सोमवार, 7 सितंबर 2015

कैंसर CANCER



कैंसर के हज़ारो रोगियों को सिर्फ आहार से सही करने वाली डॉक्टर।

डॉ योहाना बुडविज:-  जानिये उनके बारे में के कैसे वह कैंसर को सही करती थी।
Budwig Protocol
प्रस्तावनाः-
डॉ योहाना बुडविज (जन्म 30 सितम्बर, 1908 – मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीवरसायन विशेषज्ञ व चिकित्सक थीं। उन्होंने भौतिक विज्ञान, जीवरसायन विज्ञान, भेषज विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की व प्राकृतिक विज्ञान में पी.एच.ड़ी. की। वे जर्मन व सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत थी और सरकार की विशेष सलाहकार थी। वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ थी। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध की। उनका नाम नोबल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित हुआ। वे आजीवन शाकाहारी रहीं। जीवन के अंतिम दिनों में भी वे सुंदर, स्वस्थ व अपनी आयु से काफी युवा दिखती थी। उन्होंने पहली बार संतृप्त और असंतृप्त वसा पर बहुत शोध किया। उन्होंने पहली बार आवश्यक वसा अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा–6 को पहचाना और उन्हें पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की। इनके हमारे शरीर पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। उन्होंने यह भी पता लगाया कि ओमेगा – 3 किस प्रकार हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं तथा स्वस्थ शरीर को ओमेगा–3 व ओमेगा–6 बराबर मात्रा में मिलना चाहिये। इसीलिये उन्हे “ओमेगा-3 लेडी” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा मार्जरीन (वनस्पति घी), ट्रांस फैट व रिफाइण्ड तेलों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का पता लगाया था। वे मार्जरीन, हाइड्रोजिनेटेड और रिफाइंड तेलों को प्रतिबंधित करना चाहती थी जिसके कारण खाद्य तेल और मार्जरीन बनाने वाले संस्थान परेशानी में थे।
1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग को कैंसर पर उनकी शोध के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व ही संभव नहीं है। परन्तु तब वारबर्ग यह पता नहीं कर पाये कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये।
सामान्य कोशिकाएँ अपने चयापचय हेतु ऊर्जा ऑक्सीजन से ग्रहण करती है। जबकि कैंसर कोशिकाऐं ऑक्सीजन के अभाव और अम्लीय माध्यम में ही फलती फूलती है। कैंसर कोशिकायें ऑक्सीजन से श्वसन क्रिया नहीं करती। यदि कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए लगभग 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वह कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व ही संभव नहीं है।उन्होनें कई परिक्षण किये परन्तु वारबर्ग यह पता नहीं कर पाये कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये। डॉ. योहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। वर्षों तक शोध करके पता लगाया कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त ओमेगा–3 वसा से भरपूर अलसी, जिसे अंग्रेजी में linseed या Flaxseed कहते हैं, का तेल कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरता है, कोशिकाओं की स्वस्थ भित्तियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को खींचता है। इनके सामने मुख्य समस्या ये थी की अलसी के तेल को जो रक्त में नहीं घुलता है, को कोशिकाओं तक कैसे पहुँचाया जाये ? वर्षों तक कई परीक्षण करने के बाद डॉ. योहाना ने पाया कि सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल के साथ मिलाने पर तेल को पानी में घुलनशील बनाता है और तेल को सीधा कोशिकाओं तक पहुँचाता है। इससे कोशिकाओं को भरपूर ऑक्सीजन पहुँचती है व कैंसर खत्म होने लगता है।
