ट्रूमेंट्स नहीं हैजो-जो चाहिए वो नहीं हैआप दिल्ली ले जाए तो बेहतर है । तो मैंने कहाँ दिल्ली ले ज्ञान तो खराब तो नहीं होंगीतो उन्होंने कहाँ की नहीं होंगी कयोंकि ये मिट्टी में बनी है । तो पहली बार मुझे समझ में आया मिट्टी में बनी है तो खराब नहीं होंगी । तो मैं ले गया दिल्ली तकसच में ले गया । और भुवनेश्वर से दिल्ली जाने को आप जानते हैकरीब-करीब ३६ घंटे से ज्यादा लगता है । दिल्ली में दियाकुछ वैग्यनिकोने उसपे काम कियाउनका जो रिझल्ट हैजो रिसर्च हैजो रिपोर्ट हैवो यह है की इस दाल में एक भी मायक्रोन्यूट्रीअन्ट कम नहीं हुआपकाने के बाद भी ।  इस दाल में एक भी मायक्रोन्यूट्रीअन्ट कम नहीं हुआपकाने के बाद भीफिर मैंने उन्ही वैज्ञानिकोंको कहाँ की भैया प्रेशर कुकर की दाल का भी जरा देख लो तो उन्होंने कहाँ की ठीक हैवो भी देख लेते हैं । तो प्रेशर कुकर की दाल को जब उन्होंने रिसर्च कियातो उन्होंने कहाँ कीइसमें मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स बहुत ही कम हैंमैं पूँछा पर्सन्टेजवाइज बता दोतो उन्होंने कहाँ कीअगर अरेहर की दाल को मिट्टी के हांड़ी में पकाओ और १०० प्रतिशत मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स हैतो कुकर में पकाने में १३ प्रतिशत ही बचते हैं, 8। प्रतिशत नष्ट हो गये । मैं पूँछाकैसे नष्ट हो गयेतो उन्होंने कहाँ की ये जो प्रेशर पड़ा है ऊपर सेऔर इसने दाल को पकने नहीं दियातोड़ दिया,मोलेकुलेस टूट गए हैंतो दाल तो बिखर गई हैपकी नहीं हैबिखर गयी हैसॉफट हो गयी है । तो खाने में हमको ऐसा लग रहाँ है की ये पका हुआ खा रहें हैलेकिन वास्तव में वो नहीं है । और पके हुए से ये होता है कीमायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स आपको कच्चे रूप में शरीर को उपयोग नहीं आतेउनको आप उपयोगी बना लेइसको पका हुआ कहते हैआयुर्वेद में । जो सूक्ष्मपोषक तत्व कच्ची अरेहर की दाल खाने पे शरीर को उपयोग में नहीं आएँगेवो उपयोगी आने लायक बनाये उसको पका हुआ कहाँ जाता है या कहेंगे । तो उन्होंने कहाँ कीये मिट्टी के हांडी वाली दाल क्वालिटी में बहुत-बहुत ऊँची हैं बशर्ते की आपके प्रेशर कुकर केऔर दूसरी बात तो आप सभी जानते हैमुझे सिर्फ रिपीट करनी हैकी मिट्टी के हांड़ी की बनाई हुई दाल को खा लीजियेतो वो जो उसका स्वाद है वो जिंदगीभर नहीं भूलेंगे आप । इसका मतलब क्या है भारत में चिकित्सा का और शास्त्र पाककला का ऐसा विज्ञान विकसित हुआ हैजहाँ क्वालिटी भी मेंटेन रहेगी और स्वाद भी मेंटेन रहेगा । तो मिट्टी की हांड़ी में बनायीं हुई दाल को खाए तो स्वाद बहुत अच्छा है,और शरीर की पोषकता उसकी इतनी जबरदस्त हैकी दाल का सहीं खाने का मतलब उसमें हैं । तो जब में गाँव-गाँव घूमता रहता हूँ तो पूँछना शुरू कियातो लोग कहते है की ज्यादा नहीं ३०0-४०साल पहले सब घर मे मिट्टी की हांडी की ही दाल थी । मेरी दादी को पूछा तो मेरी दादी कहती है कीहमारी पूरी जिंदगीभर मिट्टी के हांडी की दाल ही खाते रहें तब मेरे समझ में आया के मेरी दादी को डाएबीटीस कयूँ नहीं हुआतब मुझे समझ में आया की उसको कभी घुटने का दर्द कयूँ नहीं हुआ ?, तब मुझे समझ में आया के उसके ३२ दाँत मरने के दिन तक सुरक्षित थे,कयोंकि हमने उसका अंतिम संस्कार कियाअगले दिन जब राख ही लेने