मंगलवार, 4 अगस्त 2015

स्वदेशी चिकित्सा (राजीव दीक्षित) भाग 2

स्वदेशी चिकित्सा (राजीव दीक्षित) भाग 2


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कल मैंने आपसे ज्यो बाते कहीं थीउनमे से बहुत सारी बाते आपको याद होगीशायद आपने लिखी भी होंगी । मुझे कल एक जानकारी दी बाबूजीनेवो जानकारी आप सब तक पहुंचेतो उन्होंने जानकारी दी कीएक बार वो ज्टै ग्रुप है न ज्टैजो यहाँ काचेन्नई का सबसे बड़ा ग्रुप है और शायद भारत के सबसे बड़े ग्रुप में उनकी गिनती है । उनके घर में भोजन करने गए थेऋ ये बात आपके  ध्यान में इसलिए लाने की जरुरत है कीज्टै ग्रुप जो हजारो करोड़ के एम्पायर का मालिक है उनके घर में मिटटी के  बर्तन इस्तेमाल हो सकते हैतो आपके घर में भी हो सकते है । माने हमको ये बहाना न मिले की मिलते नहीं है जीसमय बहुत लगता है जीक्या उसको खटराहट करने का.. ये जो मन के अन्दर की हमारी रूकावटे हैये कभी नहीं आये इस दृष्टी से सुधरण का महत्व हैये उदाहारण में हिन्दुस्थान के ऐसे हजारो लोगों के बारे में बता सकता हूँ जिनको रोज आप अखबारों मे देखते हैन्यूजपेपर में देखते हैटी.व्ही. पर देखते हैज्यादातर के घरों मे मिटटी के बर्तन रसोइघर मे इस्तेमाल होते है । आपको सुनकर हैरानी होगी । ध्ीरुभाई अंबानी के घर में रोटी हमेशा मिटटी के तवे पर बनती है । एक बार मुझे भी मौका मिलाउनकी र्ध्मपत्नी श्रीमती कोकिलाबेन से बात करने का । की आप ये मिटटी के तवे पर रोटी क्यूँ बनाती है ये तो पिछड़ेपन की निशानी हैये ऐसा मैंने जान-बूझकर बोला । हम तो ऐसा मानते है की आप 18 वी शताब्दी में जा रहें है । मिटटी के बर्तन माने तवे की रोटी बना केतो कोकिला बेनने कहाँजो जो कहेमुझे उसकी पर्वा नहीं । मुझे ये रोटी पसंद है और हमारे घर के सब लोगों को पसंद है इसलिए हम सब मिटटी के बर्तन में ही रोटी बनाते है । पुरे गुजरात में आप जायेंगे,राजस्थान में आप जायेंगेअभी भी एक-दो लाख नहींकरोडो लोग हैंजो मिटटी के तवे पे रोटी बना रहे हैं खा रहें है । और में विनम्र रूप से ये आपसे कहना चाहता हूँ कीवो आपसे ज्यादा स्वस्थ हैऔर आपसे ज्यादा तंदुरुस्त है । अगर हमे अपना स्वस्थ्य और तंदुरुस्ती बना के रखनी हैबचा के रखनी है तो ये बाते आपको आपके जीवन में आचरण में उतारने की आवश्यकता है । और अगर ये बाते आपके आचरण में आती हैकितनी बड़ी चीज होती है इस देश मेंकी मान लो अगर हिन्दुस्थान में 112 करोड़ लोग है, 112 करोड़ लोगों मे 20 करोड़ परिवार है, 20 करोड़ परिवारों मे 200 करोड़ रसोईघर हैअगर 20 करोड़ घरों मे मिटटी का तवा आने लगे, 20 करोड़ तवा बनाने लगेगा और लाखो कुंभारोंको रोजगारी मिल जाएगीजो बेरोजगार बैठे है जिनके पास काम नहीं । अगर मिटटी की हांडी से ये 20 करोड़ परिवारों मे दाल बनने लगेगीचावल बनने लगेगातो करोडो कुंभारोंको हांडी बनाने का काम मिल जायेगा जो आज बेकार बैठे है । और हिन्दुस्थान में कुंभारोंकी संख्या लगभग उतनीही हैजितनी ब्राम्हणों की है । सरकार के आकडे हैं । 18 प्रतिशत कुंभार है और कई ऐसी जातियां है और 18 प्रतिशत ब्राम्हण है । तो इतनी बड़ी समाज को अगर हम रोजगार दे पाते हैतो बहुत बड़ी बात हैं इसलिए अर्थव्यवस्था को भी मदद होती है आपका स्वस्थ्य तो अच्छा रहताही है और मेरी मन की बात है वो में आपसे शेअर करना चाहता हूँ की मिटटी से आपका जुडाव रहता है । मिटटी से जुड़े रहना ये सबसे बड़ी बात मानी जाती है । हम पता नहीं कहाँ-कहाँ से चेन्नई में आयेकोई बिहार से आयाकोई राजस्थान से,कोई गुजरात से लेकिन अक्सर मन में आता है की अपनी मिटटी से जुड़े रहें । तो अपनी मिटटी से चेन्नई जैसे शहर में जुड़े रहने का एक ही रास्ता है की आप इन मिटटी के बनाये हुए बर्तनों का इस्तेमाल करे । तो स्वास्थ्य की दृष्टी से तो बहुत अच्छा है और अर्थव्यवस्था के भी बहुत अच्छा है । मैंने कल जो बातें कही थी उनको 1 मिनिट में पिफरसे रिपीट करता हूँकल मैंने एक ही सूत्रा आपके सामने विश्लेषण किया था बागवट ट्ठषी का लिखा हुआ की जिस भोजन को बनाते समयपकाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश ना मिले वो भोजन को कभी नहीं करना । विश्लेषण में से शुरू हुआ की पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश कहाँ कहाँ नही मिलतातो सबसे पहली चीज निकल के आईप्रेशर कुकर ! प्रेशर कुकर का खाना ना खाए कल मैंने बहुत विस्तार से बता दियाआज सिर्पफ दोहरा रहाँ हूँ याद रखने के लिए । उसके विकल्प के रूप मे मैंने आपसे कहाँ की मिटटी के बर्तनों मे खाना बनाये । मिटटी के बर्तन में खाना बनाने के पीछे जो बड़ा वैज्ञानिक कारण हैकी ये जो मिटटी हैइसमें 18 तरह के  माइक्रोन्यूट्रीअन्ट्स है ये बात हमेशा आप याद रखिये । कॅल्शियम मिटटी में हैआयर्न मिटटी में हैकोल मिटटी में हैसल्पफर मिटटी में हैआपके शरीर को हर दिनहर दिन 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरुरत होती है । 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरुरत होती है जिनको आप अलग-अलग भाषाओं मे बोल देते है की हमको प्रोटीन चाहिएहमको व्हिटॅमीन चाहियेहमको पफैट्स चाहिए ये डॉक्टर कहता है ना आज की भाषा मेंकी आपको प्रोटीन की कमी हो गयी हैआपको र्काबोहायड्रेट चाहिएआपको पफैट्स ज्यादा चाहिए तो ये जो कुछ भी चाहिए इनको रसायनशास्त्रा की भाषा में मैंने आपको समझाया कल और आज कह रहाँ हूँ की ये 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व है जिनको मिल जाने से आपके भोजन को संपूर्णता मिलती हैमाने भोजन र्पूण होता है । और संयोग से या प्रकृती के कुछ ऐसै नियम है की ये सारे सत्व तो मिटटी मे हैइसलिए मिटटी के बर्तनों का उपयोग आपके लिए बहुत ही अच्छा है । दूसरा मैने आपको कारण बताया था विज्ञान काजिस वस्तू को खेत मेकृषिभूमी मेपकने मे जितना ज्यादा समय लगता हैरसोईघर मे भी उसे ज्यादा समय मे ही पकाना चाहिएक्योंकि मैने आपसे कहाँ की खेत की मिटटी मे अरेहर की दाल खडी हैसात-आठ महिने मे तैयार होती हैसात-आँठ महिने मे उसमे ध्ीरे-ध्ीरे प्रोटीन लियाप्रोटीन के रुप मे कुछ केमिकल्स लिए मिटटी सेये सात-आँठ महिने तक लेते रहेऋ अरेहर की दाल के दानेउसकी जडों की मदद सेतने की मदद से । अब वो जो दाल तैयार हो गयी हैउसको पकाने मे भी समय लगना चाहिए । जल्दी से आपने उसे पका दिया तो उसके अंदर जो प्रोटीन्स गये है,जो बहुत सारे तरह के मायक्रोेन्युन्युट्रिन्ट्स मिटटी से अंदर गये है इनको वापस आपके शरीर मे आने की संभावना नहीं है वो टूटेंगेतो आपके लिए उतने उपयोगी नहीं हैमैने आपसे कहाँ की प्रेशर कुकर मे बाष्प का दबाव इतना ज्यादा होता है कीदाने टूटते हैपकते नहीं है । और टूटे हुए दाने गरम पानी के नीचे सेआपको ऐसा लगता है की वो पक गये है । वो पके नहीं है वास्तव मेंवो सॉफ्रट हो गये हैमुलायम हो गये है । पकने से मतलब मैने आपको बताया था किउसके अंदर जो कुछ भी प्रकृति ने दी है पोषकतावो आपको मिलने के स्थिति मे आ गयी है की नहींतब आप उसको कह सकते है की ये पक गया है । चाहे वो गेहूँ का दाना होया अरेहर का दाना हो या उअर का । तो ये बात आपके ध्यान में आती है की पकना मतलब क्या होता है,और उबलना मतलब क्या होता है । एक शब्द है उबलनाऋ उबलना होता है प्रेशर कुकर मेपकना होता है मिटटी के हांडी मे । क्योंकि मिटटी के हांडी मे ध्ीरे-ध्ीरे पकती है हर चीजकारण क्या है मिटटी जो है नाउष्मा की कुचालक है । आप मे से जो विद्यार्थी हैवो जानते हैऋ बॅड कंडक्टरउष्मा की कुचालक है । माने मिटटी को कोई चीज जल्दी उष्मा के रुप में मिलेगी नहीं,ध्ीरेही-ध्ीरे मिलेगी । तो ध्ीरेही ध्ीरे पिफर दाल पकेगी । और दाल पकेगी तो ध्ीरे-ध्ीरे उसके मायक्रोेन्युन्युट्रिन्ट्स दानों के साथ आऐंगे । पिफर वो आप खाऐंगे तो आपके शरीर को पूरी पोषकता मिलेगी । और भगवान ने जो चीजे बनाई हैप्रकृति ने जो चीजे बनाई हैउनकी पोषकता आपको मिले इसलिए बनाई है । ये जो दाल बनी है नंआप अगर ध्यान से देखे तो दाल का उपर का हिस्सा हैजो आप खा रहे हैपफल के रुप मेंऋ बीच का हिस्सा जानवर खा रहें है । तो भगवान नेप्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है किगेहूँ हैऋ गेहूँ के उपर का हिस्सा वो आप खा रहे है । बीच का जो बचा हुआ हिस्सा हैजिसको तना कहते है वो जानवर खा रहे है और अंत का बचा हुआ जो हिस्सा होता हैजिसको आप जड कहते हैवो ध्रती के लिए होता हैमिटटी के लिए होता है । प्रकृति ने बहुत सोच कर ये सब बनायाभगवानने बहुत सोचकर बनाया । मनुष्य के लिए एक हिस्साउसमे से थोडा आप चाहे तो पक्षीयों को भी खिला सकते हैतो मनुष्य और पक्षियों के लिए एक हिस्साजानवरों के लिए दूसरा हिस्सा और प्रकृति को ध्रती या मिटटी के लिए तिसरा हिस्सा है । हरेक पफसल में यही देखेंगे आप तो जो आपके लिए बनाया हैभगवान ने वो बहुत सोच-समझकर बनाया हैजो जानवरों के लिए बनाया है वो भी बहुत सोच-समझकर है और मिटटी के लिए भी । तो उसका अगर जीवन मे पफायदा उठाएँ तो बहुत अच्छा होगाऔर बागवट जी इसी के लिए शायद ये सूत्रा लिखकर गये । तो कल बहुत ज्यादा बात हुईप्रेशर कुकर के बारे में । अब में थोडीसी बात करता हूँकल से जुडी हुई रेÚिजरेटर के बारे में । रेÚिजरेटर एक ऐसी वस्तू हैजिसमे रखी हुई कोई भी वस्तू को सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पष नहीं मिलेगा । आप जानते हैऋ रेÚिजरेटर ये जो काम करता हैउसके कुछ बुनियादि सिध्दांत है । वो क्या सिध्दांत है आपके रुम का जो टेम्प्रेचर हैआपके कमरे का जो तापमान हैउससे नीचे का तापमान वह पैदा करेगा । अब ये प्रकृति के मदद से नहीं हो सकता क्योंकि प्रकृति की मदद से आपका जो रुम टेम्प्रेचर है, 30,35, या 22,25 डिग्री हैतो प्रकृति के विरुध्द जाकर उसको काम करना पडेगा । तो उसके लिए कुछ एक्स्ट्रा एपर्फोट्स लगेंगेतो ऐसी गैस रसायनशास्त्रा मे जो तापमान को कम करने मे काम मे आती हैउन गैसों को इस्तेमाल रेÚिजरेटर करेगा । और एक-दो नहींऐसी 12 गैसों का इस्तेमाल रेÚिजरेटर करता हैजिनको विज्ञान की भाषा मे सी.