1952 में डॉ. योहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण तथा कैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर रोगियों के उपचार का तरीका विकसित किया, जो “बुडविज प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ”। इस उपचार से कैंसर रोगियों को बहुत लाभ मिलने लगा था। इस सरल, सुगम, लभ उपचार से कैंसर के रोगी ठीक हो रहे थे। इस उपचार से 90 प्रतिशत तक सफलता मिलती थी। नेता और नोबल पुरस्कार समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।
यह सब देखकर कैंसर व्यवसाय से जुड़े मंहगी कैंसररोधी दवाईयां और रेडियोथेरेपी उपकरण बनाने वाले संस्थानों की नींद हराम हो रही थी। उन्हें डर था कि यदि यह उपचार प्रचलित होता है तो उनकी कैंसररोधी दवाईयां और कीमोथेरिपी उपकरण कौन खरीदेगा ? इस कारण सभी बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने उनके विरूद्ध कई षड़यन्त्र रचे। ये नेताओं और सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को रिश्वत देकर डॉ. योहाना को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करते रहे। फलस्वरूप डॉ. योहाना को अपना पद छोड़ना पड़ा, सरकारी प्रयोगशालाओं में इनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई और इनके शोध पत्रों के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई।
विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन पर तीस से ज्यादा मुकदमें दाखिल किये। डॉ. बुडविज ने अपने बचाव हेतु सारे दस्तावेज स्वंय तैयार किये और अन्तत: सारे मुकदमों मे जीत भी हासिल की। कई न्यायाधीशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियो को लताड़ लगाई और कहा कि डॉ. बुडविज द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध पत्र सही हैं, इनके प्रयोग वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं, इनके द्वारा विकसित किया गया उपचार जनता के हित में है और आम जनता तक पहुंचना चाहिए। इन्हे व्यर्थ परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
वे 1952 से 2002 तक कैंसर के लाखों रोगियों का उपचार करती रहीं। अलबर्ट आईन्स्टीन ने एक बार सच ही कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा। इस उपचार से सभी प्रकार के कैंसर रोगी कुछ महीनों में ठीक हो जाते थे। वे कैंसर के ऐसे रोगियों को, जिन्हें अस्पताल से यह कर छुट्टी दे दी जाती थी कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है और उनके पास अब चंद घंटे या चंद दिन ही बचे हैं, अपने उपचार से ठीक कर देती थीं। कैंसर के अलावा इस उपचार से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस, हृदयाघात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक होजाती हैं।