गये तो सारे उसके दाँत ३२ के ३२ ही निकले । तब मेरे समझ में आया की ९४ वे साल की उम्र तक मरते समय तक चश्मा कयूं नहीं लगन उसकी आंखों पर । और जीवन के आखिरी दिन तक खुद आपने कपडे आपने हाथोंसे धोते हुए मरी । ये कारण है कीशरीर को आवश्यक मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स की पूर्ति अगर नियमित रूप से होती रहे तो आपका शरीर ज्यादा दिन तकबिना किसी के मदद लेते हुए,काम करता रहता है । तो मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स का पूरा सप्लाय मिला दाल मेंवो खाई थी उसने मिट्टी की हांड़ी में पका पका के । और ना सिर्फ वो दाल पकाती थी मिट्टी की हांड़ी में बल्कि वो दूध भी पकाती थी मिट्टी की हांड़ी मेंघी भी मिट्टी की हांड़ी से निकलती थीदही का मठ्ठा भी मिट्टी के हांड़ी में ही बनता था । अब मेरे समझ में आया की१००० सालो से मिट्टी के ही बर्तन कयूँ इस देश में आये हम भी अॅल्युमिनियम बना सकते थेअब ये बात में आपसे कहना चाहता हूँ की वो यह की हिंदुस्तान भी २००० साल पहले५००० साल पहले१०००० साल पहले अॅल्युमिनियम बना सकता थाअॅल्युमिनियम का रॉ मटेरियल इस देश में भरपूर मात्रा में है । बोकसाईटहिंदुस्तान में बोकसाईट के खजाने भरे पड़े हैं । कर्नाटक बहुत बड़ा भंडारतमिलनाडु,आंध्रप्रदेश बोकसाईट के बड़े भंडार है । हम भी बना सकते थेअगर बोकसाईट है तो अॅल्युमिनियम बनाना कोई मुश्किल काम नहीं हैलेकिन हमने नहीं बनाया कयोंकि उसकी जरूरत नहीं थी । हमको जरूरत थी मिट्टी के हंडे की इसलिए हमने मिट्टी की हांड़ी बनाई और उसी पे सारे रिसर्चएकसपेरिमेंट किये । इसलिए कुम्भारों की पूरी की पूरी जमात इस देश में खड़ी की गईतुमको भैया मिट्टी के ही बर्तन बनाने हैजो तुमसे बड़ा वैज्ञानिक कौन.. । अब ये कुम्भार जो इतने बड़े वैज्ञानिक है इस देश के जो मिट्टी के बर्तन बना के दे रहें है हजारों सालो से दे रहे है,हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिएहमने उनको नीची जाती बना दिया । हम कैसे मुर्ख लोग । वो नीचे कहाँ है जरा बताइएअगर प्रेशर कुकर की कंपनी जो बनाते है वो उचा आदमी है तो ये कुम्भार तो नीचा कैसे हो गया । ऊँचा-नीचाँ दाल दिया हमने इस देश मेंइसीने देश का सत्यानाश कर दिया । ये ऊँचा-नीचाँ कुछ तो अंग्रेजोने डालाकुछ अंग्रेजों के पहले जो मुसलमान थे उन्होंने डालाऔर कुछ अंग्रेजों और वो कुछ अंग्रेजोंके और मुसलमानों के जाने के बाद हम काले इंग्रजोने उसे ऐसा पक्का बना दिया की कुम्भार इस देश में बेकवर्ड कलास है । जो सबसे बड़ा वैज्ञानिक काम कर रहाँ हैंजो मिट्टी के बर्तन बना-बना कर आपके मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स कोआपके सूक्ष्मपोषक तत्वों को कम नहीं होने देने के लिए मिट्टी का सलेकशन करता है वो । आपको मालूम हैहर एक मिट्टी से बर्तन नहीं बनतेएक ख़ास तरह की मिट्टी हैवही बर्तन बनाने में काम आती है और एक ख़ास तरह की मिट्टी हैजो हांडी बनाती है । दुसरे खास तरह की मिट्टी से कुल्हड़ बनता हैतीसरे खास तरह के मिट्टी से कुछ और बनता है । ये मिट्टी को पहचाननाइसमें केल्शियम ज्यादाइसमें मग्नेशियम ज्यादा इसलिए हांड़ी इससे बनाओऔर इसमें केल्शियम,मग्नेशियम कम है इसलिए इसका कुल्हड़ बनाओये तो बहुत बहुत बारीक़ और विज्ञान