एपफ.सी. कहते हैजिसमे क्लोरिन भी हैपफलोरिन भी है और कार्बनडाय ऑक्साईड भी है । अगर आप रसायनशास्त्रा की  डिक्शनरी निकालके देखेंगेआप मे से जिनहोंने पढा हैऋ केमिस्ट्री,उनके लिए तो आसान हैजिनहोंने नहीं पढा वो डिक्शनरी निकालके देखेऋ क्लोरिन ! क्लोरिन के सामने लिखा हुआ हैजहर ! सीध्े डिक्शनरी देखेटेक्स्ट की बात नहीं कर रहाँ हूँएक डिक्शनरी खरीद लेकेमिस्ट्री की और क्लोरिन शब्द देखे तो सामनेही लिखा हैजहर ! और क्लोरिन देखेतो लिखा हैऋ आत्यंतिक जहर ! कार्बनडाय ऑक्साईड तो जहर का बाप ! आप जानते है की शरीर की यह जो श्वासोच्छवास की क्रिया हैप्राणायम क्रिया जिसको आप कहते हैइसमे आप हमेशा कार्बनडाय ऑक्साईड छोडते है । ये क्यूँ छोडते है रखलिए अंदर अगर इससे इतनाही प्रेम है तो रेÚिजरेटर को लाकर आपने घर के सबसे अच्छे स्थानपर रखा हैजो हर समय कार्बनडाय ऑक्साईड के साथ खेल रहा हैतो आप अंदर की कार्बन अंदरही रख लिजिएबाहर मत छोडिए बहुत प्रेम है आपको इससे... आप मर जाऐंगे । आप मर जाऐंगेशाम नहीं लगेगीरात नहीं लगेगी मिनिट मे मर जाऐंगे । इसलिए प्रकृतिने व्यवस्था ऐसी बनाई है की कार्बनडाय ऑक्साईड जो आपको मार डालेगीउसे बाहर निकालते रहना है । अगर ये बाहर निकले तो आप स्वस्थ रहें ! कार्बनडाईऑक्साइड जैसी ही खराब गैसों में क्लोरिन और क्लोरिन की गिनती होती है । अब ये तीनो कार्बन से मिला हुआक्लोरिन से मिला हुआफ्रलोरिन से मिला हुआ, 12 गैसएकसाथ रेÚिजरेटर छोड़ता है । सी.एपफ.सी 1, सी.एपफ.सी.2 ऐसे सी.एपफ.सी. 12 तक बारह गैसे एक साथ छोड़ता है । 24 घंटे छोड़ता हैक्योंकि वो चालू हैं आपके घर में । अब इसमें आप ने जो कुछ भी रखा है वो सब इन गैसों के प्रभाव में आटा हैआप बोलेंगे जीहमने तो भोजन को ढँककर रखा हैकितना भी ढँककर रखिये क्योंकि गैसों का असर इतना तीव्र है की स्टील को तोड़कर निकल जानेवाली गैसे हे ये । स्टील के मोठे पते को भी रखे तो भी उससे निकलके जानेवाली गैसे है । हाई प्रेश्शर ! तो अगर आप इतने सारे जहारिलियुतफ गैसों में 2,3,5 घंटे रखकर पिफर खा रहे हैतो मापफ कीजिये आप भोजन नहीं जहर खा रहे है । बस जहर में अंतर इतना है की एक जहर तात्कालिक है और दूसरा है दीर्घकालिक । दीर्घकालिक जहर थोडा थोडा खाए तो 5-7 साल में पता चला देगातात्कालिक खाए तो एक मिनिट में आपको पता चल जाएगा । इसलिए मेरी आपसे विनंती हैघर में अगर रेÚिजरेटर लिया है इसका इस्तेमाल कम करिएसबसे अच्छा है बंद करिए । और मेरी बात माने तो बेच दीजिये । कोई भी सेकण्ड हैण्ड खरीद लेगा । और नहीं बिकता तो लोहे के भाव में बेच दीजियेतो भी आप पफायदे के सौदे में रहेंगे क्योंकि इसके रखे रहने सेजो मन का लालच हैलालच पता है क्या अगर ये है तो कुछ करो इसका.. तो कुछ करो इसका.. तो कुछ तो करो’ के इस चक्कर में हम जबरदस्ती ज्यादा-ज्यादा खाना बनाते हैआयर इसमें रखके जाते है । सबेरे का शाम कोशाम का अगले सवेरेदिन का शाम को ये चक्कर चलता रहता है । और ये चक्कर में खाने की पोषकता का नाश होता रहता है । और में आपको विनम्रतार्पूवक दूसरी जानकारी देना चाहता हूँ कीरेÚिजरेटर का आविष्कार हुआ था तो उसके पीछे कारन क्या था हर वास्तु के आविष्कार के पीछे कारण होता है । तो इसका कारण थाठन्डे देशों कीध्ंदे देश है अमेरिका,कनाडाजर्मनी, Úांसस्वित्झरलैंड,डेनमार्कर्नोवे इन देशों की आबोहवा । आप जानते है की ये ठन्डे देश है । -40 सेल्शियस सेल्शियस तापमान होता है और ज्यादा से ज्यादा प्लस में जाए तो 15 से 20 सेल्शिअस होता है । 15-20 से -40 सेल्शिअस टेम्प्रेचर का जो व्हॅरिएशन हैवो बहुत तकलीपफ देनेवाला व्हॅरिएशन है । आप कभी अनुमान करने के लिए एक प्रयोग करेमैंने किया थामैंने प्रयोग किया था की,एक बार मैंने बरपफ का तिल्ली चारो तरपफ से लगाकर उसके बीच में लेट गया । तो 15 मिनिट बाद मेरा शारीर अकाद गया । 15 ही मिनिट मेंजब की मैंने खूब प्राणायाम और ये सब किया, 15 मिनिट में शरीर अकड गया । और उस दिन मैंने मेरे बायोकेमिस्ट्री को ऑर्ब्जव कियातो में बहुत परेशां हो गया । पिफर मैंने सोचना शुरू किया कीउन लोगों का क्या-क्या होता होगा,जो इसी बरपफ के तापमान में 6-6 महीने सोते हैरहते हैलेटते हैउनका क्या होता होगा ? 8-8महीने ध्ुप नहीं निकलतीटेम्प्रेचर नहीं होता और यही परिस्थिति मेंउनको सोना पड़ता हैतो कितनी तकलीपफे होती होगी उनके शरीर कोऔर शरीर के साथ उनके भोजन कोक्योंकि शरीर भोजन से ही है । तो भोजन से ये सारी तकलीपफे थोड़ी कम हो सके उसके लिए वहां के वैज्ञानिकोने रात-दिन मेहनात करके ये मशीन बनाई । और उन्होंने कहाँ कीजो टेम्प्रेचर वो प्रकृति के रेग्युलेशन में हैहम उसे कण्ट्रोल नहीं कर सकतेकुछ एरिया ऐसा बनाये जिसे हम कण्ट्रोल कर सके । हम जब चाहे तब टेम्प्रेचर को बड़ा सकेघटा सकेइसके लिए रेÚिजरेटर बना । तो ये उनकी मजबूरी से निकली हुई मशीन हैकोई उन्होंने बहुत प्रोग्रेस करके ये मशीन बनाया ऐसा नहीं हैऋ उनकी मजबूरी है और उससे ये निकला । उनकी सबसे बड़ी मजबूरी ये है की अलोपथी में कई दवाएँ ऐसी हैजो ज्यादा तापमान में खतम हो जाती है और कम तापमान में भी । बहुत सारी दवाएँ अलोपथी में ऐसी है जो है टेम्प्रेचर पे खतम हो जाती हैमाने उन दवओंका असर नही रहता । लो टेम्प्रेचर पे भी खत्म हो जाती है । तो उन दवाओंको रखने के लिए की टेम्प्रेचर हमारे कंट्रोल में रहे इसलिए Úिज बना । वो पानी रखने के लिए नहीं बना है,दाल रखने के लिए नहीं बनासब्जी रखने के लिए नही बनादवाएँ रखने की लिए बनाऋ और आपको एक जानकारी और दूँ की यूरोप में आविष्कार किया सबसे पहले तो मिलिटरी के लिए इसका उपयोग हुआ । और मिलिटरी के लिए ही ये बना क्योंर्कि आमी के जो सैनिक है वो चुस्त,दुरुस्त,तंदुरुस्त रहने चाहिएजरुरत हो तो दवाएँ उस टेम्प्रेचर की मिलनी चाहिए इसके लिएÚिज आयाये हमारे लिए नहीं बना । हिन्दुस्थान में इसकी कोई आवश्यकता नहीं और यूरोप में एक और दूसरी समस्या हैजहाँ 6-8 महीने बरपफ पड़ेगी वहाँपर हर चीज जरुरत की समय पर नहीं मिलेगी । मान लीजिये ये जो समय है न नवम्बर,दिसंबर,जनवरी,पफरवरी,मार्च ये सब वहां बरपफ का समय है । और इस बरपफ के समय पर वो चाहे की आलू चाहिए तो नहीं मिलेगा,टमाटर चाहिए तो नहीं मिलेगाभिंडी चाहिए नहीं मिलेगीगाजर चाहिए.. कुछ नही मिलेगा उनको,बरपफ मिलेगी ! खा-लो तो खा लोनहीं तो उसको गरम करके पानी बना लो । और कुछ नहीं मिलेगा तो वो कुछ नहीं मिलेगाउस समय कुछ चीजों को स्टोअर करके रखने के लिए रेÚिजरेटर है । जब मिल रहा है तो इसको इकठ्ठा कर लो और Úिज में स्टोअर करके रखो । अब गलती तो ये हो गयी हम लोगों से की हमने बिना सोचे-समझे उनकी नक्कल करके ये ले आया । और ऐसे लोगों के घर में भी ले आया जो केमिस्ट्री बहुत अच्छे से जानते है । जो क्लोरो-फ्रलोरो कार्बन को रोज पढ़तेपढ़ाते है उनके ही घरों में Úिज ! मै कहता हूँ की प्रोपफेसर साहब,आप ये क्या गजहब कर रहें हैआप तो जानते है,  तो कहते है क्या करेपत्नी नहीं मानतीबच्चे नहीं मानते । तो आपकी केमिस्ट्री आपने पत्नी को क्यूँ नहीं समझाई अभी तक । तो कहते है की समझती नहींतो मैंने कहाँ की आप प्रोपफेसर क्यूँ हो गए जो आप अपनी पत्नी को केमिस्ट्री नहीं समझा सके तो बच्चों को क्या समझाएँगे आप । अपने बच्चों को नहीं तो दूसरों के कैसे समझाएँगे तो मुश्किल ये है की हम विज्ञान पढ़ रहें है लेकिनवैज्ञानिक नहीं हो रहें है । अपनी जिंदगी में नितांत विज्ञान के विरुध्द काम कर रहें है । प्रकृति और विज्ञान के विरुध्द अगर कोई सबसे खराब चीज अगर हमर घर में है तो प्रेशर कुकर के बाद यही हैरेÚिजरेटर ! तो मेरी विनंती है कीआप इसका रखा हुआ खाना मत खाइए क्यूँकी वो जहर हो जाता है । पिफर आप बोलेंगे कीक्या करे एक नियम बना लीजिये अपने जिंदगी मेंजो हमारे दादा-दादीनाना-नानी के समय का बनाया हुआ है और शायद बागवट ने भी ये नियम लिखा है बहुत रेखांकित करके । वो ये कहते हैऋ अब मै दुसरे नियम पर आ रहाँ हूँपहले नियम खतम हो गए हैं अब में दुसरे नियम पे आ रहाँ हूँ । बागवट जी ये कहते है कीकोई भी खाना जो बनाकोई भी खानादाल बनीचावल बनारोटी बनीबनने के 48 मिनिट के अन्दर इसका उपभोग हो जाना चाहिए ये दूसरा नियम है । दूसरा सूत्रा हैऋ कोई भी खाना बनाबनने के 48 मिनिट के अन्दर उसका उपभोग माने कन्जम्पशन हो जाना चाहिए । रोटी बनीबन गयीअब 48 मिनिट के अन्दर खा लीजियेचावल बन गया 48 मिनिट के अन्दर खा लीजियेदाल बन गयी 48 मिनिट में खा लीजियेखीर बन गयी 48 मिनिट में खा लीजियेऋ ये 48 मिनिट का चक्कर क्या हैं ? 48मिनिट ! 40 मिनिट भी नहीं, 50 मिनिट भी नहींऋ 48 मिनिट ! तोबागवट जी का जीवनी जब पढ़ा तो मुझे पता चला कीवो बहुत बड़े मॅथेमेटीशियन भी थे । आर्युवेद के चिकित्सक थे ही,मैथमेटीक्स के बड़े पंडित थे । उन्होंने जो कॅल्कुलेशन किये है वो इसी तरह के है, 42 मिनिट । अब ये मिनिट है वो मैंने जोड़ा हैबागवट जी ने लिखा है, 48 पल । हमारे यहाँ होता है नपल होता हैक्षण होता हैप्रतिपल होता है । हमारे यहाँ जो समय की नापने की डिग्रियां हैं पल है,क्षण हैप्रतिपल है. वगैरा..वगैरा.. । ये मिनिट का जो चक्कर हैये तो अमेरिकायूरोप से आया हैये मिनिट आपको समझता हैपल समझता नहीं इसलिए मैंने इसमें जोड़ दिया है । हालात की,एक मिनिट एक पल के इतना नहीं होता हैएक पल एक मिनिट से थोडा कम है । अगर बागवट जी के कॅल्कुलेशन में करू तो 1 मिनिट  का 53 व हिस्सा एक पल हैऔर बागवट जी कहते है की भोजन बनने के बाद 48 पल के अंदर इसे आप कन्जूम कर लीजियेतो मिनिट मैंने केल्कुलेट किये तो वो 48 मिनिट के आसपास आता है । ये कॅल्कुलेशन है । तो जो बना हुआ भोजन है वो आप 48 मिनिट में कर लीजिये । वो आपके लिए सबसे ज्यादा पोषकता देने वाला है । जोउसके बाद आप भोजन करे तो ध्ीरे-ध्ीरे उसकी पोषकता कम होती जाती है । अगर आपने 6 घंटे के बाद कियातो पोषकता कम हो जाएगी, 10 घंटे के बाद और कम हो जाएगी, 12 घंटे के बाद तो बिल्कुल ना के बराबर हो जाएगीऔर 24 घंटे के बाद तो खतमबासी हो गया । बासी शब्द है नये बागवट जी का है । 