डॉ. योहाना के पास अमेरिका व अन्य देशों के डाक्टर मिलने आते थे, उनके उपचार की प्रसंशा करते थे पर उनके उपचार से व्यावसायिक लाभ अर्जित करने हेतु आर्थिक सौदे बाज़ी की इच्छा व्यक्त करते थे। वे भी पूरी दुनिया का भ्रमण करती थीं। अपनी खोज के बारे में व्याख्यान देती थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें “फेट सिंड्रोम”, “डेथ आफ ए ट्यूमर”, “फलेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज”, “आयल प्रोटीन कुक बुक”, “कैंसर – द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशन” आदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आख़िरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।
कैंसररोधी योहाना बुडविज आहार विहार
डॉ. बुडविज आहार-विहार क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्क रोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा इलेक्ट्रोन युक्त और (जैविक जहां तक सम्भव हो) होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और रसों के रूप में लिये जाते है, जिन्हें ताजा तैयार किया जाना चाहिए ताकि रोगी को भरपूरइलेक्ट्रोन्स मिले। ड़ॉ. बुडविज ने इलेक्ट्रोन्स पर बहुत जोर दिया है। अलसी के तेल में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं और ड़ॉ बुडविज ने अन्य इलेक्ट्रोन्स युक्त खाद्यान्न भी ज्यादा से ज्यादा लेने की सलाह दी है। इस उपचार के बाद में कहा जाता है कि छोटी-छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हैं। और जरा सी असावधानी इस आहार के औषधीय प्रभाव को प्रभावित कर सकती है।
रोज सूर्य के प्रकाश का सेवन अनिवार्य है। इससे विटामिन-डी भी प्राप्त होता है। रोजाना दस-दस मिनट के लिए दो बार कपड़े उतार कर धूप में लेटना आवश्यक है। पांच मिनट सीधा लेटे और करवट बदलकर पांच मिनट उल्टे लेट जायें ताकि शरीर के हर हिस्से को सूर्य के प्रकाश का लाभ मिले। रोगी की रोजाना अलसी के तेल की मालिश भी की जानी चाहिए इससे शरीर मेंरक्त का प्रवाह बढ़ता है और टॉक्सिन बाहर निकलते है। रोगी को हर तरह के प्रदूषण (जैसे मच्छर मारने के स्प्रे आदि) और इलेक्ट्रानिक उपकरणों (जैसे CRT वाले टी.वी. आदि) से निकलने वाले विकिरण से जहां तक सम्भव हो बचना चाहिए। रोगी को सिन्थेटिक कपड़ो की जगह ऊनी, लिनन और सूती कपड़े प्रयोग पहनना चाहिए। गद्दे भी फोम और पोलिएस्टर फाइबर की जगह रुई से बने हों।
यदि रोगी की स्थिति बहुत खराब हो या वह ठीक से भोजह नहीं ले पा रहा है तो उसे अलसी के तेल का एनीमा भी दिना चाहिये। ड़ॉ. बुडविज ऐसे रोगियों के लिए “अस्थाई आहार” लेने की सलाह देती थी। यह अस्थाई आहार यकृत और अग्न्याशय कैंसर के रोगियों को भी दिया जाता है क्योंकि वे भी शुरू में सम्पूर्ण बुडविज आहार नहीं पचा पाते हैं। अस्थाई आहार में रोगी को सामान्य भोजन के अलावा कुछ दिनों तक पिसी हुई अलसी और पपीते, अंगूर व अन्य फलों का रस दिया जाता है। कुछ दिनों बाद जब रोगी की पाचन शक्ति ठीक हो जाती है तो उसे धीरे-धीरे सम्पूर्ण बुडविज आहार शुरू कर दिया जाता है।
प्रातः –
प्रातः एक ग्लास सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का रस या एक गिलास छाछ लें। सॉवरक्रॉट में कैंसररोधी तत्व और भरपूर विटामिन-सी होता है और यह पाचन शक्ति भी बढ़ाता है। यह हमारे देश में उपलब्ध नहीं है परन्तु इसे घर पर पत्ता गोभी को ख़मीर करके बनाया जा सकता है।
