सोमवार, 2 मार्च 2015

तांबे के बर्तनों का करें उपयोग ---


तांबे के बर्तनों का करें उपयोग ---
भारतीय परिवार के रसोई में किसी जमाने में तांबे, पीतल, कांसे के बर्तन ही नजर आते थे।
स्टील के बर्तन तो आधुनिक समय की देन है।दरअसल हमारी संस्कृति में तांबे, पीतल और
कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल करने के पीछेअनेक स्वास्थ्य संबंधी कारण छिपे हुए हैं।
1. भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद केअनुसार तो नियमित
रूप से तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने सेहमारा शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है तथा कब्ज
एसिडिटी, अफारा, विविध चर्म-रोग,जोड़ों का दर्द इत्यादि शिकायतों से
मुक्ति मिलती है। सवेरे उठकर बिना ब्रश किएहुए एक लीटर
पानी पीना स्वास्थ के लिए हितकरहोता है। आयुर्वेद की मानें तो ताम्र-धातु से
निर्मित ‘जल-पात्र’ सर्वश्रेष्ठ माना गया है।तांबे के अभाव में मिट्टी का ‘जल-पात्र’
भी हितकर बतलाया गया है।2. तांबा खाद्य-पदार्थों को जहरीला बनाने वाले विषाणुओं
को मारने की क्षमता तो रखता ही है, साथही कोशिकाओं की झिल्ली और एंजाइम में
हस्तक्षेप करता है, जिससे रोगाणुओं के लिएजीवित रह पाना संभव नहीं हो पाता है.
तांबे के बर्तन में ई-कोली जैसे खतरनाकजीवाणु नहीं पनप सकते। परीक्षणों से यह
भी साबित हुआ है कि सामान्य तापमान मेंतांबा सिर्फ
चार घंटे में ई-कोली जैसे हानिकारकजीवाणुओं को मार डालता है। इसके विपरीत स्टेनलैस- स्टील के
धरातल पर जीवाणु एक महीने सेभी ज्यादा समय तक जिंदा रह सकते है
3. तांबे से शरीर को मिलने वाले लाभ-त्वचा में निखार आता है, कील-
मुंहासों की शिकायतें भी दूर होती हैं। पेट मेंरहनेवाली कृमियों का विनाश होता है और
भूख लगने में मदद मिलती है। बढ़ती हुई आयुकी वजह से होने वाली रक्तचाप
की बीमारी और रक्त के विकार नष्ट होने मेंसहायता मिलती है, मुंह फूलना,
घमौरियां आना, आंखों की जलन जैसेउष्णता संबंधित विकार कम होते हैं।
एसिडिटी से होने वाला सिरदर्द, चक्करआना और पेट में जलन जैसी तकलीफें कम
होती हैं। बवासीरतथा एनीमिया जैसी बीमारी मेंलाभदायक । इसके कफनाशक गुण का अनुभव
बहुत से लोगों ने लिया है। पीतल के बर्तन मेंकरीब आठ से दस घंटे पानी रखने से शरीर
को तांबे और जस्ते, दोनों धातुओं के लाभमिलेंगे। जस्ते से शरीर में प्रोटीन
की वृद्घि तो होती ही है साथ ही यहबालों से संबंधित बीमारियों को दूर करने में
भी लाभदायक होता है4. बर्मिघम में हुआ शोध शोधकर्ताओं नेअस्पताल में पारंपरिक टॉयलेट
की सीट, दरवाजे के पुश प्लेट, नल के हैंडिलसको बदल कर कॉपर की ऎसेसरीज लगा दीं।
जब उन्होंने दूसरे पारम्परिक टॉयलेट मेंउपस्थित जीवाणुओं के घनत्व की तुलना उससे
की तो पाया कि कॉपर की सतह पर 90 से100 फीयदी जीवाणु कम थे।
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बर्मिघम में हुए इसशोध में अध्ययन दल के प्रमुख प्रोफेसर टॉम
एलिएट ने बताया कि बर्मिघम एवं दक्षिणअफ्रीका में परीक्षणों से पता चला है
कि तांबे के इस्तेमाल से अस्पताल के भूतलको काफी हद तक हानिकारक जीवाणुओं से
मुक्त रखा जा सकता है। कॉपर बायोसाइडसे जुड़े शोधों से भी पता चलता है
कि तांबा संक्रमण से दूर रखता है। यही तथ्यताम्रपात्रों पा भी लागू होते हैं