3,500 साल पहले ये शब्द थाबासी हो गया जी । और वो कहते है की ये बासी भोजन ओ जानवरों को खिलाने लायक भी नहीं हैआप कैसे खा रहें है बागवट जी ने एक अच्छी मजे की बात लिखी हैउन्होंने कहाँ कीहमारे देश में 365 दिन का जो चक्र है, 1र्वष काइसमें एक ही दिन ही ऐसा हैजिस दिन आप ये खा सकते है, 364 दिन नहीं खा सकते । एक ही दिन खा सकते हैऔर वो एक दिन का उन्होंने बहुत पक्का कॅल्कुलेषन किया है की उस दिन शरीर के वात और पित,कपफ की अवस्था क्या होती हैउसके अनुसार बासी भोजन चलता है । तो मैंने जब ध्यान दियातो मुझे पता चला कीवो दिन हमारे देश में एक त्यौहार आता हैउसको मेरी माँ कहती है बासोड़ाऋ आप पता नहीं क्या कहते है । एक ही त्यौहार है अपने देश मेंजिस दिन हम बासी खाना ही खाते है और ये जो त्यौहार है,  दिन पड़ता है वो र्कातिकअग्ययनपूसमाघ के हिसाब से उसका जो दिन पड़ता हैबागवट जी के हिसाब से वही दिन पड़ता है । तब मेरे समझ में आया कीइस देश के त्योहारों के पीछे वैज्ञानिकता है । त्यौहार ऐसे ही नहीं तय हो गएइस दिन दिवाली होगीइस दिन ये होआउस दिन वो होता होगा इसके पीछे कुछ कॅल्कुलेशन हैबागवट जी का कॅल्कुलेशन है कीशरीर के तीन दोष हाँआप सब जानते है वापफ,पित और कपफ इनपर आगे में विस्तार से बात करूँगा यहाँ पर बस रेपफरन्स की लिए कह रहाँ हूँ । तो ये दोष समान स्थिती में रहें तो हम निरोगी रह पाएइनकी स्थिती उपर-निचे हो जाये पित बढ़ गयावात और कपफ वो भी कम हो गया । इनकी स्थिती उपर-निचे हो जाये तो रोगी होते है आप । तो एक दिन ऐसा आता है 365 दिन में से एक दिन ऐसा आता है कीये वातपितकपफ की स्थिती बिल्कुल ऐसी होती हैजो वीचित्रा लगती है । होनी नहीं चाहिए ऐसी स्थिती हो जाती है । तो बागवट जी कहते है की उस स्थिती को कंट्रोल में लाने के लिए बासी खाना ही चाहिएजिसकी पोषकता पूरी चली गयी होक्योंकि एक दिन ऐसी स्थिति आती है उस दिन शरीर को प्रोटीन नहीं चाहिएबिल्कुल नहीं चाहिए । प्रोटीन तब खतम होगाजब खाना पुराना हो जायेतब मेरे समझ में आयाकैसी वैज्ञानिकता है । तो आप साल में एक ही दिन बासी भोजन कर सकते हैअब आप देखिये कीएक दिन के लिए Úिज लगेगातो 364 दिन की बिजली क्यूँ र्खच करना और 364 दिन का इतना स्थान क्यूँ घेर के रखना जितना बहुत महँगा है स्थानएक स्क्वेअर पफूट का क्या भाव है ? 3000! तो Úिज अगर रखा है मान लो5-7 स्क्वेअर पफीट में तो 3000 का 5 गुना कर लो, 15,000 रोज का र्खच एक तो दे दियाÚिज खरीदने में और ये जिंदगीभर इतना स्थान घेरकर खड़ा है जो इस्तेमाल नहीं हो रहाँ हैतो कितना घाटे का सौदा हैतो इस घाटे के सौदे को अपने जिंदगी में मत लाइए ।  मेरी वीनंती है की जिनहोंने Úिज खरीदा नहीं है वो न खरीदेजिनहोंने खरीद लिया है वो इसका उपयोग ध्ीरे-ध्ीरे कम करे ! रक दिन थोडा ऐसा आये उस दिन इसका उपयोग बंद हो जाये तो आपके जीवन के लिए बहुत अच्छा है और आज कल आप जानते है की र्पयावरण के प्रदुषण की चर्चा होती है,दुनियाभर के वैज्ञानिक परेशान हैकी र्सदी कम हो रही है और र्गमी बढ़ रही है । र्सदी कम होने में और र्गमी बढ़ाने मेंजिन गैसों का सबसे बड़ा योगदान है वो यहीं गैसे हैसी.एपफ.सी 1 से सी.एपफ.सी.12 तक । तो सारे दुनिया के देश परेशान हैक्या करे- क्या करे अभी इंडोनेशिया के बालिद्विप में सात दिन का सम्मलेन हुआअमेरिकार्जमनीभारत जैसे देशों के 156राष्ट्रपतिप्रधनमंत्राी सात दिन झक मार रहे थेये बात के लिए की भाईये सी.एपफ.सी. का प्रोडक्शन कैसे कम किया जायेतो इसमें भी आप थोडा सहकार कर दीजिये । ये प्रोउक्शन कम करने के लिए Úिज की जरुरत बंद करने की हैऋ तो ही प्रदुषण कम होगा । तो इसलिएमैंने आपसे कल कहाँ था की Úिज का खाना भी आप न खाएइसका ध्यान रखेये बात हमेशा याद रखिये की बना हुआ खाना 48 मिनिट के अन्दर खा लेना चाहिए । अब ये, 48 मिनिट का जो कॅल्कुलेशन है इस्पे मै कल आपसे ज्यादा विस्तार से बात करूँगा क्यूँकी ये सूत्रा कल आएगा और एक तीसरी बात मैंने जो आपसे शुरू कियी थीमायक्रोेव्हेवओव्हन ! मायक्रोेव्हेव ओव्हन भी कुछ इसी तरह का किससा हैइसके भी अन्दर टेम्प्रेचर को आप कंटाªेल करते है और मायक्रोेव्हेवओव्हन में कोई भी चीज आप रखते है नगरम करने के लिएतो वो चीज का एक हिस्सा गरम होता हैपूरा नहीं होता । गरम होने के लिए हमारी जो कल्पना हैऋ चारो तरपफ से एक साथएक जैसा टेम्प्रेचर आवो पानी ही कर सकता है और कोई चीज नहीं है दुनिया में । पानी गरम करके उसमे कोई चीज डाले तो सही गरम होती है । मायक्रोेव्हेव ओव्हन में पानी का कोई काम नहीं । और ये मायक्रोेव्हेव ओवन भी यूरोप,अमेरिका के लिए हैक्यूँकी वहाँपर बहुत ठंडी हैआपके लिए नहीं है क्यूँकी यहाँ पर बहुत र्गमी है । तो हमारे घर में क्या हुआ है में आपसे वीनम्रतार्पूवक कहता हूँ कीकुछ चीजों को स्टेटस सिंबल बना के रखा हैवो बदल दीजिये । ये स्टेटस सिंबल नहीं हैये मजबूरी की चीजे हैं । कहते है न की हमने मजबूरी में ये कियावो किया । तो आप समझ लिया की मजबूरी में Úिज लायामजबूरी में मायक्रोेव्हेव ओव्हन लाया,मजबूरी में प्रेशर कुकर लायाये छाती ठोककर बताने की बात नहीं है कीमेरे घर में Úिज है । या मेरे घर में मायक्रोेव्हेव ओव्हन है । आप इसे शर्म से बताओ मेरी कुछ मजबूरी थीउस दिन दिमाग कुछ पिफर गया थामेरा वीवेकशून्य हो गया थातो मैंने मेरे खून-पसीने की कमी बरबाद कर दी और ये ले आया । तो ये जब इस तरह से कहना जब शुरू करेंगेतो थोड़े दिन में आप की भावना अपने आप बदल जाएगीऔर ये चीजे बहार निकल जाएगी । ये जो 48 मिनिट का कॅल्कुलेशन हैये जैन र्दशन में भी है । आप में से कोई भी जैन समाज के लोग होंगे तो मेरी बात उनको बहुत जल्दी समझ में आएगी । जैन साध्ूसंत हैउनके मुँह से आप यहीं सुनेंगे की48 मिनिट के बाद पानी में जीवराशी पैदा होती हैऔर वो जीवराशी पिफर बढाती ही चली जाती है । तो वो अरबो मेंअरबों से खरबों में चली जाती है । ऐसा पानी नहीं पिन चाहिए क्यूँकी जीव हत्या होती है और उसका पाप लगता है । तो जैन र्दशन में इसे अहिंसा के साथ जोड़ा है । और बागवट जी ने इसको स्वस्थ्य के साथ जोड़ा है । कुल बात एक ही है । शायद जैन र्दशन में इसे अहिंसा से इसलिए जोडा होगा कीर्ध्म से जाएगा जुडकर तो जल्दी समझ मे आएगा । बागवटजी ने इसे शरीरस्वास्थ्य ते साथ जोडा है तो थोडा देर मे समझ मे आता हैक्योंकि हमारा चित्त और मन र्ध्म के प्रती आर्कषित है क्योंकि हमारे डीएनए मे ऐसा है । भारत का जो डीएनए हैवो ऐसाही हैजो र्ध्म की बात करे तो तुरंत समझ मे आएविज्ञान थोडा पीछेसे आता है । इसलिए इस देश में र्धमिक लोगों की पूजा होती हैवैज्ञाानिकों को कोई पूँछता नहीं हैवो ऐसेही बिचारे घूमते रहते है । कभी आप जैसे लोग उनको माला-वाला डाल दे तो ठीक होगा वरना इस देश के वैग्यानिक कहाँ मरते हैकहाँ खपते हैकौन जानता हैकौन पूँछता है । लेकिन साध्ूसंन्यासी,महात्मा इतने पूजे जाते है इस देश मेंजिनके पीछे आप कुछ नहीं जानते उनका इतिहासउनका भूगोल तो भी आप उनके चरणों मे लेटते रहते हैवो आपके डीएनए का दोष हैमेरे डीएनए का दोष है । क्योंकि डीएनए ऐसा है इस देश मेंकभी मौका मिला तो बात करुँगा इसपर की गरम देशों का डीएनए और थंडे देशों का डीएनए बिल्कुल अलग होता है । ये जो युरोप और अमेरिका देश है नाइनका जो डीएनए है और हमारा जो हम भारतपाकिस्तानबांग्लादेश में रहते है इनका बिल्कुल डिÚंट हैजो दुनिया के गरम देश हैसारे र्ध्म यहीं से निकले । आपको मालूम है,ईसायत यहीं से निकलीइस्लाम यही सेर्पूव से ही निकलाहमारा हिन्दू र्ध्म जिसे सनातन मानते हैवो भी पूर्व से निकला । पश्चिम से आजतक कोई र्ध्म निकला ही नहीं । ईसायत निकलने का स्थान बेथ्थलम है न बेथ्थलमइस्रायल वो पूर्व मैं है । ईसायत के बादइस्लाम के निकलने का स्थान वो भी वही हैंबेथ्थलम मेंवो एक ही स्थान के लिए मर रहे है कीये मेरा की तेरा और लढाई सांठ साल से चल रहीं है । और वो 10 स्क्वे. पफीट की जगह है बस । हाँ ! 10 स्क्वे. पफीट की जगह पर 33 करोड़ मर गए है और छोड़ना नहीं चाहते की में ये लेलूँतू ये ले लेये पिफलिप्सिन का है की इस्रायल का । तो ये पिफलिप्सिन और इस्रायल यूरोप में नहीं हैएशिया मैं हैऔर एशिया दुनिया के र्पूव मैं है । तो सारे र्ध्म र्पूव से ही निकले है क्योंकि र्पूव का डीएनए कुछ इस तरह का है । पश्चिम से र्ध्म नहीं कोई क्यूंकि डीएनए दुसरे तरह का है । तो ये डीएनए का दोष हैहम र्ध्म को मानते है । इसलिये शायद जैन शास्त्रों मेजैन आर्चायोनेजैन संतोने र्ध्म से इसे जोड़ दिया । तो ये र्ध्म से जुडी हुई विज्ञान की बात हैं । इसको विज्ञान से पहले र्ध्म में समझकर आप पालन करेंगे तो आपका विश्वास उसपर पक्का होता है । ये 48 मिनिटेसब याद रखेंसब माताएँबहने याद रखेभोजन पका तो 48 मिनिट में हो ही जानाखा ही लेना । इसलिए शायद पुरानी परंपरा हमारे देश में हैंगरम खाना खाओमाने वो 48 मिनिट के पहले हो जाये । गरम-गरम रोटी बना के खिलाओ या गरम-गरम रोटी खाओ । आपको शायद मालूम नहीं हैआप में से जो यूरोपअमेरिका ज्यादा घूमते हैंवो इसका अंदाजा लगाएँगे कीगरम रोटी का महत्व क्या है क्योंकि यूरोपअमेरिका में नहीं मिलती । दुनिया के 56 देशों मे गरम रोटी नहीं मिलती क्योंकि उसको बनाना नहीं जानता कोई । दुनिया की आबादी 600 करोड़ है । 