पनीर बनाने के लिए गाय या बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। इसे एकदम ताज़ा बनायें, तुरंत खूब चबा चबा कर आनंद लेते हुए सेवन करें। 3 बड़ी चम्मच यानी 45 एम.एल. अलसी का तेल और 6 बड़ी चम्मच यानी 90 एम.एल. पनीर को बिजली से चलने वाले हेन्ड ब्लेंडर से एक मिनट तक अच्छी तरह मिक्स करें। तेल और पनीर का मिश्रण क्रीम की तरह हो जाना चाहिये और तेल दिखाई देना नहीं चाहिये। तेल और पनीर को ब्लेंड करते समय यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो 1 या 2 चम्मच अंगूर का रस या दूध मिला लें। अब 2 बड़ी चम्मच अलसी ताज़ा पीस कर मिलायें। अलसी को पीसने के बाद पन्द्रह मिनट के अन्दर काम में ले लेना चाहिए।
मिश्रण में स्ट्राबेरी, रसबेरी, जामुन आदि फल मिलाऐं। बेरों में एलेजिक एसिड होते हैं जो कैंसररोधी हैं। आप चाहें तो आधा कप कटे हुए अन्य फल भी मिला लें। इसे कटे हुए मेवे खुबानी, बादाम, अखरोट, किशमिश, मुनक्के आदि सूखे मेवों से सजाऐ। मूंगफली वर्जित है। मेवों में सल्फर युक्त प्रोटीन, वसा और विटामिन होते हैं। स्वाद के लिए वनिला, दाल चीनी, ताजा काकाओ, कसा नारियल या नींबू का रस मिला सकते हैं।
दिन भर में कुल शहद 3 – 5 चम्मच से ज्यादा न लें। याद रहे शहद प्राकृतिक व मिलावट रहित हो। डिब्बा बंद या परिष्कृत कतई न हो। दिन भर में 6 या 8 खुबानी के बीज अवश्य ही खायें। इनमें विटामिन बी-17 होता हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है। फल, मेवे और मसाले बदल कर प्रयोग करें। ओम खण्ड को बनाने के दस मिनट के भीतर ले लेना चाहिए। यदि और खाने की इच्छा हो तो टमाटर, मूली, ककड़ी आदि के सलाद के साथ कूटू, ज्वार, बाजरा आदि साबुत अनाजों के आटे की बनी एक रोटी ले लें। कूटू को बुडविज ने सबसे अच्छा अन्न माना है। गैहू में ग्लूटेन होता है और पचने में भारी होता है अतः इसका प्रयोग तो कम ही करें।
10 बजेः-
नाश्ते के 1 घंटे बाद घर पर ताजा बना गाजर, मूली, लौकी, चुकंदर, गाजर आदि का ताजा रस लें। गाजर और चुकंदर
यकृत को ताकत देते हैं और अत्यंत कैंसर रोधी होते हैं।
दोपहर का खानाः-
दोपहर के खाने के आधा घंटा पहले एक गर्म हर्बल चाय लें। कच्ची सब्जियां जैसे चुकंदर, शलगम, मूली, गाजर, गोभी, हरी गोभी, हाथीचाक, शतावर, आदि के सलाद को घर पर बनी सलाद ड्रेसिंग या ऑलियोलक्स के साथ लें। ड्रेसिंग को 1-2 चम्मच अलसी के तेल व 1-2 चम्मच पनीर के मिश्रण में एक चम्मच सेब का सिरका या नीबू के रस और मसाले डाल कर बनाएं।
सलाद को मीठा करना हो तो अलसी के तेल में अंगूर, संतरे या सेब का रस या शहद मिला कर लें। यदि फिर भी भूख है तो आप उबली या भाप में पकी सब्जियों के साथ एक दो मिश्रित आटे की रोटी ले सकते हैं। सब्जियों व रोटी पर ऑलियोलक्स (इसे नारियल, अलसी के तेल, प्याज, लहसुन से बनाया जाता है) भी डाल सकते हैं। मसाले, सब्जियों व फल बदल – बदल कर लेवें। रोज़ एक चम्मच कलौंजी का तेल भी लें। भोजन तनाव रहित होकर खूब चबा-चबा कर खाएं।
ॐ खंड की दूसरी खुराकः-
अब नाश्ते की तरह ही 3 बड़ी चम्मच अलसी के तेल व 6 बड़ी चम्मच पनीर के मिश्रण में ताजा फल, मेवे और मसाले मिलाकर लें। यह अत्यंत आवश्यक हैं। हां पिसी अलसी इस बार न डाले।
दोपहर बादः-
अन्नानास, चेरी या अंगूर के रस में एक चम्मच अलसी को ताजा पीस कर मिलाएं और खूब चबा कर, लार में मिला कर धीरे धीरे चुस्कियां ले लेकर पियें। चाहें तो आधा घंटे बाद एक ग्लास रस और ले लें।