5. आयुर्वेद में रसरत्नसमुच्चय ग्रंथ के पांचवेंअध्याय के श्लोक 46 में कहा गया है कि अंदर
तथा बाहर से अच्छी तरह से साफ किए हुएतांबे या पीतल (यह मिश्र धातु 70 प्रतिशत
तांबा और 30 प्रतिशत जस्ते का संयुग है) केबर्तनों में करीब आठ से दस घंटे तक रखे पानी में
तांबे और जस्ते के गुण संक्रमित होते हैं और यहपानी (ताम्रजल) संपूर्ण शरीर के लिए
लाभदायक होता है6. पानी की अपनी स्मरण-शक्ति होने के
कारण हम इस बात पर ध्यान देते हैंकि उसको कैसे बर्तन में रखें। अगर आप
पानी को रात भर या कम-से- कम चार घंटेतक तांबे के बर्तन में रखें तो यह तांबे के कुछ गुण
अपने में समा लेता है। यह पानी खास तौर परआपके लीवर के लिए और आम तौर पर
आपकी सेहत और शक्ति- स्फूर्ति के लिएउत्तम होता है। अगर पानी बड़ी तेजी के साथ
पंप हो कर अनगिनत मोड़ों के चक्कर लगाकरसीसे या प्लास्टिक की पाइप के सहारे
आपके घर तक पहुंचता है तो इन सब मोड़ों सेरगड़ाते-टकराते गुजरने के कारण उसमें
काफी नकारात्मकता समा जाती है।लेकिन पानी में याददाश्त के साथ-साथ
अपने मूल रूप में वापस पहुंच पानेकी शक्ति भी है।अगर आप नल के इस पानी को एक घंटे तक
बिना हिलाये-डुलाये रख देते हैंतो नकारात्मकता अपने-आप खत्म
हो जाती है|7. तांबे और चांदी के बैक्टीरिया-नाशक गुणऔर भी अधिक हो जाते हैं, जब यह धातुएं
’नैनो’ रूप में हों, क्योंकि इस रूप में धातुकी सतहको लाखों गुना बढ़ाया जा सकता है। इस
वजह से धातु की बहुत कम मात्रा से काम चलाया जा सकता है। ’नैनो-तांबा’ और
’नैनो-चांदी’ पर हुई शोध से यह परिणाम
पिछले 10-15 सालों में ही सामने आए हैं और
इन्हें वाटर-फिल्टर और एयर-फिल्टर
टेक्नालजी में अपनाया जा चुका है। लेकिन
विडम्बना यह है कि लोग महंगे-महंगे वाटर-
फिल्टर लगवा कर उसका पानी पीना पसंद
करते हैं, न कि तांबे के बरतन में रखा पानी।
अपने को पढ़ा-लिखा और आधुनिक कहने
वाली यह पीढ़ी पुराने तौर-
तरीकों को दकियानूसी करार देने में
शेखी समझती है, और जब इस पर पश्चिम
की मुहर लग जाती है तो उसे सहर्ष गले
लगा लेती है।
फ्रीज, प्लास्टिक बॉटल में जल रखने से
या आधुनिक तकनीक वाले वॉटर प्यूरीफायर
से उसकी Life Force energy शुन्य
हो जाती है. प्यूरीफायर से निकला जल
निःसंदेह बैक्टीरिया मुक्त होता है परंतु life
force energy शुन्य हो जाती है.
मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है. जल ऊन में
से एक तत्व है.
आजकल पुराने भारतीय तरीके का त्याग
कारण है की हमारे शरीर में जल तत्व
की कमी हो रही है, जिससे की किडनी और
urinary tract संबंधित बीमारियां बढ़ रही है.
समाज में पानी की life force energy शुन्य
होने से नपुंसकता भी बढ़ रही है..
कई बार पानी की बोतल कार में रखी रह
जाती है. पानी धुप में गर्म
होता है.प्लास्टिक की बोतलों में
पानी बहुत देर से रखा हो और तापमान
अधिक हो जाए तो गर्मी से प्लास्टिक में से
डाइऑक्सिन नामक रसायन निकल कर
पानी में मिल जाता है. यह कैंसर
पैदा करता है.वॉटर प्यूरीफायर
भी प्लास्टिक से ही बनते हैं. इसी तरह
प्लास्टिक रैप में या प्लास्टिक के बर्तनों में
माइक्रोवेव में खाना गर्म करने से भी यह
ज़हरीला रसायन बनता है. विशेषकर तब जब
खाने में घी या तेल हो. इसी तरह स्टाइरीन
फोम के बने ग्लास और दोने भी रसायन छोड़ते
है.