600 करोड़ आबादी में 300 करोड़ महिलाएँ है और 300 करोड़ पुरुष अगर मान ले तो लगभग 300 करोड़ महिलाओं मे 250 करोड़ महिलाएँ नहीं जानती की गरम रोटी कैसे बनती है । उनके पास गेहूँ है,गेहूं का आटा भी है क्योंकि यूरोप के कई देशों मे गेहू है । अमेरिका में गेहू पैदा होता हैकनाडा में गेहू पैदा होता है । गेहूँ ठण्ड की पफसल हैं तो ये ठन्डे देशों मे होता है तो गेहूँ का आटा भी है । रोटी बनाना नहीं आता । क्यों क्यूंकि कोई यूनिर्वसिटी नहीं है वहाँपर सिखाए इसकोकोई कॉलेज नहीं है जो सिखाए इसको तो यूनिर्वसिटी,  कॉलेज नहीं है । और कोई माँ नहीं है जो अपने बेटी को सिखाएँक्योंकि माँ नहीं आता तो बेटी को क्या सिखाए और हजारो सालों से ये चक्कर चल रहाँ हैऋ रोटी बनाना नहीं आता । किसी यूरोप और अमेरिकन व्यतिफ के बारे मेंएक किस्सा बताता हूँ । थोड़े दिन पहले हमारे यहाँ एक दम्पति आये इंग्लैंड से । पति और पत्नी दोनों आएँउन्होंने कहाँ की हमे भारत का गाँव देखना हैतो हमने एक गाँव में भेज दिया । संयोग से जिस दिन गाँव में गएवहाँ शादी थीतो हमने कहाँ की उसमे भी शामिल हो जाइये तो भारत क्या हैअच्छा समझ में आ जायेगा । तो वो शादी में जब शामिल हो गए तो कोई रोटीयां बना रहें थेऋ कोई पुड़ियाँ बना रहें थे । तो गाँव में आप जानते है कीनोकर नहीं बनातेसब गाँव इकठ्ठा होकर बनता है । जिसके घर में शादी है उसके घर में दुसरे घर के लोग आ जाते है । दुसरे घर का चूल्हा बंद हो जाता हैसब एक ही घर में खाते है । सब महिलाएँ बना रहीं थी तो उस पिफनिश दम्पति ने पूछाँऋ ये सब कितना पैसा लेगी तो उनको कहाँ की ये पैसा-वैसा नहीं लेनेवालेऋ तो ये कैसे हो सकता है तो हमने कहाँ की ये हैक्योंकि भारत को-ऑपरेशन पे चलता हैकॉम्पीटीशन पे नहीं चलता  ये देश । हमारे समाज में को-ऑपरेशन हैकॉम्पीटीशन नहीं है । तो वो पिफनिश दम्पति में जो महिला थी वो पहले से इस बात से परेशान थी कीये रोटी एकदम गोल बन रही हैऋ 100: गोल । उसकी जिंदगी में ये कल्पना नहीं है की, 100: गोल चीज कोई हाँथ से बन सकती हैवो कहती है की उसने सोचा था की भारत के बारे में मशीन से बनाते होंगे रोटी और ये हाँथ से बनाते है रोटी 100: गोल । तो उसके कैमेरे में जितनी रील थी वो उसने पूरी र्खच कर दी गोल रोटी बनके देखने में । मानेआपको ये उदाहरण इसलिए दिया की उनके लिए ये अजूबा हैउनको ये लगता है की कोई महिला ये कर पे । और उनको मैंनेवो जब जा रहे थे तब पूछा की उनको भारत में कौनसी चीज अच्छी लगीउन्होंने कहाँ की ये गोल रोटी जो है,वो सबसे महत्वर्पूण वस्तू है जिसकी व्हल्यु हमारे लिए सबसे ज्यादा हैंक्योंकि हम जानते नहीं की ये कैसे बनती है । आयर आपके घर में हर माँ-बहन इसको बना सकती है, 10-12 साल की बहन भी बना सकती है । इसका मतला हैरोटी ताजा और गरम ये भारत में ही संभव है । दुनिया के दुसरे देशों को नसीब नहीं है । तो आप समझ लीजिये की आपके पास कितनी वैल्यूएबल चीज हैं । गरम रोटी ! और उसको आप छोड़कर ठंडी करके खां रहें हैतो ये आपका दुर्भाग्य हैसौभाग्य नहीं । तो रोटी गरम-गरम ही खाएंगरम-गरम ही खिलाएँ । यूरोप में कोई किसी को खिलाता नहीं क्योंकि कोई बनता नहीं और जानते भी नहींऋ वहाँ बिचारे तीन-तीन महीने पुरानी रोटी खाते है जिसे डबल-रोटी कहते हैपाँव-रोटी कहते है । मैंने एक सिंपल कॅल्कुलेशन किया था की पाँव रोटी बनाने के बाद खाने तक 90 दिन निकल जाते हैंअमेरिका और यूरोप में । पता है क्या कीगेहूँ हर जगह होता नहींऋ कुछ जगह होता है । तो गेहूँ बड़े-बड़े ट्रक में भरके वहाँ तक जाता है जहाँ गेहूँ को पिसनेवाली चक्कियाँ लगीं हैफ्रलोअर-मिलवहाँ आटा बनता हैपिफर वो ट्रक में भर के पिफर वहाँ जाता हैं जहाँ उससे डबल-रोटी बनती हैऋ पिफर वह बनकर कहीं और जाती है पिफर ऐसी चक्कर में नब्बे दिन निकल जाते है । हमारे आर्युवेद शास्त्रा में बागवटजी कहते है कीआटे को जितना ताजा इस्तेमाल कियाउतनाही बेहतरीन है । आटे के बारे में वो कहते हैजितना ताजा इस्तेमाल कियाउतनाही बेहतरीन हैऋ रोटी के बारे में कहते है 48 मिनिट के अन्दर खा लेना चाहिए और पिसा हुआ आटावो ये कहते है की, 15 दिन से पुराना कभीभी मत खाना । 15 दिनमॅक्सिमम ! वो भी ये गेहूँ के लिएऋ ये चनामक्की और ज्वारी इसके लिए तो सात ही दिन कहा है उन्होंने । सात दिन से पुराना नहीं खा सकते क्योंकि उसकी मायक्रोेन्यूट्रीअन्ट्स कॅपॅसिटी लगातार कम होती चली जाती है । तोअब आप बोलेंगे जीताजा आटा कहाँ से लाये चक्की हैजिंदाबाद ! हिन्दुस्थान में हजारो लाखो वर्षों से आटा ताजा बना कर रोटी बनाने की परंपरा है की नही जो माताएँ यहाँ बुर्जुग यहाँ हैइन्होने अपना गाँव देखा होगाअपने गाँव कीघर कीचक्की देखि होगीये चक्की पे मैंने थोडा रिर्सच किया कीये क्या अद्भुत चीज बनाई है हमारे ट्टषी-मुनियोंनेऋ ये दुनिया की ऐसी अद्भूत मशीन है,जो ताजा आटा तो देती ही है आपके शरीरस्वास्थ्य के लिए और आप के अन्दर की मांस-पेशियों को हमेशा फ्रलेक्सिबल रखती है । और हमारे घरों में ये जो चक्की चलने का काम माताएँ करती रहीं हैमैंने इन माताओं पर एक छोटासा रिसर्च अभी पिछले साल पूरा किया । मेरे एक दोस्त हैं आर्युवेद के चिकित्सक है उनके साथ मिलकर । वो गाँव में रहते है तोमैं उनसे कहाँ की आप गाँव के कुछ महिलाओं का अध्ययन करे की जो चक्की चलाती हैइनके बारे में जरा पता करिए और जोचक्की नही चलाती पिसा हुआ आटा लाती है । तो जो चक्की चलानेवाली माताएँ हैवो नब्बे माताएँ हैऋ किसी को भी सिझेरियन डिलीवरी नहीं हुई है । चक्की चलानेवाली माताओं के पैरों में र्दद नहीं है । चक्की चलानेवाली मतओंको कभी कंध नहीं दुःख रहार्गदन नहीं दुःख रहीऋ नींद अच्छी आ रही हैडायबीटीस नहीं हैहायपरटेंशन नही हैब्लडप्रेशर नही बढ़ा है, 48 से 50बीमारियाँ नही है और जो माताएँ पिसा हुआ आटा ला रही है कैप्टेन कूक आय.टी.सी काऋ उनके घर में डायबिटीस भी हैअर्थ्रायटीस भी हैहायपरटेंशन भी हैये भी हैऋ वो भी है । तो मैंने वै। जी से कहाँ की आप क्या मानते है की ये जो चक्की चलानेवाली माताएँ ये ऐसा क्या विशेष काम कर रहीं है । तो उन्होंने मुझे समझायावो मेरे समझ में आया और आपको भी समझ में आएगाऋ हम जब एक दिन चक्की चलाते हैचलाके देख लीजियेतो आपको समझ में आएगा । सबसे ज्यादा दबाव पेट पे पड़ता है । हाँथ पे इतना नहीं हैपेट पे पड़ता है । और माँ के पेट में एक एक्स्ट्रा ऑर्गन है जो पिता के पेट में नहीं है जिसको गर्भाशय कहते है । ये गर्भाशय आपके पेट के बिकुल बीचोबीच हिस्से में है । चक्की चलाते समय सबसे ज्यादा जोर वहीं है । और गर्भाशय के बारे में आध्ुनिक विज्ञान के रिर्सचआर्युवेद के रिसर्च ये कहते है कीगर्भाशय के आसपास के एरिया में जितना हलन-चलन होउतनी इसकी फ्रलेक्सिबिलिटी हैफ्रलेक्सिबिलिटी माने मुलायमि है । अंग्रेजी आप शायद समझ जायेंगे फ्रलेक्सिबिलिटी माने मुलायिमत । इलास्टिसिटी एक शब्द होता है अंग्रेजी में ! इलास्टिसिटी का मतलबजब चीज की जरुरत पड़े तो ताण देनाजब जरुरत पड़े तो संकुचित कर देनाहमारे गर्भाशय का सबसे बड़ा गुण है । इसी गुण के कारण बच्चे का जन्म होता हैऔर ये गुण बनाये रखने में सबसे बड़ी भूमिका है हलन-चलन । वहां आस-पास मांसपेशियाँ हलन-चलन रहे तो ये हलन-चलन होता है अच्छे तरीके सेमैंने खुद चलके देखि है चक्की । ये सबसे ज्यादा पेट के हिस्से में ही होता है । तब मेरे समझ में आया की जो माताएँ नियमित रूप से चक्की चला रही हैउनको सिझेरियन डिलीवरी नही हो रहीं है,क्योंकि गर्भाशय की इलास्टिसिटी मेन्टेन है तो आसानी से बच्चा बाहर आ रहा हैबिना किसी ऑपरेशन केतब मुझे ध्यान में आया की हमारी जो पुरानी माताएँ हैउनके 8-10 बच्चे होते थे,कभी सुना नहीं की सिझेरियन । वो दाई आती थी गाँव की जो डठठै नहीं हैडक् नहीं है,डै नहीं है वो बच्चे करा के चली जाती थी ऐसे ही जैसे कोई दाल पका के चला गया । या चावल पका के कोई चला गया । हाँ ! ऐसे होता है । तो हमने इस बात को जब ध्यान दियातो मेरे मन में आया कीऔर बड़ा रिसर्च करना चाहिए तोमेरे एक मित्रा है चेन्नई में वो और उनकी पत्नी मिलकर 15-16 वर्षाेंसे इसी विषय पर काम कर रहें है कीबच्चे को बिना किसी ऑपरेशन से या सीझर के बाहर कैसे लाया जाए । तो उनके 15-16 साल का रिर्सच ये कहता है कीये र्सिपफ चक्की की मदत से ही हो सकता है । और आर्युवेद तो यहाँ तक कहता है कीमाँ का गर्भ 7 वे महीने तक चक्की चलने की अनुमति देता है । माँ को 7 वे महीने तक चक्की चलवाई जा सकती है । 8 वे महीने में नहीं । पिफर उसको बंद कर देना अच्छा है और उतनी 7 महीने की चक्की आप के लिए पर्याप्त है की बच्चा बिना सीझर के हो और जो बच्चे बिना सीझर के है उनके जीवन को आप देख लीजियेऔर जो बच्चे सिझेरियन के है उनके जीवन को आप देख ले,जमीन-आसमान का अंतर है ! सीझर बच्चे ज्यादा बीमार है । समय-समय पर बीमारियाँ है । जो बिना सीझर है वो सब स्वस्थ हैतंदुरुस्त है । ब्रेन का डेवलपमेंट उनका अच्छा हैलोजिक को डेवलप करने की कपसिटी,  कल्पनाशीलता उनमे दुसरे बच्चों से ज्यादा है । तो बागवट जी का सूत्रा है की खाना बनाये तो 48 मिनिटे के अन्दर खाए और खाना बनाने वाली जो वस्तुए हैं जिनमे सबसे महत्वर्पूण है आटागेहूं का आटा 15 दिन से ज्यादा पुराना न खाएज्वारीबजरी और मक्की का आटा 7 दिन से ज्यादा पुराना न खाएऋ और वो ये कहते की रोज का हो तो सबसे अच्छा । सुबह बनाए और शाम को आटा इस्तेमाल करे तो वो सबसे अच्छा ! ज्यादा दिन पुराना ना हो तो अच्छा । तो अब इसको आप अपने जिंदगी में इस सूत्रा को कैसे उतारेंगे ?अगरसंभव हो तो एक चक्की लीजियेसंभव हो तो । इसके कई पफायदे हैंइससे सबसे बड़ा पफायदा है की आप के घर में माँ हैबहन है उसको माँ बनाने के समय ये बहुत मदत करेगी,चक्की । दूसरा आपका वेट बहुत कम करने मदद करेगी चक्की । अगर आपको एक्स्ट्रा वेट है और आप उसको लूज करना चाहते है तो 15 मिनिट सुबह चक्की चलाया पर्याप्त है । 15 मिनिट सुबह आपने चक्की चलाया तीन महीने बाद आप देखना 12-15 किलो वजन कम होगा आपका,सिपर्फ 15 मिनिट की चक्की । रामदेव जी चक्की चलवाते है की नहीं आप चलते की नहीं ?लेकिन उसमे कुछ होता ही नहीं । ऐसे-ऐसे चलवाते है की नहीं.. तो असलियत में ही चला लो,कुछ तो आटा तो मिलेगा । कम-से-कम आटा तो निकलेगाबाय प्रोडक्ट यहाँ तो कुछ निकल ही नहीं रहाबस्स ऐसे,ऐसे चल रहा है । अब आप बोलेंगे जीचक्की कहाँ मिलेगी चक्की अभीभी मिल रहीं हैयहीं चेन्नई में मिलेगी । पत्थर बंधने वाले बहुत लोग इस देश में है जो रोज ये काम कर रहे है लेकिन वो रो रहे है की राजीव भाई ये कोई खरीदता नहीं हम क्या करे ?   