का काम हैये कुम्भार कर रहें हैं हजारों सालों से कर रहें हैबिना किसी यूनिवर्सिटी में पढ़े हुए कर रहें है,तो हमें तो वंदन करना चाहिएउनके सामने नतमस्तक होना चाहिएकितने महान लोग हैं । दुर्भाग्य से  सरकार की कटागरी में वो बेकवार्ड कलास में आते है । तो ये जो मिट्टी के बर्तन की बात हुईवो मिट्टी की बात इसलिए कयोंकि मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स का सब कुछ सामान रहता है । इसलिए हमारे यहाँ मॅल्युमिनियम  के बर्तन या दुसरे मेटल के बर्तन का चलन कम हैभगवान् के लिए तो बनाते नहींधातुओं के बर्तन में खाना नहीं बनता । सभी मंदिरों में भोजन और प्रसाद ज्यादातर मिट्टी केतो आप भी आर लीजिये ये काम । प्रेशर कुकर निकालिएमिट्टी की हांडी ले आइये । तो आप कहेंगे जी दाल देर में पकेगीसिद्धांतही ही वही हैं दाल का तो । देर में खेत में पकी हैवो देर में घर में पकेगी । तो आप बोलेंगे की फिर टाइम मनैजमेंट कैसे होगा मई आपको सरल बता देता हूँ कीदाल को हांड़ी में रखकर ये बाकी सब काम करते रहिये । घंटे- डेढ़ घंटे में पक जाएगी । उतार लीजियेफिर खा लीजिये । घंटे-डेढ़ घंटे में आपके झाड़ू,पोछादुसरे बर्तन साफ़ करनाकपडे साफ़ करनाये जो भी करना हैपढनालिखनाबच्चोंको पढऩा वो करते रहियेदाल पक जाएगी । ये है बागभट जी का सूत्र कीऐसा भोजन नहीं करना जो बनाते समय,पकाते समयसूर्य के प्रकाश से वंचित हो और पवन के स्पर्श से वंचित हो । ये तभी संभव है,जब आप खुले बर्तन में खाना बनाएपवन भी अंदर आये और सूर्य का प्रकाश की किरने भी अंदर आये ।खुले बर्तन मेंऔर वो खुला बर्तन सबसे अच्छा मिट्टी का हांड़ी । आप कहेंगे जी मिट्टी के हांडी के बाद अगर कोई चीज है तो तो हमारे यहाँ एक मेटल बनता है जिसको आप लोग कहते हैअलॉय हैकांसा । कांसा आपने सुना हैशायद देखा भी होगा किसी के घर में । तो दूसरा सबसे अच्छा माना जाता हैं कांसा । तीसरा सबसे अच्छा माना जाता हैपीतल । अब ये कांसे और पीतल में भी हमने काम कर लिया कीहरिहर के दाल को कांसे के बर्तन में पकाए तो उसके सिर्फ ३ प्रतिशत मायक्रोन्यूट्रीअन्ट्स कम होते हैं९७ परसेंट मेंटेन रहते हाँ । पीतल के भगोने में पकाए तो ७ प्रतिशत कम होता है९३ पर्सेंट बचते हैंलेकिन प्रेशर कुकर में बनाये तो सिर्फ । प्रतिशत बचते हैंबाकी ख़तम होते हैं । अब आप तय कर लीजियेआपको लाइफ में क्वालिटी चाहिए तो आपको मिट्टी के हांडी की तरफ ही जाना पड़ेगा । क्वालिटी ऑफ़ लाइफ की अगर बात आप करेंगेमाने जो खा रहें हे वो पुरे शरीर में पोषकता देये क्वालिटी ऑफ़ लाइफ की अगर बात आप करे तो मिट्टी के हांडी की तरफ ही जाना पड़ेगामाने भारत की तरफ वापस लौटना पड़ेगाइंडिया से । अभी हम है इंडिया मेंजो बना दिया अंग्रेजोनेया बना दिया अमरिकियोनेइस इंडिया से निकल के भारत की यात्रा करनी पड़ेगी । और मैंने पिछले १-२ वर्षों मे ये बातें बहुत गावों में कहना शुरू किया हैतो इससे परिणाम पता है क्या की कुम्भारों की इज्जत बड़ी हैं गाँव में । गाँववाले समझते हैं की ये तो कोई बड़ा काम कर रहें हे हमारे लिएऔर में मानता हूँ की मेरे व्याखयान की अगर कोई सार्थकता है तो वो यह की कुम्भारों की इज्जत इतनी बढ़ जाये की वो पंडीतों के बराबर आ जाये कयोंकि वो किसीसे नीचे नहीं हैकयोंकि वो किसी से छोटे