'तांबे के बर्तनों का करें उपयोग ---
भारतीय परिवार के रसोई में किसी जमाने में
तांबे, पीतल, कांसे के बर्तन ही नजर आते थे।
स्टील के बर्तन तो आधुनिक समय की देन है।
दरअसल हमारी संस्कृति में तांबे, पीतल और
कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल करने के पीछे
अनेक स्वास्थ्य संबंधी कारण छिपे हुए हैं।
1. भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के
अनुसार तो नियमित
रूप से तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से
हमारा शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है तथा कब्ज
एसिडिटी, अफारा, विविध चर्म-रोग,
जोड़ों का दर्द इत्यादि शिकायतों से
मुक्ति मिलती है। सवेरे उठकर बिना ब्रश किए
हुए एक लीटर
पानी पीना स्वास्थ के लिए हितकर
होता है। आयुर्वेद की मानें तो ताम्र-धातु से
निर्मित ‘जल-पात्र’ सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
तांबे के अभाव में मिट्टी का ‘जल-पात्र’
भी हितकर बतलाया गया है।
2. तांबा खाद्य-
पदार्थों को जहरीला बनाने वाले विषाणुओं
को मारने की क्षमता तो रखता ही है, साथ
ही कोशिकाओं की झिल्ली और एंजाइम में
हस्तक्षेप करता है, जिससे रोगाणुओं के लिए
जीवित रह पाना संभव नहीं हो पाता है.
तांबे के बर्तन में ई-कोली जैसे खतरनाक
जीवाणु नहीं पनप सकते। परीक्षणों से यह
भी साबित हुआ है कि सामान्य तापमान में
तांबा सिर्फ
चार घंटे में ई-कोली जैसे हानिकारक
जीवाणुओं को मार
डालता है। इसके विपरीत स्टेनलैस- स्टील के
धरातल पर जीवाणु एक महीने से
भी ज्यादा समय तक जिंदा रह सकते है
3. तांबे से शरीर को मिलने वाले लाभ-
त्वचा में निखार आता है, कील-
मुंहासों की शिकायतें भी दूर होती हैं। पेट में
रहनेवाली कृमियों का विनाश होता है और
भूख लगने में मदद मिलती है। बढ़ती हुई आयु
की वजह से होने वाली रक्तचाप
की बीमारी और रक्त के विकार नष्ट होने में
सहायता मिलती है, मुंह फूलना,
घमौरियां आना, आंखों की जलन जैसे
उष्णता संबंधित विकार कम होते हैं।
एसिडिटी से होने वाला सिरदर्द, चक्कर
आना और पेट में जलन जैसी तकलीफें कम
होती हैं। बवासीर
तथा एनीमिया जैसी बीमारी में
लाभदायक । इसके कफनाशक गुण का अनुभव
बहुत से लोगों ने लिया है। पीतल के बर्तन में
करीब आठ से दस घंटे पानी रखने से शरीर
को तांबे और जस्ते, दोनों धातुओं के लाभ
मिलेंगे। जस्ते से शरीर में प्रोटीन
की वृद्घि तो होती ही है साथ ही यह
बालों से संबंधित बीमारियों को दूर करने में
भी लाभदायक होता है
4. बर्मिघम में हुआ शोध शोधकर्ताओं ने
अस्पताल में पारंपरिक टॉयलेट
की सीट, दरवाजे के पुश प्लेट, नल के हैंडिलस
को बदल कर कॉपर की ऎसेसरीज लगा दीं।
जब उन्होंने दूसरे पारम्परिक टॉयलेट में
उपस्थित जीवाणुओं के घनत्व की तुलना उससे
की तो पाया कि कॉपर की सतह पर 90 से
100 फीयदी जीवाणु कम थे।
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बर्मिघम में हुए इस
शोध में अध्ययन दल के प्रमुख प्रोफेसर टॉम
एलिएट ने बताया कि बर्मिघम एवं दक्षिण
अफ्रीका में परीक्षणों से पता चला है
कि तांबे के इस्तेमाल से अस्पताल के भूतल
को काफी हद तक हानिकारक जीवाणुओं से
मुक्त रखा जा सकता है। कॉपर बायोसाइड
से जुड़े शोधों से भी पता चलता है
कि तांबा संक्रमण से दूर रखता है। यही तथ्य
ताम्रपात्रों पा भी लागू होते हैं