हमारा सील-बटटा भी कोई खरीदता नहीचक्की भी नहीं. तो मैंनेसंकल्प लिया है कीमै बिक्वाउंगा आपकी चक्की । । हाँ ! और मई उनका पफोकट का मार्केंटिंग मैनेजर हूँ । वो मुझे कुछ एक पैसा नहीं देते लेकिन लेकिन  मै उनके मार्केंटिंग के काम में लगा हूँ । ये मार्केट बनाने में बागवट जी की बड़ी मदद मिल रही है । चाहे तो एक चक्की ले लीजियेबहुत महँगी नहीं आतीसस्ती है । 15 मिनीट मिनीट चलाइएमहिलाएँ भी चला सकती हैपुरुष भी चला सकते है । इसमें ऐसा कुछ भेदभाव नहीं है की पुरुष न चलायेमहिलाएँ ही चलाये.. महिलाएँ चलाये तो उनको थोडा एक्स्ट्रा गेन है है । एक्स्ट्रा गेन माने आपको जो एक्स्ट्रा ऑर्गन है बॉडी में युटेरस जो पुरुष में नहीं हैइसको मदद मिलेगी आपको फ्रलेक्सीबल बनाये रखने मेंऋ और में आपको एक बहुत गहरी बात कहने आयावो माताबहनोंसे उम्र के एक पड़ाव में जब आप 45 वर्ष के आसपास उम्र की हो जाएँगी तब आपके गर्भाशय के बहुत सारे कॉम्प्लीकेशन्स होंगेथोडा कॉम्प्लीकेशन यहाँसे शुरू होगा कीआपका मेनोपॉज पीरियड शुरू होगा मेन्सेस साइकल्स आपकी बंद हो जाएगी इस पीरियड में और उस पीरियड में जितने कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते हैवो बच्चे के जनम के समय पर भी नहीं होते है । और कोई कॉम्प्लीकेशन्स तो ऐसे होते है कीजिनको जिन माँ समझ ही नहीं पाती कीये क्या हो रहाँ है मेरे साथ । अचानक से पसीना आएगापूरा शरीर पसीने से भर जायेगापिफर थोड़ी देर बाद ठण्ड लगना शुरू हो जाएगी । थोड़ी देर में तमतमा जाएगा चेहराऋ एकदम गर्मी Úेश ! समझ में नहीं आता किसी माँ कोअभी थोड़ी देर पहले इतना पसीना थाअभी गर्मी आईअभी ठंडी लगने लगी । इतने व्हॅरिएशन्स होते हैमिनीट-मिनीट में व्हॅरिएशन्स होते है । मन आपका इतना डिप्रेशन में चला जाएगाअवसाद में चला जाएगा की दुनिया बिल्कुल बेकार हैऐसा क्या करना जिंदा रह के । ये डिप्रेशन है । तणाव मन में होगाअवसाद मन में होगाऔर ऐसे-ऐसे कॉम्प्लीकेशन्स बनाते जाएँगे । कारन उसका एक ही है कीकुछ हार्मोन्स आपके शरीर में बनाना बंद हो जाएँगेवो आपके लिए बहुत जरुरी हैहार्मोन्स बनेंगे ही नहीं तो ये सब मुश्किलें आती है । तोभगवान् की व्यवस्था ऐसी है की 45-50 वर्ष की उम्र में हर माँ को दूसरा जन्म लेना पड़ता है ऐसा कहाँ जाता है । तो ये जो दुसरे जन्म की समस्याएँ है इनको जिंदगी में खतम तो किया किया नहीं जा सकतालेकिन बागवट जी कहते है कीइनको कण्ट्रोल किया जा सकता है । अब में तीसरे सूत्रा पर आ रहाँ हु । तीसरा सूत्रा माताएँ,बहनों के लिए विशेष रूप से वे कह रहें है कीमाताओबहनों की मासिक र्ध्म बंद होने के बाद की जो अवस्था है इनमे पर्मनंट कोई क्युअर नहीं है क्योंकि हार्मोन्स बनना बंद हो गए तो वो बंद हो गयेऋ उनको बाहर से भी नहीं डाला जा सकतालेकिन बागवट जी ये कहते है की उसे कण्ट्रोल करके रखा जा सकता है । तो वो कहते है की कण्ट्रोल करके रखने मेंमाँ के रसोईघर के जो उपकरण हैउपकरणइंस्ट्रूमेंट्स इनकी आप मदद ले सकते है । तो रसोईघर का सबसे अच्छा उपकरण मैंने कहाँ की चक्की ! इसकी मदद आप ले सकते हैऋ और दूसरा एक उपकरण और है आपके रसोईघर मेंसील-बटटा ! मसाला पीसनेवाला सील-बटटा है न ये दूसरा सबसे बड़ा उपकरण है । ये सील बटटा भी मैंने चला के देखा तो ये सील बटटा चलने में भी सबसे ज्यादा जोर पेट पर ही आता हैचक्की चलने में सबसे ज्यादा जोर पेट पर ही आता है । तो ये )षी-मुनियोंने ये चक्की आविष्कार जब किया होगासील-बटटा का आविष्कार जब किया होगातब किसी माँ को ध्यान में रखकर ही किया होगा । अब नियमित रूप से आप सील-बटटा चला रहे है और चक्की चला रहे है तो युटेरस के आसपास की जो मांसपेशियां है वो हमेशा नरम और मुलायम रहनेवाली हैतो आपके जिंदगी के कॉम्प्लीकेशन्स 45 साल के बाद कम रहने ही वाले है । हम उनको दावा खा-खा कर कम करे तो दवाओंके साइड इपफेक्ट्स है । ज्यादा दवाओंके साइड इपफेक्ट्स है की,मोटापा बढेगा । एक भ्त्ज् टेक्निक हैहार्मोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी ! अक्सर माताएँ उसमे जाती है45-50 साल की उम्र मेंहाँथ जोड़कर विनंती है कीकभी न जायेऔर आप गए उसमे तो आपके वेट को दुनिया का कोई भी भगवान् बचा नहीं सकता बढ़ने सेबढेगाहीऋ क्योंकि हार्मोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी में जो मेडिसीन्स है वोमेड बढ़ाने वाली हैमेड माने शरीर में एक्स्ट्रा वेट बढ़ाने वाली है । तो आप अगर भ्त्ज् से बचना चाहते हैऔर अगर दवा नहीं खाना चाहते,  तो 15मिनीट ही चलाइये ना सवेरे-सवेरे चक्की । 15 मिनीट से ज्यादा जरुरी नहीं है । 15 मिनीट में जितना गेहूँ पीस गयाजितना चनादाल पीस गया अच्छा है । पिफर आप बोलेंगे जीहमारे यहाँ तो एक-एक घंटे चलाते थे । उस समय शायद लोगों का शरीर भी इतना मजबूत थातंदुरुस्त था,तबियात अच्छी थीघी-दूध् भी अच्छा खाने को मिलता थातो 1-1, 2-2 घंटे चला सकते थे । आज के समय को ध्यान में रखते हुए 15 से 20 मिनीट भी आपने चलायाया तो चक्की या तो  सील-बटटातो जिंदगी आपकी एकदम सुरक्षित और निरोगी रहनेवाली है । तो विज्ञान के साथ रसोई सबसे ज्यादा इस देश में जुड़ा हुआ है । तोतीन सूत्रा अब तक मैंने बागवटजी के आप को बता दिए । ये तीन सूत्रों मे थोड़ीसी जानकारी और की आप पुरुष भी चाहे तोजिनका पेट अगर बढ़ा है और आप चाहते है की ये कम हो तो आप भी 15 मिनीट चक्की चलाएँसुबह-सुबह ! आप भी चाहे तो सील-बबटटा पर चटनी बना सकते है । अगर आपने भी चक्की चलाई और सील-बटटा पर चटनी बनाई तोआपकी चटनी तो बनेगी हीआता तो पीसेगाही और आपका पेट है वो अन्दर चला जायेगा जो आपको किसी भी जिम्नेशियम की मदद से नहीं जायेगा । मै आपको इस बात की गारंटी देता हूँस्टॅम्प पेपर पर आप लिखवा लीजिये मुझसे, 1000 रुपये का हो या लाख रुपये का स्टॅम्प पेपर । दुनिया का हर एक डॉक्टर इस बात से सहमत हैवो बोलता नहीं ये बात अलग है कीजिम्नेशियम में जाकर कभीभी किसी का पेट अन्दर जाता नहीं और थोड़े दिन दिन के लए गया और आपने जाना बंद कर दिया तो ज्यादा बाहर आता हैक्योंकि जिम्नेशियम की जो एक्सर्साइजेस है और वहाँ जो एक्सरसाईजर रखा है मशीनवो आपसे मेल नहीं खाती । अब पता हैं क्यूँ मेल नहीं खाती जिम्नेशियम की सभी मशीने ज्यादा स्पीड वाली हैऔर चक्की और सील-बटटा इनकी स्पीड कम हैध्ीरे-ध्ीरे । हमारी जो तासीर हैवो कम स्पीड वाले उपकरणोंसे ज्यादा है क्योंकि हम गरम देश में रहते है । गरम देश में आप जानते है की स्वाभाविक रूप से वायु का प्रकोप ज्यादा होता है शरीर में । ये कल में आपसे विस्तार से इसपर बात करूँगा । वायु माने वातपित्त और कपफ शरीर में है । गरम देश के लोगों मे वायु का प्रकोप स्वाभाविक रूप से ज्यादा होता है । वायु का प्रकोप ज्यादा है तो हर चीज ऐसी करनी चाहिए जो ध्ीमे हो । ज्यादा तेज करेंगे तो वायु और बढ़ेगी । इसलिए भारत में ये कहा जाता है की डान्स करना है तो ध्ीमे-ध्ीमे करो । इसलिए यहाँ के जो डान्स है ना उनके स्टेप्सजैसे भरत नाटयमजैसे कत्थककत्थकलीओडिसीकुचिपुड़ी ये सब डान्स की स्टेप्स आप देखो स्लो है, ‘स्लो’ । और यूरोप में बिल्कुल उल्टा ! ठण्ड देश हैज्यादा ठन्डे देशों में क्या होगा की वायु बिल्कुल उलट स्थिती  में होगीवायु कम होती है शरीर में और पित्त और कापफ बहुत बढे होते है । वायु बढ़नी है उनकोपित्त और कद को समान रखने के लिए । तो हर एक काम वो पफास्ट करेंगेउनके डान्सेस बहुत पफास्ट होंगेआप देखो रशियन बॅले होता हैक्या पफास्ट स्टेप्स वो करते हैक्योंकि वो उनके लिए आवश्यक हैनहीं करेंगे तो मर जाएँगे । तो उनका डान्स पफास्ट होगा हमारा स्लो होगाउनकी हर चीज की स्पीड पफास्ट होगी हमारी स्लो होगी इसलिए हमने चक्की बनायींसील-बटटा बनायाबैलगाड़ी बनायीं की हर चीज हमें स्लो चाहिए । वात हमारा बढे नहींस्पीड से हमारा वात बढ़ता हैध्यान रखिए इस बात को । बैलगाड़ी क्या है पहिया ही तो है । मुख्य तो पहिया ही है नपहिये का इन्वेंशन सबसे पहले भारत में ही हुआदुनिया में । लेकिन हमने वो बैलगाड़ी में लगायाहवाई जहाज में नहीं लगाया । हम भी चाहते तो हवाई जहाज का पहिया बना सकते थे । जिसने  पहला पहिया बनाया दुनिया में वो हवाई जहाज का पहिया भी बना सकता था लेकिन जरुरत नहीं है अपनेको । अपने को जरुरत बैलगाड़ी की ही है । तो ये स्लो हैतो स्लो इसलिए कीबैल जो खींच रहाँ हैउसके शरीर को वायु का प्रकोप ना बढे । हमारे यहाँ मनुष्य के लिए जितना सोचा गया उतनाही बैल के लिए भी सोचा गया क्योंकि बैल और मनुष्य बराबर है हमारे यहाँअलग नहीं हैहिस्सा है हमारापरिवार का हिस्सा है । तो बैल जब बैलगाड़ी को खींचेअगर गाड़ी पफास्ट हैतो बैल को पफास्ट दौड़ना पड़ेगा तो बैल की वायु बढ़ेगी और वायु बढ़ने से मृत्यु जल्दी होती है । तो बैल ज्यादा दिन तक जीवित रहेआपका काम करे इसलिए बैलगाड़ी में स्पीड स्लो रहेस्पीड स्लो रहे इसलिए बड़ा पहिया बनाया । पहिया जितना बड़ा होगा स्पीड उतनी स्लो होगीपहिया जितना स्लो होगा स्पीड उतनी ज्यादा होगी । नंबर ऑपफ रोटेशन्स होंगे ना पर मिनीटजिसको आरपीएम;त्ण्च्ण्डण्द्धकहते हैजितने ज्यादा रोटेशन्स होंगे उतनी स्पीड ज्यादा होगी । तो रोटेशन्स ज्यादा करने के लिया छोटे पहिये ही चाहिएइसलिए हवाई जहाज में छोटे पहिये है । हमको स्पीड ज्यादा करनीही नहीं है क्योंकि वात ज्यादा बढ़ाना नहीं है शरीर का इसलिए हमने बैलगाड़ी का बड़ा पहिया बनाया । अब हमने बैलगाड़ी बनायीं तो पीछड़े नहीं है और उन्होंने हवाई जहाज का पहिया बनाया तो अगड़े नहीं है । उन्होंने उनकी मजबूरी का समाधन करने के लिए बनायाहमने हमारी मजबूरी का समाधन करने के लिए बनाया ।