तीसरे पहरः-
पपीता या ब्लू बेरी (नीला जामुन) रस में एक चम्मच अलसी को ताजा पीस कर डालें खूब चबा–चबा कर, लार में मिला कर धीरे – धीरे चुस्कियां ले लेकर पियें। पपीते में भरपूर एंज़ाइम होते हैं और इससे पाचन शक्ति भी ठीक होती है।
सायंकालीन भोजः-
शाम को बिना तेल डाले सब्जियों का शोरबा या अन्य विधि से सब्जियां बनायें। मसाले भी डालें। पकने के बाद ईस्ट फ्लेक्स और ऑलियोलक्स डालें। ईस्ट फ्लेक्स में विटामिन-बी होते हैं जो शरीर को ताकत देते हैं। टमाटर, गाजर, चुकंदर, प्याज, शतावर, शिमला मिर्च, पालक, पत्ता गोभी, गोभी, हरी गोभी (ब्रोकोली) आदि सब्जियों का सेवन करें। शोरबे को आप उबले कूटू, भूरे चावल, रतालू, आलू, मसूर, राजमा, मटर साबुत दालें या मिश्रित आटे की रोटी के साथ ले सकते हैं।
बुडविज आहार के अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दु
1. डॉ. योहाना कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, वनस्पति घी, ट्रांस फेट, मक्खन, घी, चीनी, मिश्री, गुड़, रिफाइण्ड तेल, सोयाबीन व सोयाबीन से निर्मित दूध व टॉफू आदि, प्रिज़र्वेटिव, कीटनाशक, रसायन, सिंथेटिक कपड़ों, मच्छर मारने के स्प्रे, बाजार में उपलब्ध खुले व पेकेट बंद खाद्य पदार्थ, अंडा, मांस, मछली, मुर्गा, मैदा आदि से पूर्ण परहेज करने की सलाह देती थी। वे कैंसर रोगी को सनस्क्रीन लोशन, धूप के चश्में आदि का प्रयोग करने के लिए भी मना करती थी।
2. इस उपचार में यह बहुत आवश्यक है कि प्रयोग में आने वाले सभी खाद्य पदार्थ ताजा, जैविक और इलेक्ट्रोन युक्त हो। बचे हुए व्यंजन फेंक दें।
3. अलसी को जब आवश्यकता हो तभी पीसें। पीसकर रखने से ये खराब हो जाती है। तेल को तापमान (42 डिग्री सेल्सियस पर यह खराब हो जाता है), प्रकाश व ऑक्सीजन से बचायें। आप इसे गहरे रंग के पात्र में भरकर डीप फ्रीज़ में रखें।
4. दिन में कम से कम तीन बार हरी या हर्बल चाय लें।
5. इस उपचार में धूप का बहुत महत्व है। थोड़ी देर धूप में बैठना है या भ्रमण करना है जिससे आपको विटामिन डी प्राप्त होता है। सूर्य से ऊर्जा मिलेगी।
6. प्राणायाम, ध्यान व जितना संभव हो हल्का फुल्का व्यायाम या योगा करना है।
7. घर का वातावरण तनाव मुक्त, खुशनुमा, प्रेममय, आध्यात्मिक व सकारात्मक रहना चाहिये। आप मधुर संगीत सुनें, खूब हंसें, खेलें कूदें। क्रोध न करें।
8. सप्ताह में दो-तीन बार भाप स्नान या सोना-बाथ लेना चाहिए।
9. पानी स्वच्छ व फिल्टर किया हुआ पियें।
10. इस उपचार से धीरे-धीरे लाभ मिलता है और यदि उपचार को ठीक प्रकार से लिया जाये तो सामान्यत: एक वर्ष या कम समय में कैंसर पूर्णरूप से ठीक हो जाता है। रोग ठीक होने के पश्चात भी इस उपचार को 2-3 वर्ष या आजीवन लेते रहना चाहिये।
11. अपने दांतो की पूरी देखभाल रखना है। दांतो को इंफेक्शन से बचाना चाहिये।
12. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस उपचार को जैसा ऊपर विस्तार से बताया गया है वैसे ही लेना है अन्यथा फायदा नहीं होता है या धीरे-धीरे होता है।