5. आयुर्वेद में रसरत्नसमुच्चय ग्रंथ के पांचवें
अध्याय के श्लोक 46 में कहा गया है कि अंदर
तथा बाहर से अच्छी तरह से साफ किए हुए
तांबे या पीतल (यह मिश्र धातु 70 प्रतिशत
तांबा और 30 प्रतिशत जस्ते का संयुग है) के
बर्तनों में करीब आठ से दस घंटे तक रखे पानी में
तांबे और जस्ते के गुण संक्रमित होते हैं और यह
पानी (ताम्रजल) संपूर्ण शरीर के लिए
लाभदायक होता है
6. पानी की अपनी स्मरण-शक्ति होने के
कारण हम इस बात पर ध्यान देते हैं
कि उसको कैसे बर्तन में रखें। अगर आप
पानी को रात भर या कम-से- कम चार घंटे
तक तांबे के बर्तन में रखें तो यह तांबे के कुछ गुण
अपने में समा लेता है। यह पानी खास तौर पर
आपके लीवर के लिए और आम तौर पर
आपकी सेहत और शक्ति- स्फूर्ति के लिए
उत्तम होता है। अगर पानी बड़ी तेजी के साथ
पंप हो कर अनगिनत मोड़ों के चक्कर लगाकर
सीसे या प्लास्टिक की पाइप के सहारे
आपके घर तक पहुंचता है तो इन सब मोड़ों से
रगड़ाते-टकराते गुजरने के कारण उसमें
काफी नकारात्मकता समा जाती है।
लेकिन पानी में याददाश्त के साथ-साथ
अपने मूल रूप में वापस पहुंच पाने
की शक्ति भी है।
अगर आप नल के इस पानी को एक घंटे तक
बिना हिलाये-डुलाये रख देते हैं
तो नकारात्मकता अपने-आप खत्म
हो जाती है|
7. तांबे और चांदी के बैक्टीरिया-नाशक गुण
और भी अधिक हो जाते हैं, जब यह धातुएं
’नैनो’ रूप में हों, क्योंकि इस रूप में धातु
की सतह
को लाखों गुना बढ़ाया जा सकता है। इस
वजह से धातु की बहुत कम मात्रा से काम
चलाया जा सकता है। ’नैनो-तांबा’ और
’नैनो-चांदी’ पर हुई शोध से यह परिणाम
पिछले 10-15 सालों में ही सामने आए हैं और
इन्हें वाटर-फिल्टर और एयर-फिल्टर
टेक्नालजी में अपनाया जा चुका है। लेकिन
विडम्बना यह है कि लोग महंगे-महंगे वाटर-
फिल्टर लगवा कर उसका पानी पीना पसंद
करते हैं, न कि तांबे के बरतन में रखा पानी।
अपने को पढ़ा-लिखा और आधुनिक कहने
वाली यह पीढ़ी पुराने तौर-
तरीकों को दकियानूसी करार देने में
शेखी समझती है, और जब इस पर पश्चिम
की मुहर लग जाती है तो उसे सहर्ष गले
लगा लेती है।
फ्रीज, प्लास्टिक बॉटल में जल रखने से
या आधुनिक तकनीक वाले वॉटर प्यूरीफायर
से उसकी Life Force energy शुन्य
हो जाती है. प्यूरीफायर से निकला जल
निःसंदेह बैक्टीरिया मुक्त होता है परंतु life
force energy शुन्य हो जाती है.
मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है. जल ऊन में
से एक तत्व है.
आजकल पुराने भारतीय तरीके का त्याग
कारण है की हमारे शरीर में जल तत्व
की कमी हो रही है, जिससे की किडनी और
urinary tract संबंधित बीमारियां बढ़ रही है.
समाज में पानी की life force energy शुन्य
होने से नपुंसकता भी बढ़ रही है..
कई बार पानी की बोतल कार में रखी रह
जाती है. पानी धुप में गर्म
होता है.प्लास्टिक की बोतलों में
पानी बहुत देर से रखा हो और तापमान
अधिक हो जाए तो गर्मी से प्लास्टिक में से
डाइऑक्सिन नामक रसायन निकल कर
पानी में मिल जाता है. यह कैंसर
पैदा करता है.वॉटर प्यूरीफायर
भी प्लास्टिक से ही बनते हैं. इसी तरह
प्लास्टिक रैप में या प्लास्टिक के बर्तनों में
माइक्रोवेव में खाना गर्म करने से भी यह
ज़हरीला रसायन बनता है. विशेषकर तब जब
खाने में घी या तेल हो. इसी तरह स्टाइरीन
फोम के बने ग्लास और दोने भी रसायन छोड़ते
है.'

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