वो जो कहते है न इन्वेंशन इस मदर ऑपफ नेसेसीटी ! हमारी जरुरत थी की वात कम रखे हम अपने शरीर में और जानवरों के शरीर में क्योंकि गरम देशों मे वात वैसेही बहुत बढ़ता है तो इसको कम रखने के लिए इसलिए सीलबटटा हैध्ीरे-ध्ीरे चलता है और जो आपके घर में है मसाला पीसने वाली मशीन मिक्सी;मिक्सरद्धएकदम पफास्टये यूरोप के लिए है । आपके लिए नहीं है । हमारा तो वो ध्ीरे-ध्ीरे वाला ही अच्छा हैं । चक्की ध्ीरे-ध्ीरे चलती है । यूरोप से आई हुई चक्कीबिजली कीएकदम पफास्ट चलती है । अब मै एक बात कहना चाहता हूँजो चार-पाँच साल से हम कर रहें है । हमारे केंद्र हैवहां हम चक्की चलाते है । उसका नाम है स्वानंदहमारे सभी केंद्रों का नाम स्वानंद हैहमारा ब्रैंड नेम स्वानंद है । तो उस केंद्र में हम चक्की चलाते है । चक्की चलाकर आटा बनाते हैजवारी का आटाबाजरी का आटासब तरह के आटे । और वो आटा 100-125 परिवार के लोग नियमित रूप से लेकर जाते है और खाते है । वो 100-125 परिवारों का सारा डेटाबेस हमने बनाया है । वो 100-125 परिवारों को चक्की का आटा खिला-खिला कर हम पूँछते रहते है की भाई क्या हो रहा है तो कहते है एसीडिटी खत्म हो गयीऔर क्या हो रहा है तो कहते है जीघुटने का दर्द कम हो रहा हैऔर क्या हो रहा है ?नींद अच्छी आ रही हैऔर क्या हो रहाँ है पित्त की बीमारियाँ कम हो गयी हैऔर क्या हो रहा है ?, वो कहते है जीब्लड प्रेशर भी कम हो रहाँ है । ऐसी 28-30 बिमारियों पर हमारी नजर है और 4-5 साल में वो कह रहे है हर बीमारी कम हो रही हैकम हो रही है । मैंने कहाँ कुछ बढ़ रहा है तो उन्होंने कहाँ आनंद बढ़ रहा हैसुख बढ़ रहाँ हैखुशी बढ़ रही हैवो कैसे?, बस वो चक्की का आटा खा रहें है और कुछ नहीं । मैंने कहाँ माताएँ जो आटा ले के जाती हैउनसे मैंने पूँछा की बताओ आपका ओब्झर्वेशन क्या है तो वो माताएँ कहती है की ये जो चक्की का आटा है उसकी रोटी इतनी नरम होती हैऔर वो जो बझार का आटा ले कर आतेही उसकी रोटी थोड़े ही देर में कड़क हो जाती है । और वो कहती है कीहमारे घर के लोग जबसे ये चक्की का आटा खाने लगे हैतो दो रोटी ज्यादा खाते है तो शिकायत भी नहीं करते और ये बझार के आटे की एक रोटी भी ज्यादा खाई तो पेट में गैस बनना शुरू हो जाती है । माताएं ये कहती है कीबच्चे भी ये रोटी पसंद से खाते है और घर के लोग बभी खाते हैऔर वे कहते है की जी एक केंद्र सी2 केंद्र कर दोक्योंकि एक केंद्र से पूर्ती नही हो पा रहीं । एक केंद्र सिपर्फ 100 घरों का आटा बना सकता है रोज क्योंकि 15-20 महिलाएँ वहां चक्की चलाती है । हम दूसरा बनाने की सोच रहें हैतीसरा बनाने की सोच रहें है । पिफर एक दिन सोचा की ये रास्ता तो गड़बड़ है । अगर ऐसे केंद्र हम बनाते जाये ओ ये रास्ता गड़बड़ हैऋ अच्छा ये होगा की हर घर में ही एक केंद्र हो जाए । इसमें अंत में हम कहाँ पफँस जाएँगे जगह-जगह पर केंद्र बनाकर तो हम पफँसने ही वाले है की हाँथ का आटा बना के दे दोतो ये हम बिझनेस में नहीं जाना चाहते । हमारा उददेश ये है कीहर घर में आटा बनाने की चक्की आए । आप भी स्वस्थ रहेंगेघर भी स्वस्थ रहेगा । तो मेरी आपसे विनंती है कीघर में चक्की वापस लाइए और सिल-बटटा भी वापस लाइए । मसाला पिसना है तो उसपर पीसीये । आपको चटनी बनानी है तो उसपर बनाइयेचटनी का स्वाद भी अच्छा होगा और उसके जो सूक्ष्मपोषक तत्व है वो भी अच्छे रहेंगेऋ और एक छोटीसी आखरी बात आज के लिए । आखरी बात ये है कीमें आपसे विनम्रतापूर्वक कहने आया वो यह की,आपके रसोई में पीछले 20-25 वर्षों में जो बदलाव आयारसोईघर मेंऋ 20-25 वर्षों में । हमारे बिमारियोंका सबसे बड़ा कारण वो बदलाव है । रसोई बिमारी का कारन नहीं हैरसोई तो बागवट जी कहते है कीदुनिया का सबसे पवित्रा स्थान है । सबसे पवित्रा स्थान ! लेकिन उसमे बदलाव आयाक्या आया पहले चक्की होती थीसीलबटटा होता था अबमिक्सी आ गयीऋ या तो हमने कोई मशीन ले ली और अब तो मशीने रोटी बनानेकी भी आ गयीरोटी बनाने की भी मशीन हमने ले ली । तो रसोई में जितना हमने बदलाव लायाजितनी टेक्नोलोजी आईये सब बदलाव ने हमें बीमार बना दियामाताओंको तो ज्यादा बीमार बना दिया । मैंने पीछले 20 साल की जितनी रिसर्चेस हैइससे जुडी हुईऋ इन सब को ध्यान से देखा तो हमने विकास के नाम पर अपने ही घर को बीमार बनाने की क्रिया शुरू कर दी हैऔर रसोईघर में जितनी चीजे हैं उन्होंने महिलाओं का शरीरश्रम घटायाजैसे वॉशिंग मशीन आ गयीइसने आपका शरीर श्रम घटा दिया । बिजली की चक्की आ गयी उसने आप का शरीरश्रम घटा दियासीलबबटटा का आप का शरीरश्रम घटाया मिक्सी के आने से । हर जो चीज आई हैओव्हन आयामायक्रोेव्हेव ओव्हन आयाइसने आपका शरीरश्रम घटायाऔर शरीरश्रम घटने के लिए नहीं हैबागवट जी कहते है कीशरीर श्रम घटने की एक ही उम्र है, 60 साल के बाद ! जब आप 60 साल के हो गए तब आप शरीरश्रम करते जाइये । 60 साल तक तो शरीरश्रम कम करने की जरुरत नहीं है । 18 से ले कर 60 साल तक शरीरश्रम चाहिए ही । शरीरश्रम चाहिए तो थोडा-थोडा श्रम आप करते रहेंतो हमने पोछ लगाने वाला मशीन भी ले आयाझाड़ू लगाने वाला भी मशीन ले आयारोटी बनाने का भी मशीन आ गयाचटनी बनाने का मशीन भी आयारोटी को रखने वाला भी मशीन आ गया । अब सब खुच मशीन आ गया तो आप भी मशीन हो जाएँगे । और आप ह गये है ! पता हैहम मशीन कैसे हो गये है जिंदगी का रस चला गया ।   आनंद चला गया । पहले घरों में काम करते समयजो रस थाआनंद था वो सब चला गयाकैसे चला गया मेरे बचपान का मुझे याद है,माताएँ-बहने काम करते समय गीत गाती थी । अब वोकाम ही बंद हो गया तो गीत भी बंद हो गयेअब किसी भी माँ को पूँछो की 20 साल पहलेबच्चे के पैदा होने पर कौनसे गीत गाये जाते थे याद ही नहीं है ! तो अब क्या करते है जो सीनेमा के गीत हैउनका सी.दी. लगा के देते है घर मेंबच्चा पैदा हुआ ! चोली के पीछे क्या है?... तू चीज बड़ी है मस्त.. ! आती क्या खंडाला.. तो जाती क्या खंडाला.. ये बजाये जा रहें है कब जब बच्चा पैदा हुआक्योंकि उनको बच्चा पैदा होने के समय के गीत ही याद नहीं हैऋ क्योंकि वो गीत गाने को समय मिलता था काम करते-करते वो समय चला गया तो गीत चले गये । शादी के समय क्या-क्या गीत गाये जाते थे.. याद नहीं है ! अब डीजेबीजे लेके आते है पता नहीं उसको क्या कहते हैंबड़ा साउंडबॉक्स लगा दिया और ऐसा शोर कान पफोड़नेवालाजिसकी ना सूरना लयना ताल ! तो हमारे यहाँ काम में आनंद था । मै आपसे विनम्रतापूर्वक एक बात कह सकता हूँ कीभारत की कोई भी माँशरीरश्रम से थक सकती हैबोअर नहीं हो सकती । ये शब्द बोरियतभारतीय शब्द नहीं हैये अंग्रेजो का शब्द हैहिंदी में हमने वैसा का वैसा ले लिया । बोअर होना ! जी हम क्या कर रहें है बोअर हो रहे है । आज कल के बच्चों से में बहुत सुनता हूँ कीजी क्या कर रहे हैबोअर हो रहे है । अब बोअर हो रहे है तो करे क्या तो ले देंगेटिव्ही है तो चालू कर दिया,उसमे पोगो देखोपोगो ! अब पोगो मै क्या है और ज्यादा बोअर हो जाओ । पिफर पोगो की जगह कोई दूसरा देखोलोगो या तीसरा देखो । वो सब आपको बोरियत में ले जाएँगे क्योंकि इसमें इंटरेक्शन कुछ नहीं हैऋ सब कुछ वन-साइडेड है । और गीत गाने में इंटरएक्टीव हैये वन-साइडेड नहीं हैमल्टी-साइडेड है । तो हमारी माताएँ गीत गाती थी । हर उस समय के लिए गीत बने हैंऋ पापड़ बना रहीं हैबड़ी बना रहीं है उस समय के गीत अलग हैमसाला पीस रहीं है उस समय के गीत अलग हैऋ शादी के लिए मसाला पीस रहा हैउस समय के गीत अलग है शादी के लिए पापड़ और बड़ी बन रहीं है उस समय के गीत अलग है । ये गीत इकठ्ठे आज-कल में कर रहाँ हूँ । हजारों की संख्या है इन गीतों की लेकिन इन गीतों को हम लिपिबध्द कर नहीं पाए,किताबे नहीं छपी इनकीनोटबुक्स नहीं बनी ध्ीरे-ध्ीरे खतम हो रहे है या तिरोहित हो रहे है । इन गीतों में जो सूर हैजो लय हैजो ताल है वो हर माँ के लिए आसान है । हर माँ उस सूर,लय और ताल में गा सकती है । आवाज का पीच उपर-निचे हो सकता है लेकिन सूर और ताल उन सबका सूर मालूम है उत्तार से पश्चिमपूरब से दक्षिण । धन के पौध्े लगा रहें है तो अलग गीत हैधन काट रहें है तो अलग गीत हैधन को घर ले जा रहें है तो अलग गीत है । हमारे यहाँ हर काम के लिए संगीत है क्योंकि बोरियत ना आये । और आज जो आध्ुनिकता से निकला हैमोड़र्निजम से निकला है इसने सब कुछ खतम हो गया तो बोरियतही आएगी । समय आपका लिया तो बोरियत आएगी । तो बागवटजी कहते है कीआपका जीवनये अब उनका पाँचवा सूत्रा है । आपका जीवनजहाँ आप रहते हैमाने आप मद्रास में रहते है तो यहाँ की जो आबोहवा हैयहाँ की जो तासीर है उसके हिसाब हिसा से चलना चाहिए । राजस्थान में रहते है तो वहाँ की आबोहवातासीर से चलना चाहिए । तो हर आबोहवातासीर में खास तरह के गीतखास तरह का संगीत खास तरह का श्रम बना हैजो हजारो साल पहले बना है और विकसीत हुआ हैये वापस आएगामुझे इसके बारे में थोड़ी शंका होती हैलेकिन हम प्रयास करेंगे तो जरुर वापस आ सकता है । बागवट जी के पाँच सूत्रा अब तक कहे हैअब तक इन पाँच सूत्रों पर कोई भी सवाल होतो आप पूँछ सकते है । मै आपको बागवट जी के 50 सूत्रा बताउंगाअगले 28 तकअब तक5 बताये है  ।  प्रश्न - आप महरबानी करके पाँचो सूर को क्रम से एक बार बताये ।