आप सोच रहे होगें कि डॉ. योहाना की उपचार पद्धति इतनी असर दायक व चमत्कारी है तो यह इतनी प्रचलित क्यों नहीं है। यह वास्तव में इंसानी लालच की पराकाष्ठा है। सोचिये यदि कैंसर के सारे रोगी अलसी के तेल व पनीर से ही ठीक होने लगते तो कैंसर की मंहगी दवाइयॉं व रेडियोथेरेपी उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कितना बड़ा आर्थिक नुकसान होता। इसलिए उन्होंने किसी भी हद तक जाकर डॉ. योहाना के उपचार को आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया। मेडीकल पाठ्यक्रम में उनके उपचार को कभी भी शामिल नहीं होने दिया।
उनके सामने शर्त रखी गई थी कि नोबेल पुरस्कार लेना है तो कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी को भी अपने इलाज में शामिल करो जो डॉ. योहाना को कभी भी मंजूर नहीं था। यह हम पृथ्वी वासियों का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां शरीर के लिए घातक व बीमारियां पैदा करने वाले वनस्पति घी बनाने वालों पाल सेबेटियर् और विक्टर ग्रिगनार्ड को 1912 में नोबेल पुरस्कार दे दिया गया और कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी के इलाज की खोज करने वाली डॉ. योहाना नोबेल पुरस्कार से वनचित रह गई।
क्या कैंसर के उन करोड़ों रोगियों, जो इस उपचार से ठीक हो सकते थे, की आत्माएँ इन लालची बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कभी क्षमा कर पायेगी ? ? ? लेकिन आज यह जानकारी हमारे पास है और हम इसे कैंसर के हर रोगी तक पहुँचाने का संकल्प लेते हैं।
डॉ. योहाना का उपचार श्री कृष्ण भगवान का वो सुदर्शन चक्र है जिससे किसी भी कैंसर का बच पाना मुश्किल है।
For More Information on Johanna Budwig follow the link below.
https://en.wikipedia.org/wiki/Johanna_Budwig




फेफड़ों के कैंसर के बारे में जानकारी।

फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer)
यद्यपि मानव शरीर में कोशिकाओं की बढ़त नियंत्रित रूप से होती है लेकिन कुछ कोशिकाओं का एक ऐसा समूह होता है जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ता है और विकसित होता है। इन कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाएं कहते हैं। ये दो प्रकार की होती है जिन्हें बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumour) और मेलिगनेन्ट ट्यूमर (Malignant Tumour) कहा जाता है। बिनाइन ट्यूमर कैंसर रहित जबकि मेलिगनेन्ट ट्यूमर कैंसर वाला कहा जाता है। बिनाइन ट्यूमर कोशिकाओं की बढ़त बहुत धीमी होती है ये फैलती नहीं है।जबकि मेलिगनेंट ट्यूमर कोशिकायें तेजी के साथ बढ़ती हैं और अपने नजदीकी सामान्य ऊतकों (Tissues) को भी नष्ट करती है। ये संपूर्ण शरीर में फैल जाती हैं। जब मेलिगनेन्ट ट्यूमर मानवीय शरीर को प्रभावित करने लगता है और कैंसर कोशिकाओं को अन्य मानवीय ऊतकों (Tissues) में भेजने लगता है तो इस अवस्था को कैंसर कहा जाता है ।
फेफड़ों का लार्ज सेल कैंसर, लार्ज सेल कार्सिनोमा के नाम से भी जाना जाता है। लार्ज सेल कैंसर अक्सर फेफड़ों की बाहरी परत पर होता है। इसलिए इससे होने वाली समस्याएं फेफड़ों को प्रभावित करती हैं। अगर जल्द से जल्द इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह तेजी से अन्य अंगों में फैलना शुरू हो जाता है।
फेफड़ों का कैंसर के लक्षण
अंगुलियों और अंगूठों के सिरों का बढ़ जाना (डिजिटल क्लतबिंग)
आवाज का फटना
कुछ मामलों में निमोनिया होना
खांसी में खून का आना (हेमोप्टाइसिस),
थकान (कमजोरी) महसूस होना
निरंतर खांसी बने रहना,
वजन में कमी या भूख न लगना, निगलने में कठिनाई होना