नहीं है । भले वो मिट्टी के बर्तन बना रहें हैबहुत वैज्ञानिक काम वो कर रहें है । और मजे की बात है की वो हांडी आपको बना कर २०-२५ रुपयों मे ही दे रहे हैंप्रेशर कुकर तो २५०-३०० रुपयों का है । और सबसे मजे की बात की ये हांडी जब ख़तम होगीमाने इसकी लाइफ पूरी हो जाएगी तो ये हांडी फिर मिट्टी में मिल जाएगी और फिर वही मिट्टी से हांडी बनाई जाएगीदुनिया में ऐसी कोई वस्तू नहीं हैप्रेशर कुकर के बारे में तो नहीं कह सकते । बायोडिग्रेडेबल है । तो आप कोशिश करे की अपने घर में परिवर्तन करे । अब में आखिरी बातआज की कह रहाँ हूँ वो यह की मैंने पिछले ख वर्षों मेंमें होमियोपॅथी की भी चिकित्सा करता हूँ । तो बहुत सारे मरिज मुझे फ़ोन करते हैं की राजीव भाई येये । तो मैंने कुछ मरिज को खांसकर कहाँ की देखो भैय्याआपको में कोई दवा नहीं दूंगा तो कहने लगे की बीमारी कैसे ठीक होगी तो मैंने कहाँ की मैं एक ही काम करोमिट्टी की दाल खाना शुरू करोमिट्टी की हांडी में पकाई हुई दाल खाना शुरू करोचावल खाना है तो मिट्टी के हांडी का । तो कहने लगे की राजीव भाई कौन करेगा ये सब तो मैंने कहाँ की आप की बीवी करे या आप करो । अगर जिंदगी चाहिए तो झक मार के आप करो नहीं तो अमरीका जाएकनाडा जाएजर्मनी जाएलाखों रुपये खर्च करोफिर भी झक मार के वापस आ जाएडॉक्टर कहेगा इलाज नहीं । तो आप देख लोतो जो गंभीर मरीज हैतो आप जानते है कुछ भी करेंगेजो आप कहेंगे ।तो मेरे पास डायबिटीस के कुछ क्रोनिक मरिज हैबहुत क्रोनिक जिनका यूनिटशुगर यूनिट ४८० से ऊपर हैऐसे १०० से ज्यादा मरीज हैकुछ गुजरात मेंकुछ राजस्थान में है और कुछ बम्बई में । मैंने उन को कहाँध्यान से मिट्टी का बर्तन ले आओ और शुरू करो । अब बर्तन लाने में तकलीफ हुईतो कुम्भार को ढूँढना पड़ालेकिन मिल गया । वो ८ से ९ महीना हो गयाऔर उन्होंने नियमित रूप से मिट्टी की दालमिट्टी का चावलमाने हांडी की दालहांडी का चावलहांडी की खिचड़ी नियमित रूप से खां रहें है और अब तो उन्होंने मिट्टी का तवा भी ले आया अपने घर में,  रोटी बनाने के लिएबाजरी की रोटी बहुत अच्छी बनती है इस तवे पेतो रोटी भी उसी की खा रहें है । ८ महीना के बाद सबका शुगर टेस्ट करवाया है तो वो ४८० यूनिट वाला अभी १८० यूनीट पे है । बिना किसी मेडिसिन केबिना किसी इंजेकशन केबिना किसी टॉनिक के । और होमियोपॅथी की कोई दवा नहीं दी मैंने उन को । कुछ लोगों कोज्यादा परेशान से थेदवा भी दो दवा भी दोमैंने उन को प्लॅसिबो दे दिया । प्लॅसिबो आप समझते हैखाली गोलीदवा नहीं डालीतो मरिज को लगता है की में दवा खा रहाँ हूँदवा खा के अच्छा हो रहा हूँ,तो मुझे मालुम है की वो कोई दवा नहीं हैवो प्लॅसिबो है । वो अच्छा हो रहा हैउस मिट्टी की दाल खा केमिट्टी का चावल खा केमिट्टी की खिचड़ी खा के । रिझल्ट ये हैतब मैंने मान लिया की बागभट सच में महान आदमी है । वो एक सूत्र लिख गए की आप ऐसा भोजन मत करो जिसमें सूर्य का प्रकाश ना जाये और पवन का स्पर्श न होतो वो आपके लिए अमृत तत्ता्वा है,भोजन नहीं है वो अमृत जैसा है । एक एक सूत्र पूरा होता हैसाडे आँठ का समय हो गया है,आगे कल दूसराआगे तीसराऐसे-ऐसे करते करते जो सबसे जरूरी १५ महत्वपूर्ण सूत्र है वो बताऊंगाआभार । धन्यवाद !
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