जी हाँ ! जिनके पास अगर कागज हैकॉपी हैडायरी है तो लिख लीजिये । और मैंने आपसे कल भी कहाँ था और आज पिफर कह रहन हु की नहीं लिख पाए तो चिंता मत करिएये सब सूत्रों की पुस्तक भरपूर मात्रा में आई है । एक भाई कौन लेके आयेउनका में ध्न्यवाद देना चाहता हूँ,ट्रांसपोर्ट में जा के । अंजनी कुमार जी है हाँ बहुत ध्न्यावाद आपका । ये पुस्तके भरपूर मात्रा में आई हैये सब सूत्रा उसमे विस्तार से दिए है में तो शॉर्ट में कह रहाँ हूँऋ आप चाहे तो वो भी ले सकते है । हाँ ! पाँच सूत्रा पिफरसे बताता हूँ ! सबसे पहला सूत्रा जो मैंने कल कहाँ थाभोजन को बनाते और पकाते समयसूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श ना मिले तो वो भोजन नहीं करना । अब सूर्य के प्रकाश का और पवन के स्पर्श का लंबा विश्लेषण मैंने कल कर दिया थाऋ प्रेशर कुकर का खाना नहीं खानामायक्रोेव्हेव ओव्हन का खाना नहीं खानारेÚिजरेटर का खाना नहीं खानाये । दूसरा जो सूत्रा था बागवट जी का कीखाना पकने के 48 मिनीट के अन्दर खाना । खाना पकने के 48 मिनीट के अन्दर खा लेना चाहिएये दूसरा सूत्रा मैंने विस्तार से समझाया । तीसरा सूत्रा ये है कीखाना बनाने का जो सामन हैजैसे गेहूँ का आटाचने का आटादाल का आटा या तो बजरीमक्की वगैरा.. वगैरा.. तो गेहूँ 15 दिन क्या माने गेहूँ का आटा 15 दिन तक खा सकते है और ये जो मोटे अनाज कहे जा सकते हैज्वारी हैबजरी हैमक्की हैये सात दिन से ज्यादा पुराना ना हो इसका अर्थ ये है की घर में 15 दिन से पुराना आटा नहीं रखना सीध सा मतलब  है ! हर 15 दिन बाद नया आटा आना चाहिए । उतनाही आटा पीसवाइए ना जितना जरुरत है । आप चक्की लाते है तो आहूत अच्छा नही तो आप जो चक्की पे आटा पीसवाकर लाते हैवो 15 दिन से पुराना नाऋ ऐसा आप अपने घर में नियम बनायेतो ये तीसरा सूत्रा है । चौथा सूत्रा है बागवट जी का जो मैंने आपको समझाया के आप अपने शरीरश्रम को 60साल की उम्र तक कम मत करिए । मतलब ये है की उन्होंने एक उम्र बनायीं हैबच्चा जब पैदा हुआ और 18 साल की उम्र का हुआ ये एक कॅटेगरी है, 18 साल से ले कर 60 साल के उम्र की दूसरी केटेगरी हैऔर 60 साल के बाद 100-125 साल उनकी तीसरी केटेगरी है । तो बागवट जी का ये सूत्रा है की, 60 साल के आगेवाली जो केटेगरी है, 60 से 100-125 इनके जीवन का श्रम कम होते जाना चाहिए उम्र के हिसाब से । कम होते ही जाना चाहिए । ये ज्यादा श्रम ना करे तभी अच्छा है । इनकोआराम ही करना है । तो 60 साल के आगेवाले श्रम को कम करते जाए,उम्र की हिसाब से । 18- से-60 साल के बिच के जो लोग हैये अपने श्रम को थोडा-थोडा बढ़ाये ।18 से 19 में थोडा ज्यादा, 19 से 20 में थोडा ज्यादा, 20 से थोडा 21 में ज्यादाये है । और एक साल के जो बच्चे है उनसे लेकर 18 साल के बच्चों के लिए उन्होंने कहाँ हैइनकी उम्र जो हैज्यादा श्रम करने की वहाँ है जहाँ वो खेलने के रूप में है । आप माने की श्रम हैजैसे बच्चा खेल रहन हैये उसका श्रम है । तो आप उनको ज्यादा खेलने दीजिये मतलब ये है की, 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा खेलकूद करने दीजियेवो उनका श्रम है । 18 से 60 की उम्र में,ऐसा श्रम जिससे उत्पादन भी होता हो । चक्की चलाई तो आटा बन गयासीलबटटा चलाया तो चटनी बन गयीमाने उत्पादन कुछ ना कुछ हो ! तो उत्पादक श्रम 18 से ले कर 60 साल के बिच में कम मत करिए । साथ साल के बाद उसको कम करते जाइयेऔर 1 साल से लेकर 18साल के बच्चोंको उत्पादक श्रम मत कराइएये है । और आखरी सूत्रा मानेआज के हिसाब से कीआप अपने जीवन में तासीर का ध्यान रखियेआबोहवा का ध्यान रखियेवातावरण का ध्यान रखियेजहाँ आप रह रहे है । माने भौगोलिक परिस्तिथी एक शब्द में अगर में कहूँ,जिओग्रापिफकल कंडीशन्स । तो आपकी जो आबोहवा हैइसका ध्यान रखिये । इसका ध्यान कैसे रखना मैंने आपसे उदाहरण के रूप में कहाँ था की भारत गरम देश हैऔर कनाडा ठंडा देश है । गरम देश के लोगों में वात की प्रबलता रहती हैशरीर का दोष है उसको क्या करे वात की प्रबलता रहेगीहीपित्त और कपफ आपका हमेशा कम रहेगा । ये भारतके लोगों को वात के रोग सबसे ज्यादा है । बागवट जी कहते है कीभारत के लोगों को लगभग 70 से 75 प्रतिशत रोग वात के है । 12 से 13 प्रतिशत रोग पित्त के है और 10 प्रतिशत कपफ के रोग है । कपफ के रोग हमारे यहाँ हमेशा कम हैपित्त के थोड़े ज्यादावात के सबसे ज्यादा क्योंकि हम गरम देश में रहते है । तो आप ध्यान रखिये की गरम जगह में ऐसे काम मत करिएजिससे वात बढे । जैसे की में आपको उदाहण दँूमापफ करियेगा ये उदाहण देते हुए । आप दौड़ लगाते हैरंनिंग ! इसमें वात सबसे ज्यादा पड़ता है । हमारे यहाँ आज कल एक पफैशन आयामोर्निंग में दौड़ो ! दौड़ना नहीं हैचलना है । चलने और दौड़ने में आप अंतर समझते है । दौड़ाने से उर्जा बहुत खर्च होगी और गर्मी बहुत बढ़ेगी शरीर की औरवात को बढाएगी । वात बढेगा तो ये घुटनों बहुत जल्दी आपके थकेंगे ! आप देख लोहिंदुस्थान के रन्नर है ना रन्नर ? 100 - 200 मीटर, 35साल के बाद किसी के भी घुटने काम नहीं करतेसब बैठ गये । मिल्खा सिंग में मिला हूँवो कहते है यार उस समय में जो दौड़ गया नाअब पता चल रहा है कीउसका क्या असर है । पर्मनंट डमेज हो गये है दोनों क्नी जॉइंट्सतो ये भारत दौड़ने वालों का देश नहीं है । हमारी आबोहवातासीर को ध्यान में रखो । देखोहमारी आबोहवा गरम हैगरम हवां में वात बढ़ता है ये याद रखोतो वात बढे ऐसा कोई काम मत करो । हमको क्या मालूम की वहाँ क्या है और यूरोपवालों के यहाँ क्या है ?कपफ बहुत है यूरोप मेंकपफ की तो ठन्डे लोग हैठन्डे देश हैठंडा आबोहवा हैतो कपफ बहुत बढेगातो वो उसका ध्यान रखेजो कनाडा में रहते हैअमेरिका में रहते है ।  तो कपफ मत बढ़ने दे ! अब वात ना बढे हमाराकपफ ना बढे यूरोप अमेरिका वालों को । तो सारी दुनिया निरोगी । पित्त जो है वो सम में वैसे ही रहता है । पित्त जो हैज्यादातर सम में ही होता है । तो ये पांच सूत्रा है । तो ये पाँचो सूत्रा मैंने आपको पिफरसे बता दिए ।
प्रश्न: राजीव जी आपके प्रथम सूत्रा के अनुसार सोलर कुकर कितना कित उपयोगी है ?
उत्तर: हाँ ! बहूत अच्छा सवाल हैमें इंतेझार कर रहा था कोई पूछे । देखिये मेरे प्रथम सूत्रा के अनुसार सोलर कुकर सबसे ज्यादा उपयोगी हैक्योंकि बागवट जी क्या कह रहे है कीसूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श ! अब सोलर कुकर एक ऐसी अद्भूत चीज बनी हैया बने गई है जिसमे सूर्य का प्रकाश सबसे ज्यादा है । तो सोलर कुकर का खाना अच्छा ! लेकिनकौनसा सोलर कुकर देखिये एक सोलर कुकर ऐसा आता है जिसमे डब्बे को बंद करके खाना बनाने के लिए रखते है नवो अॅल्युमिनियम के डब्बे हैवो ध्यान रखिएगाऔर कल में कह चूका हूँ की अॅल्युमिनियम दुनिया का सबसे खराब मेटल हैइसमें खाना नहीं रख सकते । तो सोलर कुकर ।े ं टेक्नोलॉजी अच्छी है लेकिनव्हेसल्स चेंज करे तो ! अॅल्युमिनियम के व्हेसल्स जब तक है तब तक ये सोलर कुकर का खाना जहर हैएक सिध्दांत के हिसाब से सोलर कुकर भारत की सबसे अच्छी टेक्नोलोजी है । आप बोलेंगे की कोई व्हेस्सल्स बदल के रखे तो रखिये । पीतल के रखिये,कांसे के रखियेतो वो ये कहते है सोलर कुकर बनाने वाले कीटाइम ज्यादा लगता हैमै उनसे कहता हूँ कीटाइम का बचाने का चक्कर छोड़ दीजियेक्योंकि यहाँ टाइम बचाएँगे तो कही दूसरी और जाएगा । तो जैसे ही सोलर कुकर में व्हेस्सल्स आयेपीतल के कांसे केआप उनका जरुर इस्तेमाल करिएविज्ञान के हिसाब सेबागवट जी के हिसाब से सबसे उत्तम है । जब तक अॅल्युमिनियम हैतब तक मत करिए । मेरी आपसे विनंती है कीमुझे सर मत कहियेभाई कहियेराजीव भाई कहियेेकुछ भी कहियेसर मत कहिये । सारे इनोवेशन्स के बारे में आपने बोला तो आपने रेÚिजरेटर के बारे में बोलामायक्रोेव्हेव ओव्हन के बारे में बोला पर आपने एयर-कंडिशनर के बारे में नहीं बोलाबिकोजउसमे भीवो भी सी.एपफ.सी. छोड़ता हैऔर परफ्रयूम भी । वो मेरा अभी पूरा नहीं हैबोलूँगा में कल बोलूँगा । कलपरसों 28 तक ये विषय आएगाबागवट का सूत्रा आएगा उसके रेपफरन्स में बोलूँगा ।
प्रश्न: राजीव भाई आपके दुसरे सूत्रा के हिसाब से खाना 48 मिनीट के अन्दर खाना चाहिएतो जो बच्चे सुबह स्कूल को जाते है और शाम को वापस घर लौटते हैउनका क्या ?