विशेषकर नाखूनों के आसपास की त्वुचा का बढ़ना पैरानियोप्लावस्टिक फिनोमिना जैसे कि स्तनों में वृद्धि
शरीर की रासायनिक संरचना में असामान्यताएं होना
सांस लेने में कठिनाई या घरघराहट होना
सिर में दर्द या दौरा पड़ना, चेहरे, गर्दन या ऊपरी अंगों में सूजन आना
सीने, कंधे या बांह में दर्द रहना
हड्डियों में दर्द रहना

कैंसर पाए जाने के बाद लोग अकसर परेशान हो जाते हैं। कैंसर के निदान और उपचार के दौरान और उसके पश्चात व्यावहारिक और भावनात्मक सहायता बहुत महत्वपूर्ण होती है। परिवार के सदस्यों, स्वास्थ्य पेशेवरों या विशेष सहायता सेवाओं के माध्यम से यह सहायता उपलब्ध हो सकती है।

धूम्रपान इसकी बहुत बड़ी वजह हैं, इसलिए इस से बचे। 
और भी बहुत से कारण हैं जिनके हम दूसरे लेख में पढ़ेंगे, जो आप नीचे लिंक पे जा कर क्लिक कर सकते हैं।


जानिये ब्रेस्ट कैंसर के बारे में

ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer)
मानव शरीर के अवयव और ऊतक कोशिकाओं (सेल) से बने होते हैं। कैंसर इन कोशिकाओं का एक रोग है। ब्रैस्ट कैंसर दुनिया में तेजी से फैलने वाली खतरनाक बीमारियों में से एक है। ब्रैस्ट कैंसर की अधिकतर रोगी महिलाएं होती हैं। पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम होती है। ब्रैस्ट चरबी (Fat), सहायक ऊतकों (Supporting Muscles) और लसीकाओ वाले ऊतकों (Lymphatic Tissues) के बने होते हैं, जिनमें लोब (Lobe) होते हैं। स्तन कैंसर तब होता जब स्तनवाहिकाओं और लोब की कोशिकाओं में कैंसर हो जाता है।
ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण
स्तनों के बारे में जान लेने का सरल तरीका है T L C यानि
T – TOUCH Your Breasts (अपने स्तनों को छुएं) क्या आपको कुछ असामान्य लगता है? क्या आप स्तन में, छाती के ऊपरी हिस्से में, या बगलो में कोई गाँठ (Lump) महसूस करती हैं? क्या आपको स्तनों के ऊपर कोई परत महसूस होती है जो हटती नहीं? क्या स्तनों में साधारण सा दर्द है।
L – LOOK for changes (कुछ बदलाव तो नही लगता) क्या स्तनों के आकर या बनावट ( shape or texture) में कोई बदलाव है? क्या स्तनों के आकर या आकृति (size or shape) में कोई बदलाव है (कोई एक स्तन दूसरे के मुकाबले छोटा या बड़ा हैं)? स्तनों की त्वचा की बनावट में कोई बदलाव जैसे फ़टी फ़टी सी या कोई गड्डा सा पड़ जाना? रंग में बदलाव जैसे की निप्पल्स के आसपास सुर्ख लाल रंग.हो जाना? क्या निप्पल की दिशा सही है, कहीं वह अंदर की तरफ तो नही मुड़ गया है? किसी भी निप्पल से तरल पदार्ध का रिसना? निप्पल के आस पास किसी प्रदार्थ का रिसना या पपड़ी का जमना?
C – CHECK any unusual findings with your doctor (कुछ असामान्य सा महसूस हो तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें) क्या आपको कुछ असामान्य या अलग सा महसूस हो रहा है? अगर ऐसा है तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें। समय समय पर अपने स्तनों की जांच स्वयं करते रहें ऐसा करने से आप उनमे सामान्य तौर पर आने वाले बदलावों और असामान्य बदलाव के बारे में जान जायेंगे, अक्सर मासिक धर्म (Menses) के समय स्तनों में कुछ बदलाव अवश्य आता है। लक्षणों के उभरने का इंतज़ार न करें, नियमित रूप से स्तनों की जांच करवाएं। यह सर्वविदित है कि रोकथाम इलाज़ से बेहतर है ।

1 टिप्पणी: