बुधवार, 4 मार्च 2015

किडनी की सफाई

आयुर्वेद के अनुसारः
सामान्य रूप से शरीर के किसी अंग में अचानक
सूजन होना, सर्वांग वेदना, बुखार, सिरदर्द,
वमन, रक्ताल्पता, पाण्डुता, मंदाग्नि, पसीने
का अभाव, त्वचा का रूखापन,
नाड़ी का तीव्र गति से चलना, रक्त
का उच्च दबाव, पेट में किडनी के स्थान
का दबाने पर पीड़ा होना, प्रायः बूँद-बूँद
करके अल्प मात्रा में जलन व पीड़ा के साथ
गर्म पेशाब आना, हाथ पैर ठंडे रहना, अनिद्रा,
यकृत-प्लीहा के दर्द, कर्णनाद, आँखों में
विकृति आना, कभी मूर्च्छा और
कभी उलटी होना, अम्लपित्त, ध्वजभंग
(नपुंसकता), सिर तथा गर्दन में पीड़ा, भूख
नष्ट होना, खूब प्यास लगना, कब्जियत
होना – जैसे लक्षण होते हैं। ये सभी लक्षण
सभी मरीजों में विद्यमान हों यह जरूरी नहीं।
गुर्दा रोग से होने वाले अन्य उपद्रवः
गुर्दे की विकृति का दर्द ज्यादा समय तक रहे
तो उसके कारण मरीज को श्वास (दमा),
हृदयकंप, न्यूमोनिया, प्लुरसी, जलोदर,
खाँसी, हृदयरोग, यकृत एवं प्लीहा के रोग,
मूर्च्छा एवं अंत में मृत्यु तक हो सकती है। ऐसे
मरीजों में ये उपद्रव विशेषकर रात्रि के समय
बढ़ जाते हैं।
आज की एलोपैथी में गुर्दो रोग का सरल व
सुलभ उपचार उपलब्ध नहीं है, जबकि आयुर्वेद के
पास इसका सचोट, सरल व सुलभ इलाज है।
आहारः प्रारंभ में रोगी को 3-4 दिन
का उपवास करायें अथवा मूँग या जौ के
पानी पर रखकर लघु आहार करायें। आहार में
नमक बिल्कुल न दें या कम दें। नींबू के शर्बत में
शहद या ग्लूकोज डालकर 15 दिन तक
दिया जा सकता है। चावल की पतली घेंस
या राब दी जा सकती है। फिर जैसे-जैसे
यूरिया की मात्रा क्रमशः घटती जाय वैसे-
वैसे, रोटी, सब्जी,
दलिया आदि दिया जा सकता है। मरीज
को मूँग का पानी, सहजने का सूप,
धमासा या गोक्षुर का पानी चाहे
जितना दे सकते हैं। किंतु जब फेफड़ों में
पानी का संचय होने लगे तो उसे
ज्यादा पानी न दें,
पानी की मात्रा घटा दें।
विहारः गुर्दे के मरीज को आराम जरूर करायें।
सूजन
ज्यादा हो अथवा यूरेमिया या मूत्रविष के
लक्षण दिखें तो मरीज को पूर्ण शय्या आराम
(Complete Bed Rest) करायें। मरीज को थोड़े
परम एवं सूखे वातावरण में रखें। हो सके तो पंखे
की हवा न खिलायें। तीव्र दर्द में गरम कपड़े
पहनायें। गर्म पानी से ही स्नान करायें।
थोड़ा गुनगुना पानी पिलायें।
औषध-उपचारः गुर्दे के रोगी के लिए कफ एवं
वायु का नाश करने
वाली चिकित्सा लाभप्रद है। जैसे
कि स्वेदन, वाष्पस्नान (Steam Bath), गर्म
पानी से कटिस्नान (Tub Bath)।
रोगी को आधुनिक तीव्र मूत्रल औषधि न दें
क्योंकि लम्बे समय के बाद उससे गुर्दे खराब
होते हैं। उसकी अपेक्षा यदि पेशाब में शक्कर
हो या पेशाब कम होता हो तो नींबू का रस,
सोडा बायकार्ब, श्वेत पर्पटी, चन्द्रप्रभा,
शिलाजीत आदि निर्दोष
औषधियों या उपयोग करना चाहिए। गंभीर
स्थिति में रक्त मोक्षण (शिरा मोक्षण) खूब
लाभदायी है किंतु यह चिकित्सा मरीज
को अस्पताल में रखकर
ही दी जानी चाहिए।
सरलता से सर्वत्र उपलब्ध पुनर्नवा नामक
वनस्पति का रस, काली मिर्च अथवा त्रिकटु
चूर्ण डालकर पीना चाहिए।
कुलथी का काढ़ा या सूप पियें। रोज 100 से
200 ग्राम की मात्रा में गोमूत्र पियें।
पुनर्नवादि मंडूर, दशमूल, क्वाथ, पुनर्नवारिष्ट,
दशमूलारिष्ट, गोक्षुरादि क्वाथ,
गोक्षुरादि गूगल, जीवित
प्रदावटी आदि का उपयोग दोषों एवं मरीज
की स्थिति को देखकर बनना चाहिए।

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