उत्तर: बहुत अच्छा ! इसके लिए में एक विकल्प बताता हूँजो बच्चे सुबह-सुबह स्कूल को जाते है उनके लिए ये सूत्रा कैसे अप्लाई होगा । मेरी विनंती है कीबच्चों को खाना खिला के स्कूल भेजिए । आप बोलेंगे जीखाते नहीं है । मै आपको इसका तरीका बताता हूँ की कैसे खायेंगे वो खाना । हमारे शारीर की अपनी एक साइकल है । तो साइकल ये है कीकोई भी खाना खाए तो आँठ घंटे के बाद ही भूक लगेगी आपको । ये शरीर का अपना नियम हैतो बच्चों के लिएपुरुषों के लिएसबके लिए यही नियम है । तो की खाना खाने के आँठ घंटे बाद ही भूक लगेगीतो रात का खाना उनको उस समय खिला दीजिये जो सुबह तक अंत घंटे पूरे हो जाए । मानेअगले दिन शाम को ही खाना खिला दीजिये । रात को मत खिलाइए । शाम को 6 बजे तक अगर आपने खाना खिला दिया तो 8-9 बजे तक सोने की उनको नींद आही जाएगी क्योंकि खाना खाने के डेढ़ घंटे बाद जैसे ही खाना पाच के रस में बदलता हैशरीर का ब्लड-प्रेशर अपने आप बढ़ाना शुरू कर देता हैऔर ब्लडप्रेशर बढे तो नींद आनी ही हैरुक नही पाएँगे आप । तो शाम का खाना 6 बजे खिला दीजियेआँठ बजे उनको नींद आ जाएगी । 6 बजे से आँठ घंटा गिनेंगे तो सुबह चार-पाँच बजे तक वो पूरा हो जायेगा । चार-पाँच बजे के आस-पास जब वो सो कर उठेंगे तब इतनी तेज भूक लगी होगी की आप रोटीदालचावल जो खिला दो वो खाके चले जाएँगे । आप को थोडा बदल ये करना है कीरात को हम 10 बजे बच्चों को खाना खिला रहे हैया 11 बजे खिला रहे हैउसके 2 घंटे बाद रस बन रहा हैतो 1 बज जायेगा, 3-4 बजे तक आध खाना पचाआध नहीं पचातो उन्हें उठने पर भूक लगेगी कैसे तो आप शाम का खाना जल्दी खाने लगेमाने सब लोग जैनही हो जाइयेहाँ परोक्ष रूप से में ये कहता हूँ कीजैन ध्र्म आप पालन करेमहत्व का हैध्रा करे वो उतना महत्व का नहीं है । आप आचार्य श्री को वंदन करेबहुत अच्छा ! नहीं करे,तो शाम का खाना तो 6 बजे खा लेतो आचार्य श्री को वंदन करने से भी बड़ा काम करेंगे । वो आचार्य श्री भी यहीं कहते है कीशाम का खाना जल्दी खाओ । तो आप थोड़े जैनही हो जाइये,आपका भी खाना....नहीं हैबहुत अच्छा है लेकिन रात को खाना बंद कर दीजिये । बच्चों को रात का खाना बिलकुल बंद कर दीजियेमै आपको विनम्रतापूर्वक कह रहाँ हूँऋ इसको मै कल या परसों इसका अर्थ समझाउंगा । पूँछ लिया आज आपने इसलिए कह रहाँ हूँरात का खाना बिलकुल बंद कर दीजिये क्योंकिबागवट जी का ये पहला सूत्रा हैये अभी मैंने आध ही बताया है,सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श.. हर समय वो कहते हैखाते समयपीते समयरहना ही चाहिए । 6 बजे के बाद तो सूर्य प्रकाश रह नहीं सकताऔर आप जानते हैसूर्यप्रकाश का सबसे बड़ा परिणाम व्हिटॅमीन डी’ का निर्माणसूर्य का प्रकाश इसलिए सूर्य का प्रकाश जब तक है तो खाना खाए तो व्हिटॅमीन डी । इसलिए बच्चों को तो रात का खाना बिलकुल बंद कर दीजिये । सुबह 7 बजे जब स्कूल जायेंगेतो खुप भूक लगी होगीउस समयसांत बजे पराठा बना के खिलाइएआलू का भी पराठा बना के खिलाइए गोभी का भी बना के खिलाइए तो भी कोई पफरक नहीं पड़ता । इसपर मै आगे बात करूँगासुबह का भोजन जितना हैवी होउतना अच्छाजो-जो पक्वान खाएसब सुबह दुपहर का खाना थोडा कम और शामरात का खाना बिल्कुल कम । तो बच्चों को भरपेट खाना खिला के स्कूल में भेजिएलंच बॉक्स की जरुरत नही हैदोपहर को आते ही खाना खिलाइए और शाम को दूसरा भोजनरात का भोजन बंद किया तो सुबह उठाते ही भूक लगती है उनको । तो मैंने कुछ बच्चों पर प्रयोग कियारात का भोजन बंद कर दियाये तो प्रकृति का नियम है । सारे जानवरसारे पक्षी उठाते ही खाना खाते है आप देखियेचिड़िया है सुबह-सुबह खाना खाने लगेगीगायबैल भैंसक्योंकि वो शाम को सूर्य के बाद खाना नहीं खाते,गाय रात को खाना नहीं खातीखिला के देखो ! जर्सी गाय को छोड़कर ! जर्सी भारत की नहीं है इसलिए उसको भारत का पता नहीं हैवो रात को 2 बजे भी खा लेगी । भारत की कोई भी गाय,भारत के नस्ल की गाय 6 बजे के बाद खाना नहीं खाएगीतो भारत के तासीर को ध्यान में रखकर भोजन जल्दी करिएसुबह भरपूर भूक लगेगी । और निवेदन इतनाही करता हूँ कीखाली पेट तो कभी बच्चों को कभी स्कूल मत भेजिए । आप ने कहाँ कीदूध् पीकर गया हैमतलब खाली पेट ही स्कूल गया है क्योंकिसॉलिड भोजन नहीं है । ऐसा भोजन सुबह शरीर में जाना बहुत ही आवश्यक हैअगर भविष्य में आप उसको एसीडिटीअल्सरसेप्टिक अल्सर से बचाना चाहते है तो । हाँ जी ।
प्रश्न: हमारे चिंतको ने कहाँ हैहमारे बुजुर्गोने कहाँ हैइतिहासकारोने कहां हैपरिवर्तन ही जीवन हैतो क्या सारे परिवर्तन बेमानी है अगर परिवर्तन बेमानी नहीं है तो ऐसे कौनसे परिवर्तन हम अपनाएँऔर ऐसे कौनसे परिवर्तन हम ठुकराएँराजीव भाई ?

उत्तर: बहुत अच्छा सवाल है । देखियेदुनिया मेंहर समय पर परिवर्तन होते हैये प्रकृति का नियम है और यही जीवन हैये बिल्कुल सही बात है लेकिन हमें ध्यान ये देना है की कौनसे परिवर्तन हमारे अनुकूल है और कौनसे परिवर्तन प्रतिकूल । बस इतना ध्यान देना है । अब इस बात को बागवट जी कहते है एक सूत्रा मेंअब आपने पूँछ लिया तो वो सूत्रा भी बता देता हूँ । वो ये कहते है कीजिस आबोहवा और परिस्तिथी में आप रहते हैउसमे रहते हुए जो परिवर्तन होगा वो आपके अनुकूल हैऔर जो आबोहवा और परिस्तिथी में आप नही रहते है वहाँ जो परिवर्तन होगा वो परिवर्तन आप धरण करेंगे तो वो आपके लिए प्रतिकूल है । मई इसको और स्पष्ट करता हूँ । यूरोप और अमेरिका में पीछले 100 सालों मे जितनी रिसर्चेस हुईवो उनके लिए बहुत अनुकूल है । उनके लिए ! रेÚिजरेटर यूरोपियन लोगों के लिए बहुत काम की चीज है । जब ये भाषण में जर्मनी में दँूगा तो उल्टा ही बताउंगा उन लोगों कोमई कहूँगा जरुर रेÚिजरेटर लाओमायक्रोेव्हेव ओव्हन भी रखो । उनके लिए बहुत अनुकूल हैउनकी कंडीशन में वो परिवर्तन हुआ है । हमारी कंडीशन में जो हम परिवर्तन करेंगे हमारे लिए अनुकूल होगा । अब जैसे आपको उदहारण दँूचक्की हैतो चक्की में एक परिवर्तन आज हुआ हैवो पहले नहीं थाआज हुआ हैहमने चक्की में बेअरिंग लगा दी । पहले चक्की में बिअरिंग नही होता था । खली वो एक डंडी होता था और उसके चारो तरपफ से बिच में लकड़ी में वो लगते थेलकड़ी का हमने निकल के उसमे हमने बिअरिंग लगा दियाये परिवर्तन हुआ । ये हमारे अनुकूल बैठता है । क्योंकि बिअरिंग लगाने के बाद उसका जो Úिक्शन हैवो कम हुआऋ और Úिक्शन कम हुआ तो हम कम श्रम में ज्यादा उत्पादन ले सकते है । श्रम तो हो ही रहा है लेकिन जितने श्रम में पहले हम 1 किलो आटा लेते थेउतने ही श्रम में अब 3 किलो आटा मिल रहाँ है । ये भी परिवर्तन है लेकिनहमारे अनुकूल है । इसी तरह से एक उदाहरण औरहमारे कुछ कार्यकर्ता है पूना मेंइन्होने बैलगाड़ी के पहिये में भी बिअरिंग लगा दिया । परिवर्तन यहाँ भी हुआ । नयी बैलगाड़ी बनी । वो बिअरिंग का पहिया हैअब उसका क्या हुआ कीबैल को खींचने में मदद हो गयी ।  पहले बैल 1 टन अनाज ले कर जाता था । अब बिअरिंग लगी हुई बैलगाड़ी में वही बैल 3 टन लेकर जाता हैबिना थके हुएतो ये भी परिवर्तन है । तो परिवर्तन हमारे आबोहवाआबोहवा माने पर्यावरणऔर हमारे प्रति के लिए अनुकूल है तो हमारे लिए बहुत अच्छा है और दूसरों की आबोहवा और परिवर्तन के लिए जो अनुकूल हैतो आपको उतना अच्छा नहीं हैये है कहने का मतलब ।
प्रश्न: इलेक्ट्रीक गैस को यूज करना के नहीं ?
उत्तर: ज्यादा अच्छा नहीं है । मजबूरी है तो ठीक हैअगर आपके पास उसका विकल्प नहीं है तो जरुर इस्तेमाल कर लीजियेलेकिन अगर विकल्प हैभारत में है तो इसलिए ज्यादा अच्छा नहीं है ।
प्रश्न: आबोहवा से जुदा हुआ एक सवाल हैजैसे राजस्थान से गेहूं की बहुत आयत होती है और यहाँ चावल की बहुत आयात होती है । तो क्या ये सही होगा की हम खाने में चावल का ज्यादा इस्तेमाल करे ?
उत्तर: बिल्कुल सही होगा । आप इस समय चेन्नई में रहते हैतमिलनाडु और पूरा एरिया चावल के लिए मशहूर है चावल ही ज्यादा खाइए । अब इस बात को आगे गहराइसे  बताता हूँ कीयहाँ की जो मिटटी है तमिलनाडु की खेतों की और राजस्थान की जो मिटटी है उसमे जमीन-आसमान का अंतर है । यहाँ की आप मिटटी देखोगे तो वो ऐसी है जो पानी को ज्यादा देर तक पकड़ के रखेगीऋ और राजस्थान की मिटटी रेतीली हैजिसपर पानी टिकेगा नहीं । ये भगवान् ने अछेसे बनाया है । राजस्थान के लोग जहाँ रहते हैजिस ताप्माने मेंआबोहवा में रहते है उनके शारीर में कुछ ज्यादा केमिकल्स चाहिए तो वो उस मिटटी में ही हैवो रेतीली है । आप यहाँ रहते है यहाँ की आबोहवा राजस्थान से भिन्न हैह्यूमिडिटी जद हैतो आप वो केमिकल्स नहीं चाहिए तो भगवन ने ऐसी मिटटी बनायीं । तो ये मिटटी से जो चावल पैदा हो रहा है वो आप ज्यादा ही खाइएगेहू राजस्थान से लाकर खाने की कोशीश मत करिए । माने आप अगर ये कोशीश करेंगे तो तकलीपफ आपको आनेवाली है । आबोहवा का ध्यान रखियेचावल का प्रिपरेशन यहाँ ज्यादा है तो आप ज्यादा खाइए । अब समस्या आप के साथ ये है कीआप राजस्थान से आ तो गये,लेकिन राजस्थान छूटा नहीं आपसेवो छुटता नहीं हैसमस्या वहीँ है । हम बिहार से आ गये तो सिपर्फ स्थान परिवर्तन हुआलेकिन मन-परिवर्तन नहीं हुआमन अभी भी है राजस्थान में । माने में इसे ऐसे कहना चाहता हूँ की अगर अनुकूल परिस्तिथी हो गयी तो आप वापस राजस्थान चलेही जाएँगेक्योंकि मन नहीं छूटा आपकामन नहीं छूटता है इसलिए आपका स्वाद नहीं छूटा । ये सब मन का खेल हैमन से सारे स्वाद जुड़े हैं । मन नहीं छूटा तो पिफर आप गेहूं मंगवाते है और पिफर उसको रोटी बना कर खाते हैस्वाद के लिएऋ तो ठीक हैपौष्टिकता के हिसाब से आपके लिए चावल ज्यादा ठीक है । तो आपने शायद बॅलन्स बना लिया है की आप रोटी भी कहते है और चावल भी खाते हैयही है न तो इसी को चलने दीजिये । मई आपका मन छुड़ाना नहीं चाहता क्योंकि मई नहीं चाहता की आप पर्मनंट यहाँ रहेएक दिन राजस्थान तमिलनाडु से अच्छा हो जाये तो आप चले जाइये  । तो मेरे लिए वो स्वदेशी के लिए अच्छा है । तो आप मन को और स्वस्थ्य को बॅलन्स कर लीजियेबॅलन्स ये है की, 2-3 रोटी खा लीजिये और थोडा चावल खा लीजियेऐसा कर ले । थोडा इडली खा लीजियेथोडा हलवा खा लीजिये । हलवा इडली के लिए जरुर खा लीजिये बॅलन्स के लिए । थोडा डोसा खा रहें हैतो थोडा बाजरी के रोटी का एखाद टुकड़ाआध बाजरी के रोटी का । ये में बताउंगा किसके साथ क्या खाए और आपका बॅलन्स बना रहे  टिका रहे । ये आप ध्यान में रखिये स्वस्थ्य के लिए क्योंकि अगर स्वस्थ्य खराब हुआ तो मन भी आपका थोडा दुखी होगा ही । ये भी में बताउंगारोटी नहीं मिलेगीमन खराब होगा तो उसका असर शरीर पे आएगामन और स्वस्थ्य को बॅलन्स कर लीजिये । जीआखरी सवाल !
राजीव भैयया ये जो आपने बोल की अॅल्युमिनियम खाने के हिसाब से गंदी चीज हैजो भी खाना टायर हो रहा है वो अॅल्युमिनियम के अन्दर तो और जो पॅकिंग वगैरा हो रहा है उसमे अॅल्युमिनियम पे ज्यादा जोर देते है क्योंकि अॅल्युमिनियम है तो मेरा आपको एक ही विनंती है कीमैंने ये करके देख लिया हैअॅल्युमिनियम पफोईल में आप जो खाना पैक करते हैले जाने के लिए रस्ते मेंये बहुत हीखराब हैअच्छा नहीं है। तो आप बोलेंगे जीकिसमे पैक करे खाना,कपडे में पैक करना सबसे अच्छा हैकपडा । सूती कपडा होता है न पतलाएकदम पतलाउसमे जोरोटी बाँध् के आप रखेवो दुनिया का सबसे अच्छा पॅकिंग हैवो विज्ञान के हिसाब से बहुत अच्छा है ।

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